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महज जुमलों की बाजीगरी

मोदी सरकार के आय दोगुनी करने के जुमले की हकीकत खुली, अब किसान और बहकने वाले नहीं
लामबंदी की कोशिशेंः किसान संघर्ष समन्वय समिति की बैठक में तमाम विपक्षी दलों के नेता

खुद को भ्रम में रखने की हमारे पास ढेरों दलीलें और वजहें होती हैं। हम वही देखते हैं, जो देखना चाहते हैं। सत्तारूढ़ भाजपा इस आत्म-वंचना की अद्‍भुत मिसाल है। भारतीय किसान गंभीर संकट में है, लेकिन भाजपा अलग दुनिया में रमती है।

भाजपा 2014 में सत्ता में आई, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों को 50 फीसदी मुनाफा देने का वादा किया था। लेकिन केंद्र सरकार ने फरवरी 2015 में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामे में कहा कि किसानों को 50 फीसदी मुनाफा देने से बाजार पर नकारात्मक असर पड़ेगा। दरअसल, सरकार की कथनी और करनी के बीच गहरी खाई है।

चुनावी साल में, केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह अब भी मानते हैं कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। हालांकि, हकीकत कुछ और ही है। 2002-2013 के बीच किसानों की वास्तविक आय में वृद्धि 3.6 फीसदी थी, जो पिछले 48 महीनों में घटकर लगभग 2.5 फीसदी हो गई है। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि 2017-18 में अधिकांश प्रमुख फसलों का मुनाफा कम-से-कम एक तिहाई तक कम हुआ है। इसके बावजूद केंद्रीय मंत्री पिछली सरकार को ही दोषी ठहराते रहते हैं।

भारतीय जनता पार्टी सरकार के 48 महीने भारतीय किसानों के लिए दुःस्वप्न जैसे रहे हैं। कृषि क्षेत्र में वृद्धि आधी यानी दो फीसदी से भी कम हो गई है। महंगाई को ध्यान में रखकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में शायद ही बढ़ोतरी हुई है। नतीजा कृषि ऋण में पहले कभी इतनी अधिक वृद्धि नहीं हुई। साथ ही, आय में इतनी असमानता भी पहले कभी नहीं बढ़ी।

कृषि सिर्फ एक ही समस्या से प्रभावित हो रही है, क्योंकि कीमतों में वृद्धि नहीं हुई है। जबकि यूपीए के कार्यकाल के दौरान गेहूं, धान और दाल जैसी प्रमुख वस्तुओं के एमएसपी 12-23 फीसदी की औसत से बढ़ रहे थे, लेकिन मौजूदा सरकार में यह 4-6 फीसदी कम हो गए हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है कि तंगी की वजह से किसानों को मजबूरन बिक्री करनी पड़ रही है। गैर-एमएसपी वस्तुओं की कीमतों में भारी गिरावट हो रही है, जैसा कि किसानों को टमाटर 40 पैसे प्रति किलो बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा और मध्य प्रदेश के देवास में प्याज 50 पैसे प्रति किलो बिक रहे थे।

भाजपा अब भी 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने की बात कर रही है, वह भी बिना यह समझे कि इसके लिए उसे अब से 2022 के दौरान 10.4 फीसदी की सालाना वृद्धि दर की जरूरत होगी। किसान जानता है कि यह ‘जुमला’ है और पूरे देश के कृषि समुदाय को पता है कि कृषि विकास को बहाल करने और राहत दिलाने के लिए सरकार बदलनी जरूरी है। हमें न सिर्फ किसानों, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी कृषि व्यवस्‍था में व्यापक बदलाव की जरूरत है। जब तक कृषि क्षेत्र में न्यूनतम चार फीसदी की दर से वृद्धि नहीं होती, हम देश की आठ फीसदी की वृद्धि दर को बरकरार नहीं रख सकते हैं। हमने यूपीए सरकार के 10 वर्षों के दौरान 3.7 फीसदी की वृद्धि हासिल की थी और हमें किसानों की आय को दोबारा कृषि नीति के केंद्र में लाने की जरूरत है। साथ ही, किसानों को राहत देने के लिए कई कदम उठाने की आवश्यकता है।

सरकार को पहले यह समझने की जरूरत है कि कीमत ही एकमात्र सबसे बड़ा कारक है, जिससे किसानों का मुनाफा तय होता है। जब तक कीमतों में व्यापक वृद्धि नहीं की जाती, तब तक किसानों की आय को दोगुना नहीं किया जा सकता है। हमें एमएसपी तय करने के लिए मौजूदा इनपुट लागत और पारिवारिक श्रम के आधार पर व्यापक लागत (सी 2) निर्धारित करने की जरूरत है। अगर हम किसानों को वाकई कोई राहत पहुंचाना चाहते हैं, तो मार्केटिंग और परिवहन लागत, नुकसान और अन्य लागतों को कवर करने के लिए सी2 + 60%  देने की आवश्यकता होगी।

हम जमीनी स्तर पर आर्थिक विकास का लाभ लेना चाहते हैं, तो हमें सभी फसलों की यूनिवर्सल सरकारी खरीद की ओर बढ़ना होगा। साथ ही, एमएसपी व्यवस्था को अन्य उपजों जैसे आलू, टमाटर, प्याज, गोला और अन्य फलों, सब्जियों, फूलों और बागवानी पैदावारों पर भी लागू करना होगा। किसानों को बाजारों के उतार-चढ़ाव से भी बचाने की जरूरत है, क्योंकि न तो कीमत स्थिरीकरण निधि (प्राइस स्टैबिलाइजेशन फंड) और न ही भावांतर योजना उनकी समस्या का समाधान करने में सफल रही है।

पिछले चार साल की उपेक्षा से किसान बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और इसने किसानों को कर्ज के जाल में धकेल दिया है। हमें छोटे और सीमांत सभी किसानों के लिए एक राष्ट्रीय कर्जमाफी पर विचार करने की जरूरत है, जैसा कि यूपीए सरकार 2009 में 72,000 करोड़ रुपये की कर्जमाफी योजना लाई थी, जिससे देश के 3.7 करोड़ किसान परिवारों को फायदा हुआ था। फसल की कीमतें बढ़ाने और कर्जमाफी से तत्कालिक राहत मिलेगी, लेकिन हमें दीर्घकालिक समाधान पर विचार करने की जरूरत है, क्योंकि 2000 और 2030 के बीच हमारी खाद्य जरूरतें दोगुनी हो जाएंगी। हमें बेहतर सिंचाई, गुणवत्ता वाले बीज और प्रौद्योगिकी से उपज में सुधार करने की दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है। हमें अपनी खाद्य प्रसंस्करण की क्षमताओं में भी विस्तार करने की जरूरत है।

हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि हमारी भूमि ग्रामीण युवाओं की अगली पीढ़ी के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती है। भूमि के मालिकाना हक का औसत आकार पहले से ही कम हो गया है और आगे भी यह जारी रहेगा। इसलिए कृषि क्षेत्र में दीर्घकालिक रोजगार सुनिश्चित करने के अलावा तेजी से कृषि-सेवाओं और रूरल मैन्युफैक्चरिंग का विस्तार गैर-कृषि रोजगार तक करने की जरूरत है। हमें यह भी समझने की जरूरत है कि किसान एक फसल से दूसरी फसल पर निर्भर रहता है। उसे अब राहत की जरूरत है। अगर हम कृषि में टिकाऊ विकास और भारतीय अर्थव्यवस्था में अधिक समावेशी विकास लाना चाहते हैं तो हमें तात्कालिक समस्याओं के साथ संतुलन बैठाना पड़ेगा।

(लेखक कांग्रेस के लोकसभा सांसद हैं)

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