एक अनुमान के मुताबिक 2022 तक भारत में इंटरनेट यूजर्स की आबादी 50 करोड़ से ऊपर होगी। इसकी बदौलत ऑनलाइन डेटिंग साइटों का बाजार दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। टिंडर 2012 में लॉन्च हुआ था और 2014 तक इस पर हर रोज लगभग एक अरब “स्वाइप” रजिस्टर्ड हो रहे थे। ऑनलाइन डेटिंग साइट कई शहरी भारतीयों- बैचलर, अकेली महिला और पुरुषों, विवाहित पुरुष और महिलाएं तथा थर्ड जेंडर के लिए एक अहम हिस्सा बन गई हैं। कई विवाहित लोग भी इन डेटिंग साइट का इस्तेमाल कर रहे हैं और पहली नजर में देखने से लगता है कि हर कोई “हुकअप” की तलाश में है। पश्चिमी देशों में टिंडर की पहचान एक जानी-मानी “हुकअप” साइट के तौर पर है, लेकिन भारत में ज्यादातर लड़कियों के लिए यह शादी के लिए संभावित दूल्हा खोजने वाली एक मैच मेकिंग साइट है। डेटिंग साइट का इस्तेमाल करने वाले भारतीय पुरुषों का लगभग यही मानना होता है कि उस पर आने वाली सभी महिलाएं धूम्रपान करती होंगी या शराब पीती होंगी और अक्सर पहला सवाल यह होता होगा कि क्या आप ड्रिंक पर मिलना चाहते हैं? अच्छी और बुरी महिला के बारे में आम धारणा है कि अच्छी महिलाएं शराब नहीं पीतीं, धूम्रपान नहीं करतीं और विवाहेतर यौन संबंध नहीं बनाती हैं। लेकिन डेटिंग साइट पर आने वाली महिलाओं के बारे में धारणा है कि वे इन वर्जनाओं से ऊपर उठी हुई हैं।
महानगरों पर शोध करने वाले शिकागो स्कूल के समाजशास्त्रियों का मानना है कि शहर आजादी और गुमनामी का एहसास देते हैं। लुई विर्थ और शिकागो स्कूल की शहरी अवधारणा वाले बाकी सदस्यों से बेहद प्रभावित मानवविज्ञानी रॉबर्ट रेडफील्ड ने 1940 के दशक में महानगरों को बिलकुल अवैयक्तिक, बहुलतावादी, धर्मनिरपेक्ष और एकदम खुला बताया था। रेडफील्ड ने अपने लेख “द फोक सोसाइटी” में शहरी जीवन के बरक्स लोक या ग्रामीण समाजों को छोटा, पवित्र, अति विशिष्ट और सजातीय लक्षणों वाला बताया। उन्होंने माना कि जब लोक या ग्रामीण समाजों का कोई शहर में पहुंचता है या वह पूरा समाज ही शहर की ओर रुख करता है तो उसकी सांस्कृतिक परंपराएं टूट या बिखर जाती हैं। फ्रांसीसी समाजशास्त्री एमिल दर्खिम ने आधुनिक समाज को जीवंत संबंधों के धागे से बंधा समाज बताया, जहां ठोस मूल्यों और आस्था में यकीन करने वाले समाज की अपेक्षा श्रम का जटिल विभाजन होता है। शहर पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के केंद्र हैं और पूंजीवाद तीव्रता के बजाय गति में विश्वास करता है। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स ऐंड पॉलिटिकल साइंस की समाजशास्त्री फ्रैन टोंकिस अपनी किताब स्पेस, द सिटी ऐंड सोशल थ्योरी में सामाजिक सिद्धांत और विश्लेषण के तहत शहरों और महानगरीय पृष्ठभूमि का महत्वपूर्ण नजरिया पेश करती हैं। उनके लिए शहर गैर-बराबरी और अकेलेपन, राजनीति और ताकत, आर्थिक और सांस्कृतिक भेदभाव, रोजमर्रा के अनुभव और आजादी का मिलाजुला रूप हैं। इसी तरह, यह पता लगता है कि महानगरीय संदर्भों में कैसे वर्ग, संस्कृति, लिंग, सेक्सुअलिटी और समुदाय- जैसे मूल सामाजिक विभाजन आकार लेते हैं और फिर से बनते हैं।
वैवाहिक साइटों की बात करें तो इन पर पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की प्रोफाइल का अनुपात अधिक है। ऑनलाइन डेटिंग को “हुकअप” साइट्स के तौर पर जाना जाता है, इसलिए इनका इस्तेमाल करते समय महिलाओं को भरोसे और सुरक्षा की चिंता होती है। हालांकि, नकली और असली प्रोफाइल का पता लगाना मुश्किल है। भारतीयों के लिए भी यह मामला बिलकुल नया है। इसलिए वे अपने साथी से क्या उम्मीद करते हैं, इसके बारे में सही तरीके से नहीं लिखते हैं। ऐसी कई प्रोफाइल हैं, जिनमें मशहूर हस्तियों की फोटो, फूल, समुद्र, कपड़े, पहाड़ और न जाने क्या-क्या चस्पां होते हैं। तस्वीरों का चयन भी हास्यास्पद है, कुछ पोस्ट में हनीमून की तस्वीरें होती हैं, तो कुछ में उनके बच्चों की। यह मौजूं सवाल है कि अगर किसी का पति या साथी है, तो फिर वह शख्स क्यों किसी अन्य से संबंध बनाना चाहता है?
यह सच है कि विवाहित और वफादार साथी वाले लोग भी तीन या चार और यहां तक कि ग्रुप सेक्स जैसे नए संबंधों का अनुभव हासिल करना चाहते हैं। ऑनलाइन डेटिंग उन्हें पहचान छिपाए रखने और अपने सामाजिक दायरे से इतर लोगों से दोस्ती करने, संबंध बनाने का मौका देती है। उन्हें इस बात का खतरा नहीं होता कि दूसरे उनके बारे में क्या राय बना रहे हैं। इसके अलावा डेटिंग ऐप्स अंतरंगता और सेक्सुअलिटी के टैबू को भी तोड़ रहे हैं।
भारतीय समाज में व्यक्तिगत मुद्दों और सेक्सुअलिटी पर चर्चा को लेकर बहुत अधिक पाबंदी है। ऑनलाइन डेटिंग साइट गुमनामी की आजादी और बहुत हद तक छूट देती है। सारी बातें टिंडर पर दाएं या बाएं स्वाइप करने को लेकर हैं और यह यूजर फ्रेंडली है। अगर कोई आपको परेशान करता है या गलत व्यवहार करता है तो आप हमेशा के लिए उसे ब्लॉक कर सकते हैं। यह निश्चित रूप से आपको ऐप पर नियंत्रण का एक अधिकार देता है, क्योंकि उससे फंसने और छेड़छाड़ का शिकार होने का खतरा होता है। ऐसे मामलों में फंसाकर लोगों की हत्याएं तक की जा चुकी हैं। यह बताता है कि किसी अजनबी व्यक्ति पर भरोसा और सुरक्षा से समझौता कितना खतरनाक हो सकता है। अलगाव, अकेलापन, पसंद की आजादी, नए लोगों की तलाश की जरूरत और गुमनामी, इन सभी ने ऑनलाइन डेटिंग साइट के इस्तेमाल में अपनी-अपनी भूमिका निभाई है। ऐसा नहीं है कि यहां सभी सेक्स की तलाश में ही आते हैं। कई लोग अकेले हैं और किसी नए शख्स से बातचीत के लिए जुड़ना चाहते हैं।
(लेखिका आंबेडकर यूनिवर्सिटी दिल्ली में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)