संजू के ट्रेलर से जैसी प्रतिक्रिया उभरी, उससे तो शायद आपकी मम्मी ने अगले वर्ष कई ट्रॉफियों की उम्मीद में एक नए शेल्फ का ऑर्डर दे दिया होगा! लेकिन यह बताइए कि संजू में अभिनय के लिए राजकुमार हीरानी की पेशकश पर आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?
मैं यह सोचकर ही दहशत में आ गया कि राजकुमार हीरानी ने मुझे अपनी फिल्म में लीड रोल करने की पेशकश की! आखिर हमेशा से ही उनके साथ काम करने की तमन्ना जो थी। लेकिन जब उन्होंने बताया कि यह संजय दत्त पर एक बॉयोपिक है, तो मेरी उलझन बढ़ गई। मैं हैरान था कि अभी भी ddddकिसी सक्रिय सुपरस्टार पर भला कैसे फिल्म बनाई जा सकती है? मुझे डर था कि शायद मैं रोल के साथ इंसाफ न कर पाऊं। लेकिन जब मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी तो मेरा सारा डर काफूर हो गया। राजू सर ने स्क्रिप्ट संवेदनशील, भावनात्मक, मजाकिया और मनोरंजक जो बना दिया है। इससे मेरे अंदर एक अभिनेता का सपना साकार होता-सा लगा। यह मेरे जीवन का सबसे अनोखा अनुभव है।
फिर भी कुछ आशंकाएं तो रही होंगी?
बिलकुल! स्क्रिप्ट तो पहला कदम थी। अगले छह महीनों तक हम मेक-अप वगैरह में जुटे रहे। मैं संजय दत्त की नकल करने की कोशिश में हर दिन नाकाम हो रहा था। आसान नहीं था संजय दत्त को पर्दे पर उतारना। मेरी कोशिश थी कि पूरा न्याय हो। यह बड़ी जिम्मेदारी थी। शुरू में काफी दिक्कतें आईं, लेकिन हर किसी को यकीन था कि अच्छी फिल्म बनेगी। संजू कोई पब्लिसिटी फिल्म नहीं है। यह एक अजीबोगरीब जिंदगी की दास्तान है, जो कई बार गिरी और फिर उठी। इसमें पिता-पुत्र के बीच तनाव भरे रिश्ते, कई महिलाओं से संबंध और करीबी दोस्त, कानूनी झमेले, जेल, बंदूक कांड, ड्रग्स के किस्से हैं। फिल्म में इतने घटनाक्रम और गजब के भावुक पल हैं कि यह बेहद चुनौतीपूर्ण लग रहा था, लेकिन मैं इसका हिस्सा बनने के लिए बहुत उत्साहित था।
संजय और आप मुंबई के पाली हिल में पड़ोसी हैं। स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद क्या कभी आपको यह एहसास हुआ कि यह वह संजय दत्त नहीं, जिन्हें आप जानते हैं?
हां, मैं एकदम अलग पारिवारिक मित्र संजय दत्त को जानता था, जिन्होंने हमेशा मुझसे एक छोटे भाई की तरह व्यवहार किया और मुझे मदद करने की कोशिश की। छह साल पहले, उन्होंने मुझे मेरे जन्मदिन पर हार्ले-डेविडसन उपहार में दिया। वह मुझे बेझिझक रात में जगा देते और अपनी फेरारी में ड्राइव पर बाहर ले जाते। स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद मैंने एक नए संजय दत्त को जाना और मैं उन सभी चीजों के लिए उनकी प्रशंसा और सम्मान करने लगा। न सिर्फ उनके द्वारा जिए जीवन के लिए, बल्कि इस तथ्य के लिए भी कि उन्होंने स्क्रीन पर इतनी ईमानदारी से चित्रित करने के लिए अपने जीवन की कहानी दे दी है। कल बहुत से लोग इसके आधार पर उनका आकलन कर सकते हैं, लेकिन उनके जज्बे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, यही हमेशा उन्हें जिंदा रखता है। इसीलिए आज भी वे इतना प्यार किए जाते हैं।
1990 के दशक में जब आप अभी बड़े हो रहे थे, तभी अचानक संजय दत्त एक बुरे लड़के में बदल गए, जिसे मुंबई दंगों के बाद फिल्मोद्योग से कोई मदद नहीं मिली...
मैं तब बहुत छोटा था, लेकिन हां, इस फिल्म के जरिए, मैंने उस दौर को और अधिक समझा। वे अपने पिता (सुनील दत्त) से पूरी तरह अलग थे। उनके पिता बेहद भले और प्रशंसनीय इंसान थे, हमेशा लोगों की मदद करते थे, लेकिन पुत्र बुरे आदमी का दर्जा हासिल कर रहा था और गलत काम कर रहा था।
आप सिर्फ पड़ोसी नहीं हैं। आप वर्षों से संजय दत्त के फैन भी रहे हैं। जिसकी आप कद्र करते रहे हों, उसका चरित्र निभाते हुए कैसा लगा? क्या किसी जोखिम का एहसास हुआ?
इसे जीवंत बनाने के लिए इसके दृश्यों को फिल्माने पर बहुत मेहनत हुई है, लेकिन हां, नकल या मजाक बन जाने का डर जरूर था। मुझे ऐसे शख्स को परदे पर उतारना था, जिसे न केवल मैं प्यार करता हूं और प्रशंसा करता हूं, बल्कि दर्शक भी प्यार और कद्र करते हैं। लेकिन जब आपके पास राजू सर जैसे निर्देशक और अभिजात जोशी जैसे लेखक हैं, तो वे आपको मजबूत आधार दे देते हैं। उन्होंने मुझे अच्छी तरह निर्देशित किया। मुझे उम्मीद है कि जब दर्शक स्क्रीन पर संजय दत्त को देखेंगे, तो उसमें उन्हें उनकी जिंदगी की झलक दिखेगी। हमारी कोशिश दर्शकों में सहानुभूति नहीं, बल्कि करुणा जगाने की है।
मुझे यकीन है कि संजू के निर्माण के दौरान संजय दत्त के साथ आपने कई बैठकें की होंगी?
मैंने उनके साथ बहुत समय बिताया। जेल कांड में उनका किरदार निभाने के पहले मैं फोन करता और पूछता, “संजू सर, आप उस समय पर क्या सोच रहे थे? जब टाडा अदालत का फैसला आया तो आपको कैसा लगा?” उनके ड्रग्स एडिक्शन के दिनों में, जब उनकी मां की मृत्यु हो गई थी, या फिर उनके पिता की मृत्यु पर वे क्या सोचते रहते थे? ये दृश्य फिल्म के महत्वपूर्ण भावनात्मक क्षण हैं। मैं उन्हें बहुत ईमानदारी से अभिनीत करना और सही ठहराना चाहता था, ताकि जब वे फिल्म देखें, तो महसूस करें कि हां, मुझे यह याद है, मुझे वह याद है।
इस फिल्म के लिए आपने दूसरी खास तैयारियां क्या कीं?
हर फिल्म अपनी पूरी तैयारी के साथ आती है। शुक्र है, इस फिल्म में मुझे बहुत अच्छी कहानी और घटनाओं का साथ मिला। स्क्रिप्ट ने मुझे आधार दिया। मेरे लिए यह बाइबिल सरीखा था कि यकीनन संजय दत्त की जिंदगी ऐसी उतरती-चढ़ती रही है। इसलिए देह, कृत्रिम अंग और मेक-अप की ऊपरी ट्रेनिंग के अलावा जो कहीं अधिक आसान था, किसी की आत्मा और किसी के अस्तित्व को समझना महत्वपूर्ण था कि वे एक व्यक्ति के रूप में कैसे हैं। संजय इंसान की शक्ल में एक टेडीबियर की तरह हैं, बाहर से भेड़िया और अंदर से एक पप्पी की तरह।
कहा जाता था कि आप एक वर्ष से अधिक समय तक संजू जैसे खा, सो और सांस ले रहे थे। इस लिहाज से देखा जाए तो क्या यह आपके कॅरिअर की सबसे कठिन फिल्म थी?
निश्चित रूप से, सबसे चुनौतीपूर्ण। लेकिन मैं इस फिल्म को लेकर बहुत खुश था, इसलिए चुनौतियां आसान हो गईं।
आपको न्यूयॉर्क के प्रतिष्ठित ली स्ट्रेसबर्ग थिएटर ऐंड फिल्म इंस्टीट्यूट में मेथड एक्टिंग की ट्रेनिंग मिली है। क्या यह अनुभव आपके काम आया?
हां, मेथड कुछ ऐसा है, जिसे हर अभिनेता को खुद ही खोजना पड़ता है। हर फिल्म एक अलग तरीके की होती है। कोई निश्चित चीजें नहीं हैं, जो मैं करता हूं। आप एक चीज जानते हैं, जो मैं करता हूं- मैं हमेशा एक फिल्म के लिए एक इत्र का उपयोग करता हूं। अक्सर, जब मैं एक साल के लिए फिल्म में रुक-रुककर शूट करता हूं, तो एक विशेष इत्र मुझे अपने चरित्र से जुड़े रहने में मदद करता है। गंध को लेकर मेरा अनुभव बहुत मजबूत है। कहीं अवचेतन में यह मुझे इससे जोड़ती है।
तो संजू के लिए भी अलग इत्र था?
बेशक, मैं संजय के घर गया और उनसे परफ्यूम उधार लिया, ताकि मैं उनके जैसी गंध महसूस कर सकूं। वह टॉम फोर्ड ओड नामक तेज परफ्यूम का इस्तेमाल करते हैं। मैं इसी तरह की मूर्खता और बेवकूफी भरी चीजें करता हूं। जूते भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। मैंने उनसे जूते भी उधार लिए, लेकिन वह मुझसे दो साइज छोटे जूते पहनते हैं। इसलिए मैंने डिजाइनर को मेरे लिए वैसे ही जूते बनाने को कहा। यहां तक कि वह जो जींस पहनते हैं, वह भी खास बूट-कट वाली होती है। उनके कुर्ता-पायजामा में भी ‘संजय दत्त’ शैली है। कुछ चीजें आपको चरित्र में ढलने में मदद करती हैं, लेकिन इससे भी अधिक, आपको पात्र के दिल और दिमाग को समझना होता है।
बॉलीवुड इतिहास का एक हिस्सा भी इस फिल्म में है। आरके बैनर की फिल्म बरसात (1949), जिसमें नरगिस और राज कपूर ने भूमिका निभाई थी, के लगभग सात दशक बाद राज कपूर के पोते ने इस हिंदी फिल्म में नरगिस के बेटे का किरदार निभाया है?
मुझे लगता है कि कहीं न कहीं यह सब हमारे जेहन में है। इससे हम सभी जुड़े हुए हैं। सभी ने इतनी बारीकी से काम किया है और इस तरह का महान रचनात्मक सहयोग किया है। इसके अलावा संजय दत्त मेरे जीवन में एक बहुत ही खास इंसान हैं। मुझे खुशी है कि ट्रेलर को देखने के बाद दर्शकों ने मुझे संजय दत्त के रूप में स्वीकार कर लिया, इसलिए जब वे फिल्म देखेंगे, तो उनके दिमाग में कोई हलचल नहीं होगी कि रणबीर ठीक से काम नहीं कर पाया।
लेकिन हम इस में रणबीर को कितना देखेंगे?
बेशक, मैं संजय दत्त को अभिनीत कर रहा हूं। लेकिन आप इसमें मेरी झलक भी पाएंगे।
संजय दत्त के जीवन के किस हिस्से को चित्रित करना आपको सबसे कठिन लगा?
मुझे लगता है कि ड्रग्स एडिक्ट वाला सबसे मुश्किल था-उस कैरेक्टर में डूबना और फिर उससे बाहर आना बेहद मुश्किल था। युवा पीढ़ी के लिए फिल्म के पास एक शानदार संदेश है कि ड्रग्स आपकी जान ले सकती है, आपके जीवन को बर्बाद कर सकती है और संजय इसका एक खास उदाहरण हैं। उनकी गलतियों से बहुत-सी सीख मिलती हैं।
आप अपने कॅरिअर के शुरुआती दिनों से ही अलग-अलग शैलियों की फिल्में कर रहे हैं। क्या यह स्टीरियोटाइप होने से बचने की कोशिश है?
नहीं, मेरे पास मौके आए और इसी तरह की कहानियों से मैंने जुड़ाव महसूस किया। जो मैंने किया है, मुझे उसका पछतावा नहीं है, फिर चाहे फिल्म सफल हो या नहीं। इन दिनों सिनेमा विकसित हो रहा है और बहुत से लोग अच्छा काम कर रहे हैं। मुझे जो अवसर दिए गए हैं, मैं उसके लिए आभारी हूं। लेकिन हजारों लोग हैं, जो मुझसे ज्यादा प्रतिभाशाली हैं। मैं इसका लाभ नहीं लेना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि हर कोई इस पर विश्वास करे कि मैं कहां हूं। मुझे एक स्टार बेटे का टैग लेने में थोड़ी देर लग गई, जो मुंह में चांदी का चम्मच लिए पैदा हुआ था। हां, मैं परिवारवाद का एक प्रोडक्ट हूं और मेरे परिवार की वजह से फिल्मों में होना मेरे लिए आसान हो गया है, लेकिन मैं चाहता हूं कि लोग यह समझें कि मुझे अपना काम पसंद है और मैं यह मन से कर रहा हूं।
बॉबी (1973) की सफलता के बाद आपके पिता (ऋषि कपूर) को लवर ब्वॉय का किरदार करना पड़ा। उन्हें अपनी इस छवि को बदलने में कई साल लगे।
मुझे लगता है कि चीजें उनके समय में अलग थीं। इसके अलावा जीवन में उनकी विचारधाराएं और उनका दर्शन मुझसे बहुत अलग है। मैंने जो किया, वह डुप्लिकेट नहीं कर सका, क्योंकि यह स्वाभाविक रूप से मुझमें नहीं आया था।
आपकी कई फिल्में नहीं चलीं। आप 100-200 करोड़ रुपये कमाई वाले एलीट वर्ग का हिस्सा नहीं हैं? क्या इसका आपको अफसोस है?
बिलकुल नहीं। मुझे लगता है कि हर विफलता एक सीखने की प्रक्रिया है। मैं अपनी फिल्मों की विफलता के लिए पूरी जिम्मेदारी लेता हूं, क्योंकि मैंने उन सभी को चुना है। मैं इसके लिए किसी को दोष नहीं देता हूं। असफलता ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। हां, पिछले दो वर्षों में यकीनन इस संबंध में कड़ी मेहनत हुई है।
आपके पिता को कर्ज (1980) और जमाने को दिखाना है (1981) फिल्मों की नाकामी का बहुत झटका लगा था?
मेरे पिता भावुक हो जाते थे। अपने प्रोजेक्ट्स को लेकर मेरा रवैया उनसे एकदम अलग है। इसलिए जब कोई फिल्म सफल हुई, तब भी मैंने बहुत उत्साहित महसूस नहीं किया। इसी तरह मुझे असफलता से कभी भी गहरी निराशा नहीं हुई। दरअसल, किसी के पास फिल्म की सफलता का कोई फॉर्मूला नहीं है। कोई नहीं बता सकता कि कोई फिल्म क्लिक क्यों करती है। जब हम बॉम्बे वेलवेट (2015) बना रहे थे, जब तक कि हमने फाइनल तौर पर फिल्म नहीं देखी, हमने सोचा था कि हम एक बहुत अच्छी फिल्म बना रहे हैं। आखिरकार महसूस किया कि कहानी िसलसिलेवार नहीं है। यह ऐसा कुछ है, जिसे आप जब बना रहे होते हैं, महसूस नहीं करते हैं। यह केवल गुजरी हुई बात है, जिसे आप ऐसे जानते हैं। इसी तरह जग्गा जासूस (2017) में भी शानदार पल हैं, लेकिन पूरी कहानी कई कड़ियों वाली लगती है। जब कोई फिल्म सफल होती है, तो सब कुछ काम करता है, जब ऐसा नहीं होता है, कुछ भी काम नहीं करता। आपको इस तथ्य को समझना होगा कि ऑडियंस किंग है। आप यह कह कर उसे चुनौती नहीं दे सकते हैं कि वह किसी विशेष फिल्म को नहीं समझ पाई या यह उसके समय से पहले की फिल्म थी। कोई भी समय उसके आगे नहीं है। दर्शक किसी फिल्म से जुड़ते हैं, तो वह निश्चित रूप से अच्छी होगी।
आपकी अगली तीन फिल्में- ब्रह्मास्त्र, शमशेरा और लव रंजन की अनाम फिल्म तीनों अलग तरह की फिल्में हैं। ये आपके कॅरिअर के लिए कितनी महत्वपूर्ण हैं?
मैं अपने कॅरिअर के अगले दौर का इंतजार कर रहा हूं। आने वाले 2-3 साल बहुत खास हैं। यह ऐसा समय है जब मुझे अपने पक्के फैन बनाने होंगे और एक अभिनेता, स्टार के रूप में अगले स्तर पर जाना होगा। मैं फिर से अपने सबसे अच्छे दोस्त अयान मुखर्जी के साथ काम कर रहा हूं, जिन्होंने पांच साल तक ब्रह्मास्त्र की स्क्रिप्ट पर काम किया है। मैं इस फिल्म में अमिताभ बच्चन और आलिया भट्ट जैसे कलाकारों के साथ काम करने को लेकर भी उत्साहित हूं।
आप पहली बार अमिताभ बच्चन और आलिया भट्ट के साथ काम कर रहे हैं कैसा है?
हां, मैंने दो दिन पहले उनके साथ एक सीन शूट किया था। एक्टर के रूप में उनमें अद्भुत समझ है। बहुत सारी एनर्जी है, आलिया नई और युवा हैं, लेकिन वह एक संजीदा एक्टर हैं। अमिताभ बच्चन, अमिताभ बच्चन हैं और उनके साथ काम करना सम्मान की बात है। जब आप उनके साथ काम करते हैं, तो आप बच्चन जी की अहमियत का एहसास करते हैं। वह कोई साधारण इंसान नहीं हैं। उनमें एक अलग तरह की प्रतिभा है। वह सिर्फ भारत में ही बेस्ट नहीं हैं, वह विश्व स्तर के कलाकार हैं। उन जैसा इंसान दुनिया में पैदा नहीं हुआ है। मैं खुद को काफी सम्मानित महसूस करता हूं कि उनके आस-पास रहने का मौका मुझे मिला है।
हम आवारा (1951) में आपके परदादा पृथ्वीराज कपूर के पिता दीवान बशेश्वरनाथ की भूमिका को शामिल कर लें, तो आप फिल्मों में पांचवीं पीढ़ी के कपूर हैं। यह स्वाभाविक है कि आपसे आपके दादा द्वारा स्थापित आरके फिल्म्स की विरासत को आगे बढ़ाने की उम्मीद की जाए, लेकिन पिछले 19 साल में इस प्रतिष्ठित बैनर के तहत कोई फिल्म नहीं बनाई गई है। आपके पिता के निर्देशन में बनी अंतिम फिल्म आ अब लौट चलें (1999) है। क्या आपके पास आरके फिल्म्स को पुनर्जीवित करने की कोई योजना है?
ईमानदारी से कहूं तो मैं इसे बहुत अलग तरह से लेता हूं। आरके फिल्म्स मेरे दादा जी की वजह से आरके फिल्म्स था। यह उनकी प्रतिभा थी कि उन्होंने आरके फिल्म्स को बनाया। मुझे नहीं लगता कि मेरे पास अब फिल्म को निर्देशित करने या आर.के. बैनर के तहत कुछ अलग करने की प्रतिभा या अनुभव है। यह ऐसी विरासत है, जिसे मैं खराब नहीं करना चाहता हूं। यही कारण है कि मैंने जग्गा जासूस को एक नई प्रोडक्शन कंपनी के तहत बनाया। मुझे लगता है कि मुझे अपने बैनर को छूना नहीं चाहिए। यह ऐसा कुछ है, जिसका दुनिया सम्मान करती है और मैं इसे बहुत अहमियत देता हूं। मेरे दादा जी ने जो किया है, वह मेरे दिल के बहुत करीब है, लेकिन मैं उस विरासत पर सवारी करके और एक अलग परंपरा जारी रखकर उसे मैला नहीं करना चाहता। मैं उसमें सुधार जैसी बातों में विश्वास नहीं करता। राज कपूर के साथ ही आरके फिल्म्स का जन्म हुआ और उन्हीं के साथ उसकी मृत्यु हो गई।
अगर कोई आपसे राज कपूर पर बॉयोपिक बनाने को कहे, तो आप उसके लिए तैयार होंगे?
बिलकुल, सौ फीसदी। उस बॉयोपिक को करना सम्मान की बात होगी, लेकिन मुझे लगता है कि कोई बॉयोपिक केवल तभी बनाई जानी चाहिए, जब आप ईमानदारी से उस इंसान के पूरे जीवन को चित्रित कर सकें। मुझे आशा है कि मेरा परिवार उस वास्तविक इंसान को चित्रित करने की अनुमति दे सकता है, जो राज कपूर थे। मगर बहुत से लोग नहीं जानते कि अपनी फिल्मों से परे वे क्या थे? वे उनकी उस जिंदगी से वाकिफ नहीं हैं, जो बेहद रोचक थी। मैं असल में दो लोगों की बॉयोपिक करना चाहता हूं, इसमें एक हैं राज कपूर और दूसरे किशोर कुमार।
किशोर कुमार की बॉयोपिक करने के बारे में पहले से ही बात चल रही थी?
यह अमल में नहीं आई। हमें उन परिवारों के नामों का उपयोग करने की अनुमति नहीं मिली, जो कहानी का खास हिस्सा थे। हालांकि, हम उन्हें सामने लाने की उम्मीद करते हैं। किसी बॉयोपिक के लिए किशोर कुमार बहुत ही रोचक व्यक्तित्व हैं।
आप अपने समय के लोकप्रिय दंपती (ऋषि कपूर और नीतू सिंह) के सेलिब्रिटी पुत्र हैं। क्या आपका बचपन भी चचेरी बहन करीना कपूर के बेटे तैमूर की तरह खास था, जैसे तैमूर आजकल फोटोग्राफरों से घिरा रहता है?
मेरे बचपन के दौरान मुझ पर भी बहुत ध्यान दिया जाता था, लेकिन तब कोई कैमरा फोन नहीं था, कोई फोटोग्राफर या सोशल मीडिया नहीं था, इसलिए आजादी से जीने के लिए थोड़ा-सा समय मिल सकता था। आज यह बहुत कठिन है। आज आप जितना अधिक लोकप्रिय हैं, उतना ही अलग हो जाते हैं। मैं समझता हूं कि खेल का तरीका बदल गया है और इस तरह यह शो बिजनेस भी है। उन्हें प्रोडक्ट के रूप में उपभोग करने के लिए खबर की जरूरत होती है और हम उनके लिए खबर हैं। ऐसे में किसी भी गॉसिप, किसी भी फोटो, किसी भी खबर का बहुत तेजी से उपभोग किया जाता है। अब ऐसा ही है। ईमानदारी से कहूं तो मुझे खुद तैमूर की तस्वीरें देखना पसंद हैं। मैं उसका फैन हूं।
अपने प्रशंसकों के आधार को मजबूत करने के बारे में बात की, लेकिन आप अभी भी सोशल मीडिया से बाहर हैं। क्या आपकी निकट भविष्य में ऐसे किसी मंच पर आने की योजना है?
अभी तक कोई योजना नहीं है। कई पूर्व कलाकारों के उदाहरणों को देखते हुए मुझे विश्वास है कि एक अभिनेता के आसपास रहस्य बने रहना बहुत महत्वपूर्ण है। एक बार जब रहस्य मर जाता है, तो लोग आप से ऊब जाते हैं और आपके द्वारा अभिनीत किए जाने वाले पात्रों में विश्वास करना बंद कर देते हैं। मैं बस एक अभिनेता के रूप में अपने चारों ओर एक रहस्य बना रहने देना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि लोग मुझे एक अभिनेता के रूप में जज करें। मुझे लोगों को यह बताने में कोई दिलचस्पी नहीं है कि मेरा शरीर कैसा दिखता है या मैं कौन-सा खाना खाता हूं या कहां मैं अपनी कार में पेट्रोल भरवा रहा हूं। मैं केवल उन्हीं कहानियों को बताने में दिलचस्पी रखता हूं, जो मेरी फिल्मों के माध्यम से उन्हें अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने की प्रेरणा देती हैं।
क्या आप सोशल मीडिया को अपनी बात कहने में मददगार माध्यम मानते हैं?
सोशल मीडिया एकमात्र मंच नहीं है। आप अन्य मीडिया माध्यमों से भी ऐसा कर सकते हैं। हां, सामाजिक मुद्दों को उठाना और अपने प्रशंसकों से जुड़ना बहुत अच्छा है। मैं सोशल मीडिया बिलकुल नहीं देखता हूं। यह ऐसी चीज है, जिसे मैंने जान-बूझकर दूर रखा है।
आप फुटबॉल को लेकर बहुत उत्साही हैं। इस समय जो फीफा विश्वकप खेला जा रहा है, उससे क्या उम्मीद कर रहे हैं?
मैं लियोनेल मेस्सी का बड़ा प्रशंसक हूं और मुझे उम्मीद है कि वह इस वर्ष विश्वकप ट्रॉफी घर लाएगा। वह इसके लायक है, लेकिन मैं नहीं जानता कि उसके पास उसकी टीम का सपोर्ट है या नहीं। वास्तव में अर्जेंटीना ट्रॉफी के लिए मेरी पहली पसंद है, इसके बाद इस क्रम में फ्रांस, जर्मनी और स्पेन हैं।
ओह, इसका मतलब है कि आप क्रिस्टियानो रोनाल्डो के प्रशंसक नहीं हैं?
नहीं, मेस्सी रोनाल्डो से आगे हैं। मैं रोनाल्डो का प्रशंसक नहीं हूं, मैं मेस्सी-भक्त हूं।