मध्य प्रदेश में ऐसे दलों की कोई कमी नहीं है जो अपने सीमित दायरे के बावजूद बड़ी पार्टियों का चुनावी गणित बिगाड़ देते हैं। 2013 के विधानसभा चुनाव में छोटी पार्टियों ने करीब 5.27 फीसदी वोट हासिल किए थे। करीब दो दर्जन सीटों पर बड़े दलों के प्रत्याशियों की जीत-हार में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव और अगले साल होने वाले आम चुनावों में भी इन दलों का असर दिखने की पूरी उम्मीद है। इस बार आम आदमी पार्टी और आरक्षण के मुद्दे पर लोगों को एकजुट करती सपाक्स की राजनीतिक इच्छा भी कुलांचे भर रही है। आदिवासी अस्मिता के मुद्दे पर जयस जैसे आदिवासी संगठन भी जोर-आजमाइश में लगे हैं। हालांकि, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जैसे कुछ दलों को छोड़ दें तो अधिकांश छोटी पार्टियां चुनाव के वक्त ही सक्रिय होती हैं।
राज्य में कांग्रेस, भाजपा, बसपा, सपा और आप के अलावा 89 दल हैं। इनमें 62 छोटी पार्टियों का राज्य और 27 का राष्ट्रीय स्तर पर पंजीयन है। राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत कुछेक पार्टियों का मुख्यालय गांवों में है। भारतीय सामजिक एकता पार्टी का मुख्यालय रायसेन जिले के नंददोल गांव में है। मंडला जिले के बिजनिया गांव से भारतीय सत्य संघर्ष पार्टी चल रही है। शहडोल जिले के खमदार गांव में भारतीय शक्ति चेतना का मुख्यालय है।
जदयू से अलग होकर बने शरद यादव के लोकतांत्रिक जनता दल की प्रदेश अध्यक्ष सरोज बच्चन नायक हैं। सरोज नायक के पति और पूर्व विधायक बच्चन नायक का बालाघाट जिले में अच्छा प्रभाव रहा है। पार्टी के मीडिया इंचार्ज प्रकाश गावंडे ने बताया कि माकपा, भाकपा और अन्य छोटे दलों के साथ मिलकर वे चुनाव लड़ेंगे। इसी तरह जनता कांग्रेस पार्टी पहली बार अस्तित्व में आई है। इसके अध्यक्ष अमित वर्मा कहते हैं कि वे राज्य की 72 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी उतारेंगे। पार्टी का प्रभाव 12 जिलों में है। सवर्ण समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष अर्चना श्रीवास्तव ने बताया कि पार्टी 60-70 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। सपाक्स और अन्य समान विचारधारा वालों को समर्थन देने पर भी पार्टी विचार कर रही है।
प्रदेश में कई बार छोटे दल चुनावों में बड़ा असर दिखा चुके हैं। दो दशक पहले मुलताई किसान गोलीकांड में नायक डॉ. सुनीलम बैतूल से विधायक बन गए थे। इस बार आरक्षण का मुद्दा गरम दिख रहा है। कई छोटे दलों के लिए इससे राह खुल सकती है। इन दलों के प्रत्याशी खुद भले जीत न पाएं, लेकिन बड़े दलों का खेल जरूर बिगाड़ सकते हैं।
गणित बनाएंगे या बिगाडेंगे
छत्तीसगढ़ में इस बार पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी) ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। कभी कांग्रेस के स्टार प्रचारक रहे जोगी का असर सभी विधानसभाओं में कुछ न कुछ दिखेगा। उनके बेटे और जोगी कांग्रेस के कर्ताधर्ता अमित जोगी का कहना है कि अब जमाना क्षेत्रीय पार्टियों का है और हमारी भूमिका सरकार बनाने में निर्णायक होगी।
बसपा का असर एससी सीटों पर ज्यादा है। अभी राज्य में बसपा का एक विधायक है और उसके खाते में चार फीसदी वोट हैं। आम आदमी पार्टी का शहरी नेटवर्क मजबूत माना जा रहा है। आप के प्रदेश संयोजक संकेत ठाकुर का कहना है कि राज्य की सभी 90 सीटों पर प्रत्याशी खड़े करेंगे। छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके बस्तर में माकपा का भी प्रभाव पहले रहा है। माकपा नेता मनीष कुंजाम विधायक भी रह चुके हैं। राज्य के माइन्स वाले क्षेत्रों में सक्रिय छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष अनिल दुबे का कहना है कि उनकी पार्टी 24 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। आदिवासी इलाकों की कुछ सीटों पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी बड़ी पार्टियों के लिए खतरा बन सकती है। वैसे, छत्तीसगढ़ में करीब 36 छोटी पार्टियां हैं। राज्य बनने के बाद से कोई छोटी पार्टी भले चुनाव जीत न सकी हो, लेकिन ये बड़े दलों का गणित जरूर बिगाड़ती रही हैं। 2013 के विधानसभा चुनाव में सतनामी समाज के धर्मगुरु बालदास की पार्टी सतनाम सेना ने करीब 20-22 सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों का गणित बिगाड़ दिया था।