अप्रत्याशित चुनावी जंग के लिए तेलंगाना तैयार है। मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के संस्थापक के. चंद्रशेखर राव रैलियों में अपने धुर विरोधियों पर ताबड़तोड़ हमले कर रहे हैं। लेकिन, कैबिनेट में असहमति के बावजूद वक्त से पहले चुनाव कराने पर जोर देने वाले केसीआर के सामने कांग्रेस और उसकी प्रतिद्वंद्वी तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के गठबंधन ने मुश्किल हालात पैदा कर दिए हैं।
विपक्षी गठबंधन से 119 विधानसभा सीटों में से 100 से ज्यादा पर जीत का केसीआर का गणित गड़बड़ा गया है। विपक्षी गठबंधन में सीपीआइ और उस्मानिया यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर एम. कोदांदरम की तेलंगाना जन समिति (टीजेएस) भी शामिल है। तेलंगाना में 2014 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में टीआरएस को 34 फीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस को 25 और टीडीपी को 12 फीसदी वोट मिले थे। 63 सीटों के साथ टीआरएस बहुमत का आंकड़ा पार करने में कामयाब रही थी। टीडीपी ने पिछला चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था। उसके चार फीसदी वोट कम करने के बाद भी कांग्रेस और टीडीपी के खाते में 33 फीसदी वोट बचते हैं जो कमोबेश टीआरएस के बराबर हैं। टीजेएस और सीपीआइ कम से कम दो फीसदी वोट भी बटोरने में कामयाब रहीं तो विपक्ष टीआरएस को पीछे छोड़ देगा। ऐसे में एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर चला तो टीआरएस के लिए दांव उलटा पड़ जाएगा, खासकर उन 15 सीटों पर जहां पिछली बार उसके उम्मीदवार पांच हजार से भी कम वोटों से जीते थे।
यही कारण है कि कांग्रेस-टीडीपी गठबंधन पर खुद केसीआर और स्टार प्रचारक पुत्र पूर्व मंत्री के.टी. रामाराव, पुत्री सांसद कविता, पूर्व मंत्री टी. हरीश राव तीखे हमले कर रहे हैं। इनके निशाने पर टीडीपी प्रमुख और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू हैं। विधान परिषद चुनाव के लिए एक मनोनीत विधायक को कथित तौर पर प्रलोभन देने का उनका ऑडियो क्लिप सामने आया था। फोरेंसिक जांच में नायडू की आवाज की पुष्टि के बावजूद कई लोगों को लगा था कि वोट के बदले नोट का मामला दब जाएगा। लेकिन, टीडीपी के युवा विधायक रेवंत रेड्डी का वीडियो सामने आने से मामला गरमा गया है। इस वीडियो में रेड्डी एक विधायक को कथित तौर पर 50 लाख रुपये एडवांस देते और उन्हें यह सब नायडू की सहमति से होने का भरोसा दिलाते नजर आए थे।
दावा किया जा रहा कि ‘वोट के लिए नोट’ मामले को दोबारा खोलने के लिए टीआरएस ने भाजपा के साथ ‘डील’ की है ताकि कांग्रेस और टीडीपी दोनों को शर्मिंदा किया जा सके। हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए रेवंत रेड्डी इस मामले में जमानत पर बाहर हैं। उनका कहना है, “मैं पिछली बार के दस हजार वोटों के मुकाबले इस बार कम से कम 30,000 वोटों के अंतर से जीतूंगा।” हालांकि टीआरएस की उम्मीदें भी कायम हैं। उसे केसीआर के कल्याणकारी और विकास कार्यक्रम मसलन, आइटी कॉरिडोर में ‘स्टार्टअप फैसिलिटी’, किसानों की कर्जमाफी, कृष्णा और गोदावरी नदी की सिंचाई परियोजनाओं के पूरा होने, मौसम के कारण फसल को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए बीमा योजना ‘रायतू बंधु’ और वृद्धावस्था पेंशन जैसी योजनाओं का फायदा मिलने की उम्मीद है।
लेकिन, केसीआर के विकास के दावों को कांग्रेस नेता मजाक बता रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के. जना रेड्डी पूछते हैं, “कैसा विकास? क्या राज्य को दिवालिया करना और 1.35 लाख करोड़ रुपये का बजट घाटा उपलब्धि है? कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर उपहार बांटना और कर्ज से योजनाओं के लिए फंड जुटाने को हम ‘सुशासन’ के तौर पर नहीं देख सकते।” विधानसभा में विपक्ष के नेता रेड्डी केसीआर के परिजनों पर सिंचाई परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर गबन का आरोप भी लगा रहे हैं।
इस बीच, टीआरएस अपने प्रचार अभियान का खाका तैयार कर चुकी है। सात दिसंबर को होने वाले मतदान से पहले केसीआर रिकॉर्ड 120 रैलियों को संबोधित करेंगे। विपक्ष की तरफ से कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कुछ रैलियों को संबोधित करने की रजामंदी दी है। पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष राहुल गांधी के भी आधा दर्जन से अधिक रैलियां करने की संभावना है। वैसे, उनका ज्यादा ध्यान मध्य प्रदेश और राजस्थान पर होगा, जहां चुनावी विश्लेषक उनकी पार्टी के लिए ज्यादा बेहतर संभावनाएं बता रहे हैं। फिलहाल, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि राहुल या सोनिया के साथ मंच साझा करने को लेकर नायडू इच्छुक हैं या नहीं।