आखिर राज क्या है- ‘मोदी’ राज का? राजनीतिक चतुराई, कार्यशैली, सौभाग्य, ईश्वर की कृपा या अस्त-व्यस्त-पस्त विरोधी? समझना थोड़ा कठिन होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आप समर्थक हों या विरोधी-जरा 70 वर्षों की फाइलों के पन्ने पलट लीजिए।
निश्चित रूप से प्रधानमंत्री पं. नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी अपने युग में लोकप्रियता के शिखर पर रहे। चुनावों में भारी बहुमत भी उन्हें मिला। पर्याप्त बहुमत न होने के बावजूद कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरसिंह राव और भाजपाई प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में कुछ ऐतिहासिक फैसलों में सफलता पाई। लेकिन ध्यान से पढ़िए। पं. नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद कुछ महीनों में ही मंत्रिमंडल में सरदार पटेल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ कितने वैचारिक मतभेद और राजनीतिक टकराव हुए। जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया जैसे नेता विरोध में खड़े हो गए। इंदिरा गांधी को तो कांग्रेस संसदीय दल का नेता बनने में मोरारजी देसाई से शक्ति प्रदर्शन का सामना करना पड़ा। दूसरे-तीसरे वर्ष कांग्रेस का सिंडीकेट के विद्रोह से विभाजन हुआ। 1971 की ऐतिहासिक चुनावी विजय के दो साल बाद ही गुजरात-बिहार के जे.पी. आंदोलन ने मुसीबत खड़ी कर दी। 1980 में भी जोरदार बहुमत मिला, लेकन दो वर्षों बाद ही उठापटक एवं पंजाब की खालिस्तानी आग ने सत्ता के सिंहासन को विचलित कर दिया। उनकी निर्मम हत्या के बाद राजीव गांधी को सत्ता में आते ही सिख विरोधी दंगों और केवल दो साल में अपने ही रिश्तेदार मित्र अरुण नेहरू और विश्वनाथ प्रताप सिंह के षड़यंत्रों के कारण गंभीर राजनीतिक संकट झेलना पड़ा।
इंदिरा-राजीव-अटल से अधिक अनुभवी मोरारजी देसाई तो अपनी ईमानदार और गांधीवादी छवि के बल पर ‘जनता लहर’ से प्रधानमंत्री बने लेकिन पहले महीने से जगजीवन राम और चरण सिंह के दांवपेच में उलझ गए और दो साल से पहले ही हटा दिए गए। नरसिंह राव को सत्ता में आने के बाद बाबरी मस्जिद विध्वंस कांड, शेयर घोटाला, सांसद रिश्वत कांड इत्यादि से पार्टी के अंदर विद्रोह एवं प्रतिपक्ष से छीछालेदर का सामना करना पड़ा। याद करें-अटलजी सुलझे हुए नेता थे-सारे प्रयासों के बावजूद लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस, जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा से जुड़े मुद्दों पर सरकार को संभालने में कितनी मुश्किलें आईं और लाहौर की सद्भावना बस यात्रा के बाद कारगिल युद्ध ने उन्हें कितना विचलित किया।
अब मोदी राज के वर्तमान दौर पर नजर डालें। हम यहां सरकार की सफलता-विफलता पर सवा दो वर्षों में चर्चित पचासों तर्कों, विश्लेषणों की पुनरावृत्ति नहीं करना चाहते। स्वयं यह उत्तर खोजने का प्रयास कर रहे हैं कि यह कैसा राजनीतिक चातुर्य और कामकाज है, जब राष्ट्रीय पटल पर पार्टी के दिग्गज नेता और प्रतिपक्ष में भी पुराने घाघ नेता, क्षेत्रीय क्षत्रप रहते हुए सिर्फ नरेंद्र मोदी के राज का डंका बज रहा है। राज-काज की इस शैली पर पार्टी के कुछ मंत्री, सांसद, पदाधिकारी या संघ में दूसरी पंक्ति के कुछ नेता असहमत और अप्रसन्न हो सकते हैं। लेकिन सवा दो वर्षों में क्या कोई मुंह खोल पाया? सरकार के निर्णयों पर मोदी की ‘तीसरी आंख’ रहने के कारण गड़बड़ी और भ्रष्टाचार के आरोप अब तक सामने नहीं आए। संभव है, कुछ नेता या अफसर कुछ रिकॉर्ड जुटाकर उचित अवसर की प्रतीक्षा भी कर रहे हों। लेकिन इतनी अवधि भी कम नहीं है।
इससे बड़ा कमाल यह है कि सरकार का कोई वरिष्ठतम मंत्री अथवा प्रधानमंत्री सचिवालय का सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी या सलाहकार हमको-आपको या दुनिया के किसी व्यक्ति के सामने स्वत: बड़े निर्णय का दावा नहीं कर सकता है। विरोधी नेता इसे राजशाही शैली कह सकते हैं। लेकिन तटस्थ: प्रेक्षक इतना तो मानेंगे कि हां, भारत में 68 वर्षों बाद एक प्रधानमंत्री नई निराली शैली से सचमुच राज कर रहा है। इस सत्ता काल में भाजपा, प्रतिपक्ष, समाज, अर्थव्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, सैन्य शक्ति पर होने वाले परिणामों का विश्लेषण तो 2019 या उसके बाद होगा। वैसे भी मोदी 17 सितंबर को 66वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। राजनीतिक विश्राम के लिए उन्होंने अपनी पार्टी में ही 75 वर्ष की आयु सीमा तय की हुई है।
फिलहाल जरा समझने की कोशिश की जाए कि मोदी का राज-काज अच्छे ढंग से चलाने में असली भूमिका कौन निभा रहे हैं। सामान्यत: बड़े पद और नाम वालों की पहचान सर्वविदित है। लेकिन मोदी की कार्यशैली में पर्दे के पीछे ईमानदारी और समर्पण भाव से काम करने वाली एक अच्छी-खासी टीम है। इस टीम में गुजरात के शासनकाल या राजनीतिक जीवन से जुड़े विश्वस्त सहयोगी भी हैं और उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों के पुराने परखे चावल कहे जाने वाले लोग भी हैं। फिर मंत्रिमंडल के कुछ वरिष्ठ सहयोगी, प्रशासनिक अधिकारी, देश-विदेश में बैठे गोपनीय शुभचिंतक-सलाहकार, संघ के लगभग 35 प्रचारक और विभिन्न राज्यों में वर्षों से मोदी से जुड़े निष्ठावान कार्यकर्ता-निरंतर प्रधानमंत्री को अच्छी-कड़वी सूचनाएं देते रहते हैं। हां, फैसला केवल नं. 1- यानी प्रधानमंत्री का होता है।
यही कारण है कि राजनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक गलियारों में प्रभावशाली नेता, अधिकारी, पूंजीपति, कंपनियों के सी.ई.ओ., राजदूत सार्वजनिक मिलन-पार्टियों में सवाल करते हैं- मोदी राज में ब्रजेश मिश्र, माखनलाल फोतेदार, आर.के. धवन, पी.सी. अलेक्जेंडर, यशपाल कपूर, प्रसाद या खांडेकर, टी.के. नायर जैसा कौन है, जो बात-काम बना दें? हम जैसे पत्रकार उत्तर दे देते हैं- यह मिलियन नहीं बिलियन डॉलर का प्रश्न है जिसे उत्तर मालूम हो, अरबपति बनकर मस्ती में रह सकता है- पार्टी में आने-जाने की जरूरत नहीं होगी।
बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज की चुनिंदा टीम की थोड़ी जानकारियां संभवत: पाठकों के लिए उपयोगी एवं दिलचस्प हो सकती हैं।
अपनी घोषणाओं और सपनों को 2019 तक जमीन पर उतारने की महती योजना के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में अफसरों की छंटनी, नियुक्ति और काम लेने के तरीकों में बेहद बारीक, लेकिन पुख्ता बदलाव किए हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय में आठ आला अफसरों की टीम गठित की है जो भारत सरकार के सभी नीतिगत फैसले तय कर रही है। इसी टीम के सुझाव पर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए प्रशासनिक अधिकारियों के चयन का ढांचा बदला गया है।
शुरुआत प्रधानमंत्री कार्यालय के लिए सचिव स्तर के अफसरों को देश और दुनिया भर से चयनित करने से हुई। अब उन बदलावों का नीतियों पर असर दिखने लगा है। नरेंद्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री सत्ता संभालते ही अपने पुराने अनुभव का लाभ उठाना शुरू किया। गुजरात में मुख्यमंत्री रहने के दौरान उन्होंने राजनीतिक नेतृत्व के बजाय अपने अधिकारियों से ज्यादा काम कराए थे। एजेंडा उनका होता था और अफसर उसे अमल में लाते थे। बतौर प्रधानमंत्री वे इसी ढर्रे पर काम कर रहे हैं। इस लिहाज से पीएमओ की परिपाटी में उन्होंने कई बदलाव किए हैं और कई और बदलाव होने वाले हैं। बदलाव के वाहक पीएमओ में तैनात वे वरिष्ठ अफसर बन रहे हैं जो अपने क्षेत्र में दिग्गज होने के साथ ही बेहद लो-प्रोफाइल हैं। वे चुपचाप अपना काम कर रहे हैं, उन्हें लाइमलाइट में रहने की चाह नहीं है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल इंटेलीजेंस ब्यूरो के पूर्व निदेशक हैं। जब भी कभी वे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कमरे में बातचीत कर रहे होते हैं, वहां और कोई नहीं होता। कुछ समय पहले जब वह यह पद छोड़ने की सोच रहे थे और अपने कुछ दोस्तों से इसकी चर्चा की, तब इसकी जानकारी प्रधानमंत्री तक पहुंची। नरेंद्र मोदी ने उन्हें बुला भेजा और कहा, ‘इतनी दूर साथ आकर अब साथ छोड़ देंगे?’ अजीत डोवाल ने अपना मन बदल लिया। बीच-बीच में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश सचिव एस. जयशंकर के बीच मुद्दों पर मतभेद की खबरें आती हैं, लेकिन प्रधानमंत्री की दखल से सलट जाता है और बात बाहर नहीं होती। पठानकोट पर आतंकवादी हमले से निपटने अथवा कश्मीर-बलूचिस्तान के मुद्दों को लेकर सरकार और पार्टी में डोवाल से असहमति के स्वर उठे हैं। लेकिन माना जाता है कि मोदी उचित समय पर उचित फैसला करेंगे। वह हड़बड़ी और जल्दबाजी में फैसला नहीं करते। वैसे भी अंतरराष्ट्रीय मामलों में वह एस. जयशंकर की सलाह को पूरा महत्व देते हैं और विदेश सचिव पद से जल्द सेवानिवृत्त होने की स्थिति में उन्हें प्रधानमंत्री सचिवालय में महत्वपूर्ण भूमिका दी जा सकती है।
दूसरे सुरक्षा विशेषज्ञ सैयद आसिफ इब्राहिम को प्रधानमंत्री के साथ जुड़े ईमानदार, राष्ट्रभक्त और आतंकवाद से निपटने का विशेषज्ञ अफसर माना जाता है। डोवाल की तरह वे भी इंटलीजेंस ब्यूरो के निदेशक रहे हैं। प्रशासनिक, पुलिस और गुप्तचर सेवा के लंबे अनुभव के बावजूद हंसमुख मस्त स्वभाव वाले आसिफ इब्राहीम यूं मनमोहन सरकार में महत्वपूर्ण पद पर थे, लेकिन उन्होंने सरकार के अनुचित निर्देशों को मानने से इनकार किया। उनका क्लीन और अद्भुत क्षमता का रिकॉर्ड देखकर मोदी ने उन्हें भारत की आतंकवाद निरोधक ऑपरेशन एवं उग्रवादियों से निपटने की कूटनीतिक गतिविधियों के लिए अपनी टीम में शामिल कर रखा है। मध्य प्रदेश कैडर की सेवा से लेकर लंदन के भारतीय उच्चायोग तक का अनुभव होने से वह अफीम उत्पादक मंदसौर से अफगानिस्तान-पाकिस्तान तक के गंदे धंधों को नष्ट करने एवं भारत विरोधी तत्वों से निपटने के लिए दिन-रात जुटे रहते हैं।
प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र उत्तर प्रदेश कैडर के 1967 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अफसर हैं। वह उन लोगों में शामिल हैं, जिनके शब्द पीएमओ में नीतिगत मुद्दों पर आखिरी शब्द होते हैं। यानी जो कह दिया वह अंतिम निर्णय। मोदी के द्वारा दिल्ली की गद्दी संभालने के बाद पीएमओ ने उन्हें ढूंढ़ निकाला। उनके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ काम करने का पहले से कोई अनुभव नहीं था। लेकिन दो साल में पीएमओ में अधिकांश नीतिगत मुद्दों पर कई फैसले उन्होंने ही लिए हैं, जिसमें प्रधानमंत्री की स्वीकृति रही। पिछले साल यह बहस चली थी कि क्या सरकार को राजकोषीय घाटे का लक्ष्य पार करना चाहिए, नृपेंद्र मिश्र ने रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन का साथ दिया था कि ऐसा नहीं करना चाहिए। हालांकि, मुख्य वित्तीय सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम ने सलाह दी कि इससे नई आर्थिक और वित्तीय उत्प्रेरणा सृजित होगी। लेकिन इस मुद्दे पर नृपेंद्र मिश्र की बात मानी गई कि ऐसा नहीं करना चाहिए और इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गलत संदेश जाएगा।
अतिरिक्त प्रमुख सचिव पी. के. मिश्रा प्रधानमंत्री के करीबी लोगों में शामिल हैं। वे गुजरात कैडर के 1972 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें सरकार में होने वाली हर एक बात की खबर होती है। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ 16 साल से काम कर रहे हैं। वरिष्ठ स्तर पर हर तबादला, नियुरक्ति का फैसला उनकी टेबल से होकर प्रधानमंत्री तक जाता है। उन्हीं की नजरों से होकर गुजरता है। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, ‘वह प्रधानमंत्री के दिमाग को अच्छे तरीके से समझते हैं।’ वह स्पष्टवादी हैं और वह पहले ही भांप लेते हैं कि प्रधानमंत्री चाहते क्या हैं।
संयुक्त सचिव टी. वी. सोमनाथन तमिलनाडु कैडर के 1987 बैच के आईएएस अफसर हैं। वह वित्त और पूंजी बाजार का काम देखते हैं। 2016-17 के आम बजट में लंबी अवधि के पूंजी लाभ को पुनर्भाषित करने में उनकी अहम भूमिका रही। इससे विदेशी संस्थागत निवेशकों और प्रबंधकों की आमदनी पर वित्त मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित संभावित गहन टैक्स प्रभाव का नतीजा दिखेगा। देश की नरेंद्र मोदी सरकार का यह अहम नीतिगत फैसला था, जिसके दूरगामी परिणाम आने वाले हैं। इस नीति को नरेंद्र मोदी के सपनों, घोषणाओं को 2019 तक जमीन पर उतारने के लिए अहम माना जा रहा है। सोमनाथन चुपचाप अपना काम करते हैं। उनके एक सहयोगी कहते हैं वह इकोनॉमिक्स (जिंस वायदा) में डॉक्टरेट हैं। जब एम करुणानिधि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री थे, तब वह उनके प्रमुख सचिव हुआ करते थे। तब एआईएडीएमके सुप्रीमो जयललिता के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला सोमनाथन की ही जांच का नतीजा है। जयललिता के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें तिरुनेलवेली के कमिश्नर के पद पर भेज दिया गया। जहां करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था। बाद में वह विश्व बैंक गए और फिर प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचे। वह उन छह संयुक्त सचिवों में शामिल हैं, जो पीएमओ में तैनात हैं।
पीएमओ में सचिव भास्कर कुलबे बंगाल कैडर के 1983 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। उनको हाल में सचिव स्तर पर प्रोन्नत किया गया है। उनके पास विधि विभाग का चार्ज है। वह प्रधानमंत्री मोदी के भाषण लेखक भी हैं। यह पीएमओ के एक बहुत अहम कामों में से एक माना जाता है। बंगाल कैडर के कुलबे पहले पीएमओ में अतिरिक्त सचिव थे। हाल में उन्हें पदोन्नत कर सचिव बना दिया गया।
प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र के साथ पीएमओ में संयुक्त सचिव हैं अरविंद शर्मा। वे गुजरात कैडर के 1988 बैच के आईएएस अफसर हैं। वह ढांचागत विकास से जुड़े - सड़क, राजमार्ग, ऊर्जा (विद्युत) और रेलवे के काम देखते हैं। वह अनौपचारिक तौर पर प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं से जुड़े मामले भी देखते हैं। पीएमओ की तरफ से भारतीय जनता पार्टी के महासचिव राम माधव और डॉ. विजय चौथाईवाले के साथ समन्वय का काम भी शांत स्वभाव वाले अरविंद शर्मा के पास है।
इसी तरह हरियाणा कैडर के 1988 बैच के अफसर तरुण बजाज हैं जो पीएमओ में मानव संसाधन विभाग और गृह मंत्रालय का काम देखते हैं। जानकारों के अनुसार, उनके ही द्वारा जुटाए गए फीडबैक का असर था कि स्मृति ईरानी और प्रकाश जावड़ेकर के विभागों में बदलाव किया गया। संयुक्त सचिव तरुण बजाज नए-नए विचारों से लैस अफसर माने जाते हैं। वह जब आर्थिक मामलों के विभाग में तैनात थे, तब उन्होंने पेंशन और बीमा का काम देखा। अब उनका वह अनुभव काम आ रहा है।
देवश्री मुखर्जी ग्रामीण विकास, भूमि और शहरी विकास मंत्रालयों से जुड़े काम देखती हैं। प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘स्मार्ट सिटी’ परियोजना और समग्र शहरीकरण पर उनका खासा जोर है। पीएमओ से पहले वह दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (डीटीसी) की अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक (सीएमडी) थीं। वह दिल्ली सरकार में सामाजिक कल्याण विभाग में सचिव भी रह चुकी हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश कैडर के 1998 बैच के आईएएस अनुराग जैन हैं, जिन्होंने ‘वन रैंक, वन पेंशन’ के मुद्दे पर प्रधानमंत्री की शाबाशी हासिल की थी। उनके पास रक्षा मंत्रालय से संपर्क साधने का काम है।
प्रधानमंत्री कार्यालय में तैनात विनय मोहन
क्वात्रा 1988 बैच के इंडियन फॉरेन सर्विसेज के अधिकारी हैं। उन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर उस समय पड़ी, जब वह 2014 में ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने ब्राजील गए थे। उस समय उन्हें ऐसे अधिकारी की जरूरत थी, जिसकी हिंदी धाराप्रवाह हो। तब विनय मोहन मिले, जो हिंदी के साथ-साथ फ्रेंच और रूसी के भी अच्छे जानकार हैं। वह अफगानिस्तान में भारत सरकार के चलाए कार्यफ्मों और दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन में व्यापार और वित्तीय मुद्दों के प्रमुख हैं।
नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, तब गुजरात स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (जीएसडीएमए) में तैनात कई अधिकारियों को उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद सत्ता केंद्र पीएमओ के लिए चुन लिया। उनके निजी सचिव राजीव टोप्नो जीएसडीएमए में संयुक्त सीईओ हुआ करते थे और नरेंद्र मोदी बतौर मुख्यमंत्री इसके अध्यक्ष। टोप्नो 1996 बैच के गुजरात कैडर अफसर हैं। किसी पूर्वग्रह से हटकर मोदी ने मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यालय में निदेशक रहे राजीव टोप्नो को अपने साथ निजी सचिव के रूप में रखा है। उनके अलावा प्रधानमंत्री के एक और निजी सचिव हैं- संजीव कुमार सिंगला, जो भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी हैं।
पीएमओ के जनसंपर्क अधिकारी जगदीश ठक्कर पिछले 14 साल से नरेंद्र मोदी के साथ हैं। बहत्तर साल के ठक्कर गुजरात सूचना विभाग के अधिकारी रहे हैं। उन्हें जानने वाले बताते हैं कि जब लोकसभा चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी दिल्ली आ रहे थे, तब उन्होंने अचानक ही जगदीश ठक्कर को साथ चलने को कहा। ठक्कर चकित रह गए थे। वह दिल्ली में मीडिया से कम बात करते हैं और पीएमओ की प्रेस विज्ञप्तियों का जिम्मा उनके पास है। जगदीश ठक्कर को चुपचाप काम करने वाला अधिकारी माना जाता है। नरेंद्र मोदी संभवत: पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने कोई सूचना सलाहकार नहीं रखा। इससे पार्टी के अंदर या बाहरी महत्वाकांक्षियों को थोड़ा कष्ट भी हुआ होगा। लेकिन याद करें-प्रशासनिक पृष्ठभूमि हो या मीडिया की-पूर्व प्रधानमंत्रियों के पूर्व प्रेस सलाहकारों से मीडिया का एक वर्ग थोड़ा असंतुष्ट हो जाता था। फिर मोदी संगठन से सत्ता तक मीडिया के मालिक-संपादक, राजनीतिक संवाददाताओं के बारे में अपनी राय रखते हैं। फिर ‘इमेज’ बनने-बिगड़ने का खेल भी वह समझते हैं। शायद इसीलिए अपने सूचना तंत्र के लिए सबसे पुराने विश्वस्त सूचना अधिकारी 72 वर्षीय जगदीश ठक्कर को प्रधानमंत्री कार्यालय में रखा है। वह मोदीजी की चौथी आंख और तीसरे कान की तरह अपनी भूमिका निभाते हैं। गुजरात में वह 25 वर्षों तक तत्कालीन मुख्यमंत्रियों के सूचना अधिकारी रहे। मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में उसी शांत-स्नेहिल शैली में चुपचाप काम करते रहे। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी उन्हें अपने साथ ले आए। सूचना फैलाने से अधिक उन्हें इकट्ठा करना और पचाना कठिन लेकिन असल काम होता है।
छाया-संगी तन्मय-त्रिमूर्ति। गुजरात की ‘प्रिय त्रिमूर्ति’ छाया की तरह नरेंद्र मोदी की सेवा में रहती है। यह हैं- तन्मय मेहता, ओमप्रकाश सिंह और दिनेश ठाकुर। तन्मय मूलत: पाटन-गुजरात से हैं और ओमप्रकाश सिंह इलाहाबाद एवं दिनेश ठाकुर उत्तराखंड से। गांधीनगर में मोदी से भेंट करने से पहले इन तीनों में से एक के दर्शन और प्रारंभिक बातचीत का अवसर लोगों को मिलता था। फिर मोदी के निर्देशानुसार और आवश्यक होने पर वे संबंधित व्यक्ति से तालमेल रखते रहे हैं। आखिरकार उ.प्र. की 80 सीटों का कच्चा-चिट्ठा तो गांधीनगर में ही बना था।
इस त्रिमूर्ति के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे संजय भावसार दो दशकों से मोदी के साथ हैं। इसलिए संघ को प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क-संबंधों में अधिक दिक्कत नहीं आती होगी। पीएमओ में तैनात संजय भावसार, हीरेन जोशी और जगदीश ठक्कर उन लोगों में शुमार हैं, जो लंबे अरसे से नरेंद्र मोदी के साथ काम कर रहे हैं। बतौर अफसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) संजय भावसार के पास नरेंद्र मोदी के अप्वाइंटमेंट्स देखने का काम है। हीरेन जोशी के पास पीएमओ के पोर्टल और सोशल मीडिया को संभालने का जिम्मा है। सूचना टेक्नोलॉजी (आई.टी.) में विशेषज्ञता प्राप्त हीरेन जोशी गुजरात से मोदीजी के लिए डिजिटल क्रांति का कामकाज देखते रहे हैं। उन्होंने टेक्नोलॉजी के माध्यम से विधायकों द्वारा विकास कार्यों के फंड के उपयोग का सही लेखा-जोखा बनाकर मोदी को प्रभावित किया था। अब वह पी.एम.ओ. में मंत्रियों और सांसदों के विकास कार्यों का हिसाब-किताब रखते हैं। आई.टी. और संचार साधनों के लिए एक पूरी टीम उनसे जुड़ी हुई है।
प्रधानमंत्री कार्यालय के अफसरों की यह कोर टीम नरेंद्र मोदी के एजेंडे को लागू करने के साथ ही हाल में सरकार ने नौकरशाही को चुस्त बनाने, जवाबदेह बनाने के नरेंद्र मोदी के मॉडल पर भी काम कर रही है। अफसरों की कार्य समीक्षा का तरीका बदला है। प्रदेश से केंद्र में आने वाले अफसरों की जांच-पडताल में सख्ती बरती जा रही है। हर अफसर का सात पेज का फीडबैक बनाया जाता है। इसमें ईमानदारी, डिलिवरी के साथ चार तरह की कसौटियां होती हैं।
राज्यों के अफसरों के काम की बनी सालाना एसीआर पर पहले केंद्र में सूची बनती थी। अब राज्यों की एसीआर से अधिक जोर पीएमओ की अपनी फीडबैक पर होता है। केंद्र सरकार का कार्मिक विभाग उस फीडबैक के आधार पर अपना डेटाबेस तैयार कर रहा है। पिछले साल आईएएस कैडर के लगभग 1250 अफसरों की पड़ताल की गई थी और 750 अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए एनपैनल किए गए। इस साल यह संख्या 550 तक पहुंच सकती है।
सिर्फ गृह मंत्रालय या डीओपीटी से भेजे गए नामों पर फैसला नहीं किया जा रहा है। दूसरी सेवाओं के अधिकारियों के साथ साथ सरकार पेशेवर जानकारों की सेवाएं लेने पर भी विचार कर रही है। पहले के मुकाबले प्रधानमंत्री कार्यालय और कैबिनेट सचिवालय का काम बढ़ गया है। सभी मंत्रालयों के कामकाज पर कैबिनेट सचिवालय और पीएमओ की नजर रह रही है। प्रधानमंत्री जिस तरह अपनी मंत्रिपरिषद के सदस्यों के साथ मासिक बैठक करके उनके कामकाज की रिपोर्ट लेते हैं, उसी तरह उनके मंत्रालयों के अधिकारियों के साथ भी बैठक करते हैं। प्रधानमंत्री सीधे सचिवों से रिपोर्ट लेकर कामकाज का आकलन कर रहे हैं।
कोर टीम में कुछ परखे हुए और कुछ नए खिलाड़ी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज-काज चलाने की निराली शैली में राजनीति के मैदान के कई वरिष्ठ नाम भी अहम भूमिकाएं निभा रहे हैं। सत्ताधारी गठबंधन की भारतीय जनता पार्टी और प्रमुख ताकत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता- पदाधिकारियों- प्रचारकों में कई हैं, जिनकी केंद्र की सत्ता में अहम भूमिका है। इनमें कुछ पुराने और परखे हुए चावल हैं और कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें मोदी सामने ले आए हैं।
बात शुरू करते हैं भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह से। नरेंद्र मोदी के साथ उनकी ट्यूनिंग तब से ही चली आ रही है, जब वह (मोदी) गुजरात के मुख्यमंत्री नहीं बने थे। मोदी के लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतरने के समय अमित शाह अचानक राष्ट्रीय फलक पर उभरे। वह उनके मुख्य रणनीतिकार बने। बूथ स्तर तक की रणनीति तैयार की और भारतीय जनता पार्टी को भारी बहुमत के साथ केंद्र में सत्ता में लाने का श्रेय मोदी-शाह की जोड़ी को मिला। बतौर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह संगठन के साथ ही केंद्र की सत्ता के अहम केंद्र हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे शाह ने अस्सी के दशक में गुजरात की सियासत में मोदी के सफर के साथ ही अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत की थी। मोदी की सिफारिश पर उन्हें बाद में भाजपा में शामिल किया गया। शाह की रणनीतिक क्षमता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गुजरात की सहकारी संस्थाओं पर यदि आज भाजपा का कब्जा है तो वह शाह के कारण ही। उन्होंने दशकों से काबिज कांग्रेस को उखाड़ फेंका। अब तक अमित शाह ने छोटे-बड़े 42 चुनाव लड़े हैं लेकिन उनमें से कभी उन्हें हार का सामना नहीं करना पड़ा।
राजनीति की दुनिया से अलग रहते हुए राजनीति को प्रभावित करने वाले ताकतवर चेहरा माने जाते हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत। उन्होंने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने में अहम भूमिका निभाई। वह जिस संगठन के प्रमुख हैं, वह यूं तो प्रत्यक्ष तौर पर राजनीतिक गतिविधियों से परहेज करता है लेकिन भाजपा को चुनावी जंग जिताने में पर्दे के पीछे उसकी अहम भूमिका होती है। संघ और उससे जुड़े संगठन, जिन्हें संघ परिवार कहा जाता है- देश भर में शिक्षा, जनकल्याण और हिंदू धर्म से जुड़े कार्यफ्मों समेत हजारों प्रोजेक्ट चला रहे हैं। दिशा-निर्देश और वैचारिक मार्गदर्शन का काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक का होता है। उन्होंने पर्दे के पीछे से भाजपा में बदलाव किया, 2014 के चुनाव के पहले नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कराने के लिए खुद मोर्चा संभाला।
नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल के सहयोगियों में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह पर आंतरिक और बाहरी सुरक्षा को लेकर अहम जिम्मेदारी है। संघ की पृष्ठभूमि, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भाजपा अध्यक्ष का उनका अनुभव आंतरिक राजनीति और सुरक्षा की दृष्टि से उपयोगी हो रहा है। कश्मीर, पूर्वोत्तर, आतंकवाद समेत विभिन्न संवेदनशील मुद्दों पर वह मोदी सरकार के विजन को आगे बढ़ा रहे हैं। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के नेतृत्व में मोदी सरकार की विदेश नीति को बेहद सफल माना जा रहा है। हाल में ईरान, अमेरिका, वियतनाम, सार्क के देशों के बीच संधियों, मध्य-पूर्व के गृह युद्ध से प्रभावित देशों से भारतीयों को ले आने, संयुक्त राष्ट्र में भारत की कूटनीतिक सफलताओं का श्रेय सुषमा स्वराज और उनकी टीम को दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने एक-दो बड़े सार्वजनिक कार्यफ्मों और संसद में सुषमाजी के कामकाज की सराहना की। मंत्रालय चलाने में भी उन्हें पूरी छूट दी। इसी तरह वित्त मंत्री अरुण जेटली की बड़ी सफलता जीएसटी को लेकर मानी जाती है, जिससे कारोबारी जगत में मोदी सरकार को लेकर समर्थन बढ़ा है।
सडक़ एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और रेल मंत्री सुरेश प्रभु इन्फ्रास्ट्रख्र विकसित करने के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। गडकरी ने महाराष्ट्र में सड़क निर्माण और फास्ट ट्रैक राजमार्गों के लिए असाधारण काम करके दिखाया था। वह पार्टी के अध्यक्ष भी रहे हैं और संघ के भी प्रिय नेता। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल सक्रिय हैं कोयला मंत्रालय को पटरी पर लाने में। ऊर्जा मंत्रालय की उज्ज्वला स्कीम मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है, जिसमें वे शिद्दत से जुटे हैं। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद कानून और आईटी का काम संभाल रहे हैं। देश में साइबर सुरक्षा के मद्देनजर वह विभिन्न एजेंसियों का ढांचा तैयार करने के मिशन में जुटे हैं।
रक्षा मंत्री मनोहन पर्रिकर गोवा में ईमानदार मुख्यमंत्री के रूप में सफल रहे। पिछले दशकों में रक्षा घोटालों के आरोपों से सरकारें बदनाम होती रही। इस दृष्टि से पर्रिकर को संवेदनशील रक्षा मंत्रालय सौपा गया है। प्रधानमंत्री से पक्की हरी झंडी मिलने के बाद ही अब कोई रक्षा समझौता या सेना से जुड़ा फैसला होता है। हाल के उनके अमेरिकी दौरे में अहम समझौते किए गए हैं, जिनके दूरगामी प्रभाव होने हैं। तेज तर्रार युवा मंत्रियों में राजीव प्रताप रुड़ी की गिनती होती है। चीन से मुकाबले के लिए भारत में कुशल कारीगर तैयार कर रोजगार देने का महत्वाकांक्षी कौशल विकास (स्किल डेवलपमेंट) मंत्रालय गठित कर प्रधानमंत्री एक नया अध्याय लिखने की कोशिश कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री कार्यालय के अफसरों के साथ नेताओं-मंत्रियों की यह टीम मोदी की निराली शैली के केंद्र बन रहे हैं।
पीएमओ के बाहर सत्ता के ध्रुव नीति आयोग
नरेंद्र मोदी सरकार में यह संस्था ताकतवर मानी जा रही है। राज्यों की नीतियां तय करने के मामले में आयोग सीधे मुख्यमंत्रियों से बात कर रहा है। राज्यों को वित्तीय संसाधन देने का सिरदर्द इस संस्था के पास नहीं है, लेकिन सरकार की आर्थिक सोच बदलवाने में इसकी महती भूमिका होती है। नीति आयोग के प्रमुख सलाहकार रतन वट्टल सीधे प्रधानमंत्री (नीति आयोग के अध्यक्ष) को रिपोर्ट करते हैं। जबकि इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत उपाध्यक्ष डॉ. अरविंद पानगढ़िया को।