समकालीन हिंदी कविता में रघुवीर सहाय केदारनाथ सिंह और विष्णु खरे के बाद जिन कवियों ने अपना खास मुकाम हासिल किया, उनमें एक प्रमुख कवि वीरेन डंगवाल थे। वह अपनी पीढ़ी के सर्वाधिक संवेदनशील और ईमानदार कवि थे, जिनके लिए कविता लिखना साहित्य के सत्ता विमर्श में शामिल होना नहीं था, बल्कि एक ऐसी मानवीय प्रतिबद्धता का जीवन भर पैरोकार होना उनका लक्ष्य था, जिसमें किसी तरह की आत्ममुग्धता या प्रदर्शन नहीं था। उनके काव्य में ही नहीं बल्कि उनके व्यक्तित्व में भी यह खूबी थी। शायद यह भी कारण रहा कि वीरेन अपने बाद की पीढ़ी में सबसे अधिक स्वीकार्य कवि हुए।
वीरेन डंगवाल की कविता और जीवन में अंतर्विरोध कम थे, जबकि उनके अन्य कई समकालीन कवि अत्यंत महत्वाकांक्षी कविता लिखने में मशगूल रहे। यह दुखद है कि इस बेहद विनम्र कवि को कैंसर ने लील लिया और वह कम आयु में हमें छोड़कर चले गए। चालीस साल के लेखन काल में वह मात्र तीन संग्रह हिंदी कविता को दे सके। उनका पहला संग्रह इसी दुनिया में अपने समकालीनों की तुलना में बहुत देर से यानी करीब दस साल बाद आया। इसी से उनकी अपनी रचना के प्रति उदासीनता का अंदाज लगाया जा सकता है, क्योंकि 1991 में जब उनका संग्रह आया तो उनके बाद की पीढ़ी के कवियों के प्रथम संग्रह आने लगे थे।
दरअसल, वीरेन डंगवाल फकीराना अंदाज के कवि थे, उनका यह मिजाज इब्बार रब्बी से मिलता था। शायद यह भी कारण रहा हो कि वे साहित्य की धमाचौकड़ी से दूर रहे पर बहुत सूक्ष्म ढंग से जीवन, समाज और राजनीति पर नजर रखे रहे। उनके निधन के बाद उनकी कविताओं का समग्र कविता वीरेन हाल ही में आया है। पाठक उनकी सारी कविताओं को एक साथ पढ़ सकेंगे क्योंकि कई नए काव्यप्रेमी उनके सभी संग्रहों से बाखबर नहीं हैं।
किसी कवि के समस्त संग्रहों को एक साथ पढ़ने से ही उसके संपूर्ण काव्य व्यक्तित्व का पता चलता है।
यद्यपि वीरेन की कविता अस्सी के दशक में अपनी विशिष्ट छाप छोड़ चुकी थी और धीरे-धीरे लोग उनकी कविताओं के मुरीद बनते जा रहे थे। हिंदी कविता में रघुवीर सहाय और केदार नाथ सिंह का मॉडल स्वीकृत हो गया था। उसके बाद विष्णु खरे की कविता ने अपना एक नया काव्य मॉडल पेश किया। खरे की गद्यात्मक कविता के बरक्स वीरेन की कविता ने काव्य-लय को पकड़ा और निराला की क्लासिक कविताओं की परंपरा से भी खुद को जोड़ा। समकालीन कविता में वीरेन ने एक नया राग पैदा किया जो अधिक विश्वसनीय था।
समकालीन हिंदी कविता जब अपनी रूढ़ियों में फंसती नजर आने लगी तब वीरेन ने उसे उन रूढ़ियों से निकालकर एक नया मुक्त आकाश देने की कोशिश की। वे ‘राम सिंह’ जैसी कविता के बाद ‘पी.टी उषा’, ‘पपीता’, ‘समोसे’, ‘जिलेबी’, ‘ऊंट’, ‘मकड़ी का जाला’, ‘भाप इंजन’ पर कविताएं लिखकर हिंदी कविता को उन कोनों की तरफ ले गए जो अब तक अलक्षित प्रदेश था। इस नई काव्य-दृष्टि ने ही वीरेन को महत्वपूर्ण कवि बनाया।
प्रसिद्ध कवि मंगलेश डबराल ने इस पुस्तक की भूमिका में वीरेन की कविताओं की विशेषताओं को रेखांकित किया है और उसके महत्व को भी बताया है। लेकिन जो लोग वीरेन के काव्य व्यक्तित्व के निर्माण की कथा को नहीं जानते उस पर भी इस किताब में प्रकाश पड़ना चाहिए था, इसलिए भूमिका लेखक से यह उम्मीद की जाती है। इसी दुनिया में के बाद वीरेन का दूसरा संग्रह दुष्चक्र में स्रष्टा आया जिस पर उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला। इसके बाद उनका तीसरा संग्रह स्याही में ताल आया। इस किताब में इन तीनों संग्रहों के अलावा कुछ असंकलित और नई कविताएं भी हैं।
नाजिम हिकमत की कविताओं के अनुवाद भी इस पुस्तक में है। लेकिन, खुद वीरेन के ही अनुवाद इसमें शामिल नहीं किए गए हैं। अगर यह ‘वीरेन समग्र’ है तो इसमें उनके लेख, टिप्पणियां शामिल क्यों नहीं की गईं? पुस्तक के संपादन में इसका औचित्य भी पेश नहीं किया गया है। यद्यपि वीरेन की कविताओं के स्वभाव को समझने के लिए मंगलेश डबराल की भूमिका काफी सहायक सिद्ध होती है।
यही नहीं, इस पुस्तक में कविताओं के रचनाकाल से कवि की कविताओं के विकास को भी समझने में मदद मिलती है। लेकिन, इस पुस्तक में वीरेन का छोटा जीवनवृत्त भी होता तो काव्य प्रेमियों को उनके जीवन और कविता के तार को आपस में जोड़कर उनकी कविताओं के छिपे अर्थों को भी पकड़ने में मदद मिलती।