मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बाबाओं के फेर में फंस गए हैं। नर्मदा नदी के किनारे पौधे लगाने में गड़बड़ी और घोटाले को उजागर करने की धमकी देने वाले कुछ बाबाओं समेत पांच साधु-संतों को राज्यमंत्री का दर्जा देकर उनका मुंह बंद करने की कोशिश में शिवराज सिंह ने नया बवाल मोल ले लिया। संतों को साधने की नई रणनीति से भाजपा के भीतर और संत समाज में भी नाराजगी उभर आई। शिवराज सिंह ने जिन पांच बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा दिया है, वे संत से ज्यादा राजनीतिक और अपना हित साधने वाले बताए जाते हैं। राज्यमंत्री से नवाजे गए कंप्यूटर बाबा, योगेंद्र महंतजी और अन्य ने 28 मार्च को नर्मदा घोटाला रथयात्रा निकालने का ऐलान किया था। उनकी धमकी के कुछ दिन बाद सरकार ने नर्मदा किनारे के क्षेत्रों में पेड़ लगाने, जल संरक्षण और स्वच्छता पर निरंतर जागरूकता अभियान चलाने के लिए विशेष समिति का गठन कर नर्मदानंदजी, हरिहरानंदजी, कंप्यूटर बाबाजी, भय्यूजी महाराज और योगेंद्र महंतजी को सदस्य बनाकर राज्यमंत्री स्तर का दर्जा दे दिया।
कंप्यूटर बाबा अपनी गाड़ी पर राज्यमंत्री की पट्टिका लगाकर नर्मदा तट पर लोगों से रू-ब-रू होने लगे हैं। उनके साथ योगेंद्र महंतजी भी चल पड़े हैं। कंप्यूटर बाबा ने 1993 में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में देखने के लिए महीनों आखों पर पट्टी बांधे रखी थी। हालांकि, अब वे इससे इनकार करते हैं। उनका आश्रम इंदौर में मासी टेकरी के पास है। 2012 में उनके आश्रम की जमीन को लेकर शिकायतें आईं और वहां के तत्कालीन कलेक्टर ने सख्त रुख अपनाया तो बाबाजी अपने कई साथियों के साथ इंदौर के राजवाड़ा में धरने पर बैठ गए। भाजपा नेताओं की मान-मनौवल और प्रशासन के माफीनामे के बाद बाबाजी ने धरना खत्म किया। कंप्यूटर बाबा ने 2016 के उज्जैन सिंहस्थ मेले में भी घोटाला उजागर करने की धमकी दी थी। उसके बाद शिवराज सरकार के एक मंत्री ने नतमस्तक होकर बाबाजी की इच्छाएं पूरी कीं। कंप्यूटर बाबा मूल रूप से नरसिंहपुर के बताए जाते हैं। वे अपने दिमाग को कंप्यूटर से भी तेज चलने वाला बताते हैं, इस कारण लोग इन्हें कंप्यूटर बाबा कहने लगे।
योगेंद्र महंतजी रतलाम से दो बार कांग्रेस के टिकट पर पार्षद का चुनाव लड़े और दोनों बार हार गए। इसके बाद साधु बन गए। योगेंद्र महंतजी ने आउटलुक से कहा कि वे नर्मदा नदी के संरक्षण, जल रक्षण और पर्यावरण के लिए काम करेंगे। इसके लिए बड़े अफसरों से चर्चा के खातिर उन्हें पद मिलना जरूरी था। नर्मदा नदी की रक्षा के लिए सरकार ने समिति बनाकर संतों को सदस्य बनाया है और राज्यमंत्री का दर्जा दिया है। इसके विरोध से उन्हें फर्क नहीं पड़ता। योगेंद्र महंतजी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में भी कई संतों को मंत्री का दर्जा मिला हुआ है।
भय्यूजी महाराज का आश्रम इंदौर में है, लेकिन उनका असर महाराष्ट्र में ज्यादा है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने उन्हें राज्य अतिथि का दर्जा दे रखा था। वे संत से ज्यादा आध्यात्मिक गुरु, ज्योतिष और समाजसेवी बताए जाते हैं। इस नाते उनका नेताओं से करीबी संबंध है। 2015 में इंदौर में धर्म-धम्म सम्मलेन से नाराज होने पर मुख्यमंत्री को उन्हें मनाना पड़ा था। अन्ना हजारे का अनशन खत्म करवाने के लिए यूपीए की सरकार ने उन्हें भेजा था। भय्यूजी महाराज ने 2016 में संन्यास की घोषणा की। लेकिन पहली पत्नी के निधन के बाद 2017 में अपनी एक शिष्या से दूसरी शादी कर ली। आउटलुक से बातचीत में उनके समर्थक राज्यमंत्री का दर्जा लेने या नहीं लेने के मुद्दे पर बोलने से बचते दिखे।
राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त बाबा नर्मदानंद रेलवे रिकॉर्ड में दृष्टिहीन हैं और धार में राशनकार्ड में गरीबी रेखा की सूची में हैं। नर्मदानंद कहते हैं कि नर्मदा परिक्रमा से आंखों की रोशनी लौट आई। 2014 से वे रेल की रियायती टिकट का फायदा नहीं ले रहे हैं। उत्तर प्रदेश के शिकोहाबाद निवासी स्वामी हरिहरानंद का अमरकंटक और मैनपुरी में आश्रम है। स्वामी हरिहरानंद ने शिवराज सिंह की नर्मदा यात्रा की तारीफ की थी, जिसका फल राज्यमंत्री दर्जा के रूप में मिला।
यही नहीं, शिवराज सरकार के आनंद मंत्रालय ने श्रीश्री रविशंकर और जग्गी वासुदेव को भी उपकृत किया। मध्य प्रदेश के आला अफसर कैसे खुश रहें, इसका नुस्खा बताने के लिए श्रीश्री रविशंकर को राशि दी गई। मध्य प्रदेश में 32 मंत्री हैं। इनके अलावा 93 को कैबिनेट और राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है। इनके सत्कार पर सालाना 10 करोड़ रुपये से अधिक राशि खर्च हो रही है। सरकार ने 2016 में नर्मदा यात्रा के दौरान 312 लोगों को राज्य अतिथि का दर्जा दिया था।
बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा देने का अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि, शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती और निर्मोही अखाड़ा के महंत सीताराम दास ने विरोध किया है। महंत नरेंद्र गिरि का कहना है कि सरकार ब्लैकमेल हो गई। बाबाओं को मंत्री का दर्जा देने के फैसले से भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता और आरएसएस के लोग भी नाराज बताए जा रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रघुनंदन शर्मा ने साफ तौर पर फैसले को गलत बताया। कहा जा रहा है कि इस फैसले से आरएसएस के प्रमुख पदाधिकारी भैयाजी जोशी भी खुश नहीं हैं।
उधर, सरकार के फैसले के खिलाफ मध्य प्रदेश हाइकोर्ट की इंदौर बेंच में एक याचिका दाखिल की गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का कहना है कि समाज का हर वर्ग विकास और जन कल्याण योजनाओं से जुड़े बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा इसी कोशिश का हिस्सा है। लेकिन सवाल यह है कि शिवराज सिंह ने धमकी देने वाले बाबाओं को ही क्यों नवाजा?
मध्य प्रदेश सरकार ने पिछले साल जुलाई में एक ही दिन में सात करोड़ 11 लाख पौधे नर्मदा तट के गावों में लगवाए। छह करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य था। सरकार यह गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज करवाना चाहती है। अभी एक ही दिन में पांच करोड़ पौधे लगाने का रिकॉर्ड उत्तर प्रदेश सरकार के नाम दर्ज है। सरकार ने पौधरोपण का रिकॉर्ड गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज करवाने के लिए एक वन अफसर तैनात कर दिया। आइएफएस अधिकारी वाई. सत्यम जब शहडोल में वन संरक्षक थे, तो पौधरोपण के मामले में उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ था। शिवराज सरकार ने इस अधिकारी को रिटायरमेंट के बाद अतिरिक्त मुख्य प्रधान वन संरक्षक से पदोन्नत कर मुख्य प्रधान वन संरक्षक बना दिया। कुछ महीने बाद उन्हें राज्य योजना आयोग का सलाहकार बना दिया। वे सितंबर 2018 तक इस पद पर बने रहेंगे। लेकिन सरकार के प्रयास पर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड ने पानी फेर दिया। इसने करीब एक करोड़ 21 लाख पौधे लगाने की बात मानी, बाकी का प्रस्ताव लौटा दिया। वह प्रमाण के तौर पर वीडियो रिकॉर्डिंग मांग रहा है। मध्य प्रदेश वन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक खांडेकर का कहना है कि राज्य सरकार ने ऐसा कोई प्रस्ताव भेजा ही नहीं है। सरकार की बातचीत चल रही है और उन्होंने वीडियो फुटेज और अन्य जानकारियां मांगी हैं। पिछले साल रिकॉर्ड के चक्कर में वन समेत पंचायत, स्कूली शिक्षा और अन्य विभागों ने पौधे लगाए, जिसमें कई नष्ट हो गए। खांडेकर का कहना है कि 91 फीसदी पौधे जीवित हैं। लेकिन सरकार इस साल एक ही दिन की जगह 15 से 29 जुलाई तक पौधे लगाएगी। इससे साफ है कि कोई गड़बड़ी हुई है।
व्यापम सहित अन्य घोटालों के छीटों से परेशान और जनता से बढ़ती दूरी के चलते शिवराज सिंह ने बाबाओं के बवंडर से बचने के लिए उन्हें राज्यमंत्री का ओहदा देकर नई मुसीबत पाल ली है। अब बाबाओं को तमगा बांटने का कितना राजनैतिक लाभ शिवराज सिंह को विधानसभा चुनाव में होता है, यह तो समय ही बताएगा।