आज ‘ईश्वर का अपना घर’ केरल 100 साल की सबसे भयावह त्रासदी से गुजर रहा है। अत्यधिक बारिश और बाढ़ से राज्य में 370 लोगों की मौत हो चुकी है। अब तक सात लाख लोग बेघर हो चुके हैं और राहत शिविरों में जीवन बिताने को मजबूर हैं। कहीं सेना के लोग गर्भवती सजिता जाबिल को हेलीकॉप्टर की मदद से बचाकर नया जीवन दान दे रहे हैं, तो कहीं पर मछली बेचकर पढ़ाई करने वाली 21 साल की हनन 1.5 लाख रुपये बाढ़ पीड़ितों की राहत के लिए दान दे रही है। इस भीषण तबाही से केरल को अब तक 20 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। वैसे, 19 अगस्त को मौसम विज्ञान विभाग की तरफ से राहत की खबर आई, जिसमें आने वाले दिनों में बारिश में कमी आने की संभावना जताई गई है, जिसकी वजह से राज्य के सभी जिलों से रेड अलर्ट हटा लिया गया है।
कैसे बारिश बन गई त्रासदी
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के तिरुवनंतपुरम केंद्र के अनुसार एक जून 2018 से लेकर 20 अगस्त 2018 तक केरल में दक्षिण पश्चिम मानसून से 237.8 सेंटीमीटर बारिश हुई है। जबकि सामान्य तौर पर इस अवधि में 167.63 सेंटीमीटर बारिश होती है। यानी सामान्य से 41.9 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। केरल के 14 जिलों में पांच जिले ऐसे हैं जहां पर सामान्य से 50 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। जबकि नौ जिलों में भी इस साल सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है। इडुक्की जिला ऐसा रहा है जहां पर सबसे ज्यादा बारिश हुई है। जिले में सामान्य से 93.38 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। वहीं, पलक्कड़ में 73.45 फीसदी, कोल्लम में 54.27 फीसदी, कोट्टायम में 51.26 फीसदी, मलापुरम में 50.81 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है।
भारी बारिश से 80 में 79 बांधों के गेट खोलने पड़े
राज्य में कुल 44 नदियां बहती हैं, जिन पर कुल मिलाकर 80 बांध बनाए गए हैं। इनमें से 58 का इस्तेमाल बिजली बनाने के लिए और 22 का इस्तेमाल सिंचाई के लिए किया जाता है। केरल राज्य विद्युत बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार मानसून आने से पहले राज्य के प्रमुख जलाशयों में कुल क्षमता का 23 फीसदी पानी मौजूद था, जो कि 15 अगस्त 2018 को औसतन 98 फीसदी पर पहुंच गया। जिसकी वजह से इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब राज्य के 35 बांधों के गेट खोलने पड़े। इसकी वजह से राज्य के कई जिले बाढ़ में डूब गए। केरल के कुल 14 जिलों में कोल्लम, इडुक्की, कोट्टायम, एर्नाकुलम, त्रिशूर, वायनाड, कोझीकोड, पलक्कड़ सबसे ज्यादा बाढ़ से प्रभावित हुए हैं।
रुक सकती थी बड़ी तबाही
भारतीय मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक लक्ष्मण सिंह राठौड़ के अनुसार केरल में मानसून के समय ज्यादा बारिश होना कोई नई बात नहीं है। केरल में औसत बारिश 200 सेमी तक होती है। यहां तक की सामान्य से दोगुनी या तीन गुनी बारिश होने पर भी ऐसी समस्या नहीं आना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि उसकी भौगोलिक बनावट ऐसी है कि जल निकासी काफी आसानी से हो सकती है, जिससे बाढ़ जैसी नौबत का सामना नहीं करना पड़े। केरल के पश्चिमी घाट वाले पूरे क्षेत्र में बारिश हुई है, जो कि कोई नई बात नहीं है। लेकिन बारिश की वजह से जिस तरह से त्रासदी आई है उसके लिए कहीं न कहीं हम जिम्मेदार हैं। इसके लिए प्रकृति के साथ छेड़-छाड़, प्राकृतिक वनस्पति की जगह नकदी फसलों का बढ़ना और जलाशयों से पानी छोड़ने में देरी करना इस त्रासदी के सबसे बड़े कारण हैं। अगर सही समय पर पानी को छोड़ा जाता है तो काफी हद तक बड़ी त्रासदी से बचा जा सकता था।
370 की मौत और सात लाख लोग बेघर
राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार केरल में आई बाढ़ की वजह से 20 अगस्त तक 370 लोगों की मौत हो चुकी थी। करीब सात लाख लोग बेघर हैं। अभी भी पानी का स्तर नहीं के बराबर कम हुआ है। जिसकी वजह से राज्य के कई इलाकों में पानी, बिजली सहित आम सुविधाओं से भी लोग वंचित हैं। हालात इस कदर बिगड़ गए कि राज्य के कई जिलों में गलियों में नाव तक चलानी पड़ रही है। लोग घरों में डूबी हुई स्थिति के वीडियो बनाकर मदद की गुहार लगा रहे थे। छत पर इस इंतजार में फंसे हुए थे कि कोई हेलीकॉप्टर या नाव आए और उन्हें बचाकर ले जाए। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के अनुसार राज्य को इस तबाही से करीब 20 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य में करीब 40 हजार हेक्टेयर खेती की जमीन को नुकसान पहुंचा है। 10 हजार मकान पूरी तरह से ध्वस्त हो गए हैं। जबकि 26 हजार घरों को आंशिक रूप से नुकसान पहुंचा है। साथ ही 46 हजार से ज्यादा मवेशी भी मारे गए हैं। लोक निर्माण विभाग की 16 हजार किलोमीटर सड़कें और 82 हजार किलोमीटर स्थानीय सड़कों को नुकसान पहुंचा है। इसी तरह कुल 134 पुलों को नुकसान पहुंचा है।
19 अगस्त तक 15 हजार लोगों को बचाया
केरल में 100 साल की सबसे बड़ी त्रासदी से निपटने के लिए राष्ट्रीय आपदा राहत बल (एनडीआरएफ) ने अभी तक का सबसे बड़ा अभियान चलाया है। एनडीआरएफ द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार 19 अगस्त तक 348 लोगों को बचाया गया है जबकि 15 हजार लोगों को निकालकर सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया है। इसके अलावा सेना की 16, नौसेना की 28 और एनडीआरएफ की 58 टीमें राहत-बचाव कार्य में जुटी थी। लोगों को राहत शिविरों में पहुंचाने और खाने के अलावा राहत सामग्री के वितरण के लिए 67 हेलीकॉप्टर, 24 एयरक्राफ्ट और 548 मोटरबोट तैनात किए गए हैं।
राज्य सरकार ने मांगे दो हजार करोड़
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के अनुसार राज्य को तुरंत 2000 करोड़ रुपये के मदद की जरूरत है। इसके पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य को 500 करोड़ रुपये की अंतरिम राहत देने का ऐलान कर चुके हैं। साथ ही मुख्यमंत्री राहत कोष में तेलंगाना सरकार ने 25 करोड़, महाराष्ट्र ने 20 करोड़, उत्तर प्रदेश ने 15 करोड़, मध्य प्रदेश ने 10 करोड़, दिल्ली ने 10 करोड़, पंजाब ने 10 करोड़, कर्नाटक ने 10 करोड़, बिहार ने 10 करोड़, गुजरात ने 10 करोड़ और तमिलनाडु सरकार ने पांच करोड़ रुपये मदद के लिए दिए।
बाढ़ के बाद महामारी से निपटने की चुनौती
बारिश के बाद केरल के लोगों के सामने एक नई समस्या खड़ी हो सकती है। ऐसी आशंका है कि जिस तरह से राज्य में आधारभूत ढांचा बिखर गया है, उससे महामारी फैल सकती है। इसके लिए राज्य सरकार ने एडवाइजरी भी जारी की है। स्वास्थ्य निदेशालय को आशंका है कि संक्रमण से होने वाली बीमारियां तेजी से फैल सकती हैं।
कैसे बढ़ती गई केरल त्रासदी
29 मई - दक्षिण-पश्चिम मानसून ने 3 दिन पहले केरल में दी दस्तक
24 जुलाई- अलप्पे और कोट्टायम जिले में आई बाढ़
27 जुलाई- इडुक्की जलाशय का जलस्तर 2400 फुट के स्तर से ऊपर पहुंचा
9 अगस्त- राष्ट्रीय आपदा राहत बल (एनडीआरएफ) अलुवा त्रिशूर, इडुक्की, वायनाड, मल्लापुरम, कोझीकोड, पलक्कड़ जिले में पहुंचा
10 अगस्त- सेना, नौसेना और वायुसेना के राहत दल कई जिलों में पहुंचाए गए। आठ जिलों में रेड अलर्ट घोषित किया गया। 3,500 लोग राहत शिविर में पहुंचाए गए।
14 अगस्त- चेरूथोनी बांध के सभी पांच दरवाजे खोले गए। मुलापेरियार बांध का जल स्तर 136 फुट के खतरनाक स्तर को पार कर गया। मुन्नार के लोगों को ऊंचाई वाले जगहों पर जाने को कहा गया।
15 अगस्त- इतिहास में पहली बार 35 वांधों के गेट को खोला गया।
19 अगस्त- केरल के सभी जिलों से रेड अलर्ट हटा, 20 अगस्त तक 370 लोगों की मौत, सात लाख से ज्यादा लोग राहत शिविर में पहुंचे।
प्रकृति से ज्यादा मानव निर्मित है केरल की तबाही
दुनिया भर में अपने मसालों और पर्यटन के लिए प्रसिद्ध केरल इस समय सबसे बड़ी त्रासदी से जूझ रहा है। राज्य में मानसून में इस बार सामान्य से 42 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। इसकी वजह से लाखों लोगों के जीवन पर संकट मंडराने लगा है। फौरी तौर पर इस त्रासदी की वजह ज्यादा बारिश दिखती है लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि प्रकृति से ज्यादा यह मानव निर्मित त्रासदी है। इस मसले पर भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के पूर्व महानिदेशक लक्ष्मण सिंह राठौड़ ने आउटलुक के एसोसिएट एडिटर प्रशांत श्रीवास्तव से बातचीत की है। पेश हैं उसके प्रमुख अंशः
इस बार मौसम में ऐसा क्या बदलाव हुआ जिससे केरल को 100 साल की सबसे बड़ी तबाही का सामना करना पड़ा है?
केरल में 200 सेंटीमीटर बारिश होना सामान्य बात है। इस बार भी ऐसा ही हुआ है। केरल की प्राकृतिक जल निकासी प्रणाली और वनस्पतियां ऐसी हैं कि इस तरह की बारिश को वह झेल सकती हैं। केरल में पहाड़, पेड़, नदियों की ऐसी बेहतर प्राकृतिक व्यवस्था है जिससे उसे ऐसी परिस्थिति का सामना नहीं करना चाहिए था।
अगर ऐसा है तो फिर ऐसा क्यों हुआ कि पूरी तरह से केरल टापू बन गया?
हर एक आदमी इसे जलवायु परिवर्तन के रूप में देखेगा। लेकिन जिस तरह से त्रासदी हुई वह यह सोचने पर मजबूर करती है कि ऐसा क्यों हुआ। इसके लिए कहीं न कहीं हम जिम्मेदार हैं। केरल की जमीन इतनी उर्वर है कि वहां कुछ भी उगाया जा सकता है। इस फायदे को देखते हुए हमने कृषि पारिस्थितिकी तंत्र को ही बदल दिया। केरल में इस समय एक इंच जमीन नहीं मिलेगी, जिस पर कुछ उगाया नहीं गया है। लेकिन देखने की जरूरत है कि उस जमीन पर क्या उगाया गया। प्राकृतिक वनस्पतियों को हटाकर नकदी फसलें जैसे चाय, रबड़, कॉफी, इलायची वगैरह की खेती जरूरत से ज्यादा की जाने लगी। साथ ही, केरल में कोई जगह ऐसी नहीं है जहां अप्राकृतिक तरीके से विकास नहीं हुआ है। तीसरा सबसे बड़ा कारण बांध से पानी छोड़ने के प्रबंधन में खामी है।
आपने बांधों के जरिए छोड़े जाने वाले पानी पर सवाल उठाए हैं, ऐसे में क्या यह प्रशासनिक लापरवाही का एक बड़ा उदाहरण है?
जलाशयों में पानी आप पूरी तरह से लबालब भर कर रखे हैं। उसे छोड़ नहीं रहे हैं। आपके पास वैज्ञानिक आधार है, मौसम का पूर्वानुमान है, फिर ऐसी परिस्थिति क्यों खड़ी की गई। अगर आपके जलाशयों में जुलाई और अगस्त के शुरुआत में पानी लबालब भर चुका था तो पानी समय-समय पर क्यों नहीं छोड़ रहे थे। खास तौर पर जब केरल में दिसंबर तक बारिश होती है तो फिर पानी क्यों नहीं छोड़ा गया।
प्रशासन ऐसी स्थिति में कदम क्यों नहीं उठाना चाहता है?
वास्तव में यही लचर प्रबंधन को जाहिर करता है। प्रशासन यह सोचता है कि पता नहीं बारिश आगे होगी कि नहीं, अगर ऐसा हुआ तो बिजली कहां से पैदा होगी। सिंचाई के लिए पानी की कमी हो सकती है। इस असमंजस में ही वह रहता है। केरल के मामले में तो साफ है कि जब शुरुआत से ही भारी बारिश होने का पूर्वानुमान था तो भी उनकी अनदेखी की गई।
ऐसी स्थिति फिर पैदा न हो इसके लिए कैसी प्रणाली विकसित करनी चाहिए ?
एक ऐसी प्रणाली विकसित की जाए, जिसमें प्रशासन, मौसम विभाग और दूसरे संबंधित पक्ष के बीच एक बेहतर सामंजस्य होना जरूरी है। कुल मिलकार सूचना प्राप्त करने की व्यवस्था और उसके आधार पर समय रहते फैसले लेना बेहद जरूरी है।
क्या केरल जैसी स्थिति का सामना दूसरे राज्यों को भी करना पड़ सकता है?
पहले भी ऐसे उदाहरण सामने आए हैं। चेन्नै, मुंबई, सूरत, श्रीनगर की बाढ़ उदाहरण हैं, जहां हजारों लोगों को जान गंवाना पड़ा है। सरकार, प्रशासन के स्तर पर बदलाव के साथ-साथ जरूरी है कि आम आदमी के स्तर पर भी जागरूकता बढ़े। जब तक ऐसा नहीं करेंगे तब तक आपको ऐसी परिस्थितियों को सामना करना पड़ेगा।