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भगवा खेमे में बिखराव से 2019 की राह मुश्किल

प्रदेश की 10 लोकसभा सीटों में से सात पर भाजपा का कब्जा, चार सांसदों ने तेज किए बगावती सुर
गढ़ बचाने की कवायदः जींद में एक रैली के दौरान अमित शाह, मनोहर लाल खट्टर (बाएं से तीसरे और चौथे) और अन्य नेता

अगले 15 महीने में 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों का सामना करने से पहले ही हरियाणा में सत्तारूढ़ भाजपा का भगवा कुनबा बिखरता दिख रहा है। ऐसे में भाजपा का अकेले अपने दम पर दूसरी बार हरियाणा की सत्ता पर काबिज होने का सपना धूमिल हो सकता है। वहीं, लोकसभा चुनाव में भी उसे बड़े नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। फिलहाल, प्रदेश की 10 लोकसभा सीटों में से सात पर भाजपा का कब्जा है। इन सात में से चार सांसदों ने केंद्र सरकार के समक्ष राज्य की मनोहर लाल खट्टर सरकार के खिलाफ बगावत के सुर तेज कर दिए हैं। इनमें दो सांसद राव इंद्रजीत सिंह और धर्मवीर 2014 के लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस से भाजपा में आए थे। इधर, भाजपा के समांतर लोकतंत्र सुरक्षा मंच खड़ा करने वाले कुरुक्षेत्र से सांसद राजकुमार सैनी ने तो अगला लोकसभा चुनाव भाजपा के टिकट पर न लड़ने का ऐलान करके साफ संदेश दिया है कि भगवा कुनबे में कुछ भी ठीक नहीं है।

गुड़गांव से सांसद राव इंद्रजीत सिंह खुले मंच से कहते हैं कि भाजपा में उनका अपमान हुआ है। भिवानी-महेंद्रगढ़ के सांसद धर्मवीर और करनाल के सांसद अश्वनी चोपड़ा भी सार्वजनिक मंचों से कई बार प्रदेश व केंद्र सरकार के प्रति खुलकर नाराजगी जाहिर करने से गुरेज नहीं करते हैं। धर्मवीर ऐलान कर चुके हैं कि वे 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे और विधानसभा चुनाव का रुख करेंगे। भाजपा के गलियारों में इस बात की चर्चा है कि राज्य की 10 लोकसभा सीटों में से सात पर मौजूदा सांसदों में से चार को पीछे कर भाजपा नए चेहरों को आगे कर सकती है। सांसदों के अलावा करीब दो दर्जन विधायकों और कैबिनेट मंत्रियों ने भी मुख्यमंत्री मनोहर लाल खटृर के खिलाफ बगावती सुर अपना लिया है। हालांकि, अमित शाह 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव खटृर की अगुवाई में लड़ने का खुला ऐलान कर चुके हैं, लेकिन बागी मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को यह गवारा नहीं। नौबत यहां तक आ गई कि बिखरे कुनबे को एक करने की मशक्कत में आलाकमान अमित शाह को हरियाणा भाजपा नेताओं की एक हफ्ते में दो बैठकें बुलानी पड़ीं। 16 जून को शाह ने फरीदाबाद में विस्तारकों की बैठक बुलाकर प्रदेश के राजनीतिक और पार्टी के हालात का पूरा फीडबैक लिया।

22 जून को दिल्ली में हरियाणा भवन में हुई बैठक में लोकसभा देख-रेख कमेटी की बैठक के बारे में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला ने बताया कि अमित शाह से हरियाणा के वर्तमान राजनीतिक हालात पर चर्चा हुई। बराला के मुताबिक, बैठक में फिलहाल लोकसभा के उम्मीदवारों को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई। शाह की बैठक से गैरहाजिर रहने वाले सांसद राजकुमार सैनी आगामी 28 अगस्त को करनाल में होने वाली रैली में अपनी अलग पार्टी की घोषणा करेंगे। सार्वजनिक मंचों से पार्टी के प्रति कई बार नाराजगी जाहिर कर चुके गुड़गांव के सांसद राव इंद्रजीत सिंह अमित शाह की 22 जून की बैठक में तो शामिल हुए, लेकिन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खटृर से उनका छत्तीस का आंकड़ा बना हुआ है। मुख्यमंत्री के खिलाफ सार्वजनिक मंचों से खुलकर बोलने वाले राव को तो यह कहने में भी गुरेज नहीं कि प्रदेश भाजपा में उन्हें सम्मान नहीं मिल रहा और उन्हें अपमानित किया जा रहा है। इसी अपमान के घूंट से राव ने 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा था। तब भी राव की तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई कांग्रेस छोड़ने का एक बड़ा कारण थी। 

संगठन और सरकार दोनों में कमजोर पड़ी भाजपा में नई जान फूंकने को पिछले कुछ समय से संघ के नेता सक्रिय हुए हैं। आलाकमान से निर्देश के बाद मुख्यमंत्री की सक्रियता भी बढ़ गई है। रोड शो, राहगिरी और जनसंपर्क अभियान तेज हुए हैं। भाजपा के गलियारों की मानें तो बिखरते कुनबे को थामने के लिए भविष्य में सरकार और संगठन में बड़ा फेरबदल हो सकता है। चर्चा गठबंधन की भी है। हाल में बसपा से गठबंधन करने वाली इनेलो को भाजपा द्वारा गठबंधन के बेहतर विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। पहले भी एनडीए का हिस्सा रही इनेलो ने देवीलाल के मुख्यमंत्री काल में भाजपा से गठबंधन में हरियाणा में दो बार सरकारें चलाई हैं। पुराना गठबंधन फिर से जोड़ने में भाजपा को बसपा से नवेला गठजोड़ तोड़ने में देर नहीं लगेगी। 2019 के शुरू में इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला की तिहाड़ जेल से रिहाई का समय है।

टीचर्स भर्ती घोटाले में जेल की सजा काट रहे चौटाला पिता-पुत्र के रिहा होने से इनेलो की पकड़ और मजबूत हो सकती है। दूसरा 10 साल जेल की सजा के बाद जनता के बीच चौटाला परिवार अपने प्रति सहानुभूति की लहर खड़ी कर सकता है। इनेलो का संगठन आज भी भाजपा के मुकाबले कहीं मजबूत और व्यापक माना जाता है।

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