यकीनन देश में प्रोफेशनल शिक्षा आज दोराहे पर है। दशक भर पहले तक इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर और मेडिसिन जैसे तकनीकी कोर्स पहली पसंद हुआ करते थे। ऐसे संस्थानों के परिसरों के आगे लंबी-लंबी कतारें नजर आया करती थीं। हालांकि, पिछले दो साल में हालात बदल-से गए हैं। और अब दोहरे नतीजे दिख रहे हैं। बड़े पैमाने पर छात्र कई कॉलेजों की ओर रुख नहीं कर रहे हैं, जिनमें कुछ टॉप रैंकिंग वाले भी हैं और सरकार उन कॉलेजों को बंद करने के कदम उठा रही है, जहां सीटें नहीं भर पा रही हैं या फिर शिक्षा का स्तर कमतर है।
पिछले दिसंबर में मानव संसाधन विकास मंत्रालय 300 निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों को बंद करने की सोच रहा था। इनमें से ज्यादातर में पिछले पांच साल में 30 फीसदी से कम दाखिले हुए हैं। बदतर तो यह है कि ऐसे करीब 150 कॉलेजों में 20 फीसदी सीटें भी नहीं भर पाईं। इसके अलावा करीब 200-300 कॉलेजों पर भी तकरीबन इन्हीं वजहों से टेढ़ी नजर है। इनमें कई को बंद करने को कहा जाएगा। उसके पहले दो साल में तकरीबन 120 से 150 कॉलेज बंद हो गए थे।
समस्या यह है कि फिलहाल देश में करीब 3,500 इंजीनियरिंग कॉलेज हैं और ज्यादातर में पढ़ाई के स्तर के बारे में कोई सोच-विचार ही नहीं है। लिहाजा, उनको कोई पूछने वाला नहीं है। इसके अलावा हकीकत यह भी है कि इंजीनियरिंग कॉलेजों के प्रति छात्रों की दिलचस्पी घट गई है। देश भर में इंजीनियरिंग की खाली सीटों की संख्या दो साल पहले 45 फीसदी से बढ़कर अप्रत्याशित रूप से अब 50 फीसदी हो गई है। ये ज्यादातर खाली सीटें निजी कॉलेजों की हैं, जहां पढ़ाई का स्तर बेहद खराब है लेकिन हैरतअंगेज यह है कि इस साल कई छात्रों ने प्रवेश परीक्षा पास करने के बावजूद आइआइटी में खाली सीटों की ओर जाने से इनकार कर दिया। जानकारों के मुताबिक, इसकी खास वजह अच्छी और अच्छे वेतन वाली नौकरियों का अकाल है।
इसके विपरीत मेडिसिन के मामले में हालात ऐसे हो गए हैं कि प्रवेश परीक्षा में ऊंची रैंकिंग न पाने वालों के लिए भारी-भरकम फीस अदा किए बगैर दाखिला मुश्किल हो गया है। मसलन, पिछले साल की प्रवेश परीक्षा में एक टॉप मेडिकल कॉलेज ने 200 सीटों के लिए 440 छात्रों को शॉर्टलिस्ट किया। कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में इन छात्रों ने 99.9 और 99.6 फीसदी के बीच अंक पाए थे। इसका मतलब हुआ कि 99.6 फीसदी अंक पाकर भी 240 छात्रों को दाखिला देने से इनकार कर दिया गया!
इसी मायने में अजूबे या विरले कोर्सों के बारे में आउटलुक की आवरण कथा की अहमियत बढ़ जाती है क्योंकि ऐसे छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो परंपरागत कोर्सों से अलग रुख कर रहे हैं। हमारी आवरण कथा कुछ उन नए और अजूबे पाठ्यक्रमों की तहकीकात कर रही है, जिनकी हाल के दौर में अहमियत बढ़ रही है। इनमें अल्कोहल टेक्नोलॉजी, टी टेस्टिंग और म्यूजियोलॉजी जैसे विषय हैं।
इस साल आउटलुक की प्रोफेशलन कॉलेजों की रैंकिंग 2018 उम्मीद के मुताबिक कोई आश्चर्य लेकर नहीं आती। इसमें टॉप कॉलेज अपना स्थान बरकरार रखने में कामयाब रहे हैं जबकि कई मध्य स्तर के और निजी कॉलेजों ने अपनी स्थिति में सुधार किया है। इस तरह ज्यादातर पाठ्यक्रमों में टॉप 10 में पिछले साल से कोई खास फर्क नहीं पड़ा है या फिर मामूली अंतर ही आया है। हालांकि यह देखकर खुशी होती है कि आउटलुक के शिक्षा क्षितिज पर कई नए तारे उभरे हैं। कई नए कॉलेज होड़ में शामिल हो गए हैं। कुछ तो टॉप कॉलेजों की सूची में भी पहुंच गए हैं। उम्मीद यही है कि आने वाले वर्षों में और प्रगति दिखेगी। हालांकि, इस साल हमें एक समस्या से रू-ब-रू होना पड़ा। कई टॉप कॉलेजों ने रैंकिंग में शिरकत करने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्हें सरकार की एनआइआरएफ रैंकिंग में अच्छा स्थान हासिल हो चुका है। लेकिन कहने की दरकार नहीं कि आउटलुक अपने मानकों से समझौता नहीं करेगी, जो पिछले दशक या उससे पहले स्थापित किए गए हैं।
इस पैकेज में ऐसी स्टोरी भी है कि कैसे कश्मीर के छात्र पढ़ाई के लिए दूसरे राज्यों में जाने के बदले बांग्लादेश का रुख कर रहे हैं, और कैसे कुछ टॉप प्रोफेशनल अपनी जिम्मेदारियां निभाने के साथ ही कला के क्षेत्र में अपनी रुचि को परिष्कृत करने में जुटे हैं। एक अहम नजरिया यह भी है कि शिक्षा का मकसद सिर्फ रोजगार तक सीमित नहीं करना चाहिए, बल्कि उसका मकसद सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक रूप से देश और समाज को आगे ले जाने के लिए नई पीढ़ी को तैयार करना होना चाहिए।
आउटलुक का यह विशेषांक छात्रों के सामने हर विकल्प को रखता है, उनका मूल्यांकन करता है और फिर उसका नीर-छीर विवेचन करता है। विकल्प कई हैं लेकिन सभी पर गहराई और पूरी जानकारी के साथ नजर डालने में ही फायदा है। आखिर हम बार-बार यही दोहरा रहे हैं कि पूरी समझदारी से विकल्पों को चुनिए।
आउटलुक-दृष्टि सर्वेक्षण 2018 की पद्धति
भारत के टॉप प्रोफेशनल कॉलेजों की सालाना आउटलुक रैंकिंग (दृष्टि स्ट्रैटेजिक रिसर्च सर्विसेज की भागीदारी के साथ) शिक्षा के 12 क्षेत्रों में समझदारी से विकल्प चुनने में छात्रों के लिए मददगार साबित हो सकती है। देश के सर्वश्रेष्ठ प्रोफेशनल कॉलेजों की रैंकिंग की प्रक्रिया संस्थानों की विस्तृत सूची तैयार करने और पिछले साल रैंकिंग में हिस्सा ले चुके संस्थानों के निदेशकों से संपर्क करने के साथ शुरू होती है। इस साल सभी संकायों के नए संस्थानों को मौका देने के लिए हमने ईमेल, टेलीफोन और संस्थानों में पहुंचकर ज्यादा से ज्यादा भागीदारी बढ़ाने का प्रयास किया। मानकों के अनुरूप हमने सरकारी मान्यता और संबद्धता वाले और कम से कम तीन बैच निकाल चुके कॉलेजों पर ही विचार किया है।
देश भर में 12 विषयों के पाठ्यक्रमों के 2,700 से ज्यादा कॉलेजों को विस्तृत वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली हमने भेजी। वे विषय हैं: इंजीनियरिंग, मेडिसिन, आर्किटेक्चर, दंत चिकित्सा, लॉ, सोशल वर्क, होटल मैनेजमेंट, फैशन, मास कम्यूनिकेशन, डिजाइन, कंप्यूटर एप्लीकेशन और फार्मेसी।
इस वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली के जरिए कॉलेजों को पांच मापदंडों (चयन प्रक्रिया और इंस्टीट्यूट का प्रोफाइल, अकादमिक, व्यक्तित्व और विकास, प्लेसमेंट, रोजगार और ग्रेजुएटिंग आउटकम और इन्फ्रास्ट्रक्चर) पर परखा गया। पिछले साल की रैंकिंग से तुलना हो सके इसलिए इन मापदंडों को इस बार भी उतना ही महत्व दिया गया है, जितना पिछले साल दिया गया था। इसके अलावा 17 शहरों (दिल्ली, मुंबई, पुणे, चेन्नै, बेंगलूरू, हैदराबाद, कोलकाता, इलाहाबाद, इंदौर, भोपाल, कोच्चि, चंडीगढ़, जयपुर, लखनऊ, कोयंबतूर, पटना और भुवनेश्वर) में छात्रों, शिक्षकों, ह्यूमन रिसोर्स से जुड़े पेशेवर लोगों, नियोक्ताओं, अभ्यासरत डॉक्टरों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, फैशन डिजाइनरों, मीडिया पेशेवरों, इंजीनियरों, वकीलों, होटल मैनेजरों और आर्किटेक्ट की धारणा समझने के लिए एक अवधारणात्मक सर्वेक्षण (परसेप्चुअल सर्वे) भी कराया गया।
इस साल विभिन्न संकायों के कुल 428 संस्थानों ने रैंकिंग प्रक्रिया में भाग लिया। इनमें से 196 इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। अवधारणात्मक सर्वेक्षण में हमने अनुभवी शिक्षकों, छात्रों, नियोक्ताओं और पेशेवर लोगों के बीच 20 हजार से ज्यादा इंटरव्यू किए।
पिछले साल के मुकाबले यह तादाद 156 फीसदी अधिक है। इस भागीदारी में इसलिए भी इजाफा हुआ क्योंकि हरेक संस्थान को इसके शिक्षकों, छात्रों, पूर्व छात्रों और नियोक्ताओं को ऑनलाइन सर्वेक्षण में शामिल कराने के लिए प्रोत्साहित किया गया था। अंतिम चरण में, 15 शहरों में जाकर 165 से अधिक कॉलेजों का गहन मूल्यांकन किया गया।
प्रोफेशनल कॉलेजों से पास होकर निकलने वाले छात्रों की संख्या और नौकरियों की तादाद में अंतर को देखते हुए कॉलेज और कोर्स के बारे में सही निर्णय लेना और भी आवश्यक हो जाता है।
उम्मीद है कि आउटलुक की प्रोफेशनल कॉलेजों की रैंकिंग इसमें मददगार साबित होगी। फिर भी होशियारी से चुनिए!
(दृष्टि रिसर्च टीम में एके बालाजी प्रसाद, जिग्नेश बाफना और आकांक्षा चावला शामिल रहे)