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जोगी के हाथ सत्ता की कुंजी!

बीमारी से उबरने के बाद अजीत जोगी की राजनीतिक सक्रियता बढ़ने से भाजपा और कांग्रेस में बनने लगे हैं नए समीकरण
दावे तो बड़ेः जोगी की पार्टी 41 प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर चुकी है

छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी बीमारी से उबरने के बाद बेहद सक्रिय ही नहीं, अपने वादों और दावों से भी सुर्खियां खींचने की कोशिश कर रहे हैं। हाल में एक सभा में उन्होंने कहा, “सत्ता में आया तो छत्तीसगढ़ के हर इलाके में कुछ गज चांदी की सड़क बनाऊंगा और थाने के सामने बनाऊंगा, ताकि कोई चुरा न सके।” भाजपा की चौथी पारी काफी कुछ जोगी की छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस की वोट हासिल करने की क्षमता पर टिकी है। साफ लग रहा है कि अजीत जोगी के प्रत्याशी कांग्रेस के परंपरागत वोट में सेंध लगाएंगे। ऐसे में नुकसान कांग्रेस का होना तय माना जा रहा है। इसमें भाजपा अपना फायदा देख रही है। कांग्रेस अजीत जोगी की पार्टी से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए बसपा से तालमेल करना चाहती है। जोगी और बसपा का प्रभाव अनुसूचित जाति के वोट बैंक पर ज्यादा है। अजीत जोगी का संगठन भले ही भाजपा और कांग्रेस जैसा मजबूत नहीं है, लेकिन कद्दावर नेता होने के साथ राज्य में उनका प्रभाव और खास वर्ग पर उनकी पकड़ कहीं ज्यादा है। अजीत जोगी पहली बार कांग्रेस से अलग होकर अपने बलबूते विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। उनकी पार्टी अब तक 41 प्रत्याशी घोषित कर चुकी है।

भाजपा और कांग्रेस अभी प्रत्याशी तलाश रही हैं। दोनों ही पार्टियां चुनाव आचार संहिता के पहले प्रत्याशी घोषित करने का दावा कर रही हैं, लेकिन लगता नहीं कि ऐसा हो पाएगा। नामांकन के पहले प्रत्याशी घोषित करने की मारामारी तो दोनों दलों में रहेगी। भाजपा अपने कई पुराने विधायकों का टिकट काटकर नए चेहरे मैदान में उतारने की कवायद में लगी है, ताकि एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर का सामना उसे न करना पड़े। कांग्रेस भी 2013 की गलती दोहराने की जगह अधिक से अधिक नए और युवा लोगों को उम्मीदवार बनाने की दिशा में काम कर रही है। कांग्रेस ने 2013 में अपने सभी विधायकों को मैदान में उतार दिया था, जिनमें कुछ 70 की उम्र पार कर चुके थे। 2013 के चुनावी आंकड़े का विश्लेषण करें तो भाजपा और कांग्रेस के बीच वोटों का अंतर केवल 0.75 फीसदी ही है। केंद्र में वर्षों मंत्री रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ल के नेतृत्व में 2003 में एनसीपी ने भले एक सीट जीती थी, लेकिन सात फीसदी वोट लेकर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया था। अगर 2018 में अजीत जोगी की पार्टी के प्रत्याशी आठ से 10 फीसदी वोट हासिल कर लेते हैं, तो भाजपा चौथी बार सत्ता में आ सकती है।

कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस ने अब तक जिन प्रत्याशियों को घोषित किया है, वे इतने वोट तो हासिल कर ही लेंगे। क्षेत्र में उन्हें उनके जनाधार के साथ जोगी के प्रभाव का वोट भी मिलेगा। राज्य में बसपा की सात से आठ फीसदी वोट की हिस्सेदारी है। इस गणित को ध्यान में रखकर कांग्रेस के प्रभारी महासचिव पी.एल. पुनिया ने बसपा के साथ चुनावी गठबंधन की सिफारिश की है। कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष चरणदास महंत फिलहाल बसपा को उनके प्रभाव वाली पांच सीटें देने की बात कर रहे हैं। ये सीटें जांजगीर-चांपा और बिलासपुर जिले की हैं। कांग्रेस एक-दो सीटें गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को दे सकती है। मुख्यमंत्री रमन सिंह मानते हैं कि गठबंधन की स्थिति में भाजपा के लिए चुनौतियां बढ़ेंगी।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इस बार 65 सीटें जीतने का टारगेट दिया है, लेकिन पार्टी 2003, 2008 और 2013 में कभी भी 52 सीटों से आगे नहीं बढ़ पाई। चुनावी सर्वे में उसके कई मंत्री और विधायकों की हालत अच्छी नहीं दिखाई पड़ रही है। ऐसे में पार्टी ने जीत नहीं सकने वाले विधायकों का टिकट काटने का फार्मूला बनाया है। भाजपा के एक बड़े नेता का साफ कहना है कि पार्टी सर्वे रिपोर्ट के आधार पर ही उम्मीदवारों का चयन करेगी। वहीं, मुख्यमंत्री रमन सिंह ने सरकार विरोधी माहौल को बदलने के लिए महिलाओं, गरीबों और छात्रों को मोबाइल बांटना शुरू कर दिया है। राजधानी रायपुर में फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत के हाथों मोबाइल वितरण योजना का शुभारंभ करवाया गया। अगले दो महीने में 50 लाख मोबाइल बांटे जाने का लक्ष्य रखा गया है। अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी ने इसकी काट में ‘मोबाइल नहीं, रोजगार’ का नारा दिया है।

रमन सिंह की रणनीति से निपटने के लिए कांग्रेस के नेता जमीन पर उतरने लगे हैं। प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल, चरणदास महंत और नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव के साथ दूसरे बड़े नेता अगस्त में पंचायत स्तर पर जन-संवाद कार्यक्रम करेंगे। कांग्रेस के नेता आपसी मतभेद भूलकर एक साथ घूमते नजर आ रहे हैं। 30 अगस्त से आदिवासियों के बीच भी जाएंगे। जनता कांग्रेस ने भी अगस्त-सितंबर में जनता तक पहुंचने के लिए कई कार्यक्रम बनाए हैं। ‘हल चलाता किसान’ चुनाव चिह्न मिलने के बाद जनता कांग्रेस ने खेत चलो अभियान चलाकर खेतों में धान के पौधे लगाए। अजीत जोगी की बीमारी के बाद से उनके बेटे अमित जोगी ने पूरी पार्टी की कमान संभाल ली है। अमित जोगी की पत्नी ऋचा जोगी भी राजनीति में सक्रिय हो गई हैं। अजीत जोगी ने उन्हें राजनांदगांव सीट के लिए अपना प्रतिनिधि मनोनीत किया है। इस सीट से अजीत जोगी ने रमन सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान किया है।

छत्तीसगढ़ में चुनाव को अब केवल दो-ढाई महीने बचे हैं। यहां फिलहाल कोई बड़ा चुनावी मुद्दा दिखाई नहीं पड़ रहा है और न ही किसी लहर का आभास हो रहा है। हर पार्टी रणनीति और समीकरण बनाने में लगी है। चाहे भाजपा हो या फिर कांग्रेस और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस। यहां पर बसपा का कुछ प्रभाव होने के बाद भी मुकाबला भाजपा, कांग्रेस और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस में त्रिकोणीय होगा। माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस भले सत्ता के करीब न पहुंच सके, लेकिन सत्ता की कुंजी उसी के पास होगी।

“अब कांग्रेस में वापसी नहीं”

करीब दो महीने की बीमारी के बाद स्वस्थ होकर लौटे छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की राजनीति में सक्रियता बढ़ गई है। छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के सुप्रीमो अजीत जोगी का साफ कहना है कि वे राज्य में अकेले चुनाव लड़ेंगे और कांग्रेस में वापसी का कोई विकल्प नहीं है और न ही चुनावी समझौता करेंगे। अजीत जोगी से बातचीत के मुख्य अंशः

आपकी पार्टी को हल चलाता किसान चुनाव चिह्न मिला है, इसका फायदा अगले चुनाव में आपकी पार्टी को कितना मिलेगा?

यहां की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है और किसान धान पर निर्भर हैं।  यह चुनाव चिह्न यहां के लोगों के दिल के करीब है। 

आपके चुनावी वादे क्या हैं?

किसानों को 2500 रुपये धान का समर्थन मूल्य, सरकारी संस्थानों में आउटसोर्सिंग बंद, महिला उत्थान, शराबबंदी और नक्सलवाद रोकने के लिए राजनीतिक पहल करेंगे।

आपने बसपा की प्रमुख मायावती से भेंट की थी, क्या राज्य में बसपा से तालमेल पर बात हुई?

मायावती जी से केवल सौजन्य मुलाकात हुई। हमारी पार्टी यहां की सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।

आपकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी और मुख्यमंत्री रमन सिंह की बी टीम कही जाती है?

यह केवल अफवाह है। भाजपा और मुख्यमंत्री रमन सिंह ने मेरे खिलाफ कई मुकदमे दर्ज करवा दिए हैं। जाति का प्रकरण भी चल रहा है।

आपकी पार्टी का मुकाबला भाजपा से है या कांग्रेस से ?

कांग्रेस में कोई चेहरा नहीं है। प्रदेश के नेता अप्रासंगिक हो गए हैं। कांग्रेस कोई बड़ा मुद्दा नहीं उठा सकी। कांग्रेस तो मृतप्राय-सी है। झीरम कांड के बाद और मेरे बाहर होने से कांग्रेस काफी कमजोर हो गई है। राज्य में रमन सिंह की सरकार को हटाना हमारा मिशन है। राज्य में किसान आत्महत्या कर रहे हैं। हीरे की उपलब्धता के बावजूद 15 सालों में इस पर कुछ भी काम नहीं किया गया।

आपके कांग्रेस में वापसी के कयास चलते रहते हैं? आपकी पत्नी रेणु जोगी अभी भी कांग्रेस में हैं। इस कारण कयास को बल भी मिलता है?

यह बात सही है कि मेरी पत्नी कांग्रेस पार्टी में हैं। लेकिन यह भी है कि आचार्य कृपलानी और सुचेता कृपलानी भी अलग-अलग पार्टियों में थे, लेकिन साथ रहते थे। हालांकि, मेरे कांग्रेस में जाने का अब सवाल ही नहीं है। 

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