शाम के धुंधलके में जनता दल (सेक्युलर) के टिकटार्थियों का एक छोटा सा झुंड पार्टी सुप्रीमो एच.डी. देवेगौड़ा के बेंगलुरू निवास पर धैर्यपूर्वक इंतजार कर रहा है। उम्मीद लगाए ये लोग पर्चा भरने के लिए जरूरी ‘फॉर्म बी’ लेने आए हुए हैं। हालांकि परंपरा रही है कि इस कागज को पहले मंदिर में आशीर्वाद के लिए ले जाया जाता है और फिर पार्टी सुप्रीमो इसे अपने हाथों से चुनाव लड़ने वालों को सौंपा करते हैं। 85 साल के देवेगौड़ा दूसरी मंजिल के अपने कमरे में कॉफी टेबल के सामने हाथ में कॉलिंग बेल लिए कुर्सी पर बैठे हैं। पार्टी के लोग और मुलाकाती एक-एक कर आ-जा रहे हैं। पार्टी प्रमुख कहते हैं, “आज अगर जल्दी सोने जा सका तो मेरी खुशकिस्मती होगी।” वे हर किसी को आश्वासन भर दे रहे हैं। कोई साफ संदेश नहीं है। वैसे भी कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर अभी हर कोई बस अनुमान ही लगा रहा है।
जेडी (एस) इसमें और उलझन ही बढ़ा रहा है। जानकारों का मानना है कि 1999 में बनी पार्टी अब अपनी पुरानी छवि की परछाई मात्र रह गई है। हालांकि दक्षिण कर्नाटक के पुराने मैसूर क्षेत्र में जहां भारतीय जनता पार्टी जड़ें जमाती नहीं दिख रही है, वहां जेडी (एस) की अभी भी मजबूत मौजूदगी है और वही सत्तारूढ़ कांग्रेस को टक्कर दे सकता है। उसकी मजबूती इस कदर है कि मुख्यमंत्री सिद्धरमैया खुद अपने निर्वाचन क्षेत्र चामुंडेश्वरी को हल्के में नहीं ले सकते। देवेगौड़ा वोक्कालिगा हैं जो कर्नाटक में दूसरा सबसे बड़ा जाति समुदाय है। इस समुदाय का वहां वैसा ही दबदबा है जैसा उत्तरी कर्नाटक में लिंगायतों का है।
सिद्धरमैया की उम्मीदवारी वाली शहरी मैसूर की चामुंडेश्वरी सीट पर जेडी (एस) की मजबूती का राज क्या है? देवेगौड़ा कुछ कसैले अंदाज में कहते हैं, “वहां कुल 2.30 लाख वोटरों में 40,000 वोक्कालिगा (मतदाता) हैं। अब सवाल है कि क्या वे वाकई अहिंदा नेता हैं?” यह एक वक्त उनकी पार्टी में रहे सिद्धरमैया के लिए ताना था जो अल्पसंख्यक, पिछड़े और दलितों के समीकरण पर भरोसा कर रहे हैं, जिसे कन्नड़ में अहिंदा कहा जाता है। वैसे, सिद्धरमैया दो बार के चुनावों के बाद चामुंडेश्वरी सीट से फिर लड़ रहे हैं क्योंकि उनके बेटे यतीन्द्र बगल की उनकी सीट वरुणा से लड़ रहे हैं। अलबत्ता भाजपा भी दोनों को उनके निर्वाचन क्षेत्रों में घेरने की कोशिश कर रही है।
एक स्तर पर देखा जाए तो यह लड़ाई देवेगौड़ा और सिद्धरमैया के बीच निजी दिखाई पड़ रही है। यहां तक कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी जेडी (एस) को भाजपा की बी टीम बताने के बाद देवेगौड़ा पर नरम दिखाई दे रहे हैं। देवेगौड़ा कहते है, “सिद्धरमैया तो खुलकर हमले बोल रहा है। इससे मुझे खीज होती है, वरना मुझे क्या पड़ी है कि मैं उसकी बातों पर कान दूं। मैं तो उसे नजरअंदाज कर देता।”
जेडी (एस) को मालूम है कि कड़े मुकाबले में फायदा भाजपा को होगा। भाजपा के एक प्रवक्ता ने आउटलुक से कहा, “जेडी (एस) की मौजूदगी हमारे लिए हमेशा ही फायदेमंद है। जेडी (एस) को जाने वाला ज्यादातर वोट कांग्रेस का है। वह कहीं भी कभी हमारा सीधे तौर पर प्रतिद्वंद्वी नहीं है।” जानकारों का मानना है कि देवेगौड़ा का गणित यह है कि इन चुनावों में किसी को बहुमत नहीं मिल रहा है और ऐसी स्थिति में जेडी (एस) को मोलभाव का मौका मिल जाएगा, जैसा 2004 में हुआ था।
हालांकि देवेगौड़ा कहते हैं, “हम अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि कायम रखने के लिए दोनों बड़ी पार्टियों से बराबर दूरी बनाए हुए हैं।” वे बहुजन समाज पार्टी के साथ 20 सीटों पर गठबंधन के साथ एआइएमआइएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के सहयोग की तरफ भी इशारा करते हैं। सिद्धरमैया कहते हैं, “भाजपा और जेडी (एस) के बीच किसी भी तरह का ‘रणनीतिक’ गठबंधन तो मात्र छलावा है।” इस महीने की शुरुआत में चामुंडेश्वरी में उन्होंने मतदाताओं से कहा कि जेडी (एस) 25 से ज्यादा सीटें नहीं ला पाएगी। लेकिन बाद में शायद कुछ और सोचकर उन्होंने एक और सीट बादामी से भी पर्चा भर दिया। बादामी सीट सुरक्षित मानी जाती है क्योंकि वहां उनके कुर्बा समुदाय के लोगों की संख्या ज्यादा है।
देवेगौड़ा पूछते हैं, “बादामी जाकर लड़ने की क्या जरूरत है?” वे दावा करते हैं कि वहां उनके प्रति बहुत नाराजगी है क्योंकि उन्होंने दूसरे समुदायों को किनारे कर दिया है। “देखिए एक जाति गणना की गई थी। फिर इसे रिलीज क्यों नहीं किया गया? क्योंकि उनके समुदाय के 70 फीसदी से ज्यादा लोग 2ए (आरक्षण श्रेणी) के अंतर्गत आते हैं।” हालांकि सिद्धरमैया अपनी कल्याणकारी योजनाओं की बात करते हैं जिसने हर निर्धन समुदाय को लाभ पहुंचाया।
देवेगौड़ा और सिद्धरमैया के बीच आई कड़वाहट का संबंध 2005 की घटना से है, जब डिप्टी सीएम रहे सिद्धरमैया को जेडी (एस) से निष्कासित कर दिया गया था। तब देवेगौड़ा के बेटे एच.डी. कुमारस्वामी ने कांग्रेस से समर्थन खींच कर भाजपा के साथ नई सरकार बना ली थी। वह सरकार बीस महीने चली थी।
वर्षों से दोनों नेता एक-दूसरे पर हमले करते रहे हैं। देवेगौड़ा पुरानी बातें याद करते हैं। वे कहते हैं, “(रामकृष्ण) हेगड़े उनके गुरु थे। इस पर कोई यकीन करेगा? हेगड़े ने मुझसे कहा था, इस आदमी को ज्यादा तवज्जो मत देना।’’ फिर भी 2015 में उनकी पार्टी ने वृहत बेंगलूरू महानगर पालिका पर काबिज भाजपा को हटाने के लिए कांग्रेस का साथ दिया। फिर 2016 में जब कावेरी जल विवाद गहराया तो सिद्धरमैया दोबारा देवेगौड़ा के साथ संबंधों को मधुर बनाने में जुट गए। यहां तक कि पिछले साल तक सिद्धरमैया की अगुआई वाली कांग्रेस जब नजंनगुडा उपचुनाव में पिछड़ रही थी तो जेडी (एस) ने उम्मीदवार को जीतने में मदद की थी। वहां सिद्धरमैया की साख दांव पर लगी थी। लेकिन राज्यसभा चुनाव बिलकुल अलग मसला था। कांग्रेस ने न सिर्फ प्रतिस्पर्था की बल्कि जेडी (एस) बागियों से समर्थन भी हासिल किया।
जब से जेडी (एस) कमजोर हुआ है, उसके कई बड़े नेता दूसरी पार्टियों में जा रहे हैं। अभी पिछले ही महीने राज्यसभा मतदान के बाद से कांग्रेस ने पार्टी के 10 वरिष्ठ नेताओं पर लक्ष्य साधा और इनमें से कई को आगामी विधानसभा लड़ने के लिए टिकट दिया। जाहिर है जेडी (एस) भी दूसरी पार्टियों से असंतुष्ट विधायकों को उठा रहा है। लेकिन जानकारों का कहना है कि पार्टी में अब अल्पसंख्यक और पिछड़े समुदाय के नेता ज्यादा नहीं बचे हैं और पार्टी का एक समय इन्हीं समुदायों में बड़ा आधार हुआ करता था।
राजनीतिक टिप्पणीकार नरेन्द्र पाणि कहते हैं, “ये लोग मुख्य रूप से वोक्कालिगा पार्टी बन गए हैं। यह भी उनके लिए चुनौती होगी क्योंकि नए वोक्कालिगा नेता उभर रहे हैं।” उनमें से एक चिन्नापटन सीट के लिए भाजपा में नए भर्ती हुए उम्मीदवार हैं जो कुमारस्वामी के गढ़ शोले शहर रामनगर के बगल वाली सीट है। पूर्व मुख्यमंत्री इस बार रामनगर और चिन्नापटन दोनों सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके समर्थक कहते हैं कि उनकी अपनी सीट जीतने के लिए कुमारस्वामी को प्रचार की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन वहां फुसफुसाहट भी है कि दूसरी सीट के लिए उन्हें कांग्रेस की मदद की जरूरत पड़ेगी।
खास डिजाइन की गई बस पर सवार अनिता कुमारस्वामी रामनगर के मतदाताओं से कहती हैं, “इस समय उनके पास अवसर है कि वे फिर से मुख्यमंत्री बन जाएं।” कुमारस्वामी अपनी पत्नी के हाथ से माइक ले लेते हैं, रामनगर का आकाश तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता है। समर्थकों की सीटियों और जयकारे के बीच वे कहते हैं, “अगर ऐसा हुआ तो यह आशीर्वाद होगा।”