छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के चेहरे और 15 साल में हुए विकास के आधार पर वोट मांग रही है। भाजपा ने ‘रमन पर विश्वास, कमल संग विकास’ का नारा दिया है। कांग्रेस ‘वक्त है बदलाव का’ का नारा देकर लोगों को लुभाने में लगी है। विकास और बदलाव के नारे के बीच जोगी कांग्रेस-बसपा गठबंधन से नया पेच फंसने के कारण प्रत्याशी का चेहरा और रणनीति महत्वपूर्ण हो गए हैं। राज्य की 90 विधानसभा सीटों के लिए दो चरणों में 12 और 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। एक मंत्री समेत 16 विधायकों को बेटिकट कर 89 सीटों पर भाजपा उम्मीदवार का ऐलान कर चुकी है। चुनाव से दो-तीन महीने पहले उम्मीदवार घोषित करने की बात कहने वाली कांग्रेस 72 सीटों पर ही खबर लिखे जाने तक उम्मीदवार तय कर पाई थी।
कांग्रेस ने तीन विधायकों के टिकट काटकर दो दर्जन से अधिक नए चेहरों को मौका दिया है। प्रदेश के सभी बड़े नेताओं को भी टिकट दिया गया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव और चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत चुनाव लड़ रहे हैं। सत्यनारायण शर्मा, धनेंद्र साहू, रामपुकार सिंह जैसे पुराने दिग्गज भी मैदान में हैं। रमन सिंह के खिलाफ राजनांदगांव से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को पार्टी ने उतारा है।
डॉ. महंत ने आउटलुक को बताया, “पिछले 15 साल में भाजपा की सरकार ने विकास के नाम पर लोगों को केवल ठगा है। भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि छत्तीसगढ़ की गिनती देश के भ्रष्ट प्रदेशों में होने लगी है। बदलाव तय है और कांग्रेस स्पष्ट बहुमत से सरकार बनाएगी।” हालांकि टिकट बंटवारे के बाद मचे घमासान ने कांग्रेस की एकजुटता की पोल खोल कर रख दी है। इतना ही नहीं सीडी कांड के बाद से प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल पार्टी के भीतर अलग-थलग पड़ते दिख रहे हैं। बताया जाता है कि पसंद के लोगों को टिकट नहीं मिलने पर वे चयन समिति की बैठक से भी बाहर आ गए थे। चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष होने के बावजूद डॉ. महंत को समिति की कई बैठकों में नहीं बुलाया गया। टिकटों की खरीद-फरोख्त की सीडी से भी पार्टी की परेशानी बढ़ी है।
इसके उलट भाजपा मुख्यमंत्री रमन सिंह के चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ रही है। लेकिन, टिकट बंटवारे के बाद का घमासान उसके खेमे में भी है। रमन सिंह की ओर से उम्मीदवार नहीं बदले जाने के दो टूक के बाद भी बगावत पूरी तरह थमी नहीं है। पूर्व विधायक विजय अग्रवाल निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। पाटन से भाजपा प्रत्याशी मोतीलाल साहू के खिलाफ विजय बघेल के समर्थकों के बवाल के बाद पुलिस बुलानी पड़ी। बसंत अग्रवाल को विरोध की कीमत पार्टी से निष्कासित होकर चुकानी पड़ी है। वरिष्ठ मंत्री अमर अग्रवाल और संसदीय सचिव लाभचंद बाफना का विरोध भी हुआ।
प्रत्याशी चयन के लिए कई सर्वे करवाने वाले दोनों दलों ने कुछ सीटों पर पैराशूट प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। मसलन, आइएएस की नौकरी से इस्तीफा देने वाले ओमप्रकाश चौधरी को भाजपा ने खरसिया से तो कांग्रेस ने कांकेर से सिटिंग विधायक शंकर ध्रुवा की जगह रिटायर्ड आइएएस शिशुपाल सोरी को प्रत्याशी बनाया है। कई मंत्रियों के टिकट कटने की चर्चा थी, लेकिन केवल रमशीला साहू को ही मौका नहीं मिला है। पिछले चुनाव में बड़े अंतर से हारने वाले अनुराग सिंहदेव, रजनी त्रिपाठी जैसों को भी फिर से प्रत्याशी बनाया गया है। ननकीराम कंवर, कृष्णमूर्ति बांधी, मेघाराम साहू जैसे नेताओं को टिकट देने से साफ है कि भाजपा ने पुराने चेहरों पर दांव लगाना बेहतर समझा है। जानकारों का मानना है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी ने क्षत्रपों को नहीं छेड़ा है।
इन दो दलों के बीच सबसे ज्यादा चर्चा पूर्व मुख्यमंत्री जोगी के परिवार की है। पिछली बार मरवाही से विधायक चुने गए जोगी के बेटे अमित इस बार मनेन्द्रगढ़ से चुनाव लड़ रहे हैं। अमित की पत्नी ऋचा जोगी अकलतरा सीट से बसपा प्रत्याशी हैं। अजीत जोगी की पत्नी डॉ. रेणु जोगी कांग्रेस में हैं। खुद जोगी मरवाही से मैदान में हैं। हालांकि उन्होंने करीब छह महीने पहले राजनांदगांव से रमन सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। बाद में गठबंधन प्रत्याशियों के प्रचार के लिए कहीं से भी चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की। ऐसे में अचानक मरवाही से मैदान में उतरना और कुछ सीटों पर कई बार प्रत्याशी बदलने से उनकी साख पर बट्टा लगा है।
जोगी ने सहयोगी दल बसपा के कोटे की कुछ सीटों पर भी अपने समर्थकों को उम्मीदवार बनाया है। मसलन, गीतांजलि पटेल चंद्रपुर से बसपा की उम्मीदवार हैं। पिछले चुनाव में इस सीट पर बसपा दूसरे स्थान पर रही थी। वैसे भी, बिलासपुर ऐसा इलाका है जहां जोगी और बसपा दोनों का प्रभाव माना जाता है और इसी संभाग से बसपा के विधायक चुने जाते रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने आउटलुक को बताया, “प्रदेश में इस बार गठबंधन की ही सरकार बनेगी। बीएसपी जैसी काडर पार्टी के साथ आने से हमारी ताकत बढ़ी है।” हालांकि, सीपीआइ को साधने में वे नाकाम रहे हैं। गठबंधन दो सीटें सीपीआइ को देने को तैयार था, लेकिन उसने आधा दर्जन से अधिक सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं।
रोचक तथ्य
रिश्तेदारों में मुकाबला ः दंतेवाड़ा सीट से कांग्रेस ने मौजूदा विधायक देवती कर्मा को उम्मीदवार बनाया है। वे दिवंगत महेंद्र कर्मा की पत्नी हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस सीट से चुनाव लड़ रहे सभी सातों उम्मीदवार आपस में रिश्तेदार हैं। भाजपा की तरफ से ताल ठोक रहे भीमा मंडावी रिश्ते में देवती कर्मा के बहनोई लगते हैं।
वंशवाद के चिराग ः कांग्रेस ने राष्ट्रीय महासचिव मोतीलाल वोरा के विधायक बेटे अरुण वोरा को फिर दुर्ग से उम्मीदवार बनाया है। पूर्व मंत्री स्व. रामचंद्र सिंहदेव की भतीजी अंबिका सिंहदेव को बैकुंठपुर, पूर्व विधायक बोधराम कंवर के बेटे पुरुषोत्तम कंवर को कटघोरा और पूर्व विधायक बलराम सिंह की बहू डॉ. रश्मि सिंह को तखतपुर से टिकट मिला है। वंशवाद से भाजपा भी अछूती नहीं है। पार्टी ने कोरबा से सांसद डॉ. बंशीलाल महतो के बेटे विकास महतो, चंद्रपुर से विधायक युद्धवीर सिंह की जगह उनकी पत्नी संयोगिता सिंह और विधायक सुनीति राठिया की जगह उनके पति सत्यानंद राठिया को मैदान में उतारा है।
तोड़ पाएंगे मिथक ः छत्तीसगढ़ में अब तक कोई भी नेता प्रतिपक्ष और कृषि मंत्री दोबारा चुनाव जीत नहीं सका है। भाजपा के नंदकुमार साय और कांग्रेस के स्व. महेंद्र कर्मा तथा रविंद्र चौबे नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद अगला चुनाव हार गए थे। इसी तरह कांग्रेस के प्रेमसाय सिंह और भाजपा के ननकीराम कंवर तथा चंद्रशेखर साहू को भी कृषि मंत्री बनने के बाद चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। अभी कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल हैं। वे 1989 से विधायक हैं और कोई भी चुनाव नहीं हारे हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि अग्रवाल और नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव अब की बार जीत हासिल कर पाते हैं या नहीं।