डॉलर के मुकाबले रुपया रोज ही धड़ाम-धड़ाम गिरता जा रहा है और उठने का नाम ही नहीं ले रहा है। तब, जब रुपये का मूल्य गिरता था तो अब वाले बेचैन हो उठते थे कि देश की अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है। रुपये के गिरने को तब वे देश की इज्जत से जोड़ते थे कि देखो क्या इज्जत रह गई है देश की। उनके तब के वक्तव्यों से लगता था कि जैसे रुपया अपना आत्मसम्मान त्यागकर डॉलर के चरणों में जबरन पड़ा है और तब की सरकार आंखें मूंदकर बैठी है। उनकी तब की ऐसी बातों से प्रभावित होकर जनता ने सब ‘रुपया’ इन्हें सौंप दिया था कि रुपये और देश की इज्जत अब आप ही बचा लो। पर यह क्या अब भी रुपया गिर रहा है और इतना गिरा कि आजादी के बाद से आज तक के गिरने के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले।
तब की बात और थी पर अब वे रुपये के गिरने को लेकर खुद देश के निशाने पर हैं। ऐसे में रुपये की बिगड़ी सेहत पर जनता को क्या जवाब दें, इसको लेकर तब की पार्टी के अब के मुखिया ने पार्टी के जांबाज प्रवक्ताओं की आपातकालीन बैठक बुलाई है और रुपया क्यों गिर रहा है इस पर ब्रीफ किया जा रहा है। पार्टी प्रमुख बोले कि हमें हार नहीं माननी है और कहिए कि रुपये को गिराने में हमारा कोई हाथ या योगदान नहीं है। यह तो पहले से ही गिरता आ रहा है क्योंकि आजादी के समय रुपये और डॉलर बराबर हुआ करते थे। चीख-चीख कर कहो कि रुपये की ‘ये गिरावट’, ‘वो गिरावट’ नहीं है। जनता को बताओ कि रुपया इसलिए गिर रहा है कि तब की सरकार ने रुपये को इतना कमजोर कर दिया था कि रुपया खड़े होने लायक ही नहीं रहा था। इसलिए अब रुपये का अपने पांव पर खड़े रहना नामुमकिन होता जा रहा है, इसलिए रुपया रोज-रोज उठने के चक्कर में गिर रहा है। वो तो अब हम हैं इसलिए इतना गिरा अन्यथा अगर वही सत्ता में रहते तो रुपया और भी ज्यादा गिरता क्योंकि वो सब चमचावादी संस्कृति के चापलूसी पसंद लोग थे। अब हम सब ईमानदार, स्वाभिमानी हैं। इसलिए रुपया गिर तो रहा है मगर उस तेजी से नहीं। यह भी कहो कि यह डालर का षड्यंत्र है कि हमारा रुपया गिरे और इसमें तब के सब भी शामिल हैं।
पार्टी प्रमुख बोले कि कुछ भारी-भरकम शब्दों का उपयोग करो जैसे कि कहो कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में, वैश्विक या ग्लोबल मार्केट में मुद्रा की विनिमय दर ऊपर-नीचे हो रही है, इसलिए रुपया गिर रहा है। बताओ कि यह केवल हमारी समस्या नहीं बल्कि सार्वभौमिक मुद्रा गिरावट संकट है। कहो कि भारतीय रुपये की कीमत गिर नहीं रही है बल्कि रुपया तो स्थिर है असल में अमेरिकी डॉलर का मूल्य बढ़ रहा है जिसे अधिमूल्यन कहते हैं, की बात करो। जनता को अवमूल्यन-अधिमूल्यन में उलझाओ। जनता को बताओ कि विकास का असली सूचक सेंसेक्स है और हमारा सेंसेक्स तो रोज आसमान छू रहा है, मगर उस पर कोई बात नहीं करता। वो रुपये की गिरावट पर प्रश्न पूछें तो आप बढ़ती विकास दर को बीच में लाकर अपनी सरकार की उपलब्धि बताओ। और माइक पर चिल्लाओ कि देश की इज्जत रुपये के गिरने में नहीं है और देश की इज्जत की तुलना रुपये के गिरने से करने वाले भ्रष्टाचारी हैं, क्योंकि देश की इज्जत तो सीमा पर तैनात सिपाही के हाथ में है, देश के युवाओं के हाथों में है। फिर भी, हम हवन-यज्ञ करवाकर रुपये को मजबूत करेंगे।
जनता को समझाओ कि असल में सत्ता के लालची विपक्षियों की महागठबंधन की घोषणा और इन नापाक गठबंधन करने वाले दलों को हाथ मिलाने में शर्म नहीं आई। मगर, रौनकदार रुपये तक को शर्म आ गई और इसलिए शर्म से पानी-पानी होकर रुपया गिर रहा है। सारे चैनलों से उनके प्रवक्ता रुपये के गिरने पर ऐसी ही बहस कर बयान दे रहे थे और देश की जनता भी पूर्ण रूप से संतुष्ट थी कि रुपया इन्हीं सब कारणों से गिर रहा है और इसमें तब के अब वालों का कोई हाथ नहीं है। सिर्फ तथाकथित अर्थशास्त्री आत्महत्या करने की सोच रहे थे।