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आदिवासी वोटों के जोर-जुगाड़

चुनावी साल में विकास यात्रा पर निकले रमन सिंह, 65 सीटों का टारगेट पूरा करने के लिए बस्तर, सरगुजा जैसे इलाकों में लगा रहे जोर
रुझान बदलने की आसः विभिन्न योजनाओं के तहत मदद बांटते मुख्यमंत्री रमन सिंह

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से चिरमिरी करीब तीन सौ किलोमीटर दूर है। कोयला खदानों के कारण विशेष पहचान रखने वाले चिरमिरी तक पहुंचने में सड़क मार्ग से करीब आठ घंटे का वक्त लगता है। इस रास्ते में कई जगह सड़क का काम चल रहा है। बिलासपुर के बाद ज्यादातर रास्ता जंगल से घिरा है। इसलिए, बस्तियां सड़क किनारे से काफी दूर-दूर बसी हैं। लेकिन, जहां भी आबादी है वहां, शौचालय, स्कूल, बिजली के खंभे और स्वास्‍थ्य केंद्र दिखते हैं। पहली नजर में इस राज्य में सबकुछ दुरुस्त लगता है। लेकिन, यह भ्रम तब टूट जाता है जब 19 मई की सुबह चिरमिरी में मुख्यमंत्री रमन सिंह को पानी की समस्या, उनके आगमन से पहले सड़कों के गड्ढे भरे जाने जैसे सवालों से रूबरू होना पड़ता है। सीएम कहते हैं कि कमियों के बारे में जानने के लिए ही वे विकास यात्रा पर निकले हैं।

रमन सिंह ने आउटलुक को बताया, “राज्य सरकार ने पिछले 15 साल में विकास के काफी काम किए हैं। लोगों को इसके बारे में बताने और विकास कार्यों को गति देने के लिए ही हमने विकास यात्रा निकाली है। इससे समस्याओं का समाधान करने में मदद मिलती है। जो काम अब तक नहीं हो पाए हैं उसे हम आगे पूरा करेंगे।” छत्तीसगढ़ में 2003 से ही रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार चल रही है। पार्टी ने इस बार 90 सदस्यीय विधानसभा में 65 प्लस सीटें जीतने का लक्ष्य तय कर रखा है। ऐसे में रमन सिंह के सामने सत्ता विरोधी रुझान से निपटने के साथ-साथ इस लक्ष्य को पूरा करने की दोहरी चुनौती है। 65 सीटों का लक्ष्य राज्य के आदिवासीबहुल इलाके में कमल खिलाए बिना मुमकिन नहीं है। राज्य में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित 29 सीटों में से केवल 11 पर ही भाजपा पिछले चुनाव में जीती थी। जबकि 2008 में उसे 19 सीटों पर सफलता मिली थी। 2013 में भाजपा और कांग्रेस की कुल सीटों में भले दस सीटों का फासला रहा था, लेकिन मत में एक फीसदी से भी कम का अंतर था।

यही कारण है कि 2008 और 2013 की विकास यात्रा के मुकाबले इस बार रमन सिंह आदिवासीबहुल इलाकों में ज्यादा जोर लगा रहे हैं। उन्होंने आउटलुक को बताया, “सरगुजा की आठ में से केवल एक सीट हमारी है। सरगुजा और बस्तर में प्रदर्शन में काफी सुधार की गुंजाइश है।” यही कारण है कि इस बार विकास यात्रा की शुरुआत आदिवासीबहुल और नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा से की गई है। इससे पहले आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ के आदिवासीबहुल इलाके बीजापुर से ही की थी।

विकास यात्रा का 12 मई को आगाज करने के बाद से रमन सिंह बस्तर, सरगुजा, कोरिया, कोरबा जैसे आदिवासीबहुल इलाकों से गुजर चुके हैं। ये इलाके नक्सल प्रभावित भी हैं। 20 मई को दंतेवाड़ा जिले में नक्सलियों ने आइईडी ब्लास्ट कर एक वाहन को उड़ा दिया। इस हमले में सात जवान शहीद हो गए थे। इससे एक दिन पहले अपनी यात्रा के दौरान राजपुर में जनसभा को संबोधित करते हुए रमन सिंह ने कहा था कि सरगुजा से नक्सलियों का सफाया हो चुका है और जल्द ही बस्तर को भी इससे मुक्ति मिल जाएगी। उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार नक्सलियों से बातचीत को भी तैयार है बशर्ते इसमें उनके बड़े नेता पोलित ब्यूरो के सदस्य शामिल हों।

इस बीच, जशपुर में पत्‍थलगड़ी भी एक चुनौती के तौर पर सरकार के लिए उभरी है। कांसाबेल में कई लोगों ने इस मामले में प्रशासन की कार्रवाई को लेकर नाराजगी जताई। इस मुद्दे पर आदिवासियों के बीच विभाजन भी साफ दिखता है। रमन सिंह ने बताया कि पत्‍थलगड़ी के नाम पर कुछ लोग आदिवासी समाज में विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। आदिवासियों को गुमराह कर अधिकारियों को बंधक बनाने की साजिश रची जा रही है। समाज के बीच जाकर भाजपा के जनप्रतिनिधि आदिवासियों को इसके खिलाफ जागरूक कर रहे हैं।

सरगुजा में नक्सली हिंसा में कमी आने की बात राजपुर की सभा में आए लोग भी मानते हैं। लेकिन, स्थानीय लोग रोजगार की कमी से परेशान हैं। बिजली और पानी का भी संकट है। स्‍थानीय अधिकारियों को लेकर भी लोगों में नाराजगी है। पिंड्रा के शिक्षक जुगेश केरकेट्टा ने बताया कि लोगों के बीच मुख्यमंत्री की छवि अच्छी है। लेकिन, अधिकारी और स्‍थानीय नेताओं से लोग खुश नहीं हैं। इसका नुकसान चुनाव में भाजपा को हो सकता है। बलरामपुर में ज्योत्सना चंपावल ने बताया कि उनके गांव में अभी बिजली नहीं पहुंची है। रामचंद्रपुर के समीर हेलदार, भैंसामुंडा की मोनिका जिकदार सहित कई ग्रामीणों ने तेंदूपत्ता पारिश्रमिक  वितरण में गड़बड़ी और रोजगार की कमी को लेकर शिकायत की।

लोगों की नाराजगी दूर करने के लिए रमन सिंह राज्य और केंद्र सरकार के कामकाज का बखान करने के अलावा यात्रा के दौरान सौगात भी खूब बांट रहे हैं। उनकी पोटली में हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ है। 19 मई को गणेश मोड़, बलरामपुर, कांसाबेल और राजपुर में मुख्यमंत्री ने सभा की। इन जगहों पर करोड़ाें की योजनाओं की शुरुआत के साथ-साथ उज्ज्वला योजना के तहत गैस चूल्हा-सिलिंडर, कृषक समग्र विकास योजना के तहत बीज मिनीकिट, ‌ड्रिप संयंत्र, श्रमिकों को औजार, मछुआरों को जाल, आइबॉक्स, छात्रों को फ्री में वर्दी और किताबें, ट्राइसाइकिल, व्हील चेयर और प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत चेक बांटे गए।

विकास यात्रा के दौरान 55 लाख परिवारों को मुफ्त मोबाइल, दो लाख साइकिल, तीस हजार सिलाई मशीनें बांटी जाएंगी। इस दौरान पूरे प्रदेश में 30 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत के निर्माण कार्यों का शिलान्यास और लोकार्पण भी सीएम करेंगे। 13 लाख किसानों को धान बोनस और जमीन के पट्टे बांटे जाएंगे। सभाओं में मुख्यमंत्री आने वाले चार महीने में हर मजरे-टोले में बिजली पहुंचाने का दावा करते हैं। वे कहते हैं कि 70 हजार लोगों को 200 रुपये में उज्ज्वला योजना के तहत गैस चूल्हा-सि‌लिंडर मिला है। 60 हजार लोगों को और मिलेगा।

आदिवासीबहुल इलाकों में सरकार के कामकाज से लोग भले ही बहुत संतुष्ट नहीं दिखते हैं। बिजली, पानी, रोजगार की कमी और भ्रष्टाचार से भी लोग परेशान हैं। इसके बावजूद चिलचिलाती धूप में भी रमन सिंह की सभाओं में लोग जुट रहे हैं। छत्तीसगढ़ की राजनीति की समझ रखने वाले लोगों ने बताया कि यात्रा से जहां रमन सिंह को जमीनी हकीकत का पता चल जाता है, वहीं मुख्यमंत्री को करीब पाकर लोगों की नाराजगी भी कम हो जाती है। अधिकारियों और पार्टी प्रतिनिधियों के खिलाफ नाराजगी को लेकर पूछे जाने पर रमन सिंह ने बताया कि कई बार आरोप राजनीति से प्रेरित होते हैं। लेकिन, कामकाज के तरीके में सुधार लाने की भी जरूरत है। उन्हें पूरी उम्मीद है कि इस बार पार्टी आदिवासीबहुल इलाकों में अपना प्रदर्शन सुधारने और 65 प्लस सीटें जीतने में कामयाब होगी। हालांकि वे मानते हैं कि मुकाबला आसान नहीं है। उन्होंने आउटलुक को बताया, “हम अति आत्मविश्वास में नहीं हैं। चुनाव बड़ी चुनौती होती है इसीलिए तो इतनी मेहनत कर रहा हूं। पिछली दो यात्राओं में जिन इलाकों में नहीं गया था, वहां भी इस बार जा रहा हूं। छोटे राज्यों की लड़ाई ट्वेंटी-ट्वेंटी मैच की तरह होती है। जीत के लिए आखिरी गेंद पर ‌सिक्स लगाना पड़ता है।”

दूसरी ओर, लोगों की नाराजगी को भुनाने के लिए कांग्रेस विकास यात्रा के अगले दिन से ही ‘विकास खोजो यात्रा’ चला रही है। कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और आम आदमी पार्टी ने कई सीटों के लिए अपने प्रत्याशियों की घोषणा भी कर दी है, ये भले न जीतें लेकिन वोट जरूर काटेंगे। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती जोगी के अलग होने से हुए नुकसान की भरपाई करने की है। ऐसे में समय रहते कांग्रेस ने जोगी का काट नहीं तलाशा तो सत्ता में वापसी का उसका इंतजार और लंबा हो सकता है।

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