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नजीर बना अदालती फैसला

12 साल से कम उम्र की बच्ची से दुष्कर्म मामले में राजस्थान में सुनाई गई फांसी की पहली सजा, जबकि देश में ऐसा दूसरा मामला
नजीरः अलवर की अदालत ने महज तीन महीने के अंदर ही सुनाया फैसला

नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं के बीच राजस्थान के अलवर से एक ऐसा फैसला आया है, जो शायद ऐसे अपराधियों में खौफ पैदा कर सके। यहां सात महीने की एक बच्ची से दुष्कर्म के आरोपी को फांसी की सजा सुनाई गई है। आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश-2018 के लागू होने के बाद 12 साल से कम उम्र की बच्ची से दुष्कर्म के मामले में राजस्थान में फांसी की यह पहली सजा सुनाई गई है, जबकि देश में यह दूसरा मामला है।

दरअसल, अप्रैल में केंद्र सरकार ने नाबालिगों से दुष्कर्म के दोषियों को फांसी की सजा का प्रावधान करने के लिए पॉक्सो एक्ट में बदलाव किया था। इसके तहत भारतीय दंड संहिता (आइपीसी), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), साक्ष्य कानून में भी बदलाव किया गया।

अगर राजस्थान की बात करें तो पिछले पांच साल में महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाएं बहुत बढ़ी हैं। इन पांच वर्षों में दुष्कर्म के 16,393 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 13,036 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। इनमें से करीब आधे यानी 8,273 मामलों में ही पुलिस अदालत में चार्जशीट पेश कर पाई और सिर्फ 3,475 आरोपियों को ही सजा मिल सकी।

अलवर जिले का यह मामला लक्ष्मणगढ़ थाना क्षेत्र के एक गांव का है। जहां नौ मई की शाम 19 साल के पिंटू डाकोत ने अपने पड़ोसी की सात महीने की बच्ची को खिलाने के बहाने सुनसान जगह ले जाकर उसके साथ दुष्कर्म किया। इसके बाद 10 मई को पुलिस में मामले की रिपोर्ट दर्ज की गई।

आरोपी की गिरफ्तारी के बाद 20 जून को पुलिस ने अदालत में चालान पेश किया। 21 जून को अदालत ने आरोप तय किए और 28 जून को अभियोजन पक्ष की ओर से गवाही शुरू हुई। 10 पेशियों में 16 जुलाई तक अभियोजन के 21 और बचाव पक्ष के एक गवाह के बयान दर्ज कराए गए। 17 जुलाई को दोनों पक्षों के वकीलों की अदालत में अंतिम बहस हुई।

18 जुलाई को अदालत ने आरोपी को दुष्कर्म का दोषी करार देते हुए सुनवाई पूरी की और 21 जुलाई की शाम अदालत ने आरोपी को फांसी की सजा सुना दी। फांसी की सजा सुनाते वक्त जज जगेंद्र अग्रवाल ने कहा कि इस प्रकार के अपराधों में सिर्फ कारावास की सजा देने से गलत संदेश जाएगा। साथ ही, इस प्रकार के व्यक्ति को मृत्युदंड नहीं दिया गया तो नए संशोधन अध्यादेश के प्रावधानों का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा।

इस पूरे मामले में अभियोजन पक्ष के वकील कुलदीप जैन का कहना है कि न्याय होने के साथ-साथ न्याय होता दिखना भी चाहिए, ताकि अपराधियों में भय उत्पन्न हो। इसलिए हमने तय किया कि इसे जल्द निपटाया जाए। आरोपी पिंटू को अदालत ने पॉक्सो में अलग से सजा नहीं देकर भारतीय दंड संहिता की धारा 376 एबी के तहत फांसी की सजा सुनाई है।

अदालत के इस फैसले के बाद राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस मामले में ट्वीट कर इसे न्याय की जीत बताया। वहीं, राजस्थान पीयूसीएल की अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव ने कहा कि जिस तत्परता से न्याय हुआ है, वह तो स्वागत योग्य है, लेकिन फांसी इसका कोई हल नहीं है। उन्होंने कहा कि देश में 107 साल से मृत्युदंड का प्रावधान होने के बावजूद अपराध नहीं रुक रहे।

बहरहाल, अदालत द्वारा न्याय की इस नजीर ने उम्मीद की एक नई राह जरूर दिखाई है, लेकिन इतना भर ही काफी नहीं है। राजस्थान में नाबालिगों से दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ रही हैं, लेकिन अब भी उन्हें न्याय देने के लिए पॉक्सो कोर्ट की संख्या न के बराबर है। पूरे राजस्थान में सिर्फ जयपुर में ही पॉक्सो कोर्ट है, जो छह साल पहले खुली थी। हाल में राज्य सरकार ने पॉक्सो के सर्वाधिक लंबित मामले वाले 11 जिलों में कोर्ट खोलने की मंजूरी दी है।

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