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जहां से जन्मा देश में कला आंदोलन

अंग्रेजी राज में ही कलाकारों के प्रयासों से स्थापित आइफैक्स अपने 90वें वर्ष में एक बार फिर कला-संस्कृति का अनूठा मंच बनने को तैयार
कला-संस्कृति का डेराः दिल्ली में आइफैक्स भवन

ऑल इंडिया फाइन आर्ट्स ऐंड क्राफ्ट सोसायटी (आइफैक्स) दिल्‍ली के नक्‍शे में एक अहम मुकाम ही नहीं है बल्कि कला का ऐसा सांस्कृतिक संस्‍थान है जिस पर देश गर्व कर सकता है। एक मौलिक सांस्कृतिक अवधारणा के रूप में परिकल्पित, एक अमूल्य धरोहर और एक क्रांतिकारी परिघटना के रूप में अवस्थित आइफैक्स 1928 में अपनी स्‍थापना के समय से ही कला और शिल्प के क्षेत्र में अपनी बड़ी उपलब्धियों के झंडे गाड़ रहा है। इस सोसायटी ने अपनी 90वीं सालाना अखिल भारतीय कला प्रदर्शनी 2017 का सबसे अहम उत्सव मनाया, जो 3 जनवरी 2018 तक चला। इसमें सैकड़ाें कलाकार मूर्तिशिल्पी, चित्रकार, मृदाशिल्पी (सिरामिस्ट) ने अपनी बहुमूल्य भागीदारी से प्रेरक माहौल बनाया।

लंदन में 1928 में जब ब्रिटिश सरकार ने इंडिया हाउस बनाने का फैसला किया तो अधिकारियों ने उसकी दीवारों को अंग्रेज कलाकारों की कृतियों से सजाने का विचार रखा। उन्हें समझाया गया कि उचित होगा, वे वहां भारतीय कलाकारों की कृतियों का प्रयोग करें। उन कृतियों की गुणवत्ता देखने के लिए लंदन में अखिल भारतीय प्रदर्शनी लगाई गई। उस कार्य को प्रशासनिक प्रक्रिया से संचालित करने के लिए ऑल इंडिया फाइन आर्ट्स ऐंड क्राफ्ट सोसायटी प्राइवेट लिमिटेड का गठन किया गया।

उस समय जाने-माने चित्रकार यूकिल ब्रदर्स और अन्य कलाकारों ने मिलकर यह सोसायटी बनाई। उन्होंने ऑल इंडिया आर्ट एक्जिविशन का गठन किया और इसकी पहली प्रदर्शनी लंदन भेजी। इससे जुड़े चार चित्रकार धीरेंद्र कृष्‍णनन देव बर्मन, रानडा यूकिल, ललित मोहन सेन और सुधांशु चौधरी के सुंदर कार्य को ब्रिटिश सरकार ने देखा तो उन्हें तुरंत इंडिया हाउस की दीवारों और अंदर के भागों को पेंट करने के लिए चुन लिया। आज भी इन चित्रकारों की पेंटिंग इंडिया हाउस की शोभा बढ़ा रही हैं।

1947 के बाद आइफैक्स दूसरे देशों से सरकार के सांस्कृतिक विनिमय के संपर्क कार्यालय के रूप में काम करती रही। उस समय नवजात स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत के पास कोई सरकारी सांस्कृतिक विभाग नहीं था। दिसंबर 1947 से सोसायटी से जुड़े एस.एस. भगत आइफैक्स के इतिहास के महत्वपूर्ण पड़ाव का स्मरण करते हैं। पश्चिमी पाकिस्तान के सरगोधा से आए युवा भगत ने सोसायटी के कार्यालय को संभालने में भागीदारी निभाई। वे कहते हैं कि 1953 के आसपास सोसायटी का राष्ट्रीयकरण करने की मुहिम चली थी। हमने प्रस्ताव रखा कि उसे संस्कृति विभाग, भारत सरकार के साथ बरकरार रखा जाए। लेकिन सरकार इससे सहमत नहीं थी। उसके बाद ललित कला, संगीत कला और साहित्य अकादमियां बनाई गईं, जिनका काम चाक्षुष कला, नाट‍्य कला और साहित्य की देखभाल करना था। उसी दौरान सरकार ने भारतीय कला संबंध परिषद (इंडियन कौंसिल फॉर कल्चरल रिलेशन्स) का गठन किया, जिसका कार्य दूसरे देशों के साथ कला-संस्कृति का आदान-प्रदान करना था। यह सब कार्य यही सोसायटी करती थी।

1946 में नई दिल्‍ली के 66 क्वींस वे (अब जनपथ) पर सोसायटी की पहली अखिल भारतीय कला प्रदर्शनी का आयोजन हुआ था। आजादी के बाद राजधानी में आइफैक्स कला प्रदर्शनी की एकमात्र गैलरी और कला-संस्कृति के कार्यक्रमों का सभागार था, जहां कला रसिकों और विशिष्ट वर्ग के लोगों की आवाजाही होती थी। उनमें प्रमुख थे पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर कई अन्य जो अक्सर सुबह-शाम टहलते हुए कला प्रदर्शनी देखने आते रहते थे। आजादी के बाद सोसायटी की सात दशक की यात्रा में कई रोमांचक पड़ाव भी हैं। दिल्‍ली की पुरानी महफिलों से गुजरते हुए संगीत और नृत्य के कार्यक्रमों को आधुनिक मंच प्रदान करने में एक खास भूमिका आइफैक्स की है। नाटकों के मंचन का एकमात्र और सबसे बड़ा केंद्र भी यही सभागार था।

उत्कृष्ट चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन, रामकुमार, कृष्‍ण खन्ना, बी.सी. सान्याल, जतिन दास से लेकर इस क्षेत्र की कई बड़ी हस्तियों का नाम आइफैक्स की सूची में दर्ज है, जो विजुअल आर्ट गैलरी में शामिल हुए। आधुनिक रूप से सजाई गई इस इमारत का 1952 में प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने शिलान्यास किया। नाटक के मंचन में रंगकर्मियों की भी एक लंबी सूची है। संगीत के क्षेत्र से बेगम अख्तर, पंडित रविशंकर, निखिल बनर्जी, नैना देवी, सिद्धेश्वरी देवी आदि और नृत्य में सितारा देवी, पंडित बिरजू महाराज, संयुक्ता पाणिग्रही, राजा-राधा रेड्डी, बाला सरस्वती, यामिनी कृष्‍णमूर्ति जैसे अनेक कलाकारों ने सभागार में दस्तक दी।

चित्रकारी, शिल्प, मूर्तियों और ग्राफिक आर्ट की सैकड़ाें उच्च स्तरीय प्रदर्शनियों का जो बड़ा संग्रह आइफैक्स में है, वह शायद किसी दूसरी गैलरी में नहीं है। उपहार ‌सिनेमा में अग्निकांड की त्रासदी के बाद एनडीएमसी ने प्रेक्षागृहों को पूरी तरह सुरक्षित करने के लिए अग्निशमन और बचाव के लिए अन्य उपकरणों का प्रबंध करने के निर्देश दिए। पर, आइफैक्स के छोटे सभागार में जगह न होने के कारण इन उपकरणों का प्रयोग करना असंभव था। इस वजह से सभागार को बंद कर दिया गया। सभागार की बंदी के सात साल हो गए हैं पर, यह ऐतिहासिक सभागार कब खुलेगा, अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ।

साठ साल के अंतराल के बाद सोसायटी ने 1988 में लंदन में दूसरी भारतीय कला प्रदर्शनी का आयोजन किया। सोसायटी सत्तर साल में तकरीबन 88 वार्षिक अखिल भारतीय कला प्रदर्शनी कर चुकी है। 89वीं सालाना प्रदर्शनी 2016 में हुई। इसमें देश भर के चुनिंदा चित्रकारों को बुलाया गया और योग्य कलाकारों को अवार्ड से सम्मानित किया गया। भारतीय कलाकारों की तुलना में विभिन्न देशों के कलाकारों के काम को भारतीय लोगों के सामने लाने के लिए सोसायटी ने ग्यारह अंतरराष्ट्रीय समकालीन कला प्रदर्शनियों का आयोजन किया। उससे भारतीय कलाकारों को जो अनुभव हुआ, उससे उनमें नया कार्य करने की जिज्ञासा जगी। सोसायटी ने विलुप्त होती वाटर-कलर की पारंपरिक कला को संरक्षित करने के लिए वाटर कलर चित्रों की प्रदर्शनी की शुरुआत जोर-शोर से की। कला के क्षेत्र में आठ बड़ी हस्तियों की कला प्रदर्शनियों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित किया गया। उनमें ज्यादातर कलाकार साठ से ज्यादा उम्र के थे, प्रदर्शनी के दौरान 63 कलाकारों को सम्मानित किया गया।

गौरतलब है कि आइफैक्स के प्रयास से देश में कला आंदोलन शुरू हुआ। सरकार के आर्थिक अनुदान से आइफैक्स ने बाहर के मुल्कों से कला के आदान-प्रदान के साथ भारतीय कलाकारों के दल को चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, मिस्र, तुर्की, इराक, इस्तांबुल, सोवियत संघ, पोलैंड, अमेरिका, क्यूबा आदि देशों के कई शहरों में भेजा और भारतीय कला विधा से परिचित करवाया। बाहरी मुल्कों की कला प्रदर्शनी को दिल्ली से लेकर कोलकाता, मुंबई, तमिलनाडु और हैदराबाद में आयोजित करने में एक बड़ी भूमिका आइफैक्स की थी। सोसायटी की हीरक जयंती पर स्तरीय कलाकारों को कला रत्न, कला विभूषण और कलाश्री अवार्ड के साथ अच्छी खासी धनराशि दी गई। हालांकि, अब राजधानी में सरकारी और निजी स्तर पर अनगिनत आर्ट गैलरियां बन गई हैं। पर, इस दौर में भी आइफैक्स गैलरी की स्थिति असमंजस में नहीं है। प्रदर्शनियों के पुराने वैभव को वापस लाने और उज्‍ज्वल भविष्य के सपने बुनने में सोसायटी सार्थकता से काम कर रही है। पुरानी गैलरी को आधुनिक रूप देने के लिए इसे नए रंग-रूपों से सजाया गया है। अब इस गैलरी में बड़े-बड़े कलाकारों की प्रदर्शनी का सिलसिला फिर से शुरू हो गया है। शुरू के दौर में इसके प्रधान संरक्षक देश के राष्ट्रपति और संरक्षक दिल्ली के उपराज्यपाल होते थे। यह क्रम राष्ट्रपति फख्‍ारुद्दीन अली अहमद तक जारी रहा, उसके बाद कुछ व्यवधानों की वजह से यह सिलसिला टूट गया। बहरहाल, प्रखर और युवा कलाकारों की मिली-जुली प्रदर्शनी को देखने के लिए यह गैलरी खास है। इसका पूरा ब्योरा आइफैक्स के चेयरमैन बिमल बी. दास ने ठोस प्रमाणों के साथ दिया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और संगीत-कला समीक्षक हैं)

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