फसल-कर्जमाफी के बावजूद पंजाब में किसानों की खुदकशी की वारदातें नहीं थम रही हैं। राज्य की कांग्रेस सरकार भी मानती है कि सालभर में 381 किसानों ने खुदकशी की जबकि विपक्षी दल 500 से ऊपर बता रहे हैं। खुदकशी करने वालों में ज्यादातर कर्ज से परेशान छोटे किसान ही हैं। पांच एकड़ तक के किसानों की दो लाख रुपये तक की कर्जमाफी स्कीम के पहले चरण में ढाई एकड़ तक के छोटे किसान ही शामिल किए गए हैं। बावजूद इसके खुदकशी नहीं थमी। कारण जानने की जगह कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार कर्जमाफी के चुनावी वादे की खानापूर्ति करने में लगी है।
सवा साल पहले किसान कर्जमाफी की चुनावी बिसात बिछाकर कांग्रेस ने किसानों में राहत की आस जगाई। राज्य के सिर दो लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। ऐसे में 90 हजार करोड़ रुपये की किसान कर्जमाफी नामुमकिन है। यह जानते हुए भी कर्जमाफी का सियासी दांव चल गया। यह दांव कारगर रहा और राज्य की सत्ता में कांग्रेस दस साल बाद वापसी करने में सफल रही। सरकार बनने के बाद बारी कर्जमाफी की थी। राज्य की खराब माली हालत को देखते हुए सरकार पलटी और कर्जमाफी सिर्फ पांच एकड़ तक के किसानों में अटक गई। उसमें भी पहले ढाई एकड़ तक की जमीन वाले किसानों को ही लाभ मिलना है। 9,500 करोड़ रुपये की कर्जमाफी में पांच एकड़ तक के 10.25 लाख किसानों को शामिल करने की रिपोर्ट सीएसीपी के पूर्व चेयरमैन डॉ. टी. हक की अध्यक्षता वाली कमेटी ने तैयार की थी।
मार्च 2017 में कांग्रेस सरकार बनी। अक्टूबर में कर्जमाफी का नोटिफिकेशन जारी हुआ। इसके तीन महीने बाद जनवरी में कर्जमाफी की शुरुआत पांच जिलों के ढाई एकड़ तक की जमीन वाले 47 हजार किसानों से हुई। इस शुरुआत पर भी तब सवाल खड़े हो गए जब कई जरूरतमंद वंचित रह गए। कई मामलों में 50-100 रुपये के चेक थमाए गए। वहीं नौकरी-पेशा सूटेड-बूटेड कर्जमाफी पाने आगे आए।
सरकार की किरकिरी हुई तो मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ठीकरा फोड़ा कर्जमाफी की सूची तैयार करने वाले कोऑपरेटिव सोसायटी के सचिवों पर। उन्होंने कहा कि पूर्व अकाली-भाजपा सरकार के समय भर्ती हुए इन सचिवों ने जानबूझकर सरकार की छवि खराब करने के लिए ऐसा किया। सात जनवरी से पांच अप्रैल तक कर्जमाफी के तीन राज्यस्तरीय आयोजनों में ढाई एकड़ तक के एक लाख से ज्यादा किसानों की 452 करोड़ रुपये की कर्जमाफी का सरकार का दावा है। आधी-अधूरी कर्जमाफी पर सरकार को घेर रहा विपक्ष कह रहा है कि जब तक किसान पूरी तरह कर्ज मुक्त नहीं होंगे तब तक न खुदकशी थमेगी, न किसान खुशहाल होंगे।
कर्जमाफी को समस्या का स्थाई हल न मानने वाले कृषि अर्थशास्त्री आर.एस. घुम्मण किसानों की आमदनी बढ़ाने की दलील देते हुए कहते हैं कि जब तक कृषि से किसानों को पर्याप्त आमदनी नहीं होगी तब तक उन्हें कर्ज मुक्त नहीं किया जा सकता। कर्जमाफी कुछ समय के लिए राहत है। फसली कर्ज में से किसानों का तकरीबन 50 फीसदी तो रोजमर्रा की जरूरतों पर खर्च हो जाता है। ऐसे में उन्हें कर्ज मुक्त करना तब तक नामुमकिन है जब तक कृषि के साथ आमदनी के अन्य साधन नहीं होंगे।
किसानों पर 90 हजार करोड़ रुपये के कर्ज में बैंकों के 59,654 करोड़ रुपये के फसली ऋण, 13,418 करोड़ रुपये टर्म लोन और 17 हजार करोड़ रुपये आढ़तियों का कर्ज हैं। पंजाब राज्य स्तरीय बैंक समिति (एसएलबीसी) के मुताबिक 59,654 करोड़ में सिर्फ 9,500 करोड़ रुपये की माफी के दायरे में पांच एकड़ तक के किसान शामिल किए गए हैं। पर, बड़े किसानों ने भी माफी की आस में कर्ज चुकाने बंद कर दिए हैं। एसएलबीसी संयोजक पीएस चौहान के मुताबिक दिसंबर 2017 तक कृषि क्षेत्र में बैंकों का आठ फीसदी एनपीए 15 फीसदी से अधिक होने की आशंका है। पहले चरण में सहकारी बैंकों और सोसायटीज के 2,700 करोड़ रुपये की कर्जमाफी के बाद सरकारी और प्राइवेट बैंकों की माफी होगी।
2017-18 के बजट में कर्जमाफी के लिए 1,500 करोड़ रुपये का प्रावधान था। इसमें से 452 करोड़ रुपये ही माफ किए गए। 2018-19 के बजट में कर्जमाफी के लिए 4,250 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। लेकिन, इसके लिए किसानों को अभी एक साल और इंतजार करना होगा। वित्त मंत्री मनप्रीत बादल का कहना है कि 31 मई तक सहकारी बैंकों व सोसायटीज की कर्जमाफी पूरी कर ली जाएगी। सरकारी बैंकों द्वारा दिए गए तकरीबन तीन लाख किसानों के आधार लिंक्ड डाटा की राजस्व विभाग द्वारा जांच के बाद जून से कर्जमाफी शुरू कर दी जाएगी। मनप्रीत का दावा है कि बैंकों से डाटा मिलने पर कर्जमाफी का बजट बढ़ाया जा सकता है।
विधानसभा कमेटी की रिपोर्ट पर सदस्य ने भी उठाए सवाल
किसानों की खुदकशी का कारण जानने और कृषि आमदनी बढ़ाने के लिए पांच विधायकों की विधानसभा कमेटी की 28 मार्च को विधानसभा में पेश 99 पन्नों की रिपोर्ट पर कमेटी के ही एक विधायक हरिंदर पाल सिंह चंदुमाजरा ने सवाल उठाए हैं। चंदुमाजरा ने कहा, “मालवा, माझा और दोआबा में खुदकशी करने वाले किसानों के तकरीबन 100 पीड़ित परिवारों से सात महीने में कमेटी की मुलाकातों में सामने आया कि आधी-अधूरी कर्जमाफी से किसानों की खुदकशी नहीं रोकी जा सकती। इस तथ्य को कमेटी ने रिपोर्ट में उजागर नहीं किया। इसे उठाने के लिए विधानसभा में मुझे मौका नहीं दिया गया।”
शिरोमणि अकाली दल के विधायक प्रेम सिंह चंदुमाजरा ने कहा कि माफी से वंचित रहने वाले किसानों को बैंकों ने नए कर्ज देने बंद कर दिए हैं। ऐसे किसान चार फीसदी के बजाय 18 फीसदी ब्याज पर मार्केट से फसली कर्ज लेने को मजबूर हैं। पुराने कर्ज वसूली के लिए जमीनों की कुर्की के नोटिस थमाए जा रहे हैं। कर्जमाफी से सहकारी क्षेत्र को होने वाले नुकसान की भरपाई करने की मांग वे राज्य सरकार से कर रहे हैं। भूजल स्तर में सुधार के नाम पर मुफ्त बिजली बंद करने को सरकार 14 लाख ट्यूबवेलों पर डिजिटल मीटर लगाने पर 1,200 करोड़ रुपये खर्च करने की तैयारी में है। इतनी बड़ी रकम मीटर के बजाय किसानों को गेहूं-धान के फसली चक्र से निकाल कर फलों-सब्जियों की खेती को बढ़ावा देने पर खर्च की जा सकती है।
कांग्रेस विधायक सुखबिंदर सिंह सरकारिया की अगुआई में पांच सदस्यीय विधानसभा कमेटी की रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए बीकेयू (कोकरी कलां) के अध्यक्ष सुखदेव सिंह कोकरी कलां ने कहा कि कर्ज तले दबे किसानों की खुदकशी के पीछे कहीं न कहीं आढ़तियों द्वारा किया जा रहा आर्थिक और मानसिक शोषण भी है। आढ़तियों को बचाने के लिए विधानसभा कमेटी ने एफआइआर में आढ़तियों का नाम एसपी स्तर के पुलिस अफसर की जांच के बाद ही शामिल करने की सिफारिश की है। जबकि पीड़ित परिवारों से मुलाकातें करने वाली कमेटी ने ही अपनी रिपोर्ट में जिक्र किया है कि कैसे आढ़ती कर्ज के लिए कोरे कागज पर अनपढ़ किसानों के हस्ताक्षर लेकर मनमाना सूद वसूलते हैं और न चुका पाने की स्थिति में उनका मानसिक उत्पीड़न करते हैं।