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नई जुगलबंदी से बदले समीकरण

विजन और नई योजनाओं की बदौलत छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने जीता प्रधानमंत्री का भरोसा, चुनावी साल में पार्टी के भीतर राह हुई आसान
कितने पासः भिलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिस तरह से हर छोटे-बड़े कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ आ रहे हैं और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की तारीफ कर रहे हैं वह दोनों के संबंधों में नई गर्मजोश्‍ाी का संकेत है। चुनावी साल में इस जुगलबंदी से भाजपा के भीतर के समीकरण भी बदलते नजर आ रहे हैं। 14 जून को भिलाई में विकास यात्रा के पहले चरण की समाप्ति के मौके पर जिस तरह मुख्यमंत्री पद की दावेदार कही जाने वाली भाजपा की राष्ट्रीय महामंत्री और राज्यसभा सांसद सरोज पांडे दूसरी पंक्ति में दिखीं और भाषण में भी किसी ने उनके नाम का जिक्र तक नहीं किया, इसे डॉ. रमन का विरोध करने वाले पार्टी नेताओं के लिए संकेत माना जा रहा है।

इसी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने डॉ. रमन सिंह की जमकर पीठ थपथपाई। उल्लेखनीय है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही पार्टी के भीतर और बाहर हवा चल पड़ी थी कि छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह की जगह किसी आदिवासी नेता को कमान सौंपी जा सकती है। इसको तब और बल मिल गया, जब राज्य के आदिवासी नेता नंदकुमार साय को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष बनाया गया और रामविचार नेताम को राज्यसभा में भेजा गया। राज्य की राजनीति में नंदकुमार साय को डॉ. रमन सिंह का धुर विरोधी माना जाता है।

डॉ. रमन सिंह के पहले कार्यकाल में छत्तीसगढ़ में आदिवासी नेतृत्व की बात करने वालों में रामविचार नेताम अव्वल थे। छत्तीसगढ़ बनने के बाद 2000 में नंदकुमार साय को जब भाजपा ने नेता प्रतिपक्ष बनाया था उस समय मोदी प्रभारी महासचिव थे। इस नाते साय उनके करीबी माने जाते रहे हैं। लेकिन बीते चार साल में डॉ. रमन सिंह ने बाजी पूरी तरह पलटकर रख दी है।

भाजपा में लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाने वाले डॉ. रमन सिंह विजन और नई योजनाओं की बदौलत मोदी के करीब आने में कामयाब रहे हैं। कहा जाता है, प्रधानमंत्री से मुलाकात में रमन सिंह राजनैतिक चर्चा की जगह नए काॅन्‍सेप्ट पर बात करते हैं। यह मोदी को पसंद भी है। प्रधानमंत्री ने भिलाई की सभा में कहा भी, रमन सिंह जब भी उनसे मिलते हैं, एक नया विचार लेकर आते हैं।

आमतौर पर मोदी सख्त और अपने कैबिनेट सहयोगियों और मुख्यमंत्रियों से दूरी बनाकर चलने वाले प्रधानमंत्री माने जाते हैं। वे सभाओं में ज्यादातर केंद्र सरकार की योजनाओं और उपलब्धियों पर बात करना पसंद करते हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ में वे जब भी होते हैं राज्‍य सरकार और रमन सिंह के काम की तारीफ करने में कंजूसी नहीं करते।

भिलाई में भी मोदी ने अपने भाषण और हावभाव से रमन सिंह के साथ दोस्ताना संबंधों को दर्शाया। छत्तीसगढ़ का भिलाई अब स्टील सिटी के साथ एजुकेशन हब भी बन चुका है। यहां कोचिंग सेंटर की भरमार है। हर साल बड़ी संख्या में बच्चे इंजीनियरिंग-मेडिकल और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में चुने जा रहे हैं। राज्य की राजधानी रायपुर की जगह यहां पर आइआइटी की स्थापना राज्य सरकार की प्लानिंग में जमीनी सोच को बताता है।

रमन सरकार का ‘सबको भोजन और सबका साथ-सबका विकास’ राष्ट्रीय स्लोगन बन गया है। मोदी के ड्रीम कॉन्सेप्ट स्वच्छता अभियान को लेकर डोंगरगढ़ में एक कार्यक्रम हुआ जिसमें प्रधानमंत्री ने बकरी बेचकर टॉयलेट बनवाने वाली बुजुर्ग महिला कुंवर बाई के मंच पर पैर छुए। यह घटना रमन सिंह के लिए मील का पत्थर बन गई। राज्य के धुर नक्सल इलाके बीजापुर के जांगला में आयुष्मान भारत की शुरुआत और रमन सरकार के काम की तारीफ कर प्रधानमंत्री ने राजनीतिक संकेत भी दिए हैं। जांगला से लौटकर प्रधानमंत्री ने अपने ट्वीट में रमन सिंह को ‘मेरे मूल्यवान सहयोगी डॉ. रमन सिंह जी’ कहकर संबोधित किया। इससे रमन सिंह के प्रति प्रधानमंत्री के भाव का पता चलता है। प्रधानमंत्री रमन सिंह से कितने प्रभावित हैं इसकी एक बानगी 23 जून को मध्य प्रदेश के इंदौर में देखने को मिली। यहां एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोदी ने नया रायपुर के इंटीग्रेटेड कमांड ऐंड सेंटर को बेहतरीन सिस्टम बताया। इस सिस्टम से एक ही जगह से पूरे शहर की व्यवस्‍था का संचालन और बिजली, पानी और परिवहन व्यवस्‍था की निगरानी की जाती है।

छत्तीसगढ़ उन राज्यों में है, जहां इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य की 90 में से 65 सीटें जीतने का लक्ष्य प्रदेश के नेताओं को दे रखा है। भाजपा को 2003 और 2008 में 50, जबकि 2013 में 49 सीटों पर जीत मिली थी।

छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट का अंतर एक फीसदी से भी कम है। कांग्रेस और दूसरे दल एंटी इंकंबेंसी का फायदा उठाने और अपनी जमीन बनाने में लगे हैं, पर भाजपा के मुकाबले उनकी तैयारी कम दिखती है। दूसरी ओर, वोटों का फासला बढ़ाने और लगातार चौथी बार सरकार बनाने के लिए भाजपा  अपनी रणनीति को अंजाम देने में जुट गई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत का राज्य के आदिवासी इलाकों का दो दिनों का दौरा इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। किसानों को धान का बोनस, आदिवासियों को तेंदूपत्ता का बोनस, पौने दो लाख शिक्षाकर्मियों को नियमित करने का फैसला, युवाओं-महिलाओं को 50 लाख से अधिक मोबाइल बांटने समेत कई लुभावने कदम सरकार ने उठाएं हैं। वैसे अभी भी कई वर्ग चुनावी साल में सरकार से कुछ हासिल करने की कतार में हैं। कुछ सड़क पर उतरने का ऐलान भी कर रहे हैं।

रमन सिंह 2003 से लगातार मुख्यमंत्री हैं। 2003 में उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते और 2008 और 2013 का चुनाव उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में लड़ा गया। इस बार भी उनके ही नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाना करीब-करीब तय है। इसलिए, विकास यात्रा के जरिए मुख्यमंत्री अपनी पकड़ बरकरार रखने में जुटे हैं। अगस्त में इस यात्रा का दूसरा चरण शुरू होना है।

भाजपा के नेता मानते हैं कि रमन सिंह को आगे कर ही चुनाव जीता जा सकता है। रमन के मंत्रियों पर आरोप लगते रहे हैं और राज्य में अफसरशाही हावी होने की बात भी कही जाती है, लेकिन मुख्यमंत्री की छवि आज भी साफ-सुथरी है।

यही कारण है कि भाजपा के भीतर रमन सिंह का विरोध करने वाले नेता भी एक-एक कर किनारे कर दिए गए। चाहे करुणा शुक्ला की बात करें, या फिर रमेश बैस या अन्य नेताओं की। विपक्षी दल कांग्रेस भी मुख्यमंत्री को घेरने में नाकाम रही है। जब डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तब भी केंद्रीय मंत्री विरोधी होने के बावजूद खुद को रमन सिंह की तारीफ करने से रोक नहीं पाते थे। अब मोदी के साथ और विश्वास के कारण पार्टी के भीतर और अन्य मुख्यमंत्रियों के मुकाबले रमन का कद लगातार बढ़ रहा है।

मोदी ने शायद ही किसी मुख्यमंत्री की इतनी पीठ थपथपाई है, जितनी वे रमन सिंह की तारीफ कर रहे हैं। इसलिए, अब नए सिरे से इसके राजनीतिक मायनों का आकलन किया जा रहा है।

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