उत्तर प्रदेश में अति दलितों और अति पिछड़ों को अलग आरक्षण मुहैया कराकर सियासी फसल काटने की तैयारी है। हालांकि, इस तरह के प्रयास 27 साल से हो रहे हैं, लेकिन कामयाब मुकाम हासिल नहीं हो पाया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 22 मार्च को विधानसभा में अति दलितों और अति पिछड़ों को अलग आरक्षण देने की घोषणा कर वोट बैंक की सियासी गर्मी ला दी थी।
प्रदेश सरकार ने जाट सहित अन्य पिछड़े वर्ग में शामिल विभिन्न जातियों और वर्गों के पिछड़ेपन का पता लगाने के लिए गठित समिति का नाम ‘अन्य पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय समिति’ रखा है। समिति पिछड़ों की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति का अध्ययन कर रही है। यूपी में करीब 19 प्रतिशत अगड़ी आबादी, 46 प्रतिशत ओबीसी, 21 प्रतिशत दलित और 14 प्रतिशत अल्पसंख्यक हैं। पिछड़े और दलित वोटरों की वजह से ही 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को शानदार जीत मिली। इसलिए अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा की कोशिश दलितों और ओबीसी में सेंध लगाने की है।
कांग्रेस के शासनकाल में 1976 में बने डॉ. छेदीलाल साथी आयोग ने भी अति पिछड़ों के आरक्षण की वकालत की थी। संविधान के अनुसार अति पिछड़ों को आरक्षण संभव है, लेकिन इस पर सुप्रीम कोर्ट रोक लगा चुका है। कोर्ट का कहना था कि दलितों में जातियों का वर्गीकरण नहीं हो सकता। 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने दलितों और पिछड़ों में हर जाति को उसकी संख्या के अनुपात में आरक्षण देने के लिए हुकुम सिंह की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी। कमेटी की रिपोर्ट को विधानसभा में पारित भी किया गया, लेकिन उनकी ही सरकार में मंत्री अशोक यादव कोर्ट चले गए थे और कोर्ट ने कमेटी की रिपोर्ट पर रोक लगा दी। सपा सरकार ने भी 2016 में अति पिछड़ी जातियों को एससी में शामिल करने के प्रस्ताव पर कैबिनेट में मुहर लगाकर केंद्र को भेजा था, लेकिन इस फैसले को भी हाइकोर्ट में चुनौती दी गई थी।
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव कहते हैं, “पहले हर समुदाय की जनगणना की जाए और जनसंख्या के हिसाब से उन्हें आरक्षण दिया जाना चाहिए। भाजपा लोगों को बरगला रही है और अति पिछड़े और महा दलितों की बात कर रही है।” वहीं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडे का कहना है, “हमें पिछड़े समाज के सभी वर्गों के हितों का ख्याल है। हमारी प्राथमिकता है कि सामाजिक न्याय के वास्तविक लाभ से वंचित वर्ग को सही अर्थों में न्याय और अवसर मिले।” यानी आरक्षण की जंग से सियासी समीकरण तय करने की तैयारी है।