हरियाणा में लोकसभा और विधानसभा दोनों के चुनाव अगले साल होंगे। 10 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीदों पर पार्टी नेताओं की आपसी लड़ाई ग्रहण लगा सकती है। राज्य कांग्रेस पांच गुटों में बंटी है और हर गुट के अगुआ खुद को भावी मुख्यमंत्री मानकर अलग-अलग राग अलाप रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर, विधानसभा में कांग्रेस दल की नेता किरण चौधरी और पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई के खेमों में बंटी कांग्रेस में सिर्फ दो चेहरे ही ऐसे हैं जिनका पूरे सूबे में आधार है। एक हुड्डा और दूसरे सुरजेवाला। सुरजेवाला कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के भरोसेमंद भी हैं। मिशन-2019 के लिए गठित कोर ग्रुप कमेटी में हरियाणा से केवल सुरजेवाला को ही जगह दी गई है। हालांकि लोकसभा चुनाव के लिए बनी कांग्रेस की मेनिफेस्टो कमेटी में हुड्डा भी हैं।
प्रदेश कांग्रेस में जारी आपसी खींचतान को देखते हुए हुड्डा संगठन में तुरंत बदलाव की पैरवी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने नए अध्यक्ष का फैसला राहुल गांधी पर छोड़ा है। जाहिर है, अगला चुनाव नए अध्यक्ष की अगुआई में लड़ा जाएगा। मेनिफेस्टो कमेटी में शामिल पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा को तंवर की जगह प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा है। कानूनी शिकंजा कसने से भी हुड्डा की परेशानी बढ़ी है। उनके खिलाफ मानेसर-पंचकूला प्लॉट अलाटमेंट घोटाले में सीबीआइ जांच चल रही है और एक नई एफआइआर भी दर्ज हुई है। हुड्डा ने कार्रवाई को राजनीतिक द्वेष से प्रेरित बताया और 10 सितंबर से जनक्रांति रथयात्रा शुरू की है। वे प्रदेश के सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में जाएंगे। कांग्रेस के 15 विधायक भी उनके साथ हैं। उधर, पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और कैथल से विधायक रणदीप सुरजेवाला भी इलाकावार रैलियों के जरिए पूरे प्रदेश के कार्यकर्ताओं के बीच अपना आधार बनाने में जुटे हैं। वे पहले ही साफ कर चुके हैं कि लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। इसका संकेत है कि वे राज्य में ही सक्रिय रहेंगे। प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर भी साइकिल यात्राओं में लगे हैं। पूर्व सीएम बंसीलाल की पुत्रवधू किरण चौधरी भिवानी में जनआक्रोश रैलियां कर रही हैं।
क्षत्रपों का दौर खत्म
कभी हरियाणा कांग्रेस की राजनीति बंसीलाल और भजनलाल के इर्द-गिर्द सिमटी थी। 2004 में हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही यह दौर खत्म हो गया। नाराज भजनलाल ने 2007 में हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) बना ली। 2016 में हजकां का कांग्रेस में विलय हो गया। इसके बाद से भजनलाल के पुत्र कुलदीप बिश्नोई और पुत्रवधू रेणुका बिश्नोई की राजनीति आदमपुर और हिसार तक सिमटी हुई है। इसी तरह पूर्व सीएम बंसीलाल के निधन के बाद हरियाणा विकास पार्टी का अस्तित्व खत्म हो गया। अब उनकी पुत्रवधू किरण चौधरी कांग्रेस में हैं और उनकी पकड़ गृह जिले भिवानी-तोशाम तक ही है।
असल में, देवीलाल परिवार की इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) को छोड़कर हरियाणा में बाकी क्षेत्रीय दल जितनी तेजी से उभरे उतनी ही तेजी से गायब भी हो गए। 2013 में पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय चौटाला के जेबीटी टीचर भर्ती घोटाले में जेल जाने से सूबे की राजनीति में इनेलो भी कमजोर पड़ी है। हालांकि 2019 के चुनाव से पहले अगर चौटाला पिता-पुत्र जेल से बाहर आते हैं तो इनेलो और बसपा गठजोड़ एक विकल्प के तौर पर उभरकर सामने आ सकता है।
इसके अलावा, जाट आरक्षण के विरोध में पिछड़े वर्गों का एक बड़ा धड़ा साथ जोड़ने वाले कुरुक्षेत्र से भाजपा के बागी सांसद राजकुमार सैनी ने लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी बना ली है। उनकी बगावत से भाजपा को कितना नुकसान होगा यह तो वक्त ही बताएगा। फिलहाल, कांग्रेस के लिए असली चुनौती उस लड़ाई से पार पाना है जो प्रदेश के पार्टी नेताओं के बीच चल रही है। इस तरह अभी तो हरियाणा में सियासी धुंधलका छाया है।