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असर बढ़ा पर कोई स्क्रीन टेस्ट भी तो हो

सीखने, खोजने की बढ़ती लालसा से ऑनलाइन पाठ्यक्रमों को लेकर रुझान बढ़ा, लेकिन कोर्स पूरा करने की गंभीरता न होना बनी समस्या
ऑनलाइन एजुकेशनः तेजी से बढ़ रहा दायरा

एक ही झटके में पूरा तकनीकी बदलाव तो बिरले ही होता है। स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों की दरकार शायद कभी कम न हो, लेकिन ऑनलाइन एजुकेशन ने पिछले एक दशक में अपनी उपस्थिति बड़े पैमाने पर दर्ज कराई है। हालांकि, वर्चुअल कक्षाओं के असर को आंकने के लिए मौजूदा मापदंड ही लागू किए गए थे। लेकिन सवाल यह भी है कि ये तरीके भारत जैसे विकासशील देश के लिए कितने माकूल हैं जहां इंटरनेट की हर जगह पहुंच नहीं है या अभी बुनियादी समस्याओं में ही उलझी हुई है?

एमओओसी (मैसिव ओपन ऑनलाइन पाठ्यक्रम) का संक्षिप्त इतिहास दूरस्‍थ पत्राचार पाठ्यक्रमों से शुरू होता है। औद्योगिक क्रांति के आखिरी दौर में अमेरिका और यूरोप में ऐसे पाठ्यक्रमों की भरमार आ गई थी, क्योंकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को कारखानों में काम करने लायक बनाने की जरूरत थी। साठ के दशक के अंत में ब्रिटेन में पहली ओपन यूनिवर्सिटी खुली। फिर नब्बे का दशक आया और सीडी रोम ने शिक्षकों के लिए ज्यादा इंटरैक्टिव सामग्री तैयार करना आसान बना दिया।

एमओओसी की शुरुआत 2008 में हुई। इसे ‘कनेक्टिविज्म ऐंड कनेक्टिव नॉलेज/2008’ या सीसीके-8 कहते हैं। कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ मनिटोबा के स्टीफन डाउंस और जॉर्ज सिमंस ने फेसबुक ग्रुप्स, विकिपीडिया, ब्लॉग्स और फोरम का इस्तेमाल कर 2,200 लोगों के लिए इससे जुड़ना संभव कर दिखाया। पिछले एक दशक में एमओओसी का दायरा तेजी से बढ़ा है। पेशेवर सेवा मुहैया कराने वाली कंपनी केपीएमजी और सर्च इंजन गूगल ने 2017 में एक अध्ययन में भारत में ऑनलाइन शिक्षा का बाजार 2021 में 1.96 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान लगाया। इस अनुमान के मुताबिक यूजर्स की संख्या 2016 के 16 लाख के मुकाबले 2021 में छह गुना ज्यादा यानी 96 लाख होगी।

हालांकि, बीते वर्षों में एमओओसी में पाठ्यक्रम पूरा होने की दर 15 फीसदी से ज्यादा नहीं रही है। भारत के ऑनलाइन एजुकेशन सेक्टर में काम कर रहे शिक्षकों ने आउटलुक को बताया कि कोर्स पूरा करने के परंपरागत तरीकों को ऐसे क्षेत्र में नहीं लागू करना चाहिए, जहां बदलाव हो रहे हैं और जो असरदार तरीके से सीखने की इच्छा रखने वालों के साथ सामंजस्य बिठाने की कोशिश कर रहा है। कोर्सेरा के भारत और एशिया-पेसिफिक (एपीएसी) के निदेशक राघव गुप्ता ने बताया, “एक खास दायरे में पाठ्यक्रम पूरा होने की दर 60 फीसदी तक है।” कोर्सेरा की स्‍थापना हार्वर्ड के प्रोफेसर एंड्रयू एनजी और डेफनी कोलर ने की। यह सबसे बड़े एमओओसी में से एक है और 2,500 पाठ्यक्रम संचालित करता है।

गुप्ता बताते हैं, “पाठ्यक्रम पूरा करना न तो प्राथमिक उद्देश्य है और न ही एकमात्र मापदंड जिस पर ध्यान केंद्रित किया जाए। मेरे हिसाब से साठ फीसदी या इसके आसपास की दर ठीक है। जाहिर है, ऑनलाइन का हिस्सा विश्वविद्यालय के पारंपरिक पाठ्यक्रम बनते हैं तो इसमें इजाफा होगा।” गुप्ता ने बताया कि कोर्सेरा के प्लेटफॉर्म पर आने वाले लोगों के “तीन से चार मकसद होते हैं।” प्लेटफॉर्म मुफ्त पाठ्यक्रम मुहैया कराता है जहां यूजर्स ऑनलाइन सामग्रियों से परिचित होते हैं। कुछ लोग ब्लॉकचेन और मशीन लर्निंग जैसे विषयों के बारे में जानना चाहते हैं। वे कहते हैं, “हमारे प्लेटफॉर्म पर आकर लोग मुफ्त पाठ्यक्रम के लिए पंजीयन कराते हैं। 15 घंटे के पाठ्यक्रम के लिए वे दो से तीन घंटे खर्च करते हैं और समझ जाते हैं कि यह पाठ्यक्रम उनके लिए नहीं है और वे कोर्स पूरा नहीं करते।” 

दूसरी श्रेणी ऐसे लोगों की होती है जो कंपनियों की जरूरत के अनुसार पाठ्यक्रमों या पेशे के लिए पैसा खर्च करते हैं। वे कहते हैं, “मैं इंडस्ट्री में पंद्रह साल से हूं और शीर्ष विश्वविद्यालय की डिग्री मेरे पास है तो मैं पाठ्यक्रम पूरा कर प्रमाणपत्र लेने की कोशिश नहीं करूंगा, क्योंकि यह मेरा मकसद नहीं है।” तीसरी श्रेणी में गुप्ता ऐसे लोगों को रखते हैं जो पैसा खर्च कर पाठ्यक्रम पूरा करना चाहते हैं ताकि कॅरिअर में आगे बढ़ने के लिए वे इसे लिंक्‍डइन पर रख सकें। गुप्ता कहते हैं, “मेरे कहने का मतलब यह है कि सीखना और पाठ्यक्रम पूरा करना समान बात नहीं है। हमारे प्लेटफॉर्म पर लोग सबसे पहले जानकारी हासिल करने और सीखने आते हैं।”

ऑनलाइन शिक्षा के क्षेत्र में एमओओसी के बाहर भी पॉकेट हैं। इन पर ज्यादा ध्यान देने और अकादमिक सख्ती की जरूरत है। पब्लिक पॉलिसी की डिग्री प्रदान करने वाले थिंक टैंक तक्षशिला इंस्टीट्यूशन के सह संस्‍थापक नितिन पै ने बताया कि उनके यहां पाठ्यक्रम पूरा करने की दर काफी ज्यादा है। ज्यादातर मामलों में यह 75 फीसदी से अधिक है। वे कहते हैं, “पाठ्यक्रम अधूरा छोड़ने वाले कठिन अकादमिक मानकों की उम्मीद नहीं रखते, जबकि हमारा बेंचमार्क दुनिया के सबसे अच्छे पब्लिक पॉलिसी स्कूलों के पाठ्यक्रम हैं।” पाठ्यक्रम पूरा होने की दर ऊंची होने के वे तीन कारण बताते हैं-छात्रों की प्रेरणा, पाठ्यक्रमों में लचीलापन और सामाजिक सीख। पै ने बताया कि उनके संस्‍थान का पाठ्यक्रम ऐसे लोगों को आकर्षित करता है जो सामाजिक क्षेत्र में बदलाव के लिए जोश और जुनून से भरे होते हैं। वे केवल प्रमाणपत्र नहीं चाहते, बल्कि बदलाव लाने के लिए ज्ञान का इस्तेमाल करना चाहते हैं।

तक्षशिला की सफलता दर ज्यादा होने की वजह कड़ाई से छोटे बैच के मापदंडों पर जोर को माना जा सकता है। वीडियो और वेब पाठ्यक्रमों से ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सात आइआइटी ने एनपीटीईएल (नेशनल प्रोग्राम ऑन टेक्नोलॉजी एनहांस्ड लर्निंग) नाम से पहल की है। आइआइटी मुंबई में प्रोफेसर कन्नन मौदगल्य का कहना है कि पाठ्यक्रम पूरा होने की परिभाषाएं ‘अस्पष्ट’ और अलग-अलग हैं। इस कार्यक्रम के तहत देश भर में इंजीनियरिंग कॉलेजों में 510 रिमोट सेंटर स्‍थापित किए गए हैं। यहां दाखिला लेने वाले छात्र हफ्ते में तय दिन जाकर सवाल पूछ सकते हैं। मौदगल्य ने बताया कि बीते चार साल में देश भर में करीब 45 लाख छात्र इस पहल से फायदा उठा चुके हैं।

उन्होंने बताया कि जब एनपीटीईएल की योजना बनाई गई तब यह केवल वेब पाठ्यक्रमों के लिए थी। तत्कालीन ‌मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने इसे वीडियो पाठ्यक्रमों के लिए भी शुरू करने को कहा था। मौदगल्य ने बताया, “वीडियो पाठ्यक्रमों के लिए यह हिट रहा। वेब पाठ्यक्रमों से इसे तीन गुना ज्यादा रिस्पांस मिला।” मौदगल्य ने बताया कि देश भर में काबिल शिक्षकों पर अत्यधिक काम का दबाव है और तकनीक एक औसत शिक्षक को अच्छा बनाने में मदद करती है। इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग और फिजिक्स से जुड़े सवालों के जवाब देने वाले कार्यक्रम ‘आस्क ए क्वेशचन’ का उल्लेख करते हुए वे कहते हैं, “तकनीक के जरिए कम खर्च पर लाजवाब अनुभव हासिल किया जा सकता है। हफ्ते में एक घंटे के लिए लोग आते हैं और सवाल पूछते हैं। यह लाइव होता है और भविष्य के लिए रिकॉर्ड कर रखा भी जा सकता है।”

मौदगल्य ने बताया कि भारत के छात्र होनहार हैं और सबसे बड़ी चुनौती ऐसे छात्रों तक सामग्री पहुंचाने की है जिनकी शिक्षकों तक पहुंच नहीं है। ऐसा करके आप उनकी रोजगार पाने की क्षमताओं में इजाफा कर सकते हैं। वे कहते हैं, “आप साधारण सामग्री तैयार करते हैं तो समझिए कि उसे दस लोग ही देखते हैं। लेकिन आप इसे दस गुना बेहतर बनाते हैं तो एक हजार लोग इसे देखेंगे।”

उपरोक्त तथ्यों से हटकर देखें तो देश के ऑनलाइन शिक्षा बाजार में कई खिलाड़ी हैं जो अंडरग्रेजुएट से पोस्टग्रेजुएट तक अकादमिक कौशल बढ़ाने के साथ-साथ नीति और भाषाई कौशल बढ़ाने के मौके की तलाश में हैं। हार्वर्ड और एमआइटी द्वारा 2013 में किए गए अध्ययन में कहा गया है कि “कोर्स सर्टिफिकेट पाने की दर भ्रामक है और इसका ओपन ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के असर और संभावना पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।” गैर-पंजीकृत यूजर्स द्वारा पाठ्यक्रम देखने, मुफ्त दाखिले की दर में वृद्धि से ऑनलाइन शिक्षा का असर प्रभावित हो सकता है। ऐसा लगता है कि सीखने और खोजने की लालसा अब काफी बढ़ रही है। इसलिए, पाठ्यक्रम पूरा करने की दरों को परिभाषित करने वाले मापदंड हमें यही एहसास कराएंगे कि उन्हें अब भी स्कूल-कॉलेजों के नजरिए से ही देखा जा रहा है।

तेजी से विस्तार

- 2016 में भारत का ऑनलाइन एजुकेशन मार्केट 16 लाख यूजर्स के साथ 24.7 करोड़ डॉलर का था

- केपीएमजी और गूगल का आकलन है कि 2021 तक बाजार 1.96 अरब डॉलर का और यूजर्स 96 लाख होंगे

- पूरी दुनिया में ऑनलाइन एजुकेशन मार्केट 2016 में 46.67 अरब डॉलर का था और 2022 तक इसके बढ़कर 243 अरब डॉलर होने की उम्मीद है

-स्टेटिस्टा के अनुसार सर्वेक्षण में शामिल रहे दुनिया भर के करीब 92 फीसदी छात्रों का कहना है कि वे अपने कोर्स और डिग्री को लेकर व्‍यक्तिगत तौर पर मदद और उससे संबंधित जानकारी चाहते हैं

- आइएएमएआइ ने एक हालिया रिपोर्ट में बताया है कि जून में भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 50 करोड़ तक हो जाएगी

- दुनिया में फिक्‍स्ड लाइन इंटरनेट स्पीड के मामले में भारत 67वें और मोबाइल इंटरनेट स्पीड के मामले में 109वें पायदान पर है 

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