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छोटी प्रदर्शनी, बड़ा दर्शन

राहुल जी की तस्वीरों, पांडुलिपियों में विराट व्यक्तित्व की झलक
विरल इतिहासः आइजीएनसीए ने एक छत के नीचे समेटी महापंडित की यादें

इस साल दुनिया भर में महापंडित राहुल सांकृत्यायन की 125वीं जयंती मनाई जा रही है। केदारनाथ पांडेय से महापंडित राहुल सांकृत्यायन बनने का उनका सफर जितना रोचक रहा, उतने ही रोचक सफर कर उन्होंने दुनिया नाप डाली थी। 16 मार्च से 15 अप्रैल तक इसी रोचक सफर को दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में तस्वीरों, तिब्बत से आई पांडुलिपियों, राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखित पुस्तकों और मूल थंका तिब्बती पेंटिंग्स द्वारा प्रदर्शित किया गया। इस प्रदर्शनी में राहुल सांकृत्यायन के जीवन पड़ावों को दर्शाते फोटो थे। उन्हें मिले सम्मान, दूसरे विद्वानों के साथ उनकी फोटो, उनके परिवार की फोटो आदि उनके किसी भी प्रशंसक के लिए उपहार की तरह थे। इन फोटो में राहुल सांकृत्यायन के विभिन्न रूपों को देख कर उन्हें समझना आसान होता है। ये तस्वीरें उनकी बेटी जया सांकृत्यायन ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र को उपलब्ध कराई हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की पूर्वी-एशिया इकाई की मुखिया और इस प्रदर्शनी की क्यूरेटर राधा बनर्जी सरकार ने बताया कि इनमें से कई फोटो अब आइजीएनसीए के पास ही रहेंगे और इन्हें स्थायी रूप से प्रदर्शित करने की व्यवस्था की जाएगी। राहुल सांकृत्यायन का लगभग सभी काम पटना संग्रहालय में गया है। प्रदर्शनी में फोटोग्राफ के अतिरिक्त सभी वस्तुएं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र को पटना संग्रहालय द्वारा मुहैया कराई गई थीं।

प्रदर्शनी के माध्यम से ही आम जन ने असली और दुर्लभ थंका पेंटिंग्स के दीदार किए। इनमें से कुछ पेंटिंग्स 15वीं और 16वीं शताब्दी की हैं। राधा बनर्जी सरकार ने आउटलुक से कहा, “हम चाहते थे कि युवा आएं और राहुल सांकृत्यायन का काम देखें। जो लोग पुस्तकें पढ़ते हैं उन्हें तो उनके बारे में मालूम है लेकिन युवा इससे जुड़ेंगे तभी उनका काम आगे बढ़ेगा।” इस प्रदर्शनी को दर्शकों का इतना अच्छा रेस्पांस मिला कि इसकी अवधि नौ अप्रैल से एक सप्ताह आगे बढ़ा दी गई।

लगभग चार सप्ताह आइजीएनसीए राहुल सांकृत्यायन से जुड़े फोटो के साथ तिब्बत से लाई थंका पेंटिंग्स के आकर्षण का केंद्र बना रहा। हालांकि, केंद्र उनके द्वारा लाई गईं और भी पांडुलिपियों को प्रदर्शनी में रखना चाहता था। लेकिन पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया जा रहा है इसी के चलते उन्हें पटना से दिल्ली नहीं लाया जा सका। प्रदर्शनी के विचार पर सरकार कहती हैं, “राहुल जी की 125वीं जयंती पर आइजीएनसीए में देश-विदेश से आए कई विद्वान इकट्ठे हुए थे। 14 से 16 मार्च के बीच राहुल सांकृत्यायन के काम के हर पहलू को समेटे हुए एक कॉन्फ्रेंस में जब उनकी घुमक्कड़ी से लेकर बौद्ध दर्शन और मार्क्सवाद को लेकर पर्चे पढ़े गए तभी तय हुआ कि एक पूरी पीढ़ी है जो उनके काम से अनभिज्ञ है उसे सांकृत्यायन से जोड़ा जाना बहुत जरूरी है। उनके काम को देखे बिना उससे जुड़ाव की दिक्कतों को समझा गया और तब पटना संग्रहालय से बात हुई और राहुल सांकृत्यायन पर एक प्रदर्शनी की योजना बनी।” वह आगे कहती हैं, “सांकृत्यायन को जितना जाना गया है, उतना जानना अभी बाकी है।” 

आइजीएनसीए में पहली बार उन थंका पेंटिंग्स का प्रदर्शन हुआ जो लगभग 80 साल से स्टोर में सहेजी हुई रखी गई थीं। कुछ पेंटिंग्स पहली बार दिल्ली लाने के लिए ही निकाली गईं। इन्हें प्रदर्शनी में रखना जोखिम का काम था, इसलिए केंद्र ने विशेष एक्रेलिक शीट के पीछे इन्हें लगाया ताकि कोई छू कर इन्हें नुकसान न पहुंचाए। तिब्बत से वे पांडुलिपियों के साथ अन्य वस्तुएं भी लाए थे। उन्हीं में से चुनिंदा चीजों को पटना संग्रहालय से दिल्ली लाया गया। अब इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र प्रदर्शनी के बाद राहुल सांकृत्यायन के लेखन को एक साथ समग्र रूप में लाने के लिए प्रयास कर रहा है।   

राधा बनर्जी कहती हैं, “उन्होंने हिंदी भाषा के लिए भी उतना ही काम किया जितना बौद्ध धर्म या दर्शन पर। औपचारिक शिक्षा के बिना उन्हें 30 से ज्यादा भाषाएं आती थीं। हम चाहते हैं बच्चे और युवा आएं और जानें कि वे सच में महापंडित थे। उन्होंने न सिर्फ उन दुर्लभ पांडुलिपियों को बचाया बल्कि उस पर अपने विचार भी लिखे जो महत्वपूर्ण हैं।” 

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