महज तीन साल और नई कंपनी का कारोबार एक करोड़ रुपये से बढ़कर पांच करोड़ रुपये से भी ज्यादा। यह सब हुआ 35 वर्षीय अभिषेक डबास के नए हुनर और नए सोच के बदौलत। अभिषेक डबास नई पीढ़ी के उन उद्यमियों में हैं, जिनमें कुछ नया करने का नशा-सा सवार था। यही वजह थी कि उन्होंने छह साल पहले अपनी नौकरी छोड़ी। फिर तीन साल पहले रेजिडेंशियल कस्टमर को सोलर एनर्जी मुहैया कराने के लिए जोल्ट एनर्जी नाम से कंपनी बनाई।
आइआइटी दिल्ली और आइआइएम कोलकाता से पढ़ाई करने वाले अभिषेक ने जोल्ट एनर्जी शुरू करने से पहले चार साल तक फाइनेंस, मार्केटिंग और प्रोजेक्ट मैनेजमेंट के क्षेत्र में काम किया। उसके बाद कुछ नया करने का जुनून सवार हुआ। वह भी कुछ ऐसा, जिससे समाज के लिए भी कुछ योगदान दे सकें। इसी सोच के साथ उन्होंने रेजिडेंशियल कस्टमर को सोलर पावर प्लांट लगाने में मदद की सोची।
2016 में उन्होंने यह कारोबार एक करोड़ रुपये से शुरू किया और पिछले साल तक पांच करोड़ रुपये का टर्नओवर हो चुका था। इस साल उनका लक्ष्य 15 करोड़ रुपये के कारोबार का है। आज उनके कस्टमर की संख्या भी 250 से ऊपर पहुंच चुकी है। हालांकि, तीन साल के इस सफर में ही उन्हें कई उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ा। बड़े शहरों में जहां छत की वैल्यू काफी अधिक है, तो उन्हें कभी कस्टमाइज कर सोलर प्लांट लगाना पड़ता, तो कभी कस्टमर की वित्तीय स्थिति उनके लिए चुनौती बनती। लेकिन उन्होंने इसका भी तोड़ निकाला औऱ अब अभिषेक उनके लिए लोन की भी सुविधा लेकर आ रहे हैं। यानी कस्टमर को सिर्फ कागजात पर साइन करने हैं, बाकी का जिम्मा उनकी जोल्ट एनर्जी कंपनी संभालती है।
अभिषेक बताते हैं कि इस उतार-चढ़ाव में सरकार की नीतियां भी शामिल हैं। सरकार की तरफ से भी नीतियों में बदलाव होते रहते हैं, जिससे दिक्कत आती है। कई बार ऐसा भी लगा कि कहां आकर फंस गया। बीच में छोटी-छोटी सफलता और असफलता मिलती रही। लेकिन ऐसा कभी नहीं लगा कि बहुत बड़ी गलती हो गई। मुझे यकीन था कि नई राह में कभी फंसते हैं, तो उससे निकलते भी हैं। हार नहीं मानने की जिद ने ही अभिषेक डबास को आज इस मुकाम तक पहुंचाया कि उनकी कंपनी जोल्ट एनर्जी दिल्ली, चंडीगढ़ और हैदराबाद में एक अलग पहचान बना चुकी है। अपने जुनून को एक सफल मुकाम तक पहुंचाने के लिए उन्हें अक्सर घर से बाहर भी रहना पड़ता है, जिससे वह पर्याप्त समय फैमिली को नहीं दे पाते। लेकिन वह कहते हैं कि अगर यहां तक का सफर तय किया है तो वह परिवार के सहयोग के बिना नहीं हो सकता। वह कहते हैं, “पत्नी वर्ल्ड बैंक में कंसल्टेंट हैं, तो वह भी जानती हैं कि मैं क्या कर रह हूं। साथ ही, थोड़ा बहुत समय परिवार के लिए निकल ही जाता है।”