हर साल धान की कटाई के बाद यह शोर सुनाई पड़ता है। कटाई के बाद जैसे ही पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के खेतों से धुआं उठता है और देश की राजधानी में सांस लेना दूभर होने लगता है, पराली जलाने की समस्या सुर्खियों में आ जाती है। इस परेशानी से छुटकारा दिलाने के लिए साल भर कदम नहीं उठाने वाली सरकारें शोरगुल बढ़ने पर जुर्माने और मुकदमे से किसानों को डराने लगती हैं।
पराली जलाने को लेकर पंजाब में इस साल 2 से 10 अक्टूबर के बीच ही 410 किसानों पर मामले दर्ज हुए हैं और 3.69 लाख रुपये जुर्माना लगाया गया है। वहीं, हरियाणा में 250 से ज्यादा किसानों पर मुकदमा हुआ है। पंजाब के अतिरिक्त मुख्य सचिव (डेवलपमेंट) विश्वजीत खन्ना ने बताया कि जिन कंबाइन हार्वेस्टर पर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम नहीं लगे हैं, उन्हें जब्त करने के निर्देश भी दिए गए हैं। पंजाब और हरियाणा में ही करीब 3.5 करोड़ टन पराली होने का अनुमान है। ऐसे में किसान परेशान हैं। अगली फसल के लिए खेत तैयार करने को यदि पराली जलाते हैं तो जुर्माना-मुकदमा। और जलाए नहीं तो पराली का करें क्या?
किसानों को धान कटाई की मशीन यानी कंबाइन हार्वेस्टर के पीछे स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम लगाने, पराली को मिट्टी में मिलाने के लिए रोटावेटर और बुवाई के लिए हैप्पी सीडर जैसे तकनीकी उपाय सुझाए गए हैं। लेकिन, भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल के अनुसार ये उपाय कर्ज में फंसे किसानों को और दबाने जैसा है।
उन्होंने बताया, “हजारों रुपये की वह मशीन खरीदने के लिए दबाव बनाया जा रहा है, जिसका साल भर में बमुश्किल एक हफ्ता इस्तेमाल होना है। मांग बढ़ने के साथ ही रोटावेटर की कीमतों में भी करीब 50 फीसदी का इजाफा हो गया है।” राजेवाल ने बताया कि कंबाइन हार्वेस्टर काफी ऊपर से धान की फसल काटती है। ऐसे में दोबारा कटाई पर करीब चार हजार रुपये प्रति एकड़ खर्च होता है। 3,500 रुपये मासिक आमदनी वाला किसान पराली काटने के लिए 4,000 रुपये कहां से लगा पाएगा।
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने बताया कि पराली प्रबंधन के लिए किसानों को प्रति क्विंटल सौ रुपया मुआवजा देने को लेकर वे प्रधानमंत्री को दो बार खत लिख चुके हैं। तंदरुस्त पंजाब मिशन के डायरेक्टर एवं कृषि सचिव के.एस पन्नू ने बताया कि पराली की समस्या पर काबू पाने के लिए सरकार ने 665 करोड़ रुपये के बजट का दो वर्ष का एक्शन प्लान बनाया है। उन्होंने बताया कि रोटावेटर और अन्य मशीनरी की खरीद पर कोऑपरेटिव सोसायटीज को 80 फीसदी और किसान को 50 फीसदी सब्सिडी सरकार दे रही है। वहीं, 15 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने बताया कि पंजाब में 7,062 और हरियाणा में 2,815 किसानों को उपकरण मुहैया कराए गए हैं। वैसे, एनजीटी ने दो एकड़ से कम जमीन वाले किसानों को रोटावेटर, हैप्पी सीडर, मलचर जैसी मशीनें मुफ्त में देने के निर्देश दे रखे हैं। दो से पांच एकड़ जमीन वाले किसानों को 5,000 रुपये और पांच से ज्यादा एकड़ जमीन वाले किसानों को 15,000 रुपये में मशीन देनी थी। लेकिन, इन निर्देशों पर अब तक अमल नहीं हो पाया है।
कीर्ति किसान यूनियन के अध्यक्ष बलदेव सिंह उगरांह की मानें तो पराली जलाने पर एनजीटी का रवैया ही गलत है और वह दिल्ली को ध्यान में रखकर फैसले करता है। उन्होंने बताया, “अक्टूबर में पराली जलाने का मसला पंद्रह दिनों का होता है। यह धुआं सबको दिखता है। लेकिन, साल भर प्रदूषण फैलाने वाले थर्मल पॉवर प्लांट, वाहनों, एसी वगैरह पर किसी का ध्यान नहीं।” दूसरी ओर, पंजाब में पराली से बॉयोसीएनजी, इथेनॉल और बॉयोमास प्लांट लगाने की योजना भी कागजों में ही है। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन को 5,000 करोड़ रुपये के निवेश से चार साल में करीब 400 बॉयोमास प्लांट लगाने हैं। इनमें से 42 प्लांट इसी साल शुरू होने थे, पर अब तक एक भी चालू नहीं हो पाया है। हालांकि कॉरपोरेशन के अधिकारी अब भी 2022 तक सभी प्लांट का काम पूरा कर लेने का दावा कर रहे हैं।
कृषि अर्थशास्त्री डॉ. आर.एस. घुम्मण के अनुसार, इस समस्या का समाधान बेहद साधारण है। उन्होंने आउटलुक को बताया, “मनरेगा के तहत फसल कटाई को लाना चाहिए। जो पैसा सब्सिडी देने पर सरकार खर्च कर रही है, वह इसमें लगाया जा सकता है। इससे फसल के साथ पराली भी कट जाएगी और मजदूरों को रोजगार भी मिलेगा।”