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किसानों के आसरे चुनावी नैया

भावांतर योजना की नाकामी ने शिवराज की बढ़ाई परेशानी, कांग्रेस का सरकार बनते ही कर्जमाफी का वादा
वोटों पर नजरः जबलपुर में कृषि समृद्धि सम्मेलन के दौरान शिवराज सिंह चौहान

मध्य प्रदेश में बीते एक साल से अपनी समस्याओं को लेकर किसान जिस तरीके से उग्र होकर सड़कों पर आ रहे हैं, उससे साफ है कि विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा होगा। राज्य में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए, भाजपा और कांग्रेस दोनों अपने-अपने तरीके से किसानों को लुभाने की कोशिश कर रही हैं।

कांग्रेस किसानों की नाराजगी को पूरी तरह भुनाकर 15 साल से राज्य की सत्ता में जमी भाजपा को बेदखल करना चाहती है। किसानों पर गोली चलाए जाने की पहली बरसी पर मंदसौर पहुंचे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने राज्य में पार्टी की सरकार बनने पर 10 दिन के भीतर किसानों का कर्ज माफ करने का ऐलान किया। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद को किसान का बेटा बताकर सहानुभूति हासिल करने में लगे हैं। इन सबके बीच कई अन्य राज्यों की तरह मध्य प्रदेश में भी किसानों ने एक से दस जून तक वाजिब दाम, कर्जमाफी और बुजुर्ग किसानों को पेंशन देने जैसी मांगों को लेकर ‘गांव बंद’ आंदोलन चलाया।

मध्य प्रदेश में करीब 85 लाख सीमांत और छोटे किसान हैं। इनमें से करीब 50 लाख किसानों पर करीब 60 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। भाजपा के 15 साल के शासनकाल में किसानों के कर्ज में 10 से 15 फीसदी की वृद्धि बताई जा रही है। जिन किसानों पर 13 साल पहले सिर्फ एक लाख रुपये तक का कर्ज था वह बढ़कर आज 12 लाख रुपये हो गया है। जो कर्जदार नहीं थे वे आज सात लाख रुपये तक के कर्ज में डूबे हुए हैं।

केंद्र सरकार की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में किसानों को उनकी उपज का पर्याप्त दाम नहीं मिल पा रहा है। इससे कर्जदार किसानों की हालत और खस्ता हो रही है और वे कर्ज न चुका पाने की स्थिति में फांसी के फंदे को गले लगा लेते हैं। आम किसान यूनियन से जुड़े केदार सिरोही ने बताया, “एक तरफ किसान कर्ज से दबा है, दूसरी ओर उसे उपज का उचित मूल्य नहीं मिल रहा। इससे उनकी हालत दिनोंदिन बदतर होती जा रही है।”

मध्य प्रदेश मूलतः कृषि प्रधान राज्य है। यहां गेहूं, चना, सरसों, सोयाबीन, लहसुन, प्याज से लेकर धान की भरपूर पैदावार होती है। अफीम के उत्पादन के लिए मशहूर मंदसौर इलाके में पिछले साल प्याज समेत अन्य फसलों का लागत मूल्य न मिलने से नाराज किसान सड़क पर उतर आए थे। इस दौरान पुलिस गोलीबारी में छह और पुलिस पिटाई से एक किसान की मौत हो गई थी। इस बार लहसुन का अच्छा दाम न मिलने से नाराजगी है। चना उत्पादक भी परेशान हैं। किसानों को राहत देने के लिए सरकार भावांतर योजना लेकर आई। लेकिन, बिचौलियों और अफसरशाही के चक्कर में इससे भी किसानों के घाटे की भरपाई नहीं हो पा रही है।

उल्लेखनीय है कि मालवा-मंदसौर का इलाका भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है। इसी इलाके से निकलकर सुंदरलाल पटवा और वीरेंद्र कुमार सखलेचा जैसे भाजपा नेता प्रदेश की राजनीति में छाए थे। लेकिन, माना जा रहा है कि किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा प्रभाव मंदसौर और उज्जैन लोकसभा सीट के तहत आने वाली विधानसभा सीटों पर ही पड़ेगा। अभी मंदसौर लोकसभा के तहत आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से सात पर भाजपा का कब्जा है। वहीं, उज्जैन लोकसभा की आठों सीट पर भाजपा काबिज है।

कांग्रेस प्रवक्ता माणक अग्रवाल का दावा है कि राज्य के किसान पूरी तरह कांग्रेस के साथ हैं और राहुल गांधी की सभा से सरकार घबरा गई है। मध्य प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय का कहना है कि शिवराज सिंह की सरकार ने किसानों के हित में जो अतुलनीय काम किए हैं उसके कारण किसान कांग्रेस के झांसे में नहीं आएंगे। इस बीच किसानों को साथ लाने की कोशिश में लगी भाजपा को बड़ा झटका कभी उसके शुभचिंतक रहे राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा उर्फ कक्का ने दिया है। शर्मा ने आउटलुक को बताया, “सरकार ने पहले किसान आंदोलन को फेल करने की कोशिश की और अब वह इसे कांग्रेस का आंदोलन बताकर बदनाम करने की कोशिश कर रही है।”

 “भाजपा विरोधी वोटों को बंटने नहीं देंगे”

मध्य प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कमलनाथ ने हाल में 60 लाख फर्जी वोटरों का मुद्दा उठाकर खलबली मचा दी। हालांकि चुनाव आयोग ने अपनी जांच में इसे सही नहीं पाने का दावा किया है। जाहिर है, कांग्रेस सक्रिय चुनावी रणनीति पर चल निकली है। हाल में कांग्रेस ने छोटी पार्टियों से तालमेल का भी संकेत दिया तो अपने नेताओं के हितों का ख्याल रखने का इशारा भी दिया। शुरुआत से केंद्र की राजनीति में सक्रिय रहे कमलनाथ को राज्य की राजनीति में आने का मन बनाने में काफी वक्त लगा। हालांकि, जबसे वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने हैं, कार्यकर्ता उत्साहित नजर आ रहे हैं। अलग-अलग गुटों में बंटी कांग्रेस को एकसूत्र में बांधना भी शायद कम बड़ी चुनौती नहीं है। 15 वर्षों से सत्ता में होने के कारण भाजपा के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर होना भी कांग्रेस के पक्ष में है। इसलिए, कमलनाथ पार्टी नेताओं को साधने के साथ विपक्षी वोटों का बिखराव रोकने की रणनीति बनाने में जुटे हैं। उन्‍होंने रवि भोई से बातचीत में कहा कि समय कम और चुनौती ज्यादा है, पर कांग्रेस विधानसभा की कुल 230 में से 150 से अधिक सीटें जीतेगी। मुख्य अंशः

-मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या गुटबाजी रही है। बड़े नेताओं के अपने-अपने गुट हैं। सबको एकजुट कैसे करेंगे?

सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं से मेरा पुराना संबंध है। मेरा अपना कोई गुट नहीं है। सब को साथ लेकर चलेंगे। सभी को महत्व दिया जाएगा। गुटबाजी जैसी कोई बात नहीं रहेगी। 

-क्‍या प्रदेश कांग्रेस की कमान कुछ और महीने पहले आपको सौंप दी जाती तो ज्यादा अच्छा होता? 

यह सही है कि समय कम और चुनौती अधिक है। विलंब मेरी तरफ से ही हुआ है। राहुल जी ने छह महीने पहले ही इसके लिए कह दिया था। लेकिन, इससे हमारे प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। कम समय में बेहतर नतीजे हासिल करेंगे।

-विधानसभा चुनाव में किन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाएंगे?

यहां मुद्दों की कोई कमी नहीं है। राज्य की भाजपा सरकार से हर वर्ग परेशान है। किसान, नौजवान और व्यापारी सभी दुखी हैं। जनता काफी निराश है और ठगा हुआ महसूस कर रही है। ठगे जाने पर मध्य प्रदेश की जनता किसी को बर्दाश्त नहीं करती। भाजपा विकास की बात करती है, लेकिन उसे लोगों का दुख नहीं दिखता। गरीबी रेखा की सूची में जितने लोगों का नाम जुड़ता नहीं, उससे कहीं ज्यादा लोगों का नाम कट जाता है।  

-क्या आप मानते हैं कि राज्य की भाजपा सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा है?

व्यापम घोटाले जैसे यहां भ्रष्टाचार के बड़े मुद्दे हैं। कांग्रेस इन सबको लेकर जनता के बीच जाएगी। भाजपा सरकार में भ्रष्टाचार एक व्यवस्था बन गई है। हर स्तर पर भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए नीतियों में परिवर्तन करने से काम नहीं चलने वाला है। व्यवस्था में बदलाव करना होगा। 

-राज्य में लगातार चौथी बार सरकार बनाने के लिए भाजपा ने अभी से बूथ लेवल पर तैयारी शुरू कर दी है। भाजपा और उसके सहयोगी संगठन भी चुनाव में सक्रिय रहते हैं, उनसे कैसे पार पाएंगे?

हमारी भी जमीनी तैयारी है। हम हल्ला नहीं कर रहे हैं। भाजपा तो हवा में घूम रही है, उसको लगता है कि आरएसएस के सहारे चुनाव जीत लेगी। 

-भाजपा ने 2018 के विधानसभा चुनाव में 200 से अधिक सीटें जीतने का टार्गेट रखा है। कांग्रेस का क्या लक्ष्य है?

कांग्रेस राज्य में 150 से अधिक सीटें जीतेगी। इसके लिए पार्टी टार्गेटेड काम कर रही है। राज्य की 25-30 सीटें ऐसी हैं, जहां पार्टी प्रत्याशी कभी नहीं जीते हैं। इन सीटों पर हमारा ज्यादा ध्यान नहीं है। हम उन सीटों पर फोकस कर रहे हैं जहां जीत की संभावना ज्यादा है। कुछ सीटें ऐसी भी हैं, जहां हम आसानी से चुनाव जीतेंगे।  

-प्रत्याशियों के चयन में कांग्रेस देरी करती है। नामांकन के आखिरी दिन तक बड़ी संख्या में उम्मीदवारों की घोषणा की जाती है। इससे प्रचार के लिए प्रत्याशियों को समय कम मिल पाता है। इससे कैसे निपटेंगे ?

इस बार कांग्रेस प्रत्याशियों की घोषणा सितंबर में कर दी जाएगी। 

-प्रत्याशियों का चयन किस आधार पर होगा?

जीत सकने वाले लोगों को ही उम्मीदवार बनाया जाएगा। इसमें किसी नेता की पसंद और नापसंद कोई मायने नहीं रखेगी।

-विधानसभा चुनाव में बसपा और गोंडवाना गणतंत्र जैसी पार्टियों से कांग्रेस तालमेल करेगी?

भाजपा विरोधी वोटों को बंटने नहीं देंगे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए को 31 फीसदी वोट मिले। उसके विरोध में 69 फीसदी वोट पड़े। नरेंद्र मोदी की सरकार को 31 फीसदी मतदाताओं का ही जनादेश मिला है। राहुल जी भी कह रहे हैं कि भाजपा विरोधी वोटों को बंटने से रोका जाएगा।

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