नेशनल पेमेंट सिस्टम का विकास और कार्यान्वयन गरीबी कम करने और खुशहाली बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है। यह सिस्टम कम लागत वाला, ग्राहकों के लिए नहीं के बराबर जोखिम और आसान लेन-देन वाला होना बेहद जरूरी है। साथ ही मौजूदा खामियों को दूर कर डिजिटल तरीके से बढ़ावा देने वाला होना चाहिए।
इन अनूठी जरूरतों को पूरा करने और छोटे कारोबारियों तथा कम आय वाले परिवारों के लिए व्यापक वित्तीय सेवाएं सुझाने को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने 2013 में नचिकेत मोर की अध्यक्षता में एक समिति बनाई। इस समिति ने एक नए मॉडल यानी ‘पेमेंट बैंक’ की अवधारणा पेश की। ऐसे बैंक सीमित राशि जमा कर सकते हैं जो फिलहाल चालू और बचत दोनों खातों के लिए अधिकतम एक लाख रुपये है। ये बैंक एटीएम कार्ड, डेबिट कार्ड, नेट बैंकिंग और मोबाइल बैंकिंग जैसी सेवाएं प्रदान कर सकते हैं। हालांकि, कर्ज और क्रेडिट कार्ड की सुविधा नहीं दे सकते हैं।
19 अगस्त 2015 को आरबीआइ ने 11 इकाइयों को “सैद्धांतिक” तौर पर पेमेंट बैंक शुरू करने के लिए 18 महीने का लाइसेंस दिया। इसके बाद शर्तें पूरी करने पर आरबीआइ ने पूर्ण लाइसेंस देने का प्रस्ताव दिया था। पेमेंट बैंकों को शुरुआत से ही उन इलाकों में नेटवर्क का प्रसार करना था जहां बैंक नहीं थे और 25 फीसदी शाखाएं ग्रामीण इलाकों में खोलनी थी। शुरुआत में पेटीएम, फिनो, आइडिया और एयरटेल आगे आए और कामकाज शुरू किया। इंडिया पोस्ट ने भी इसकी शुरुआत कर दी है। इसी साल अप्रैल में रिलायंस जियो ने भी अपने कर्मचारियों के लिए इस सेवा की शुरुआत की है।
लेकिन बैंकिंग के इस नए मॉडल के सामने इस छोटी अवधि में ही कई गंभीर समस्याएं पैदा हो गई हैं। ग्राहकों की सहमति के बगैर खाता खोलने की बात सामने आने के बाद बीते साल एयरटेल पेमेंट बैंक पर कुछ महीनों के लिए नए ग्राहकों को जोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। हाल में, पेटीएम और फिनो पेमेंट बैंक को भी इसी तरह की चीजों का सामना करना पड़ा है। केवाइसी की नई प्रक्रिया, जो पहले की तुलना में सख्त है, ने ग्राहकों की ऑन-बोर्डिंग ऑपरेशनल कॉस्ट को बढ़ा दिया है। इसके अलावा, इन बैंकों में से कुछ में अन्य अनियमितताओं के साथ प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए), केवाइसी प्रक्रिया या मिनिमम बैलेंस का उल्लंघन पाया गया। इसके कारण सेवाओं के अस्थायी निलंबन सहित आरबीआइ की अन्य कार्रवाइयों का उन्हें सामना करना पड़ा। जाहिर है, ई-केवाइसी की प्रक्रिया मजबूत नहीं होने से अधिकांश पेमेंट बैंक परेशानी में फंसे।
बैंकिंग ढांचे में सभी भारतीयों को शामिल करने के मकसद से 2014 में प्रधानमंत्री जन-धन योजना की शुरुआत की गई। इसके तहत 32.2 करोड़ से ज्यादा खाते खोले गए हैं, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा ऐसे लोगों का है जो अब तक बैंकिंग के दायरे से बाहर थे। इससे भी पेमेंट बैंकों के लिए विस्तार का दायरा कम हो गया है। डिजिटल पेमेंट सिस्टम पर जोर देने से भी इनका कामकाज प्रभावित हुआ है। पहले डिजिटल तरीके से लेन-देन और कर्ज तथा निवेश की जटिल बैंकिंग प्रक्रिया से छुटकारा पाने के लिए ग्राहकों के पेमेंट बैंक की तरफ आकर्षित होने की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआइ) के बढ़ते प्रभाव और कई अन्य पेमेंट फर्म की दस्तक ने इस डिजिटल बढ़त को पाट दिया है। यहां तक कि मुख्यधारा के बैंक भी अब पहले से ज्यादा ऑनलाइन बिजनेस पर जोर दे रहे हैं और एक ही तरह से सभी ग्राहकों को लुभाने के लिए होड़ कर रहे हैं।
इससे अलग तरह की बैंकिंग की अवधारणा को चुनौती मिल रही है। कारोबार के आकलन और बाजार में उतरने के लिए बनाई गई योजनाओं पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत आन पड़ी है। इन बैंकों की सबसे महत्वपूर्ण चिंताओं में से एक, कर्ज बांटने की अनुमति नहीं होने के कारण कमाई का सीमित जरिया होना भी है। इससे मॉडल की व्यावहारिकता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। पेमेंट बैंकों को केवल सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करने की अनुमति है, जो म्यूचुअल फंड जैसे अन्य निवेशों की तुलना में कम रिटर्न देते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अब कारोबारियों को जोड़कर ही पेमेंट बैंक आगे बढ़ सकते हैं। हालांकि, इसके लिए ज्यादा निवेश की जरूरत होगी। इससे होने वाले फायदे अब भी छिपे हैं, इसलिए निवेश को लेकर ज्यादा उत्साह नहीं दिखना लाजिमी है।
भुगतान प्रणाली या यूं कहें कि पेमेंट बैंक का भारत में भविष्य नहीं है तो यह एक दिलचस्प दिशा में बढ़ता दिख रहा है। यूपीआइ और एनपीसीआइ (नेशनल पेमेंट काउंसिल ऑफ इंडिया) ने इलेक्ट्रॉनिक भुगतानों के इस्तेमाल को लोकप्रिय बनाने और “लेस-कैश” सोसायटी की दिशा में बड़े कदम उठाए हैं। बीते तीन-चार साल में जब से बैंक-फिनटेक सेक्टर का आपस में सहयोग बढ़ा है, ओपन बैंकिंग का एक नया आयाम खुल गया है। इसमें ज्यादातर तीसरे पक्ष की सेवाओं पर जोर होता है। ग्राहकों के लिए विकल्प बढ़ाने के मकसद से बैंकिंग के क्षेत्र में इन-हाउस और थर्ड-पार्टी उत्पाद और सेवाएं मुहैया कराना आम है। यकीनन, ओपन बैंकिंग की सफलता के लिए ग्राहकों की रजामंदी और सुरक्षित तरीके डाटा तक सहज पहुंच और बैंकिंग क्षमताओं को कमोडिटाइज करना महत्वपूर्ण है।
कई मायनों में डिजिटल बैंकिंग और फिनटेक के विकास और परिपक्वता के लिहाज से भारत आज जहां है वहां यूरोपीय संघ आठ साल पहले था। इसको आगे बढ़ाने का एक तरीका फिनटेक स्टार्टअप को फलने-फूलने के लिए अनुकूल माहौल देना है। केंद्र सरकार और नैस्कॉम की संयुक्त पहल से इसकी शुरुआत हो चुकी है। आखिरकार, ऐसा लगता है कि एक विशिष्ट वित्तीय सेवा प्रदाता के तौर पर पेमेंट बैंकों को बढ़ाने की गुंजाइश सीमित है। हालांकि, डिजिटल बैंकिंग क्रांति के अगुआ के तौर पर “फिनटेक” और “ओपन बैंकिंग” को मुख्यधारा में लाने का यह कारगर जरिया बन सकता है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के पूर्व चीफ जनरल मैनेजर हैं)