मध्य प्रदेश सरकार के किसान हितैषी वाले कई होर्डिंग्स राजधानी भोपाल समेत अन्य शहरों और कस्बों में नजर आते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। भोपाल से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर विदिशा जिले के लटेरी कृषि उपज मंडी में चना बेचने आए बीजूखेड़ी गांव के 65 साल के किसान मूलचंद मीणा ने तीन दिन इंतजार के बाद भी तौल न होने से हताश-निराश होकर वहीं दम तोड़ दिया। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का साफ आदेश है कि मोबाइल में संदेश आने के बाद ही किसान अपनी फसल बेचने मंडी जाएं। मूलचंद के छोटे बेटे के मोबाइल पर 14 मई को मैसेज आया, लेकिन 14 से 17 मई के बीच उसका नंबर ही नहीं आया। राज्य की कई और मंडियों में भी ऐसे ही हालात बताए जा रहे हैं, जहां मैसेज मिलने के बाद भी किसानों की तौल नहीं हो पा रही है। घटना के बाद न तो लटेरी कृषि उपज मंडी में व्यवस्था सुधरी और न ही शासन-प्रशासन ने इस घटना से कोई सबक लिया। यही वजह है कि इस घटना के बाद राजगढ़ जिले के नरसिंहगढ़ मंडी में किसान ओमप्रकाश पाटीदार और शुजालपुर जिले की अकोदिया मंडी में चना बेचने आए 43 साल के किसान सिद्धनाथ माली की मौत हो गई। लटेरी मंडी में तो किसानों के ट्रैक्टर खड़े करने की जगह नहीं होने से पास के मेला ग्राउंड में चने से भरी ट्रॉलियों की कतार लग गई।
मध्य प्रदेश में इस साल गेहूं और चने की बंपर पैदावार हुई है। लटेरी में किसानों ने बताया कि इस साल एक बीघे में चार-पांच क्विंटल की उपज आई है। गेहूं की सरकारी खरीद पूरी हो चुकी है। सरकारी मंडियों में चने की खरीदी पहले 12 मई से नौ जून तक होनी थी, लेकिन जल्दी मॉनसून की संभावना को देखते हुए सरकार ने 26 मई तक ही खरीदी के निर्देश दिए। इससे मंडियों से किसानों को ज्यादा मैसेज गए और आवक भी ज्यादा हो गई। तौल करने वाले कम पड़ गए। लटेरी मंडी में केवल चार वजन कांटे हैं। किसानों को टोकन में एक-दो दिन बाद की तारीख देना यहां आम है। ऐसे में मंडी में 400 से ज्यादा किसान कतार में थे। तौल के साथ-साथ चने की ग्रेडिंग को लेकर भी किसानों को चक्कर कटवाया जाता है। हादसा होने के बाद प्रशासन का कहना है कि वह अतिरिक्त कांटों की मांग करेगा, ताकि तुलाई जल्दी हो सके। लटेरी कृषि उपज मंडी के निरीक्षक प्रेमसिंह दांगी का कहना है कि तौल करने वालों की संख्या कम है, फिर भी रोजाना यहां दो सौ किसानों का चना तौला जा रहा है। इसके बाद भी किसानों को कई दिनों तक अपनी फसल के बिकने का इंतजार करना पड़ रहा है। लटेरी मंडी में चना बेचने आए रामरतन ने कहा कि आठ दिन बाद भी उनके चने की तौल नहीं हुई है। मंडी में किसानों के लिए बने विश्राम गृह में किसी तरह समय काट रहे हैं। कई तो ट्रैक्टर ट्रॉली में ही बैठकर समय काटते दिखे।
सरकार उपज बेचने के लिए किसानों को मैसेज भेज रही है, लेकिन कुछ लोगों को समझ ही नहीं आ रहा है। वे मंडी में पूछताछ करने आ रहे हैं, लेकिन यहां कोई कुछ बताने वाला ही नहीं है। नारायणखेड़ी के जनवीर का कहना था कि उन्हें 50 क्विंटल चना बेचना है। उनका नंबर कब आएगा, कोई बताने वाला ही नहीं है। मंडियों में पीछे के रास्ते चने की तौल का भी खेल चल रहा है। रसूखदार लोग अपने प्रभाव और पैसे के बूते कतार में लगे किसानों से पहले तौल करवा कर चले जाते हैं। परेशानी छोटे किसानों को हो रही है। स्थानीय नेता बद्री रघुवंशी इसे स्वीकार भी करते हैं। बीजूखेड़ी के मृतक किसान के बेटे नर्बदा प्रसाद का कहना है कि उसके पिता 25 क्विंटल चना बेचने मंडी गए थे। समय पर तुलाई हो जाती तो हादसा नहीं होता।
नर्बदा प्रसाद का कहना है कि सरकार की नीतियां अच्छी हैं, लेकिन उसका क्रियान्वयन बिलकुल भी अच्छा नहीं है। मेरे पिता बिलकुल स्वस्थ थे। वे सरकारी सिस्टम का शिकार हो गए। प्रशासन ने हादसे के बाद कोई सुध नहीं ली। मृतक किसान के परिवार को कोई मुआवजा राशि भी नहीं मिली। राज्य के जनसंपर्क मंत्री और शिवराज सरकार के प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा का कहना है कि घटना की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। मृतक के परिजनों को मुआवजा मिला या नहीं इसकी जानकारी नहीं है। हादसे के तत्काल बाद पूर्व सांसद लक्ष्मण सिंह मृतक के घर गए, जबकि भाजपा की तरफ से स्थानीय नेता प्रशांत पालीवाल पहुंचे।
मध्य प्रदेश में सिर्फ फसल मंडी में बेचना ही नहीं, उसके बाद भुगतान में भी लंबा वक्त लग रहा है। राज्य में गेहूं 2000 रुपये, चना 4,400 रुपये, मसूर 4,225 रुपये और सरसों 4,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर खरीदा जा रहा है। आंकड़ों के मुताबिक, गेहूं का 9,509 करोड़ रुपये का भुगतान होना था, लेकिन सिर्फ 6000 करोड़ रुपये का हुआ। मसूर का 136 करोड़ रुपये का भुगतान होना था, लेकिन 12 करोड़ रुपये का हुआ है। वहीं, चने का 1150 करोड़ रुपये का भुगतान होना था, लेकिन हुआ है सिर्फ 150 करोड़ रुपये का। हालांकि, सरकार का कहना है कि पैसे की कमी नहीं है। वहीं, विपक्ष का आरोप है कि सरकार झूठ बोल रही है। कांग्रेस प्रवक्ता मानक अग्रवाल ने कहा, “सरकार कहती है हम किसान पुत्र हैं, मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या कर रहे हैं। दो-दो महीने तक पेमेंट नहीं हो रहा है।”
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह किसान पुत्र हैं। इसके बावजूद किसान सड़क पर उतरने को मजबूर होते हैं। पिछले साल जून में मंदसौर में किसान उपज के वाजिब दाम को लेकर सड़कों पर आने पर मजबूर हुए। आधा दर्जन लोगों की जान भी चली गई। इसके बाद प्याज का भाव नहीं मिलने का मामला सामने आया। सरकार किसानों से आठ रुपये की दर से खरीदी, लेकिन रखरखाव की व्यवस्था न होने से जगह-जगह प्याज सड़ गया। इस साल लहसुन की बंपर पैदावार हुई है। इससे किसानों को अच्छा भाव नहीं मिल पा रहा है। लहसुन की स्थिति यह हो गई है कि मंदसौर की शामगढ़ मंडी में एक किसान को लहसुन एक रुपये किलो में बेचना पड़ा। हालांकि, इस कीमत पर बेचने की जगह किसानों ने उसे फेंकना ही बेहतर समझा, क्योंकि मंडी ले जाकर उसे बेचने में उनके और भी ज्यादा पैसे लग जाते। लहसुन की इतनी खराब कीमत को लेकर किसानों ने कई जगह प्रदर्शन भी किए हैं, ताकि सरकार से उन्हें कुछ मदद मिल सके। लहसुन के इस हाल में पहुंचने की मुख्य वजह भावांतर योजना को बताया जा रहा है। इस योजना के तहत शिवराज सिंह चौहान सरकार ने फैसला किया था कि समर्थन मूल्य के नीचे बेचने पर राज्य सरकार किसानों को बाजार भाव और समर्थन मूल्य के बीच के अंतर को मुआवजे के तौर पर देगी, लेकिन लहसुन के लिए सरकार ने 800 रुपये प्रति क्विंटल का रेट तय कर रखा है। साफ है कि मध्य प्रदेश में किसानों की स्थिति काफी खराब है। किसी को उपज का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है, तो किसी की उपज बिक नहीं रही है। सरकारी तंत्र में फंसकर जान भी गंवानी पड़ रही है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह किसानों के लिए बातें तो करते हैं, लेकिन उनकी समस्याओं को हल नहीं कर नहीं पा रहे हैं। विदिशा जिले के कोलवा गांव के कॉलेज में पढ़ने वाले सचिन यादव कहते हैं कि शिवराज सिंह बोलते हैं, लेकिन करते कुछ नहीं। छह महीने बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। मंडियों में किसानों की मौत से कांग्रेस को बड़ा मुद्दा मिल गया है। वहीं, किसान नेता शिवकुमार शर्मा उर्फ कक्का जी ने उपज के वाजिब दाम को लेकर आंदोलन की चेतावनी दे दी है, ऐसे में शिवराज सरकार की मुसीबत बढ़ गई है। पिछले साल की घटना से सबक लेकर सरकार कदम उठाती, तो शायद वह किसानों के मुद्दे पर नहीं घिरती।