विरोध शांत करने के लिए साधु-संतों को राज्यमंत्री का दर्जा देने से भाजपा और आरएसएस के भीतर भी दिख रही नाराजगी
हालात बदलेंगे, जब समाज जगेगा। अपराध को सामुदायिक चश्मे से देखने की प्रवृत्ति और राजनैतिक संरक्षण की कोशिशों को नाकाम करने के लिए जनमानस को ही आगे आना होगा
देश में मिलावटी खाना और पानी से बीमारियां बेइंतहा बढ़ने लगीं, खाद्य सुरक्षा की जिम्मेदार एफएसएसएआइ का तंत्र रोकथाम में नाकाम, सख्त कानून और पारदर्शी तंत्र की फौरी दरकार
फूड पॉइजनिंग की समस्या लगातार बढ़ रही है। वहीं, देश भर में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता और मानक तय करने वाली केंद्रीय एजेंसी फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडड्र्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआइ) इनके रेगुलेशन को लेकर अपनी मजबूरियों का ठीकरा राज्य सरकारों पर फोड़ती है। एफएसएसएआइ की तमाम कोशिशों के बावजूद फूड सेफ्टी अब भी बड़ा सवाल बना हुआ है। इनसे जुड़े तमाम मुद्दों पर आउटलुक ने एफएसएसएआइ के सीईओ पवन कुमार अग्रवाल से लंबी बातचीत की। पेश हैं चंदन कुमार से उनकी बातचीत के मुख्य अंशः
देश में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को लेकर एक तरफ लोगों में जागरूकता की कमी है तो दूसरी तरफ संबंधित निकाय और अधिकारी अपनी जिम्मेदारी सही से नहीं निभा रहे। ऐसे में लोगों तक घटिया गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थ पहुंच रहे हैं और इस पर लगाम लगाने के तमाम सरकारी प्रयास बेहद नाकाफी हैं। फूड सेफ्टी और मिलावट से जुड़े तमाम मुद्दों पर कट्स (कंज्यूमर यूनिटी ऐंड ट्रस्ट सोसायटी)-इंटरनेशनल के डायरेक्टर जॉर्ज चेरियन से चंदन कुमार की बातचीतः
फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के विकास के लिए काम करने वाली ऑल इंडिया फूड प्रोसेसर्स एसोसिएशन (एआइएफपीए) देश की पुरानी संस्था है। बड़ी इकाइयों के अलावा एमएसएमई (कुटीर, लघु, और मझोले उद्योग) भी इससे जुड़े हैं। फूड सेफ्टी के विभिन्न पहलुओं को लेकर एआइएफपीए के अध्यक्ष डॉ. सुबोध जिंदल से अजीत झा ने बातचीत की। कुछ अंशः
स्वास्थ्य पर मिलावट के धीमे असर का पता लगाना आसान नहीं, लेकिन परिणाम गंभीर
कर्नाटक में येदियुरप्पा भाजपा का चेहरा, दोबारा सत्ता में आने के लिए पहले की गलतियों से बचने की कोशिश
अमरिंदर सिंह सरकार किसान कर्जमाफी के अपने चुनावी वादे में फंसी, आधी-अधूरी राहत से खत्म नहीं हो पाई किसानों की परेशानी
प्रश्नपत्र लीक और सरकारी भर्तियों में भारी घपलेबाजी से खट्टर सरकार हलकान, डेढ़ साल बाद होने वाले चुनाव में पड़ सकता है भारी
पंचायत चुनाव से पहले हिंसा के कारण सत्ताधारी तृणमूल के खिलाफ मतभेद भुलाकर भाजपा, कांग्रेस और वामदलों के बीच गठबंधन की अटकलें
लौह अयस्क खनन पर सुप्रीम कोर्ट के रोक से राज्य सरकार के हड़बड़ी में किए फैसले पर उठे सवाल, इससे जुड़े हजारों लोगों के काम-धंधे छिनने से समस्या गहराई, कोई हल निकालने में राज्य सरकार ही नहीं, केंद्र के भी हाथ-पांव फूले
युवा जोश और अनुभव की बदौलत भारतीय खिलाड़ियों ने ओलंपिक में पदकों को लेकर जगाईं नई उम्मीदें
स्त्री केंद्रित फिल्मों में बड़ी हीरोइनों के साथ कई अनजाने अभिनेताओं की जमात को मिला मौका
देश की लगभग हर भाषा में देवदास को न जाने कितनी बार फिल्माया गया, हाल में सुधीर मिश्रा की दास देव बनी, आखिर क्या है इसका मर्म! पहली फिल्म के कुछ खास प्रसंग और व्याख्या
मन के अनुबंध की क्या कोई कीमत होती है? अगर होती भी होगी तो जनता है न, उसे चुकाने के लिए
आठ साल के मासूम के साथ कुकर्म और कत्ल मौजूदा सामाजिक हकीकत की डरावनी तस्वीर
देर से जगी योगी सरकार के फैसले पर भाजपा के भीतर भी उठे कई सवाल
भारत बंद के बाद दलितों पर हमले और अंधाधुंध गिरफ्तारियों से जातिगत टकराव बढ़ने की आशंका
जातिगत टकराव में बदला दलित संगठनों का भारत बंद
राजस्थान की सियासत में बड़ा उलट-फेर ला सकती हैं भारत बंद के बाद पैदा हुई स्थितियां
ऊना, सहारनपुर और अब भारत बंद का देशव्यापी असर देश के पटल पर नए दलित नेतृत्व की धमक का आगाज
आंदोलन से साबित हुआ कि अब दलितों, पिछड़ाें को अपमानित और शोषित करके नहीं रखा जा सकता
सरकारी बैंक भगोड़ों को कर्ज देने में उदार मगर जरूरतमंद आम आदमी के लिए सख्त कायदों के पैरोकार
सक्रिय राजनीतिज्ञ, घुमक्कड़, उपन्यासकार, शोधार्थी, अध्यापक और बहुभाषाविद महापंडित राहुल जी को याद करना हमारे लिए आज के हालात से उबरने में मददगार होगा
महज अड़सठ साल के जीवन में कोई इतना कुछ कर सकता है, यकीन करना मुश्किल
राहुल जी की तस्वीरों, पांडुलिपियों में विराट व्यक्तित्व की झलक
पिछले साल जब एक ओलंपिक पदक विजेता को खेल मंत्रालय की कमान सौंपी गई तो इस क्षेत्र में कुछ बेहतर होने की उम्मीद जगी थी। आज सात महीने बाद राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय खिलाड़ियों की स्वर्णिम सफलता उन उम्मीदों को परवान चढ़ा रही है। देश में खेलों के लिए माहौल तैयार करने से लेकर खिलाड़ियों के प्रशिक्षण, सुविधाओं और बुनियादी ढांचे के निर्माण से जुड़ी कई अहम कोशिशें की जा रही हैं। कई पुरानी योजनाओं को सुधारा जा रहा है तो कई नई पहल रंग ला रही हैं। केंद्र की एनडीए सरकार के चौथे साल में खेलों का वर्तमान और भविष्य कैसा नजर आ रहा है, इससे जुड़े मुद्दों पर युवा मामले एवं खेल राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ से अजीत सिंह ने लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसके मुख्य अंश:
विदर्भ की विधवाओं और भारतीय समाज में विधवाओं की स्थिति को रेखांकित करती है यह किताब
इस संग्रह में शंख घोष कई बार बहुत सरल और सादे लगते हैं, लगभग सपाटपन को छूते हुए