अक्टूबर 2017 में बालिका गृह, बाल गृह, वृद्धाश्रम, अल्पावास वगैरह की सोशल ऑडिट की जिम्मेदारी पहली बार एक बाहरी एजेंसी को सौंपते वक्त बिहार सरकार ने सोचा भी नहीं होगा कि जब रिपोर्ट आएगी तो वह न उगलते बनेगी न निगलते। लिहाजा 27 अप्रैल को मिली टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) के प्रोजेक्ट ‘कोशिश’ की रिपोर्ट पर हरकत में आने में उसे महीने भर से ज्यादा का वक्त लगा और 31 मई को मुजफ्फरपुर बालिका गृह में यौन शोषण को लेकर एफआइआर दर्ज कराई गई।
कुल 111 पन्नों की सोशल ऑडिट रिपोर्ट में स्पष्ट शब्दों में मुजफ्फरपुर बालिका गृह में बच्चियों के यौन शोषण की बात कही गई है। इसका संचालन एनजीओ सेवा संकल्प करता है, जिसका कर्ताधर्ता ब्रजेश ठाकुर है। बेसहारा बच्चियों के संरक्षण के नाम पर इस एनजीओ को समाज कल्याण विभाग हर साल लाखों का फंड देता है। इस मामले में परतें जब खुलनी शुरू हुईं तो उसने न केवल पूरे देश को झकझोर दिया, बल्कि मुख्यमंत्री “सुशासन बाबू” नीतीश कुमार को घेरने का मौका भी विपक्ष को बैठे-बिठाए दे दिया। इसके सियासी असर उसी तरह दिखने लगे हैं जैसे 2012 में दिल्ली में निर्भया गैंगरेप के बाद दिखा था और यूपीए-2 सरकार के लिए सियासी नाराजगी का सबब बन गया था। इसके संकेत चार अगस्त को दिल्ली के जंतर-मंतर पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रदर्शन में भी मिले, जो देश भर के विपक्षी नेताओं की एकजुटता का मंच बन गया। कर्नाटक में मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण के बाद यह दूसरा मौका था जब विपक्षी दलों के नेता इस तरह एक साथ दिखे।
बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ मंच साझा करने वालों में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी, भाकपा नेता डी. राजा, लोकतांत्रिक जनता दल के शरद यादव, टीएमसी सांसद दिनेश त्रिवेदी, सपा सांसद तेजप्रताप यादव सहित कई दलों के नेता थे। विपक्षी दलों का कहना है कि राज्य सरकार रसूखदारों को बचाने और सबूतों को नष्ट करने की कोशिश कर रही है। तेजस्वी ने आउटलुक को बताया, “पीड़ित लड़कियों के बारे में कोई नहीं जानता। जिस तरह दोषियों को बचाने की कोशिश हो रही है, उसे देखकर हमें आशंका है कि नीतीश कुमार लड़कियों को बदल सकते हैं। इसलिए सभी लड़कियों को दिल्ली लाकर रखना चाहिए।”
राजद के प्रदर्शन से एक दिन पहले ही इस मामले पर नीतीश कुमार ने अपनी चुप्पी तोड़ी थी। पटना में ‘मुख्यमंत्री कन्या उत्थान’ योजना की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा था, “मुजफ्फरपुर में ऐसी घटना घट गई कि हम लोग शर्मसार हैं। हम लोग अब आत्मग्लानि के शिकार हो गए हैं।” इस मामले में राज्य सरकार अब तक करीब तीन दर्जन अधिकारियों को निलंबित कर चुकी है। ब्रजेश ठाकुर सहित दस लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। मुख्यमंत्री ने अब बालिका और बाल गृहों की जिम्मेदारी एनजीओ को नहीं देने की बात भी कही है। लेकिन, ये सारी कवायद डैमेज कंट्रोल की कोशिश जैसी लगती है।
ऐसा नहीं है कि सरकार ने केवल एफआइआर दर्ज कराने में ही देरी की। सीबीआइ जांच के लिए भी वह तब राजी हुई जब मामले की गूंज संसद में सुनाई पड़ी। एफआइआर दर्ज कराने से पहले मुजफ्फरपुर बालिका गृह में रह रही लड़कियों को पटना, मोकामा और मधुबनी शिफ्ट करने के कारण भी जांच प्रभावित हुई। मुजफ्फरपुर की एसएसपी हरप्रीत कौर ने आउटलुक बताया, “बालिका गृह में रहने वाली 42 बच्चियों की मेडिकल जांच कराई गई थी। इनमें 34 के साथ दुष्कर्म की पुष्टि हुई है।” कौर ने बताया कि ब्रजेश ठाकुर को टेंडर देने में कई नियमों का उल्लंघन किया गया है। सूत्रों के मुताबिक, ठाकुर का समाज कल्याण विभाग में काफी रसूख था। उसकी मर्जी के बिना किसी भी एनजीओ को फंड नहीं मिलता था। वह खुद अलग-अलग नामों से करीब एक दर्जन एनजीओ चलाता है। सूत्र बताते हैं कि सभी दलों के नेताओं से उसकी करीबी है और उसे हर साल सरकार से लाखों रुपये का फंड मिलता था।
मुजफ्फरपुर मामले पर लोकसभा में कार्यस्थगन प्रस्ताव लाने वाली कांग्रेस सांसद रंजीता रंजन ने आउटलुक को बताया, “सरकार छोटी मछलियों पर कार्रवाई कर रही है। सबूतों को नष्ट किया जा रहा है। ब्रजेश ठाकुर मामले में जो लड़की मुख्य गवाह बताई जा रही थी, उसे मधुबनी बालिका गृह से गायब कर दिया गया है।” जदयू प्रवक्ता अजय आलोक का कहना है कि टिस की रिपोर्ट में मधुबनी बालिका गृह की तारीफ की गई है, इसलिए बच्चियां वहां भेजी गई थीं। हालांकि, पुलिस रिकॉर्ड बताते हैं कि करीब डेढ़ साल से चल रहे इस बालिका गृह से बीते छह महीने में पांच लड़कियां पहले भी गायब हो चुकी हैं। इससे पहले मुजफ्फरपुर स्वाधार गृह से भी 11 महिलाएं और चार बच्चों के गायब होने की खबर आई थी।
सूत्रों के अनुसार मुजफ्फरपुर बालिका गृह की बच्चियों ने मजिस्ट्रेट के सामने बयान में कहा है कि ब्रजेश ठाकुर खुद और बाहरी लोगों को बुलाकर उनका यौन शोषण कराता था। एक लड़की की हत्या कर परिसर में ही गाड़ देने की बात भी कही गई थी। हालांकि, अदालत के आदेश पर जब खुदाई हुई तो अवशेष नहीं मिले। अब सच्चाई जानने के लिए परिसर की मिट्टी की फोरेंसिक जांच का फैसला किया है। पुलिस उस जगह से भारी मात्रा में नशे और मिर्गी की दवाइयां बरामद कर चुकी है जहां लड़कियां रहती थीं। मुजफ्फरपुर जिला बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष दिलीप वर्मा और मधु नाम की एक महिला की तलाश की जा रही है। बताया जाता है कि ब्रजेश ठाकुर की ओर से अधिकारियों से लायजनिंग मधु ही करती थी। समाज सेवा के लिए उसे सम्मानित करने की सिफारिश भी जिला प्रशासन ने सरकार से की थी।
सीबीआइ भी ब्रजेश का रिकॉर्ड खंगाल रही है। कुछ पुराने मामलों की भी एजेंसी पड़ताल कर रही है। हालांकि, बिहार के हाइप्रोफाइल मामलों में रसूखदारों पर कार्रवाई का सीबीआइ का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं है। लेकिन, मुजफ्फरपुर मामले में सुप्रीम कोर्ट के स्वतः संज्ञान लेने और पटना हाइकोर्ट द्वारा जांच की निगरानी का फैसला किए जाने से अपराधियों पर शिकंजा कसने की उम्मीदें बढ़ी है।
विपक्ष राज्य की समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के इस्तीफे की भी मांग कर रहा है। मंजू वर्मा के पति चंदेश्वर वर्मा पर मुजफ्फरपुर मामले में गिरफ्तार बाल संरक्षण अधिकारी रवि रोशन की पत्नी ने अक्सर बालिका गृह में जाते रहने का आरोप लगाया है। कहा जा रहा है कि बच्चियों ने अपने बयान में जिस तोंद वाले नेता जी की बात कही है, वह वर्मा ही हैं।
संसद में सबसे पहले इस मामले को उठाने वाले जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष पप्पू यादव का कहना है कि प्रदेश के सभी अल्पावास, बालिका गृह और आवासीय विद्यालयों की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच होनी चाहिए। उन्होंने बताया, “नेताओं और अधिकारियों की मिलीभगत से इन जगहों पर यौन शोषण की बातें पहले भी सामने आ चुकी हैं। लेकिन, इसकी शिकायत करने वाले या तो गायब कर दिए जाते हैं या उनकी हत्या हो जाती है।”
इस मामले में भाजपा के बड़े नेताओं की चुप्पी भी नीतीश कुमार को भारी पड़ सकती है। जानकारों की मानें तो यह सोची-समझी रणनीति है, क्योंकि नीतीश जितने कमजोर होंगे सीटों का मोल-भाव करने के लिहाज से भाजपा की स्थिति उतनी ही मजबूत होगी। ऐसे में जितनी जल्दी रसूखदार नपेंगे, नीतीश का सियासी नुकसान उतना कम होगा।
‘कोशिश’ से खुली सच्चाई
मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की परतें जिस सोशल ऑडिट रिपोर्ट से खुली हैं उसे तैयार करने में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) के प्रोजेक्ट ‘कोशिश’ की आठ सदस्यीय टीम को कई मुश्किलों से गुजरना पड़ा। कई केंद्रों के संचालकों ने टीम के काम में बाधा डालने की कोशिश भी की। राज्य के 35 जिलों में समाज कल्याण विभाग की योजनाओं से संचालित 110 केंद्रों का सोशल ऑडिट इस दौरान किया गया। इस रिपोर्ट को सरकार ने अब तक सार्वजनिक नहीं किया है। इसकी प्रति आउटलुक के पास है।
रिपोर्ट में मुजफ्फरपुर बालिका गृह सहित 17 केंद्रों की स्थिति बेहद चिंताजनक बताते हुए तत्काल कदम उठाने की सिफारिश की गई है। छह केंद्रों में यौन प्रताड़ना और 14 जगहों पर मारपीट की बात कही गई है। कुछ चुनिंदा केंद्र के कामकाज की तारीफ भी की गई है। ‘कोशिश’ के प्रोजेक्ट डायरेक्टर मोहम्मद तारिक ने आउटलुक को बताया, “इन केंद्रों की निगरानी के लिए पहले से सिस्टम बना हुआ है और नियमित तौर पर निरीक्षण होता है। इसलिए रिकॉर्ड के बजाय हमारी टीम ने केंद्र के संचालकों, कर्मचारियों और वहां रहने वाले लोगों का अनुभव जानने की कोशिश की।” उन्होंने बताया कि जब इन केंद्रों में रह रहे लोगों से टीम ने अलग से बात की तो तमाम तरह की अनियमितताएं सामने आईं। हालांकि, उस वक्त ‘कोशिश’ की टीम को भी इतने बड़े पैमाने पर शोषण का अंदाजा नहीं था।
‘कोशिश’ की प्रोग्राम ऑफिसर सुनीता विश्वास ने बताया, “मुजफ्फरपुर बालिका गृह में शुरुआत में लड़कियों ने बताया कि यहां सबकुछ ठीक है। बातचीत के दौरान केयर टेकर, काउंसलर और अन्य कर्मचारी बार-बार आकर व्यवधान पैदा कर रहे थे। काफी समझाने के बाद कुछ लड़कियों ने मारपीट और यौन हिंसा के बारे में बताया।”
रिपोर्ट में मोतिहारी बाल गृह में भी यौन शोषण का जिक्र है। ‘कोशिश’ की रिसर्च ऑफिसर अपूर्वा विवेक ने बताया, “मोतिहारी के ब्वायज चिल्ड्रेन होम में छोटे बच्चों ने बताया कि बड़े उनका यौन शोषण करते हैं। हम जब पहुंचे थे तब इस होम में करीब 25 बच्चे थे। लेकिन, जब पुलिस जांच के लिए गई तो चार बच्चे ही मिले। बाकी बच्चे अन्य सेंटर में भेज दिए गए थे।”
अव्यवस्था केवल उन 17 संस्थानों में ही नहीं हैं जिनका जिक्र रिपोर्ट में है। ‘कोशिश’ के स्टेट प्रोजेक्ट हेड कायम मासूमी ने बताया कि ज्यादातर केंद्र मानकों के हिसाब से नहीं चल रहे हैं। नब्बे फीसदी से ज्यादा केंद्रों में आधारभूत संरचना और मानव संसाधन की कमी है। कर्मचारी अपने काम में दक्ष नहीं हैं और कई जगहों पर उनको महीनों से वेतन नहीं मिला है। इन केंद्रों में रह रहे लोगों को उनके परिजन घर भी ले जाना चाहते हैं, लेकिन प्रक्रिया लंबी होने के कारण ऐसा नहीं हो पाता। केंद्रों के संचालक बच्चों को उनके परिजनों से मिलने भी नहीं देते।
(साथ में मुजफ्फरपुर से संजय उपाध्याय)