झारखंड के जामताड़ा जिले का करमाटांड़ कुछ साल पहले तक जहरखुरानी गिरोहों के लिए कुख्यात था। आज इसकी पहचान देश के हर राज्य की पुलिस फाइल में ‘हब ऑफ साइबर फ्रॉड्स’ के तौर पर है। इस साल छह महीने में ही अलग-अलग राज्यों की पुलिस यहां से 50 से ज्यादा साइबर ठगों को गिरफ्तार कर चुकी है। जामताड़ा और झारखंड के अन्य जिलों की पुलिस के हत्थे भी करीब सौ ठग चढ़ चुके हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, अप्रैल से दिसंबर 2017 के बीच क्रेडिट कार्ड, एटीएम/डेबिट कार्ड और इंटरनेट बैंकिंग से संबंधित धोखाधड़ी के कुल 23,865 मामले देशभर में सामने आए। करीब 132.67 करोड़ रुपये का चूना जालसाजों ने लगाया। 2016 में ऐसे 13,653 मामले आए थे और ठगों ने करीब 72.6 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की थी। जानकारों के मुताबिक, इनमें से आधे से ज्यादा जालसाजी के मामले करमाटांड़ और उसके आसपास के इलाकों से अंजाम दिए गए।
करमाटांड़ में साइबर ठगी का पहला मामला 2013 में सामने आया था। आज करमाटांड थाना क्षेत्र में आने वाले 150 गांवों के अलावा देवघर और गिरिडीह जिले के ग्रामीण इलाकों में भी यह धंधा फल-फूल रहा है। यहां के अपराधियों ने देश भर में नेटवर्क खड़ा कर लिया है। इसका खुलासा बीते अगस्त में तब हुआ जब दिल्ली पुलिस ने एक हजार से ज्यादा लोगों को चूना लगाने वाले साइबर ठगों के एक गिरोह का भंडाफोड़ किया। इस गिरोह को करमाटांड़ से जगन्नाथ मंडल ऑपरेट कर रहा था और पैसे दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा में निकाले जा रहे थे।
दिल्ली पुलिस के डीसीपी (क्राइम) भीष्म सिंह ने आउटलुक को बताया, “करमाटांड़ के साइबर ठग देश भर की पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं। बैंक अधिकारी बनकर ये लोगों को फोन करते हैं। झांसा देकर उनका बैंक डिटेल लेते हैं और चंद मिनटों में ही उनके खाते से पैसा निकाल लेते हैं।” उन्होंने बताया कि करमाटांड़ से रैकेट चलाने वाले ठगों के गिरोह में शामिल दूसरे राज्य के सदस्यों का काम फर्जी दस्तावेज पर बैंक खाते खोलना और पैसे निकालना होता है।
झारखंड के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि जालसाज अमूमन फर्जी सिम पश्चिम बंगाल से लाते हैं, क्योंकि वहां आधार वेरीफिकेशन नहीं होता इसलिए वहां सिम आसानी से मिल जाता है। स्थानीय दुकानदारों की मिलीभगत से भी फर्जी सिम हासिल किए जाते हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के नाम पर गांव के अनपढ़ और गरीब लोगों का दस्तावेज और फोटो भी जालसाज ले लेते हैं। इस धंधे में सबकी हिस्सेदारी तय है। डाटा कलेक्टर्स को 30 फीसदी, कॉल करके लोगों को फंसाने वाले को 50 फीसदी और पैसा निकालने वाली टीम को 20 फीसदी कमीशन मिलता है।
इन इलाकों से साइबर ठगी के मामलों में गिरफ्तार लोगों में से करीब अस्सी फीसदी 15-35 साल की उम्र के हैं। ज्यादातर स्कूल पास भी नहीं हैं। एक हजार से अधिक युवाओं के इस धंधे से जुड़े होने का अनुमान है। आठ-दस हजार रुपये में चार दिनों के भीतर साइबर ठगी में पारंगत कर देने वाले दर्जनों गिरोह झारखंड में सक्रिय हैं। ऐसे में ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि 22 राज्यों की पुलिस यहां से साइबर जालसाजों को गिरफ्तार कर चुकी है।
जामताड़ा पुलिस का दावा है कि बीते एक साल में ऐसे मामलों में कमी आई है। जामताड़ा की एसपी जया राय ने आउटलुक को बताया कि मुखबिरों से मिली सूचना के आधार पर स्थानीय पुलिस आए दिन छापेमारी करती रहती है। इसके कारण कई गिरोह अपना बेस बदलने को मजबूर हुए हैं।
वैसे, जालसाज आए दिन काम करने का तरीका बदलते रहते हैं जिससे पुलिस की चुनौती बढ़ जाती है। आजकल जालसाज गाड़ियों में चलते हुए कॉल कर लोगों को फंसाते हैं ताकि उनका लोकेशन आसानी से ट्रैक नहीं किया जा सके। इसके अलावा पीड़ित के खाते से अलग-अलग ई-वॉलेट में पैसा ट्रांसफर कर चूना लगाने का ट्रेंड भी बढ़ गया है।