ताजा विवाद से काफी पहले राकेश अस्थाना सीबीआइ के पोस्टर ब्वॉय हुआ करते थे। 1984 बैच के गुजरात काडर के इस आइपीएस अधिकारी ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले की जांच के दौरान अडिग और राजनीतिक दबाव में न आने वाले अधिकारी की छवि बनाई थी। सीबीआइ के संयुक्त निदेशक (पूर्व) यू.एन. विश्वास के नेतृत्व में जब 1996 में 900 करोड़ रुपये के चारा घोटाले की जांच शुरू हुई तो उनके खासमखास रहे अस्थाना को रसूखदार आरोपियों के खिलाफ सबूत जुटाने की जिम्मेदारी दी गई। उनकी जांच के कारण ही लालू और पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र सहित कई दोषी करार दिए गए। लालू से पहली बार पूछताछ से लेकर मुख्यमंत्री आवास पर छापेमारी तक सभी कार्रवाई में वे शामिल थे। उस समय लालू अपनी लोकप्रियता के चरम पर थे, लेकिन अस्थाना और उनकी टीम के सदस्य इसके प्रभाव में नहीं आए। इसलिए, यह अचरज की बात नहीं है कि विश्वास ने कई साल बाद एक साक्षात्कार में उन्हें “ईमानदार” बताया था।
अस्थाना झारखंड में नेतरहाट स्कूल के पूर्व छात्र हैं। यहीं उनके पिता विज्ञान पढ़ाते थे। पहले ही प्रयास में संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा पास करने वाले अस्थाना रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज में इतिहास भी पढ़ा चुके हैं। बिहार में तब के लोग उन्हें ऐसे शख्स के तौर पर याद करते हैं जिसे प्रचार नापसंद था, लेकिन आज वही शख्स उलट वजहों से सुर्खियों में है।
असल में, चारा घोटाले की जांच ने अस्थाना को लालू के राजनीतिक विरोधियों का लाडला बना दिया। गुजरात लौटने पर उन्हें न केवल अहम पदों पर नियुक्ति मिली, बल्कि नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते करीब-करीब सभी महत्वपूर्ण मामलों की जांच भी उन्हें मिली। इसी दौरान वे अमित शाह के करीब भी आए।
बताया जाता है कि साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लगने और कारसेवकों की मौत के मामले की जांच के लिए बनाई गई एसआइटी के नेतृत्व का जिम्मा अस्थाना को देने का सुझाव आडवाणी ने मोदी को दिया था। इस आग को सोची-समझी साजिश करार देने वाले पहले शख्स अस्थाना ही थे। गोधरा कांड की जांच के दौरान उन पर कई बार मोदी सरकार के इशारे पर काम करने के आरोप लगे। इसी तरह इशरत जहां एनकाउंटर में उन पर साक्ष्यों से छेड़छाड़ का आरोप लगा था। 2008 में अहमदाबाद में हुए बम धमाकों की जांच, आसाराम के बेटे नारायण साईं को गिरफ्तार करने जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों की जांच भी उन्होंने ही की थी।
वडोदरा में 2016 में हुई अस्थाना की बेटी की शादी भी काफी चर्चा में रही थी। हफ्ते भर चले कार्यक्रम में अस्थाना ने अतिथियों का फाइव-स्टार सत्कार किया। बाद में पता चला कि सभी होटलों ने मुफ्त सेवाएं दी थीं। एक बार एक उद्योगपति के प्राइवेट चॉपर का इस्तेमाल करने के आरोप भी उन पर लगे थे। ताजा विवाद सामने आने के बाद सूरत में पुलिस वेलफेयर फंड से बीस करोड़ रुपये भाजपा को चंदा देने के आरोप भी उन पर लगे हैं।
सूत्र बताते हैं कि पहले गुजरात में कांग्रेस सरकार से नहीं बनने पर ही पहली बार अस्थाना ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति मांगी थी। लेकिन, मोदी सरकार के दौरान उन्होंने कभी इसकी मांग नहीं की। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद वे दोबारा सीबीआइ में आए। जून 2016 में जब महत्वपूर्ण मामलों की जांच तेज करने के लिए सीबीआइ ने एसआइटी गठित की तो उसकी कमान अस्थाना को ही मिली।
एसआइटी मनी लॉन्ड्रिंग में फंसे मीट कारोबारी मोइन कुरैशी और बैंकों का पैसा लेकर भागे विजय माल्या के केस की छानबीन कर रही थी। हरियाणा में जमीन आवंटन घोटाला, अगस्ता वेस्टलैंड केस, एयरसेल-मैक्सिस घोटाला, राजस्थान का एंबुलेंस घोटाला, कोयला घोटाला, लालू यादव के परिवार के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों की जांच भी वही देख रहे थे। ताज्जुब नहीं कि सीबीआइ की कलह खुलने के बाद विपक्ष उन्हें पीएम मोदी का चहेता बताकर हमले कर रहा है।