झारखंड में क्षेत्रीय दलों के कारण बनने-बिगड़ने वाले समीकरणों पर ही राष्ट्रीय दलों भाजपा और कांग्रेस का प्रदर्शन निर्भर करता है। 2004 में जब कांग्रेस क्षेत्रीय दलों का व्यापक गठबंधन बनाने में कामयाब रहीं थी तो राज्य की 14 लोकसभा सीटों में से केवल एक पर भाजपा को जीत मिली। लेकिन, 2009 और 2014 के आम चुनावों में विपक्ष एकजुट नहीं रहा और भाजपा क्रमशः आठ और 12 सीटों पर जीत गई।
इस बार कांग्रेस और झामुमो का मिलकर चुनाव लड़ना तय है। राजद और वाम दलों का समर्थन भी इस गठबंधन को हासिल है। लेकिन, विपक्षी एकजुटता का दारोमदार पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) और अन्य झारखंड नामधारी दलों के रुख पर टिका है।
झाविमो ने 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा था। पार्टी का खाता भी नहीं खुला। लेकिन 12.25 फीसदी वोट मिले थे। इसी तरह राज्य की भाजपा सरकार में साझीदार आजसू ने भी पिछला लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा था और 3.77 फीसदी वोट हासिल किए थे। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार ने आउटलुक को बताया, “भाजपा को हराने के लिए हम सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने में लगे हैं। झाविमो से हमारी बातचीत इस संबंध में चल रही है। जहां तक आजसू का सवाल है तो गठबंधन में शामिल होने के लिए पहल उसे ही करनी होगी, क्योंकि वह हमेशा से भाजपा के साथ रही।”
वहीं, मरांडी ने बताया, “सभी विपक्षी दलों को मिलकर चुनाव लड़ना चाहिए। मैं इसमें आजसू और अन्य छोटे दलों को भी जोड़ने के पक्ष में हूं।” हालांकि सुदेश महतो फिलहाल अपने पत्ते नहीं खोल रहे। उन्होंने आउटलुक को बताया, “आजसू अकेले चुनाव लड़ने को तैयार है। अब फैसला भाजपा को करना है कि उसे हमारा समर्थन चाहिए या नहीं।”
पूर्व सांसद सालखन मुर्मू भी शिबू सोरेन के नेतृत्व में झारखंड नामधारी दलों का गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा से राजनीति की शुरुआत करने वाले मुर्मू झारखंड दिशोम पार्टी और सेंगल अभियान चलाते हैं। उनके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की जय भारत समानता पार्टी, एनोस एक्का की झारखंड पार्टी, भानुप्रताप शाही का नौजवान संघर्ष मोर्चा जैसे दल अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में निर्णायक फैक्टर साबित हो सकते हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आम चुनावों से पहले ये दल कांग्रेस के साथ आएंगे या फिर विपक्षी वोटों में सेंधमारी कर भाजपा की राह आसान करेंगे!