आगामी लोकसभा चुनाव फतह करने की रणनीति में जुटी भाजपा के लिए पंजाब में उसके सहयोगी शिरोमणि अकाली दल का बिखरना झटका साबित हो सकता है। तीन वरिष्ठ नेताओं के पदों से इस्तीफे, स्थानीय निकायों के बाद पंचायत समितियों के चुनावों में करारी हार और धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी जैसे मामलों पर रणजीत सिंह कमीशन की रिपोर्ट ने अकाली दल को एक के बाद एक बड़े झटके दिए हैं। इस बीच वरिष्ठ नेताओं में अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ बगावत के सुर तेज हो गए हैं। तीन टकसाली नेता सांसद सुखदेव सिंह ढींढसा, रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा और पूर्व सांसद रतन सिंह अजनाला ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। बगावत को थामने के लिए सुखबीर बादल के अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश को पार्टी हलकों में उनके एक नए शिगूफे के तौर पर लिया जा रहा है।
धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी से अपने बचाव और कैप्टन सरकार पर हमला बोलने के लिए सितंबर में मालवा के फरीदकोट और अक्टूबर में पटियाला में हुई शिरोमणि अकाली दल की रैलियों से भी टकसाली नेताओं ने दूरी बनाए रखी। मालवा क्षेत्र के टकसाली नेता ढींढसा के बाद माझा क्षेत्र के टकसाली नेता रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा का इस्तीफा दल में किसी बड़ी अनहोनी का संकेत है। पार्टी छोड़ने के सवाल पर ढींढसा जवाब देने से बच रहे हैं, तो उनके बेटे और पार्टी के महासचिव परमिंदर सिंह ढींढसा पिता के पार्टी छोड़ने के पीछे उनका अस्वस्थ होना बताते हैं। चर्चा है कि परमिंदर ने बादल परिवार के दबाव में ऐसा बयान दिया है। रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा का कहना है कि अकाली दल परिवार की पार्टी हो गई, इसलिए उन्होंने इस्तीफा दिया है।
2007-2017 तक पंजाब की सत्ता पर काबिज रहे अकाली दल की सरकार की दूसरी पारी के दौरान प्रकाश सिंह बादल ने न केवल पार्टी अध्यक्ष, बल्कि उपमुख्यमंत्री पद भी सुखबीर के हाथ सौंप दिया। बादल के समकालीन नेताओं को कतई मंजूर नहीं रहा कि अकाली दल में भी परिवारवाद घर कर जाए। पार्टी में बादल के बाद टकसाली नेता रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा और सुखदेव सिंह ढींढसा की हैसियत और अहमियत सुखबीर के अध्यक्ष बनने के बाद से नहीं रही। अकाली दल के एक वरिष्ठ नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि पुत्रमोह में प्रकाश सिंह बादल ने पंजाब और 125 वर्ष पुराने शिरोमणि अकाली दल और वरिष्ठ नेताओं को दांव पर लगा दिया।
ज्यादातर अकाली नेता गुरु गोबिंद सिंह का वेश धारण करने पर विवादों में आए डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को माफी देने के फैसले के खिलाफ थे। लेकिन सुखबीर और बिक्रम सिंह मजीठिया ने अकाल तख्त पर माफी के लिए दबाव बनाया। रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, जत्थेदार तोता सिंह, पूर्व एसजीपीसी अध्यक्ष अवतार सिंह मक्कड़ समेत दर्जनभर वरिष्ठ अकाली नेताओं ने राम रहीम को माफी का विरोध किया, जिसे दबा दिया गया। ब्रह्मपुरा का कहना है कि राम रहीम को माफी देते समय भी उन्होंने विरोध किया था।
पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को ऐसा लगता है कि परिवारवाद में फंसे अकाली दल को संकट से उबारने के लिए उनके प्रयासों से कोई कारगर हल निकलने वाला नहीं है। विरोधियों पर राजनीतिक हमले और पार्टी की साख बचाने के लिए सुखबीर एक ढाल के रूप में अपने पिता का उपयोग करते रहे हैं। धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी मामले पर जस्टिस रणजीत सिंह की रिपोर्ट से जब सुखबीर बादल को अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की कड़ी आलोचना से गुजरना पड़ा तो इसका सामना करने के लिए उन्होंने अपने पिता को आगे कर दिया।
शिरोमणि अकाली दल में माझे के जरनैल माने जाने वाले रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा का कहना है कि पिछले पांच साल में सुखबीर सभी को एकजुट करके चलने में असफल रहे हैं। वहीं, सूत्रों का कहना है कि सुखबीर ब्रह्मपुरा को मनाने की कोशिश कर रहे है, लेकिन वह प्रकाश सिंह बादल को छोड़कर किसी से भी मिलना नहीं चाहते हैं। उधर, स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने बिखरते अकाली दल पर चुटकी लेते हुए कहा कि सुखबीर बादल तो कभी सरपंची न छोड़ें और प्रधानी छोड़ने की बात तो बहुत दूर है। उन्होंने कहा कि अपनी कुर्सी सलामत रखने के लिए सुखबीर बादल आज टकसाली अकाली नेताओं के पीछे भागे फिर रहे हैं।