दिल्ली अकादमी के वेब की दुनिया से जुड़े मान-सम्मान का मामला अपमान में कैसे बदला, यह किसी से छुपा नहीं। पहले अकादमी की उपाध्यक्ष मैत्रेयी पुष्पा ने सम्मानित किए जाने वाले लोगों के नाम की सूची भेजी और इस सूची के कई ‘दूतों’ को सम्मान लेने आने की सूचना भी भेज दी गई। चिट्ठी उन तक पहुंचने के बाद तीन लोगों के पास दूसरी चिट्ठी पहुंच गई कि भूलवश उन्हें सम्मान की सूचना दे दी गई। इन भूले हुए ‘दूतों’ में अशोक कुमार पांडेय, अरुण देव और संतोष चतुर्वेदी हैं। सम्मानित राहुल देव वरिष्ठ और राहुल देव कनिष्ठ के बारे में भी गफलत रही। सम्मान वरिष्ठ राहुल देव को ही दिया जाना था जो उनके दिल्ली में न रहने पर उनकी बेटी नित्या देव ने स्वीकार किया। सोशल मीडिया पर अकादमी के विरोध में बाढ़ आ गई। बावजूद इसके कार्यक्रम हुआ और कुल नौ लोगों में, आदित्य चौधरी, अशोक चक्रधर, बालेंदु दाधीच, भरत तिवारी, चिराग जैन, इयान वुलफोर्ड, ललित कुमार, राहुल देव और शैलेश भारतवासी को सम्मान मिला। इनमें इयान वुलफोर्ड आमंत्रण पत्र में नाम होने के बाद भी नहीं पहुंचे। क्योंकि सम्मानित होने वालों की सूची में एक भी महिला नहीं थी। आउटलुक ने पड़ताल शुरू की तो सबसे हैरत भरा बयान संस्कृति मंत्री कपिल मिश्रा का था। जब उनसे पूछा कि सम्मान के नामों को लेकर गफलत क्यों हुई, तो उनका कहना था, ‘किस कार्यक्रम की बात कर रही हैं आप?’ जब उन्हें याद दिलाया गया कि 14 सितंबर वाले कार्यक्रम की तो उन्होंने अंग्रेजी में कहा, ‘मुझे इसकी जानकारी नहीं है।’ सूची किसने बनाई? उन्होंने जवाब दिया, ‘मैं तो उस कार्यक्रम में गया ही नहीं।’ फिर भी आपको पता तो होगा, ‘नहीं मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता है।’ अगर उन्हें इस कार्यक्रम के बारे में पता ही नहीं था तो यह और भी गंभीर है कि आमंत्रण पत्र पर बगैर उनकी अनुमति के उनका नाम छाप दिया गया। यह अलग बात है कि 10 सितंबर को कपिल मिश्रा ने ‘भाषादूत’ सम्मान शुरू होने की सूचना ट्वीट की थी। उसके बाद ट्वीटर पर ही 14 सितंबर को भाषादूत सम्मान का आमंत्रण पत्र साझा कर हिंदी दिवस की बधाई दी थी।
इस कार्यक्रम में वेब माध्यम से जुड़ कर हिंदी का प्रचार-प्रसार करने वाले लोगों को सम्मानित किया जाना था। कार्यक्रम का नाम था, ‘भाषादूत’ सम्मान, भाषादूत डिजिटल दुनिया में हिंदी के राजदूत। इस कार्यक्रम में डिजिटल माध्यम में हिंदी विषय पर संगोष्ठी भी आयोजित थी। कपिल मिश्रा को भले ही न पता हो कि उन्हें इस कार्यक्रम में जाना है लेकिन वहां मौजूद अकादमी के लोगों ने सम्मान समारोह के पहले संगोष्ठी की। जब सभी वक्ता बोल चुके सम्मान के अलावा कुछ बाकी नहीं बचा तब भाषा सचिव एम. के. शर्मा ने अतिथियों को सम्मानित किया और बताया गया कि दिल्ली में फैल रहे चिकुनगुनिया-डेंगू की स्थिति को देखते हुए मंत्रीजी बैठक में व्यस्त हैं। दिल्ली अकादमी से जुड़े एक सूत्र बताते हैं कि इस कार्यक्रम को करने का विचार दरअसल संस्कृति मंत्री कपिल मिश्रा के दिमाग में ही आया था। चूंकि समय कम था इसलिए सभी तैयारियां जल्दी करनी थीं। उपाध्यक्ष मैत्रेयी पुष्पा से वेब से जुड़े हिंदी के लोगों के नाम मांगे गए थे। बस गलती इतनी हुई कि प्रस्तावित नामों को फाइनल मान कर पत्र भेज दिए गए। अकादमी से जुड़े एक अन्य व्यक्ति का कहना है कि जब पत्र जा ही चुके थे तब उन लोगों को भी कार्यक्रम में शामिल होने देना चाहिए था क्योंकि इसमें कोई पुरस्कार राशि नहीं थी। सम्मानित होने वाले एक व्यक्ति ने पुष्टि की है कि उन्हें यात्रा व्यय के लिए बहुत मामूली राशि दी है। बाकी को क्या मिला इसकी उन्हें जानकारी नहीं है।
इस पूरे विवाद पर दिल्ली अकादमी की उपध्याक्ष मैत्रेयी पुष्पा का कहना है कि इसका दोष किसी को नहीं दिया जा सकता। समय बहुत कम था संभवत: इसी जल्दबाजी में गफलत हुई। उन्होंने बताया कि उन्होंने जो नाम तय किए गए थे उसमें सम्मानित होने वाले कोई भी व्यक्ति नहीं थे। यह उन्हें भी नहीं पता कि नाम किसने तय किए। मैत्रेयी पुष्पा का कहना है, ‘कई लोगों का कहना है कि मुझे इस्तीफा दे देना चाहिए लेकिन यदि हम कुछ बदलना चाहते हैं तो यहीं रह कर ही बदल पाएंगे। यहीं रह कर लड़ना होगा। और अभी तो यह भी नहीं पता है कि किस स्तर पर गलतफहमी हो गई है।’ हालांकि गवर्निंग बॉडी से ओम थानवी इस्तीफा दे चुके हैं। क्या ऐसे मसलों से अकादमी की छवि को धक्का पहुंचता है इस बारे में वह कहती हैं, ‘हां नुकसान तो पहुंचता ही है। लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे यह लगने लगे कि अकादमी की स्थिति खराब है। साहित्य के लिए पहले भी अच्छे काम होते रहे हैं, आगे भी होते रहेंगे।’