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क्या माल्या कभी वापस आएगा?

माल्या के लौटने की अटकलें तो हैं, लेकिन 2019 के चुनाव से पहले नहीं, खुद की शर्तों पर वापसी का ढूंढ़ रहा रास्ता
विजय माल्या

राजनीतिक हलकों में तो अमूमन यही सुनने को मिलता है कि “सवाल कभी नहीं का नहीं, बस कब का है।” सीबीआइ से पूछिए, तो वहां भी ऐसा ही कुछ सुनने को मिलता है, जैसा उसके कुछ आला अधिकारियों ने इस संवाददाता को बताया। शक्की जमात और भगोड़े बिजनेसमैन तथा पूर्व सांसद के करीबियों को उम्मीद है कि माल्या आरोपों से शायद बरी हो जाएं। इसका मतलब यह भी हो सकता है कि कुछेक नेताओं के लिए “मार्गदर्शक मंडल” में जाने की राहें जल्‍दी खुल जाएं। ब्रिटेन में माल्या के प्रत्यर्पण की सुनवाई पर नजर रखने वालों का मानना है कि 10 दिसंबर को तय फैसला भारत सरकार के पक्ष में आएगा, शायद कुछ शर्तों के साथ। हालांकि ऐसे मामलों और माल्या की सुनवाई से भी बाखबर, ब्रिटेन की कानूनी प्रक्रिया की समझ रखने वाले एक शख्स का कहना है कि अगले सितंबर से पहले तो प्रत्यर्पण की उम्मीद बेमानी है। यानी एक साल और 2019 लोकसभा चुनाव के बाद ही हो सकता है। उस शख्स का यह भी कहना है कि फैसला कैसा और कितना कड़ा आता है, उसके मद्देनजर अगर कभी नहीं से कब की बात आती है तो सरकार को किसी समझौते की पेशकश करनी पड़ सकती है। फिलहाल तो फैसले का इंतजार है।

अनुकूल अदालती फैसले से भारतीय जनता पार्टी को यह प्रचारित करने का मौका मिल जाएगा कि नरेंद्र मोदी सरकार की कोशिश सफल रही और इस तरह वह अगले वर्ष चुनाव में गर्व के साथ उतर सकेगी। विजय माल्या के एक भरोसेमंद का कहना है कि उन्हें नहीं लगता कि सरकार की दिलचस्पी कर्ज की रकम वसूलने में है, बल्कि बस माल्या के प्रत्यर्पण का राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है।

ब्रिटेन के क्राउन प्रॉसीक्यूशन सर्विस ने भारत सरकार की तरफ से माल्या के प्रत्यर्पण पर साल भर पहले बहस करना शुरू किया था। भारतीय एजेंसियों को विभिन्न अदालतों में लंबित मनी लॉन्ड्रिंग, बैंक धोखाधड़ी और गबन समेत कुल 27 मामलों में पूछताछ के लिए माल्या की तलाश है। टीवी चैनलों और आम धारणा तो यह फैसला सुना चुकी है कि माल्या का सबसे बड़ा पाप ब्रिटेन भागना था, जहां से उसने राज्यसभा की सदस्यता का इस्तीफा भेजा।

माल्या की किंगफिशर एयरलाइंस ने भारतीय स्टेट बैंक की अगुआई में कई बैंकों के कंसोर्टियम से 6,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज लेकर नहीं चुकाया। 2009-10 में कर्ज अदा करने में दिक्कतों और दूसरे ऑपरेशनल कर्ज की वजह से कंसोर्टियम को कठोर शर्तों के साथ कर्ज का पुनर्संयोजन करना पड़ा। आउटलुक को पता चला है कि अब बंद हो चुकी किंगफिशर एयरलाइंस ने कथित रूप से कमाई से मिली रकम दूसरे मदों में लगाई या जमाखोरी की (जिसका कुछ हिस्सा बाद में जब्त किया गया), जबकि बकाया कर्ज और कर्मचारियों के वेतन का भुगतान भी नहीं किया गया। एसबीआइ की लेखा परीक्षकों की समिति ने दिसंबर 2011 में माल्या के लोन को डूबत कर्ज (एनपीए) घोषित कर दिया तो माल्या ने कथित रूप से कंपनी खातों से नकद निकाल लिया था। किंगफिशर एयरलाइंस पर कर्मचारियों के वेतन पर टैक्स डिडक्शन और सेवा कर का भी बकाया है।

सीबीआइ ने पिछले साल आरोप-पत्र दायर किया था, जिसमें आइडीबीआइ बैंक से 900 करोड़ रुपये के लोन मामले में माल्या, किंगफिशर के ‌अधिकारियों और बैंक अधिकारियों को दोषी ठहराया गया। केंद्रीय जांच एजेंसी एक और आरोप-पत्र साल के अंत तक दाखिल कर सकती है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी लेनदेन की जांच की है और माल्या पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप मढ़ा है।

ब्रिटेन की अदालती सुनवाई सीबीआइ के लिए कठिन परीक्षा जैसी थी, जिसमें उसे यह साबित करना था कि उसके पास माल्या के भारत प्रत्यर्पण के प्रथम दृष्टया पर्याप्त सबूत हैं। माल्या के बचाव में ब्रिटेन के ऐसे मामलों के आला वकील भी कम होशियार नहीं थे। उन्होंने जोरदार दलील दी कि भारत में निष्पक्ष सुनवाई का राजनीतिक माहौल नहीं है। उन्होंने आर.के. अस्थाना की सीबीआइ में विशेष निदेशक के तौर पर नियुक्ति के विवाद का भी जिक्र किया, जबकि अस्‍थाना अदालत में दम साधे बैठे रहे। अस्थाना सभी अहम तारीखों पर अदालत में मौजूद रहे।

मीडिया में आरोपों के बाद ब्रिटिश सरकार ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की कि वह भारतीय भगोड़े के लिए पनाहगाह के तौर पर न दिखे। ब्रिटेन के सूत्रों के मुताबिक, भारत सरकार अदालती निर्णय के आधार पर विजय माल्या के सामने कोई पेशकश कर सकती है। उसके बाद, इससे पहले कि दोनों पक्ष अपील करें, सरकार के पास फैसले पर विचार करने के लिए आठ हफ्तों का समय होगा। ब्रिटिश हाइकोर्ट में कम-से-कम आठ महीने लगेंगे, लेकिन वहां मामला लंबा नहीं खिंचता है। कुछ अदालतें हर तीन महीने के बाद दो महीने की प्रशासनिक छुट्टी भी लेती हैं, ताकि वे पहले से सुनवाई हो चुकी अपीलों पर अपना फैसला लिख सकें।

अगला कदम ब्रिटिश सुप्रीम कोर्ट में अपील का है, लेकिन इसके लिए अपील की सुनवाई करने वाले हाइकोर्ट के जज की इजाजत की जरूरत होगी। इसके अलावा, जब तक कोई बड़ी त्रुटि न हो, तो हाइकोर्ट शायद ही कभी निचली अदालत के फैसले को पलटता है। इससे पहले यूरोपीय संघ की अदालत में अपील का विकल्प भी हुआ करता था, लेकिन ब्रेक्जिट के बाद से यह साफ नहीं है कि माल्या के पास वह विकल्प है या नहीं। ऐसा माना जाता है कि माल्या यह आश्वासन चाहता है कि भारत आने पर उसे अपमानित न किया जाए। सीबीआइ ने अन्य मामलों में प्रत्यर्पण कार्यवाही के दौरान लौटने पर जमानत की पेशकश की है। इस तरह के समझौते के मामले में, माल्या को सुनवाई का सामना करना पड़ता और हर सुनवाई पर उसे अदालत में व्यक्तिगत रूप से मौजूद होना पड़ता। यह कहने की जरूरत नहीं है कि उसे देश छोड़ने की इजाजत नहीं दी जाएगी। ऐसी अफवाह है कि ब्रिटेन में माल्या के नियमित अतिथि बनने वाले दिल्ली के एक लॉबीस्ट मध्यस्थता की पहल कर रहे हैं, जिनके ब्रिटेन के घर में कई भारतीय नेता मेहमाननवाजी का सुख ले चुके हैं।

माल्या के करीबी सूत्र इस बात पर एकमत हैं कि प्रत्यर्पण पर फैसला 2019 के आखिरी महीनों के पहले पूरा नहीं हो सकता है। उन्हें यह भी शक है कि माल्या को चुनाव में फायदे के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। माल्या ने अपने दोस्तों के जरिए यह स्थिति बरकरार रखी है कि वह कर्नाटक हाइकोर्ट में पहले दिए गए प्रस्ताव के तहत छह हजार करोड़ रुपये अदा करने को तैयार है। दिल्ली में माल्या के एक भरोसेमंद का कहना है, “बकौल माल्या उसकी बात को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। उसने संसद में संक्षिप्त भेंट के दौरान वित्त मंत्री को बताया भर था कि वह जिनेवा और फिर लंदन जाने वाला है। लेनदेन का जिक्र उसमें जोड़ दिया गया।” मगर नुकसान तो हो चुका है। वित्त मंत्री ने खंडन किया, लेकिन चुनावी साल में भला कौन सुनता है!

माल्या और जेटली के इस प्रकरण की मीडिया रिपोर्ट के एक दिन बाद यह खबर भी आई कि कैसे सीबीआइ के नोटिस को कमजोर किया गया था। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सीबीआइ के संयुक्त निदेशक ए.के. शर्मा पर माल्या के खिलाफ लुकआउट नोटिस कमजोर करने, मार्च 2016 में आखिरी बार देश छोड़ने से पहले कई बार आने और जाने की इजाजत देने का आरोप लगाया। सीबीआइ के सूत्र ने स्पष्ट किया कि एजेंसी के पास उस समय माल्या को गिरफ्तार करने के पर्याप्त सबूत नहीं थे, इसलिए नवंबर 2015 और मार्च 2016 के बीच एयरपोर्ट पर उसके कई बार आने-जाने के दौरान हिरासत में नहीं लेने का फैसला किया गया।

माल्या के पास भारत लौटने से डरने की तमाम वजहें हैं। अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ है, जब सुब्रत राय को गैर-कानूनी तौर पर लोगों की जमा रकम नहीं लौटाने के लिए तिहाड़ जेल में दो साल गुजारना पड़ा, हालांकि वहां वातानुकूलित सुविधाओं के मजे भी थे। इस बीच एक और भगोड़ा पश्चिम एशिया में भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच के लिए उच्च अधिकारियों की मेहमाननवाजी कर रहा है।

 माल्या मामला

- 2009-10 : बैंकों के कंसोर्टियम ने माल्या की कंपनियों को दिए गए कर्ज की समीक्षा की

- 29 जुलाई 2015 : सीबीआइ ने पहला मामला दर्ज किया

-16 अक्टूबर 2015 : माल्या को रोकने के लिए सीबीआइ का लुकआउट नोटिस

- 23 नवंबर 2015 : इमीग्रेशन विभाग ने सीबीआइ को माल्या के अगले दिन आने की सूचना दी। सीबीआइ ने अगले दिन लुकआउट नोटिस में ‘डिटेन’ की जगह सिर्फ ‘सूचित’ करने का बदलाव किया

-दिसंबर 2015 से मार्च 2016 : माल्या चार बार भारत आया

-9 से 11 दिसंबर 2015 : सीबीआइ ने माल्या पर शिकंजा कसा

- 2 मार्च 2016 : माल्या ने आखिरी बार भारत छोड़ा

-अप्रैल 2017 : भारत के आग्रह पर ब्रिटेन में माल्या गिरफ्तार

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