उत्तराखंड में 15 जून से अब तक की बारिश और भू-स्खलन से 51 लोगों की मौत हो चुकी है। तीन सितंबर को ही उत्तरकाशी जिले के गंगोत्री हाइवे पर भूस्खलन की वजह से एक टैम्पो ट्रैवलर 50 फुट गहरी खाई में जा गिरा, जिसमें 14 लोगों की जान चली गई। हालांकि, बारिश और भू-स्खलन से सबसे ज्यादा नुकसान गढ़वाल क्षेत्र के टिहरी जिले में हुआ। राज्य में आपदा प्रबंधन विभाग भी है और राज्य स्तरीय प्राधिकरण भी। लेकिन यह महकमा केवल नियंत्रण कक्ष संचालित कर सूचनाओं के आदान-प्रदान और पीड़ितों को मुआवजा बांटने का काम करता है। सरकार के पास लोगों को जागरूक करने के लिए केवल मौसम विभाग से मिलने वाली सूचनाओं का ही सहारा है।
राज्य आपदा परिचालन केंद्र के प्रभारी मेजर राहुल जुगरान का कहना है कि हम मीडिया, एसएमएस, रेडियो जैसे माध्यमों से पूर्वानुमान की जानकारी लोगों तक पहुंचाते हैं। लगातार एडवाइजरी जारी करते हैं, लेकिन इसके लिए पूरी निर्भरता विभाग पर ही रहती है। इस बार सबसे ज्यादा टिहरी जिला प्रभावित रहा। 28 अगस्त की रात टिहरी जिले में हुई मूसलाधार बारिश ने आठ लोगों की जान ले ली और दर्जनों परिवारों को बेघर कर दिया। अगस्त 2002 में भी इसी क्षेत्र में आपदा के चलते 28 लोगों की जान गई थी। जानकारों का कहना है कि टिहरी के इस हिस्से में दूसरे क्षेत्रों के बजाय ज्यादा बारिश होती है। वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के पूर्व निदेशक अनिल कुमार गुप्ता का कहना है कि पहाड़ी क्षेत्रों में घाटियों की संख्या बहुत है और हर घाटी का अपना रेनिंग सिस्टम होता है। इसलिए मॉनसून में सबसे ज्यादा कठिनाई होती है और बचाव संसाधन सीमित होते हैं। पिछले कई साल से रेन बेल्ट चेंज होने का क्रम भी जारी है।
28 अगस्त को ही चमोली जिले के घाट ब्लॉक के गांव फरखेत और बुरलीधर तोक में बारिश और भू-स्खलन की चपेट में आने से दो लोगों की मौत हो गई। पिछले 30 साल से उत्तरकाशी में वरुणावत पर्वत का ट्रीटमेंट चल रहा है। बड़े पत्थर नीचे बस्तियों पर न गिरें और भूस्खलन न हो, इसका ट्रीटमेंट तो नहीं हो सका। इसके उलट ट्रीटमेंट के पैसे में धांधली की जांचें होती रहीं। नतीजतन, 27 अगस्त को वरुणावत पर्वत से एक बड़ा बोल्डर नीचे की तरफ गिरकर राजमार्ग तक आ गया, जिससे आसपास की बस्तियों से दर्जनों घर खाली करा लिए गए।
राजधानी देहरादून में किनारों पर कब्जे और अतिक्रमण से शहर के बीच से गुजरने वाली बिंदाल नदी ने विकराल रूप धारण कर लिया। दो महीने पहले नैनीताल हाइकोर्ट ने देहरादून को अतिक्रमण से मुक्त करने का आदेश दिया था, लेकिन अभियान अभी चल ही रहा है।
भारी बारिश या तूफान की जानकारी समय रहते लोगों तक पहुंचाने के लिए राज्य को केवल मौसम विभाग का ही आसरा है। लेकिन इसकी प्रामाणिकता उतनी मुकम्मल नहीं है। मसलन, मौसम विभाग अलर्ट करता है कि गढ़वाल के पौड़ी और टिहरी जिलों में बारिश होगी। लेकिन बारिश किस क्षेत्र विशेष में होगी, यह स्पष्ट नहीं होता है। इसीलिए 10 साल पहले राज्य में मसूरी और नैनीताल में एक-एक डॉप्लर राडार लगाने की मंजूरी केंद्र सरकार ने दी थी। लेकिन जमीन नहीं मिलने से यह काम नहीं हो सका। अब राज्य सरकार ने भूमि दी है और एक राडार पिथौरागढ़ में भी लगाने की मांग केंद्र से की है। आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव अमित सिंह नेगी का कहना है कि डॉप्लर राडार के लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय से लगातार बात की जा रही है। कुमाऊं में एक डॉप्लर राडार का तकनीकी मूल्यांकन भी हो चुका है। इससे अर्ली वार्निंग सिस्टम लागू हो जाएगा। इससे कब और कहां कितना खतरा होगा और इसका समय रहते पता चलेगा।