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नए सियासी समीकरण की आहट

पंचायत चुनाव से पहले हिंसा के कारण सत्ताधारी तृणमूल के खिलाफ मतभेद भुलाकर भाजपा, कांग्रेस और वामदलों के बीच गठबंधन की अटकलें
भिड़े कार्यकर्ताः बर्धमान में नामांकन दाखिल करने के दौरान झड़प

कलकत्ता हाइकोर्ट ने 12 अप्रैल को अगले आदेश तक पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव प्रक्रिया पर रोक लगा दी। इससे एक दिन पहले राज्य के उत्तरी 24 परगना जिले में विजय जुलूस के दौरान लड़ाई में दो लोगों की मौत हो गई थी। जस्टिस सुब्रत ताल्‍लुकदार ने राज्य निर्वाचन आयोग को 16 अप्रैल तक पंचायत चुनाव के लिए दाखिल और खारिज नामांकन की संख्या सहित चुनाव प्रक्रिया पर रिपोर्ट पेश करने को कहा था। ऐसे में सवाल है कि आखिर वे कौन सी परिस्थितियां थीं जिसके कारण हाइकोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा।

पंचायत चुनाव से एक महीने पहले से ही पश्चिम बंगाल के अलग-अलग हिस्सों में झड़प की शुरुआत हो गई। विपक्षी दल भाजपा और माकपा के उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल करने से रोका गया। राज्य की 3,358 ग्राम पंचायतों में 48,571 सीटें हैं जबकि 341 पंचायत समिति में 9,240 और 20 जिला परिषदों में 825 सीटें हैं। नामांकन वापस लेने की आखिरी तारीख 16 अप्रैल थी। चुनाव एक, तीन और पांच मई को होना था। लेकिन, हाइकोर्ट के आदेश के बाद से संशय की स्थिति बनी हुई है।

विपक्षी पार्टियों का आरोप है उनके उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल करने से रोकने के लिए सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के कार्यकर्ता हिंसा कर रहे हैं। नामांकन दाखिल करने के पहले ही दिन मालदा में 26 साल के युवक की मौत हो गई। पुलिस सूत्रों के अनुसार मृतक रिजवानुर रहमान का किसी भी राजनैतिक दल से संबंध नहीं था। वह मालदा के कालीचक इलाके के बामनग्राम पंचायत में टीएमसी के दो गुटों के बीच गोलीबारी की चपेट में आ गया। बीरभूम, हुगली और कूचबिहार में पार्टी उम्मीदवार का नामांकन देखने के लिए रिटर्निंग अधिकारी के कार्यालय जा रहे वरिष्ठ भाजपा नेताओं की पिटाई की गई।

एक अन्य घटना में अप्रैल के पहले हफ्ते में बीरभूम के नलहाटी में माकपा के पूर्व विधायक रामचंद्र डोम की तृणमूल समर्थक गुंडों ने पिटाई कर दी। डोम पर हमले के अगले दिन माकपा केंद्रीय समिति के सदस्य और पूर्व सांसद बासुदेव आचार्य पर भी कुछ गुंडों ने हमला किया और वे पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं के साथ घायल हो गए। ये लोग पुरुलिया के काशीपुर प्रखंड विकास अधिकारी के कार्यालय में पार्टी उम्मीदवार का नामांकन दाखिल करवाने जा रहे थे। आरोप है कि हमला टीएमसी के स्‍थानीय विधायक स्वप्न बेलथरिया और उनके समर्थकों की शह पर किया गया। एक अखबार की रिपोर्ट में माकपा के हवाले से कहा गया है कि जब टीएमसी के काडर वामपंथी कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट कर रहे थे, पुलिस मूकदर्शक बनी हुई थी।

हालांकि, टीएमसी नेतृत्व इन घटनाओं में पार्टी की संलिप्तता से इनकार करता है, लेकिन इस पर यकीन नहीं किया जा सकता। हिंसा की इन घटनाओं से कुछ समय पहले ही बीरभूम से आने वाले टीएमसी नेता अनुब्रत मंडल ने टीवी पर कहा था, “‌भाजपा के उम्मीदवार सरकारी कार्यालय में नामांकन दाखिल करने पहुंचते हैं तो वे देखेंगे कि हमारी सरकार किस तरह का विकास (मतलबः हिंसा) करने में सक्षम है।” रिपोर्टों के अनुसार पूर्वी मिदनापुर जिले में कैबिनेट मंत्री शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि तृणमूल नेता जिस पंचायत को विपक्ष मुक्त रखेंगे उस पंचायत को वे पांच करोड़ रुपये की परियोजनाएं देंगे।

लगभग सभी प्रखंड विकास अधिकारी के कार्यालय (बीडीओ ऑफिस) में जहां पंचायत चुनाव के लिए नामांकन दाखिल होने थे, टीएमसी ने विपक्षी दलों को घुसने से रोकने के लिए काडरों का शिविर लगाया। मुर्शिदाबाद में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर चौधरी के नेतृत्व में निकाली गई रैली पर भी टीएमसी कार्यकर्ताओं ने हमला किया। कुछ गुंडों ने फारवर्ड ब्लॉक के पूर्व विधायक ‌बिश्वनाथ कारक की पत्नी और बहू के साथ आरामबाग में उस समय बदसलूकी की जब दोनों नामांकन दाखिल करने जा रही थीं। बांकुड़ा में विधानसभा में माकपा के नेता सुजन चक्रवर्ती पर पुलिस की मौजूदगी में ‘ममता बनर्जी जिंदाबाद’ का नारा लगाकर हथियारबंद अपराधियों ने हमला किया। टीएमसी कार्यकर्ताओं की पिटाई में बुरी तरह घायल हुए एक भाजपा कार्यकर्ता की भी हाल ही में बांकुड़ा में मौत हुई है। भाजपा के स्‍थानीय नेता अभिजीत मंडल ने बताया कि मृतक अजीत मुर्मु नामांकन दाखिल करने के लिए रानीबांध बीडीओ ऑफिस गए थे। वहीं, टीएमसी कार्यकर्ताओं ने धारदार हथियारों से उन पर हमला किया और बम फेंके। हिंसा के विरोध में वाम मोर्चा ने 13 अप्रैल को छह घंटे का बंद बुलाया और सत्ताधारी दल पर ‘लोगों का अधिकार कुचलने’ का आरोप लगाते हुए प्रदर्शन किया। पश्चिम बंगाल के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने आउटलुक को बताया, “जहां भी पंचायत चुनाव को लेकर हिंसा की खबर मिली है उन सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं।” अतिरिक्त महानिदेशक (कानून-व्यवस्‍था) अनुज शर्मा के अनुसार, “बीरभूम में संघर्ष के बाद रैपिड एक्‍शन फोर्स के 50 जवान भेजे गए।” शर्मा ने बताया, “पांच अप्रैल तक 1,788 लोग एहतियातन हिरासत में लिए गए थे, 303 लोग गिरफ्तार किए गए और 568 वारंट जारी किए गए।”

पंचायत चुनाव से पहले राज्य में हिंसा भड़काने के आरोपों से इनकार कर रहा टीएमसी नेतृत्व इस बात को समझने में नाकाम रहा है कि ऐसा करके वह पश्चिम बंगाल में लगभग असंभव गठबंधन की संभावना को हवा दे रहा है। चुनाव प्रक्रिया के दौरान विपक्षी नेताओं पर जिस तरह से हमले किए गए, उसके प्रत्यक्ष नतीजों की संभावना राजनैतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनती जा रही है। कहा जा रहा है कि भाजपा, कांग्रेस और वाम दल अपने गहरे वैचारिक और राजनैतिक मतभेद ‌भुलाकर टीएमसी के खिलाफ साथ आ सकते हैं। गौरतलब है कि कांग्रेस और वाम दलों ने 2016 में गठबधंन किया था, लेकिन इससे उन्हें खास फायदा नहीं हुआ। दोनों दलों के बीच आज भी परोक्ष तालमेल है। ऐसे में दोनों दल पंचायत चुनाव के लिए साथ आएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हालांकि, हाल के समय में पश्चिम बंगाल में भाजपा के मुख्य विपक्षी दल के तौर पर उभरने के कारण सभी समीकरण उलझ चुके हैं।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक प्रदेश भाजपा के नेता सायंतन बसु ने पुरुलिया अस्पताल जाकर माकपा के पूर्व सांसद का हाल जाना था, जो एक हमले में जख्मी होने के बाद आइसीयू में थे। हाल में सोशल मीडिया में एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें कुछ नकाबपोश भाजपा नेता पर हमला करते नजर आए थे। भाजपा नेताओं का आरोप है कि हमलावर टीएमसी से जुड़े थे। सत्ताधारी दल ने उम्मीद के अनुसार इस आरोप को भी खारिज कर दिया। बरुईपुर में टीएमसी कार्यकर्ताओं ने दिनदहाड़े एक भाजपा उम्मीदवार की बेटी की पिटाई कर दी। भाजपा का यह नेता नामांकन दाखिल करने जा रहा था। एक रिपोर्ट के मुताबिक टीएमसी के हथियारबंद लोग ट्रकों पर सवार होकर अलीपुर प्रशासनिक परिसर पहुंचे और ‌विपक्षी दल के उम्मीदवारों का पीछा शुरू कर दिया। जब वे परिसर में उतरे उस वक्त पुलिस भी थी, लेकिन उसने अनदेखा कर दिया। मीडिया के लोगों को भी नहीं बख्‍शा गया। उन्हें अपने कैमरे या मोबाइल का इस्तेमाल करने से रोका गया।

राज्य में कानून-व्यवस्‍था चरमरा चुकी है। राजनैतिक हिंसा पर राष्ट्रीय मीडिया का पर्याप्त ध्यान नहीं है। इसके कारण बंगाल में विपक्षी दलों के पास कम विकल्प बचे हैं। एक साथ आने के विकल्प पर गंभीरता से विचार करने को वे मजबूर हैं। तो, क्या बंगाल में विपक्षी पार्टियां कांग्रेस, वाम दल और भाजपा अपने साझा दुश्मन टीएमसी का मुकाबला करने के लिए एक मंच पर आएंगी?

इसका जवाब समय ही दे सकता है। लेकिन, पंचायत चुनाव से पहले विपक्षी दलों का गठबंधन हो गया तो निश्चित तौर पर बंगाल के राजनैतिक इतिहास में नया अध्याय शुरू हो जाएगा।

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