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शहाबुद्दीन की रिहाई से चढ़ा सियासी पारा

विपक्ष के तेवर देख, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी
बाहुबली और हत्या का दोषी शहाबुद्दीन

बिहार में शहाबुद्दीन की रिहाई का मामला अब पूरे सियासी रंग में है। मामले को लेकर विपक्ष मुखर है तो राज्य सरकार ने भी नीतिगत फैसला लेते हुए शहाबुद्दीन की रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी है। शहाबुद्दीन को लेकर महागठबंधन में चल रही खींचतान और भागलपुर जेल से रिहाई के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ उनकी तीखी टिप्पणी के मद्देनजर इस ताजा तैयारी के गंभीर मायने हैं। हालांकि महागठबंधन के सबसे मजबूत नेता राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद नहीं चाहते थे कि सरकार इस मसले में सर्वोच्च न्यायालय जाए। इस बाबत महागठबंधन के घटक दलों में मचे घमासान के बीच लालू ने नेताओं को संयम बरतने की नसीहत देकर बयानबाजी पर विराम लगाने की कोशिश की है लेकिन शहाबुद्दीन की जमानत के बाद बिहार का राजनीतिक पारा चरम पर है।

विपक्ष लगातार सरकार पर आरोप लगा रहा है कि राज्य सरकार ने पूरी योजना के बाद शहाबुद्दीन को बाहर निकाला है। विपक्ष पूरे सूबे में धरना-प्रदर्शन में लगा है। इतना ही नहीं, सीवान जिला प्रशासन ने भी जिले की कानून व्यवस्था व अमन चैन के लिए खतरा बताते हुए शहाबुद्दीन की जमानत रद्द करने की अनुशंसा कर दी है। साथ ही, दिवंगत पत्रकार राजदेव की पत्नी ने भी शहाबुद्दीन के खिलाफ सीवान से लेकर दिल्ली तक मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस मामले का ट्रायल दिल्ली स्थानांतरित करने के साथ ही शहाबुद्दीन से अपने जान माल के खतरे की भी आशंका जताई है। राज्य सरकार ने भी इस मामले को अब सीबीआई के हवाले कर दिया है।

गौरतलब है कि जेल से निकलते ही शहाबुद्दीन ने नीतीश पर बयान देकर सियासी घमासान तो मचाया, लेकिन उनके काफिले में राजदेव हत्याकांड के आरोपित मो. कैफ का दिखना शहाबुद्दीन के गले की हड्डी बन गई। यहीं से बिहार का सियासी पारा चढ़ने लगा फिर तो ‘फोटो फाइट’ का सिलसिला जारी हो गया। पत्रकार हत्याकांड के दो आरोपी मो. कैफ एवं मो. जावेद की तस्वीर सत्तारूढ़ दल के स्वास्थ्य मंत्री व लालू प्रसाद के बेटे तेजप्रताप के साथ वायरल हुई जिसने इस सियासी घमासान में आग में घी का काम किया। साथ ही, जिस तेजाब कांड के मुकदमे में शहाबुद्दीन को जेल से जमानत मिली थी उसी जमानत को लेकर पीड़ित चंद्रकेश्वर बाबू ने सर्वोच्च न्यायालय में जमानत के खिलाफ याचिका दायर कर दी है। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण इसे देख रहे हैं।

वैसे इस सियासी भूचाल को हवा खुद मो. शहाबुद्दीन ने दी है। 11 साल बाद जेल से निकलते ही उन्होंने महागठबंधन की राजनीति को रास न आने वाला बयान दे दिया। उन्होंने कहा कि उनके नेता सिर्फ और सिर्फ लालू यादव हैं। नीतीश कुमार परिस्थितिवश मुख्यमंत्री बन गए। इसी बोल ने सियासी बवाल की लाइन पकड़ ली। नेताओं के बीच बयानबाजी शुरू हो गई। राजद के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह से लेकर जदयू नेता श्याम रजक व प्रवक्ता नीरज कुमार तक आरोप-प्रत्यारोप के समर में कूद पड़े हैं। सूबे के ताजा सियासी माहौल को भाजपा अपने पक्ष में भूनाने की कोशिश कर रही है। उसे दो स्तर पर फायदा नजर आ रहा है। पहला आपसी तकरार से महागठबंधन की ताकत कमजोर हो सकती है। दूसरा शहाबुद्दीन के बहाने सूबे के जनमानस के नई गोलबंदी की राह पर बढ़ने के आसार हो सकते हैं।

करीब दस महीने पहले सूबे में हुए विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन को दो-तिहाई बहुमत मिलने पर उम्मीद जगी थी कि अब बिहार राजनीतिक उठापटक एवं अस्थिरता से बाहर निकलकर तेजी के साथ विकास के पथ पर आगे बढ़ेगा, लेकिन सरकार गठन के साथ ही नियमित अंतराल पर हो रही विचित्र घटनाएं राज्य के आम-ओ-खास लोगों को निराश करने लगी है। भागलपुर सेंट्रल जेल के गेट से लेकर सीवान जिले के प्रतापपुर गांव तक जो कुछ हुआ, उसे बिहार सहित पूरे देश के लोगों ने देखा।

संयोग है कि राज्य के राजमार्ग पर शक्ति प्रदर्शन की इस ड्रामेबाजी से सिर्फ एक दिन पहले उपराष्ट्रपति, राज्यपाल तथा तमाम बड़े उद्योगपति की मौजूदगी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दावा कर रहे थे कि बिहार का माहौल अच्छा है, लिहाजा बिहार मूल के उद्योगपति अपने गृहराज्य में निवेश करने के लिए मुट्ठी खोलें। संभव है, राज्य के माहौल के बारे में मुख्यमंत्री या तमाम अन्य लोगों की अब भी यही धारणा हो लेकिन जो उद्योगपति बिहार में निवेश करने की बात सोचेगा, उसके लिए ऐसे घटनाक्रम बहुत मायने रखते हैं। इससे बिहार का नुकसान हुआ है। अब शासन को देखना होगा कि इस प्रवृत्ति को बढ़ावा न मिले। दबंगों और अपराधियों के मन में सरकार के इकबाल का भय रहे ताकि वे किसी भी सूरत में सूबे का माहौल खराब करने की जुर्रत न कर सकें।

 

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