दिल्ली में शुरू हुई 'स्कूट' एक छोटी-सी कंपनी है। इसकी टीम दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में 'हाउस पार्टी' का आयोजन करवाती है। रात भर चलने वाली इन पार्टियों की खासियत है कि इसमें शामिल होने वाले लोग एक-दूसरे को नहीं जानते, मेजबान को भी नहीं। स्कूट की तरफ से बुलावा मिलना ही एकमात्र तरीका है। लोगों की लिस्ट पर आखिरी मुहर मेजबान की होती है। जिन्हें इसमें शामिल होना हो वे वेबसाइट के जरिए रजिस्ट्रेशन करते हैं। हर पार्टी की एक थीम होती है। लोगों और खास तौर पर लड़कियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्कूट लेता है।
दरअसल, यह नया आइडिया महानगरों की नई पीढ़ी में अजनबियों के बीच में अपनी पहचान जाहिर करने के बढ़ रहे रुझान का नया पहलू है। पिछले कुछ ही साल में यह रुझान तेजी से बढ़ा है। अब बात सिर्फ फेसबुक पर किसी अनजान शख्स की फ्रेंड रिक्वेस्ट मानने या भेजने तक सीमित नहीं है। इंटरनेट पर अनजान दुनिया से मिलने वाले लोग अब असल दुनिया में भी अलग-अलग तरह से अजनबियों से मिल रहे हैं, उनसे अपनी निजता साझा कर रहे हैं।
एक समय तक हमारे सार्वजनिक जीवन में अजनबियों के करीब होने की जगह सार्वजनिक परिवहन होता था। इसमें भी जरूरी नहीं कि कोई बातचीत हो। आज यह रवायत टूट रही है। इसके साथ ही अजनबियों के भी अलग-अलग प्रकार हो गए हैं। कुछ साल पहले फेसबुक ग्रुप की पार्टी का चलन शुरू हुआ। ऐसे आयोजनों में किसी एक शख्स के निमंत्रण पर उसकी फ्रेंडलिस्ट में मौजूद सभी लोग शामिल होते। ऐसे आयोजन बुलाने वाला शख्स आमतौर पर रुतबे वाला होता है। इसलिए ऐसे आयोजन निजी मेलजोल बढ़ाने से ज्यादा कामकाज से जुड़ी नेटवर्किंग बढ़ाने का मौका होते हैं।
दूसरी ओर दिल्ली में रहने वाली प्रिया (बदला हुआ नाम) एक दूसरी ही कहानी बताती है। प्रिया दिल्ली के एक रसूख वाले परिवार से ताल्लुक रखती है। 31 साल की उम्र में वह एक कंपनी में काम करती है। प्रिया ने 'बंबल' नाम की एक एप्लीकेशन का इस्तेमाल करना शुरू किया। 'बंबल' एक डेटिंग ऐप है। फिलहाल इसे भारत में डाउनलोड करना संभव नहीं है। 'बंबल' की एक खासियत है कि इसमें महिला ही चैटिंग की शुरुआत कर सकती है। प्रिया इसके जरिए मिले लोगों से काफी खुश है।
प्रिया से ठीक उलट अनुभव दिल्ली विश्वविद्यालय की दीप्ति (बदला हुआ नाम) का है। दीप्ति का चार साल के अफेयर से ब्रेकअप हुआ तो वह अवसाद में डूब गई। उसकी दोस्त ने इससे उबरने के लिए टिंडर इस्तेमाल करने की सलाह दी। टिंडर से उसने एक के बाद एक कई हुकअप किए। बाद में एक नए रिश्ते में जुड़ने के बाद इसका इस्तेमाल बंद कर दिया। अजनबियों से संबंध बनाने में क्या डर नहीं लगता? इसके जवाब में दीप्ति कहती हैं, ‘‘'इस देश में महिला को शारीरिक संबंध के लिए सिर्फ हां कहने भर की देर है। यौन शोषण के अधिकांश मामले परिचित ही अंजाम देते हैं।’’
ऐसा नहीं है कि किसी अजनबी के साथ मेलजोल सिर्फ डेटिंग तक ही सीमित हो। यह चलन कई तरह से आगे बढ़ रहा है। आपको फिल्म 'क्वीन' याद होगी। इसमें कंगना एक जगह तीन अजनबी पुरुषों के साथ एक हॉस्टल में रुकती है। भारत में भी यह प्रचलन में आ रहा है। जॉस्टल जैसे कई रहने के ठिकाने खुल रहे हैं। इनमें 300-400 रुपए रोज पर आपको एक एसी कमरे में बिस्तर मिल जाता है। कुछ कमरे सिर्फ महिलाओं के लिए होते हैं और कुछ मिक्स।
अगर हम इस पूरे रुझान के मूल में जाएं तो इसकी वजह छोटी जगहों से महानगरों में होने वाला पलायन है। छोटे शहरों में तमाम बंदिशें होती हैं। वहां से महानगर में आए लड़के-लड़कियां बिना किसी पहचान के होते हैं। नए शहर में सबकी दो तरह से पहचान बनती है। एक सोशल मीडिया के जरिए, दूसरी कॉलेज और दफ्तर के जरिए। घर में किसी भी नशे को हाथ न लगाने वाला लड़का, कॉलेज में शराब पीने वाला हो सकता है। वहीं सोशल मीडिया पर प्रगतिशील बातें करने वाले लोग परिवार और ऑफिस में रूढ़िवादी या शोषक हो सकते हैं। ऐसे में इंटरनेट और जॉस्टल जैसी सुविधाएं एक तरह की सुरक्षा देती हैं।