लगभग सात करोड़ की आबादी वाला राजस्थान दुनिया के कई विकसित देशों से बड़ा है। लेकिन, कुछ समय पहले तक यह देश के बीमारू राज्यों में एक माना जाता था। अब इसने यह धब्बा अपने नाम से हटा लिया है। कम- से-कम दावा तो यही किया जा रहा है। हालांकि, इस दावे के पीछे कुछ ठोस तर्क भी नजर आते हैं। इसमें पहला है तकनीक के क्षेत्र में राज्य को अव्वल बनाने के मकसद से शुरू की गई अनूठी पहल 'राजस्थान डिजिफेस्ट'। इसकी शुरुआत साल 2016 से हुई, तब इसका आयोजन जयपुर में किया गया था। जयपुर से शुरू हुआ यह सफर कोटा, उदयपुर और फिर जयपुर होते हुए इस बार बीकानेर पहुंचा। जहां देश भर के आइटी विशेषज्ञ जुटे और 25 से 27 जुलाई तक तकनीक के सहारे लोगों की समस्याओं को दूर करने का रास्ता निकालने की पहल की। तीन दिनों तक चली इस आइटी एग्जीबिशन में स्टार्टअप, सरकारी विभागों की डिजिटल प्रदर्शनी, स्मार्ट विलेज और स्मार्ट सिटी के जरिए राजस्थान की तरक्की का खाका दिखाया गया। वैसे, यह धरातल पर कितना पहुंचा, इसे लेकर अभी कयास लगाना थोड़ी जल्दबाजी हो सकती है। हालांकि, इंफोसिस के डायरेक्टर रह चुके मोहनदास पई कहते हैं कि राजस्थान देश के दूसरे राज्यों से बिलकुल अलग है। यहां के हालात और समस्याएं भी बिलकुल अलग हैं। आइटी लोगों की समस्याओं का हल करने में बड़ा किरदार निभा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि यह सभी लोगों तक पहुंचे और लोगों को इसके लिए जागरूक किया जाए।
राजस्थान सरकार इस दिशा में काम करती भी दिख रही है। उसने कई सरकारी योजनाओं को डिजिटली जोड़कर लोगों की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की है। मसलन, आइटी के जरिए अटल सेवा केंद्र, पटवार भवन, आदर्श विद्यालय, ई-मित्र, ई-सखी, ई-बाजार, अन्नपूर्णा भंडार, उचित मूल्य की दुकान और महिला सहकारी समितियों का और बेहतर संचालन किया जा रहा है। पई बताते हैं कि डिजिफेस्ट का विचार इसी मकसद से आया।
सरकारी योजनाओं का डिजिटल कनेक्शन
डिजिफेस्ट को इस वजह से भी खास माना जा सकता है कि इसके जरिए लोगों को व्यापक स्तर पर सरकार की योजनाओं की जानकारी दी जा रही है। लोगों को बताया जा रहा है कि कैसे वे आइटी का इस्तेमाल कर मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान, भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ उठा सकते हैं। सरकार की इस पहल में अहम भूमिका निभा रहा है, रोबोट बुधिया। 19 भाषाएं जानने वाला ‘बुधिया’ भामाशाह योजना से जुड़ी सारी जानकारी देने के साथ इसकी सभी समस्याओं का हल भी निकालता है।
इसके अलावा स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत मोबाइल लेजर स्कैनर भी इस्तेमाल करने की योजना है, जो बताता है कि बारिश आएगी तो शहर में जलभराव की दिक्कत कहां-कहां हो सकती है। शहर में सोलर पैनल कहां लगाए जाएं कि सबसे ज्यादा ऊर्जा मिले। वीआइपी मूवमेंट किस प्रकार हो, ओवरब्रिज बनाना हो तो कहां से बनाया जाए वगैरह की जानकारी देती है। इसी तरह डिजिटल स्कूल का भी जिक्र है, जिसमें डिजिटल स्मार्ट बोर्ड पर बच्चे पढ़ते नजर आएंगे। खुद राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का भी दावा है कि आइटी के क्षेत्र में नया इतिहास लिखा जा रहा है और राजस्थान का नाम इसके पहले पन्ने पर आएगा। इसके लिए उन्होंने भविष्य के राजस्थान का खाका भी पेश किया और कई योजनाओं का डिजिटल शिलान्यास किया, जिनमें कोटा और जोधपुर में स्थापित किए जाने वाले इंक्यूबेशन सेंटर आइ-स्टार्ट नेस्ट शामिल हैं।
हालांकि, इन तमाम उद्घाटनों और दावों-वादों से अलग एक सवाल तो उठता ही है। वह यह कि राजस्थान की सात करोड़ आबादी में से लगभग 75 फीसदी गावों में रहती है। ऐसे में वहां तक इसका फायदा पहुंचाना एक बड़ी चुनौती हो सकती है। क्योंकि जहां तक अभी तकनीक ही नहीं पहुंची, वहां लोग कैसे डिजिटली जुड़ी सरकारी योजनाओं का लाभ उठाएंगे। इस पर राज्य के आइटी विभाग के प्रमुख सचिव अखिल अरोड़ा कहते हैं कि उन्होंने इसका समाधान भी निकाला है। वह कहते हैं, “हमने ई-सखी योजना बनाई है, जिसके जरिए तकनीकी रूप से सक्षम लड़कियां गांवों में जाएंगी और महिलाओं को मोबाइल या अन्य माध्यमों से सरकार की इन योजनाओं का इस्तेमाल करना सिखाएंगी।”