झारखंड की सियासत 28 मई को गोमिया और सिल्ली में होने वाले विधानसभा उपचुनाव की वजह से गरम है। कोयला चोरी और अभद्रता के आरोप में झामुमो विधायकों को सजा सुनाए जाने के कारण दोनों सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। झामुमो को उपचुनाव में कांग्रेस, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो, राजद सहित तमाम विपक्षी दलों का समर्थन हासिल है। दूसरी ओर, एक सीट पर सत्ताधारी भाजपा और उसकी सहयोगी आजसू अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। यही कारण है कि अगले साल होने वाले आम चुनावों और विधानसभा चुनावों से पहले राज्य के सियासी समीकरण तय करने के लिहाज से ये उपचुनाव बेहद महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं।
गोमिया से झामुमो विधायक रहे योगेंद्र महतो को कोयला चोरी, तो सिल्ली से झामुमो विधायक रहे अमित महतो को अंचलाधिकारी के साथ गाली-गलौज, अभद्रता और मारपीट के मामले में सजा सुनाए जाने के बाद सदस्यता गंवानी पड़ी थी। दो साल पहले इसी तरह आजसू के कमल किशोर भगत को मारपीट के एक मामले में सजा मिलने की वजह से उनकी सदस्यता खत्म हो गई थी और लोहरदगा में उपचुनाव हुए थे। इसके बावजूद झारखंड के जनप्रतिनिधि अपनी ताकत दिखाने से बाज नहीं आ रहे। इस समय कांग्रेस विधायक बिट्टू सिंह बीडीओ को धमकी देने को लेकर चर्चा में हैं।
गोमिया से झामुमो ने योगेंद्र महतो की पत्नी बबीता महतो को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट से तीन बार विधायक रहे और राज्य के पूर्व मंत्री माधवलाल सिंह भाजपा की तरफ से मैदान में हैं। भाजपा की सहयोगी आजसू की तरफ से लंबोदर महतो चुनाव लड़ रहे हैं। राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे महतो आजसू कोटे से मौजूदा सरकार के एक मंत्री के पीए हैं। उपचुनाव का ऐलान होते ही आजसू ने आनन-फानन दोनों जगह से अपना उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने आउटलुक को बताया कि 2014 के समझौते के अनुसार एक सीट पर हमारी दावेदारी बनती थी और आजसू को यह बात याद रखनी चाहिए थी। वहीं, आजसू के केंद्रीय प्रवक्ता देवशरण भगत का कहना है कि दोनों सीट पर पिछले चुनाव में भले झामुमो जीत गई थी, लेकिन इन सीटों पर फसल हमने बोई थी। पिछली बार नहीं काट सके थे तो इस बार काटेंगे।
दोस्त दलों के बीच तकरार से गोमिया की लड़ाई भले दिलचस्प हो गई हो, लेकिन राजनीतिक रूप से ज्यादा मायने सिल्ली के नतीजे रखते हैं। यहां झामुमो की तरफ से अमित महतो की पत्नी सीमा महतो मैदान में हैं। उनका मुकाबला आजसू सुप्रीमो और राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो से है। यह इलाका सुदेश का गढ़ माना जाता है। लेकिन, 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें यहां करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी। उनके लिए यह मौका चुनाव जीतकर खोई प्रतिष्ठा हासिल करने जैसा है।
राज्य में जारी कुरमी बनाम आदिवासी की राजनीति के लिहाज से भी ये नतीजे निर्णायक साबित होंगे। एसटी दर्जा और विशेष आरक्षण पाने के लिए कुरमी राज्य भर में आंदोलनरत हैं। इसके कारण अलग-अलग दलों के वे कुरमी नेता भी अचानक सक्रिय हो गए हैं जो अपनी सियासी पारी खत्म मान चुके थे। सुदेश महतो कुरमियों के बीच एक लोकप्रिय नाम हैं। लेकिन भाजपा रांची के सांसद रामटहल चौधरी को आगे कर रही है। आदिवासी-मूलवासियों की पार्टी मानी जाने वाली झामुमो भी कुरमियों के बीच अपने आधार का विस्तार करना चाहती है।
इस सियासी उफान के माहौल में यदि सुदेश फिर से अपना गढ़ नहीं जीत पाए तो उनके लिए आगे की राह कठिन हो जाएगी। यह भी दावा किया जा रहा है कि जिस तरह सुदेश ने आनन-फानन गोमिया सीट पर भी अपना उम्मीदवार खड़ा किया, उससे भाजपा भी पर्दे के पीछे से उनकी राह मुश्किल करने में लगी है। सुदेश हारते हैं तो आम चुनावों से पहले साथियों से मोलभाव करने के लिहाज से भाजपा मजबूत स्थिति में होगी। साथ ही अपने सांसद को कुरमी के सबसे बड़े नेता के तौर पर पेश करने की उसकी रणनीति भी सफल हो जाएगी।
सत्ता पक्ष के इस उठापठक से विपक्ष काफी उत्साहित दिख रहा है। झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आउटलुक से बातचीत में कहा, “विपक्षी दलों को बांटकर फायदा उठाने में भाजपा इस बार कामयाब नहीं हो पाई। उलटे उसके कुनबे में बिखराव हो गया। ऐसे में फिर से दोनों सीटें हमें जीतने से कौन रोक सकता है।” अंतिम नतीजे क्या होंगे, यह तो 31 मई को ही पता चलेगा। लेकिन, अगले आम चुनावों और विधानसभा चुनावों पर इन नतीजों की परछाईं पड़नी तय है।