राजस्थान में कांग्रेस विपक्ष में है, लेकिन हालिया उपचुनाव में उसके वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई है। इससे पार्टी को लगने लगा है कि सत्ता में उसकी वापसी तय है। हालांकि, कुछ राजनीतिक जानकार कहते हैं कि कांग्रेस ने प्रदेश में विपक्ष के रूप में महज रस्म अदायगी की है जबकि नागरिक अधिकार संगठनों ने एक कारगर प्रतिपक्ष के रूप में काम किया है। कांग्रेस अब भी ‘कौन बनेगा मुख्यमंत्री’ को लेकर एक आंतरिक शक्ति परीक्षण के दौर से गुजर रही है। विश्लेषक कहते हैं कि उत्तर भारत के कई राज्यों में राजस्थान ही ऐसा राज्य है, जहां कांग्रेस ने अपना पारंपरिक आधार सहेज कर रखा है।
राज्य में सतारूढ़ भाजपा रथ पर सवार होकर गौरव यात्रा निकाल रही है। कांग्रेस के नेता संकल्प यात्रा के जरिए भाजपा सरकार पर निशाना साध रहे हैं और लोगों से समर्थन मांग रहे हैं। राजस्थान में दो ध्रुवीय राजनीति में ‘एक बार वो और एक बार ये’ का चलन है। इस नाते प्रेक्षक कांग्रेस के सत्ता में लौटने की मुनादी कर रहे हैं। कांग्रेस का दावा है कि उसने साढ़े चार वर्षों में कदम-कदम पर भाजपा सरकार का विरोध किया है और उसकी विफलताओं को उजागर किया है। कांग्रेस प्रवक्ता अर्चना शर्मा कहती हैं, “इन साढ़े चार साल में कुछ उपचुनाव हुए और कुछ स्थानीय निकाय और पंचायतों के लिए भी वोट डाले गए। कांग्रेस ने न केवल अपना खोया हुआ समर्थन फिर से हासिल किया है, बल्कि उसके वोट प्रतिशत में 16 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई है।”
सत्ता में अपनी वापसी को पुख्ता मान रही कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के समर्थक अपने नेता को मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं। इसके उलट पार्टी का एक बड़ा वर्ग पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इस ऊंचे पद के लिए स्वाभाविक हकदार मान रहा है। इसी बीच पूर्व केंद्रीय मंत्री सी.पी. जोशी के हिमायती भी सक्रिय हो गए हैं, क्योंकि जोशी अब पूर्वोत्तर के राज्यों की जिम्मेदारी से मुक्त हो गए हैं और राज्य की सियासत में फिर से अपनी सक्रियता का एहसास करवा रहे हैं। पार्टी आलाकमान को भी राज्य इकाई में चल रहे इस द्वंद्व की चिंता जरूर होगी। तभी पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी जब अपनी जयपुर यात्रा में भीड़ से मुखातिब हुए, तो इन नेताओं के बीच गले मिलने की तस्वीर पेश की गई। पार्टी आलाकमान यह संदेश देना चाहता था कि राजस्थान में कांग्रेस सामूहिक नेतृत्व की नीति लेकर चलेगी। समझा जाता है कि पार्टी सी.पी. जोशी को भी चुनाव अभियान में कोई अहम जिम्मेदारी सौंपेगी।
राजस्थान में 17 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 12 प्रतिशत जनजाति और अल्पसंख्यक समुदाय कांग्रेस का पारंपरिक समर्थक वर्ग माना जाता है। इसके अलावा अन्य वर्गों में भी कांग्रेस अपना आधार देखती है। राजस्थान के पड़ोस में गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस लंबे समय से सत्ता से बाहर है। लेकिन राजस्थान में ऐसा क्या है कि उसने अपनी जमीन बरकरार रखी है? राजनैतिक विश्लेषक प्रोफेसर राजीव गुप्ता कहते हैं, “राजस्थान में अब भी सामंती मूल्य अपनी जगह बनाए हुए है। ऐसे में व्यक्तिपरक राजनीति के लिए स्थान बन जाता है। दोनों मुख्य दल भाजपा और कांग्रेस व्यक्ति आधारित राजनीति करते रहे हैं। इसीलिए तीसरे विकल्प के लिए जमीन तैयार नहीं हो पाती। इन दोनों दलों को किसी मजबूत तीसरे पक्ष की अनुपस्थिति का लाभ मिल जाता है।”
प्रदेश कांग्रेस महासचिव पंकज मेहता कहते हैं कि दरअसल, राजस्थान में कांग्रेस के पास हमेशा ‘विश्वसनीय और जनप्रिय’ नेता रहे हैं। आज भी लोग पिछली गहलोत सरकार की योजनाओं और काम की मिसाल देते हैं। नेतृत्व और कार्यकर्ताओं में संवाद, समन्वय और रिश्ता रहा है। इसीलिए राजस्थान में कांग्रेस ने अपना धरातल मजबूत रखा है। झालावाड़ में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रघुराज सिंह हाडा कहते हैं, “राज्य में कांग्रेस नेतृत्व ने किसान और मजदूर वर्ग से हमेशा खुद को जोड़े रखा है। सत्तारूढ़ भाजपा ने किसानों का जमकर शोषण किया है और पिछले साढ़े चार साल में उनके साथ जितनी नाइंसाफी हुई है, पहले कभी नहीं हुई। जाहिर है, कांग्रेस को इसका लाभ मिलेगा।”
इस तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि पार्टी इन साढ़े चार वर्षों में बयान ही जारी करती रही। मगर बड़े-बड़े मुद्दों पर हम भाजपा सरकार को घेर नहीं पाए। सीपीएम जैसी पार्टी जिसका एक भी विधायक नहीं जीता, उसने 11 दिन तक शेखावटी में सड़कें जाम कर दीं और किसानों की कर्जमाफी के लिए सरकार को मजबूर कर दिया। लेकिन हम इतना बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर पाए। हाड़ोती में एक कांग्रेस नेता कहते हैं कि पानी की दरों में बढ़ोतरी हो गई। लेकिन कांग्रेस बयान जारी करने तक सीमित रही। जबकि कांग्रेस राज में दस पैसे की बढ़ोतरी पर भाजपा ने सरकार को नाकों चने चबवा दिए थे।
दलित अधिकार कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी कहते हैं कि एक मजबूत विपक्ष के रूप में कांग्रेस ने बहुत निराश किया है। नागौर के डांगावास में 2015 में छह दलितों को बहुत बेदर्दी से कत्ल कर दिया गया। लेकिन राज्य कांग्रेस से कोई आंसू पोछने नहीं आया। यह अलग बात है कि केंद्रीय नेतृत्व ने जरूर अपनी टीम भेजी। घटना के तीन साल बाद भी कोई डांगावास के पीड़ितों से नहीं मिला। अल्पसंख्यक समुदाय भी ऐसी शिकायतें करता मिलता है। जयपुर में नईम रब्बानी आवासीय होटल चलाते हैं। पिछले साल सहसा होटल में गोमांस बेचने का आरोप लगा कर होटल बंद करा दिया गया। पुलिस ने तुरंत इस आरोप को बेबुनियाद बताया। मगर इससे रब्बानी को कोई राहत नहीं मिली। जब इस घटना के विरोध में प्रदर्शन का ऐलान किया गया तो कांग्रेस का कोई नेता नहीं पहुंचा। जबकि प्रदेश कांग्रेस दफ्तर उस होटल से ज्यादा दूर भी नहीं है। लेकिन उस वक्त कविता श्रीवास्तव जैसी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और गांधीवादी संगठन मदद को आगे आए।
कांग्रेस प्रवक्ता अर्चना शर्मा कहती हैं कि कांग्रेस ने बीते चार साल में मजबूती से भाजपा सरकार की विफलताओं और कारगुजारियों का जम कर विरोध किया है। वे कहती हैं, “पार्टी का आधार बढ़ा है। कांग्रेस ने उपचुनावों में भाजपा को शिकस्त दी है। ‘मेरा बूथ, मेरा गौरव’ के जरिए सात लाख लोगों को जोड़ा गया है। इसके बरक्स सामाजिक कार्यकर्ता हेमेंद्र गर्ग कहते हैं, “कांग्रेस इस खुशफहमी में है कि लोग भाजपा सरकार से बहुत खफा हैं और लोगों के पास उन्हें चुनने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। कांग्रेस ने अगर अपने जमीन से जुड़े क्षेत्रीय नेताओं को अनदेखा किया तो पार्टी को नुकसान हो सकता है।” राज्य में भाजपा सरकार ने श्रम कानून को बदल दिया। शिक्षा में निजीकरण को बढ़ावा दिया। मुफ्त दवा योजना को मार दिया। सरकारी रोडवेज को धीमी मौत मारा जा रहा है। पर इन मुद्दों पर कांग्रेस कहां थी। गर्ग कहते हैं कि विपक्ष का काम तो नागरिक संगठनों ने ही किया है। बेशक कांग्रेस को इसका लाभ मिल सकता है। मगर यह स्थिति ठीक नहीं है।