फुटबॉल के मौसम में क्रिकेट की बात इसलिए भारत में की जाती है कि फुटबॉल में हम फिसड्डी हैं और क्रिकेट में तख्त पर बैठे बादशाह! फिर भी यह तो मानना ही पड़ेगा कि फीफा विश्वकप फुटबॉल का बुखार अब भारत में भी फैल गया है। इसे हम भले ही कह सकते हैं, ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना।’ फुटबॉल में हम विश्व में सौवें नंबर से भी पीछे हैं, पर इस बार दीवानगी छाई हुई है। बच्चे सड़क पर फुटबॉल खेलते देखे जा सकते हैं। पर ढांचे की मौजूदगी के बगैर यह सारा उत्साह व सारी ऊर्जा व्यर्थ जा रही है। भारतीय क्रिकेट ऊंचा इसलिए जा रहा है कि यहां पर बुनियादी ढांचा, तकनीकी प्रशिक्षण और रुपया-पैसा बरस रहा है। युवा क्रिकेट में अपना कॅरिअर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अर्थतंत्र की मजबूती के कारण ही संस्थाएं सफल या असफल होती हैं। चाहे बात देश की हो या क्रिकेट खेल की! इधर इंग्लैंड के लिए भारतीय टीम प्रस्थान कर चुकी है। इंगलैंड में जाकर सफल प्रदर्शन करने की तमन्ना वैसी ही होती है, जैसी कि काशी जाकर मंदिरों की पूर्जा-अर्चना करते वक्त होती है। इस बार आशाएं बलवती हैं, क्योंकि इंग्लैंड की टीम बिखरी हुई नजर आ रही है। उसकी बल्लेबाजी उसकी कमजोर कड़ी नजर आ रही है। एलिएस्टर कुक, बेन स्टोक्स, बेयरस्टो और जो रूट के अलावा कोई बल्लेबाज ऐसा नहीं दिखाई देता, जो लंबी पारियां खेल सके। बात हम टेस्ट क्रिकेट की कर रहे हैं। क्योंकि टेस्ट क्रिकेट ही असली क्रिकेट है। इसमें खिलाड़ी की आंतरिक प्रतिभा, क्रिकेटीय कौशल के साथ ही मानसिक दृढ़ता की भी भरपूर परीक्षा होती है। फिटनेस भी एक प्रमुख मुद्दा रहता है! पांच दिन के घमासान में कितनी ही शारीरिक और मानसिक लड़ाइयां लड़ी जाती हैं। इसलिए सौ प्रतिशत तैयारी सफलता के लिए प्रमुख आवश्यकता बन गई है।
सभी जानते हैं कि इंग्लैंड के भारी वातावरण में गेंद हवा में काफी स्विंग होती है और वहां विकेट पर घास छोड़ी जाती है। अतः टप्पा खाकर गेंद सीम के सहारे कांटा भी ज्यादा बदलती है और गेंद तेजी से भी आती है। सभी जानते हैं कि स्विंग गेंदबाजी का सामना करने में भारतीय बल्लेबाजों को काफी कठिनाई होती है। टेस्ट मैचों के शुरू होने के वक्त तक जिमी एंडरसन फिट हो जाएंगे और विराट कोहली से उनका सामना दर्शनीय होगा। आपको याद होगा, जब एंडरसन भारत आए थे, तब यहां के पाटा विकेट पर उनकी गेंदबाजी की बड़ी खबर ली गई थी। तब विराट की विराट पारियों को देखकर दुनिया उन्हें निर्विवाद रूप से विश्व का नंबर एक बल्लेबाज घोषित कर रही थी। पर एंडरसन इससे सहमत नहीं थे। उनका कहना था कि भारत के बेदम विकेटों पर महानता सरल रूप से उपलब्ध हो जाती है और विराट कोहली की असली परीक्षा इंग्लैंड के जानदार विकेटों पर ही होगी? उनका यह वक्तव्य विराट कोहली के अलावा अन्य मौजूदा भारतीय खिलाड़ियों को भी पसंद नहीं आया था। भारतीय शीर्ष बल्लेबाज एंडरसन को नीचा दिखाने के लिए उस पर जवाबी हमला कर सकते हैं। पर ऐसा करना क्या इतना आसान होगा? हवा में देरी से स्विंग कराने की कला में जिमी एंडरसन माहिर हैं। फिर तजुर्बा भी उनका लंबा है जिसका उन्हें फायदा मिल सकता है। पर यह भी सच है कि उम्र के साथ वह कोई जवान तो नहीं हो रहे। उनकी धार अब पहले जैसी नहीं है। स्टुअर्ट ब्रॉड भी लगभग उसी गति की गेंदों को करने में विश्वास रखते हैं।
इयन चैपल ने भी कहा है कि इंग्लैंड के सभी गेंदबाज लगभग एक ही गति की गेंदबाजी करते हैं। इसलिए बल्लेबाजों को जमने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। ऐसे में भारत के पास इंग्लैंड को उसी की भूमि पर हराने का सबसे सुनहरा मौका है।
पांच दिवसीय टेस्ट मैंचों में स्पिनरों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। भारत के पास विश्व के सर्वश्रेष्ठ स्पिनर्स हैं। अश्विन, जडेजा, चहल और कुलदीप यादव दुनिया के श्रेष्ठतम बल्लेबाजों को तंग कर सकते हैं। इसके मुकाबले इंगलैंड के स्पिन गेंदबाज तो एकदम कामचलाऊ और पैदल लगते हैं। चहल व कुलदीप यादव की रिस्ट स्पिनर की जोड़ी किसी के भी होश उड़ा सकती है। कुलदीप यादव तो अपनी चाइनामेन, टॉप स्पिनर, गुगली और फ्लिपर के मायाजल में बल्लेबाजों को ऐसे फांस रहे हैं, जैसे रुपये के लालच में कंगाल फंस जाता है। फिर फिटनेस के कारण भारतीय क्षेत्ररक्षण आज विश्व के सभी देशों में बेहतर हो चला है। यह परिवर्तन वास्तव में क्रांतिकारी है। इसी के कारण ऑलराउंड क्षमता में भारत अपने प्रतिद्वंद्वी इंग्लैंड के खिलाफ बेहतर नजर आ रहा है।
लेकिन भारत की तैयारी पर मुझे संशय है। दौरे का कार्यक्रम सूझबूझरहित दिखाई देता है। टी-20 व 50-50 ओवरों के क्रिकेट मैच पहले खेले जा रहे हैं। यानी आप 40-45 दिन सफेद रंग की कोकाबुरा गेंद से लगातार अभ्यास करते रहेंगे। कोकाबुरा गेंद का व्यवहार अलग तरह का रहता है। फिर अति महत्वपूर्ण टेस्ट क्रिकेट बाद में लाल रंग की ‘ड्यूक’ ब्रांड की गेंद से खेला जाएगा।
यह गेंद स्विंग ज्यादा अच्छी तरह से होती है, जिस पर खेलने का अभ्यास भारत को नहीं रहेगा। अतः पहले दो टेस्ट मैंचों तक भारत को तालमेल बैठने की समस्या से जूझना पड़ेगा। इस दौरे के पहले आइपीएल खेला गया और सफेद गेंद का ही इस्तेमाल किया गया। अतः इंग्लैंड के खिलाफ अचानक टेस्ट मैंचों में लाल ड्यूक ब्रांड गेंदों का सामना चुनौती भरा हो सकता है। मुझे लगता है कि टेस्ट मैचों की शुरुआत के पहले इंगलैंड दौरे में दो-तीन, तीन दिवसीय अभ्यास मैच रखने चाहिए थे। गौतम गंभीर ने भी बीसीसीआइ द्वारा तय किए दौरे में इस कमी को उजागर किया है। गौतम गंभीर की बातों में दम तो है। फिर भी यह कहा जा सकता है कि इंग्लैंड की वर्तमान टीम बल्लेबाजी और गेंदबाजी में अपने क्रिकेट इतिहास की आज सबसे कमजोर टीम है। इसका पूरा फायदा उठाया जाना चाहिए। दूसरी ओर भारत के पास एकदम संतुलित आक्रमण है। तेज गेंदबाजी में ईशांत शर्मा, उमेश यादव, भुवनेश्वर और बुमराह किसी भी विपक्षी गेंदबाजी आक्रमण से बेहतर हैं, जो शुरू में ही तोड़-फोड़ कर सकते हैं।
भारतीय बल्लेबाजी में शिखर धवन, मुरली विजय, लोकेश राहुल और स्वयं विराट कोहली दैविक फॉर्म में हैं। ऑलराउंडर व अतिरिक्त मध्यम तेज गेंदबाज में पांड्या ने अपना रंग जमा रखा है। लगता है, इस भारतीय टीम ने जीत का फार्मूला पा लिया है। पर फिर भी, कहा जा सकता है कि कागज पर शक्तिशाली लगना एक बात है और वास्तव में ताकतवर सिद्ध होना अलग ही बात। जीतने के लिए गहरी एकाग्रता, जीत की इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास बहुत जरूरी है। प्रतिभा को परिणामों में बदलने का वक्त आ गया है। सारी दुनिया की निगाहें भारत-इंग्लैंड आगामी टेस्ट सीरीज पर टिकी हैं।
(लेखक जाने माने क्रिकेट कमेंटेटर हैं )