आप तो आप, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कॉल ड्रॉप से परेशान! हाल ही में एयरपोर्ट से प्रधानमंत्री आवास लौटते वक्त वे नेटवर्क डिस्कनेक्ट के बात नहीं कर पाए। बार-बार कॉल ड्रॉप हो रही थी। उन्होंने इसे खुद न केवल सार्वजनिक किया, बल्कि टेलीकॉम मंत्रालय को हिदायत भी दी। मगर हिदायतें, मंत्रणाएं, दूरसंचार मंत्री की टेलीकॉम कंपनियों को चेतावनी तो पिछले तीन साल से जारी हैं और समस्या दूर होने का नाम नहीं ले रही है। सरकार और कंपनियों सबके पास अपने-अपने तर्क, अपनी-अपनी समस्याएं और बहानेबाजियां हैं। वह भी ऐसी मासूम कि आप भी लाजवाब हो जाएं। मसलन, लोग बीमारियों की खौफ से मोबाइल टॉवर लगने ही नहीं देते। लेकिन क्या यही हकीकत है?
सोचिए, ऐसे दौर में जब दुनिया में 5जी टेक्नोलॉजी लांच होने को तैयार है, दुनिया के दूसरे सबसे बड़े टेलीकॉम मार्केट भारत के लोग कॉल ड्रॉप जैसी बेसिक प्रॉब्लम से जूझ रहे हैं। कुल मिलाकर टेलीकॉम उपभोक्ता इसमें पिसता जा रहा है। उसे न केवल कॉल के लिए ज्यादा पैसे चुकाने पड़ रहे हैं, बल्कि उसकी सुनवाई भी न के बराबर है। ऐसा नहीं है कि केवल कॉल ड्रॉप ही हमारे-आपके लिए समस्या है, अनचाही कॉल, स्लो इंटरनेट स्पीड भी ऐसी समस्याएं हैं जिससे उपभोक्ता परेशान हैं।
परेशानियां कैसी-कैसी
-मुंबई के अभिषेक शुक्ला कहते हैं कि एक बार कॉल करने के बाद बिना डिस्कनेक्ट हुए पूरी बात हो जाए, ऐसा बहुत कम होता है। इसकी वजह से न केवल समय की बर्बादी होती है बल्कि हमारी जेब भी कटती है।
-लखीमपुर खीरी के रहने वाले यतीश श्रीवास्तव का कहना है कि हमें तो हाईवे से लेकर घर तक कॉल ड्रॉप का सामना करना पड़ता है। यही हाल इंटरनेट का भी है, स्पीड इतनी स्लो हो जाती है कि पूछिए मत। कस्टमर केयर पर बात करो तो कहते हैं कि यहां से सब सही है। अब हम हर बात के लिए कंज्यूमर फोरम तो नहीं जा सकते हैं।
-गाजियाबाद में रहने वाली पूजा सिंह का कहना है कि अनचाही कॉल से हम परेशान हैं। दिन भर ऐसी कॉल आती रहती हैं। पहले 140 नंबर से कॉल आती थी, तो पता चल जाता था तो हम फोन रिसीव नहीं करते थे। अब तो पर्सनल मोबाइल नंबर से भी फोन आने लगे हैं, पता नहीं सरकार कुछ क्यों नहीं करती?
-सोनीपत जिले के गांव सोहटी निवासी मेहताब राणा का कहना है कि दिल्ली के करीब होने के बावजूद हमारे फोन में नेटवर्क बहुत कम रहता है। एक-दो सिग्नल आता है। हालत यह है कि हमें कई बार छत या गली में जाकर बात करनी पड़ती है। जबकि मेरे घर से 50 मीटर की दूरी पर ही टेलीकॉम कंपनियों का टॉवर लगा हुआ है।
क्यों हैं ऐसे हालात
दरअसल, टेलीकॉम सर्विसेज की ऐसी हालत की कहानी बेहद अजीब है। रेग्युलेटर से लेकर एक्सपर्ट तक सभी मानते हैं कि कंपनियां धड़ल्ले से कस्टमर तो बना रही हैं, लेकिन उसके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं तैयार कर रही हैं। अब कंपनियां भला ऐसा क्यों कर रही हैं तो इसके पीछे की कहानी पैसों की है। कस्टमर को सस्ती दर पर इंटरनेट मिले और कॉल अनलिमिटेड कर दी जाए, जिससे कंपनी के कस्टमर दूसरी कंपनी में न शिफ्ट हों, इस डर ने फिलहाल कंपनियों के फाइनेंशियल्स को बिगाड़ दिया है। इसकी वजह से कंपनियां कनेक्टिविटी बेहतर करने के लिए जरूरी टॉवर नहीं लगा रही हैं। यानी सस्ता ऑफर देकर कस्टमर तो धड़ल्ले से बढ़ा रही हैं लेकिन अच्छी सर्विस के लिए पैसा नहीं खर्च कर रही हैं। कंज्यूमर ऑनलाइन फाउंडेशन के संस्थापक बेजॉन मिश्रा ने बताया कि हम टेलीकॉम सर्विस की खराब परफॉर्मेंस की लड़ाई पिछले 10 साल से लड़ रहे हैं। लेकिन रेग्युलेटर और सरकार इसका समाधान नहीं निकाल पा रहे हैं। कंपनियां रेग्युलेटर को कहती हैं और रेग्युलेटर कंपनियों की जवाबदेही की बात करता है, लेकिन मामला हल नहीं होता है। कॉल ड्रॉप, स्लो इंटरनेट स्पीड और अनचाही कॉल लगातार प्रॉब्लम बनी हुई हैं और इसकी सुनवाई कहीं नहीं होती। अमेरिका, यूरोप, कोरिया सभी जगह कॉल ड्रॉप होने पर क्रेडिट की सुविधा मिलती है। लेकिन यहां पर यह सुविधा नहीं लाई जा रही है। इसके कारण कॉल ड्रॉप से कंपनियों को कमाई करने का एक बड़ा जरिया मिल गया है। अब ऐसा तो नहीं है कि कंज्यूमर 200 रुपये का रिचार्ज कराएगा और जब उसे कॉल ड्रॉप या स्लो स्पीड की प्रॉब्लम झेलनी पड़े तो वह कोर्ट चला जाएगा। दूसरे देशों में तो पेस्की कॉल पर कंपनियों के लाइसेंस तक रद्द कर दिए जाते हैं। लेकिन, देश में इस तरह का कोई डर कंपनियों को नहीं है।
इंडस्ट्री का क्या है कहना
एसोसिएशन ऑफ यूनिफाइड टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर के पूर्व डायरेक्टर जनरल अशोक सूद के अनुसार कॉल ड्रॉप के पीछे फाइनेंशियल कारण ज्यादा हैं। रिलायंस जिओ के इंडस्ट्री में एंट्री करने के बाद लो टैरिफ का दौर है। कंपनियां प्रतिस्पर्धा की वजह से टैरिफ बढ़ाने की जगह घटा रही हैं, जिसका असर उनकी कमाई पर पड़ा है। इसी वजह से वे इन्वेस्टमेंट नहीं कर रही हैं।
कॉल ड्रॉप की समस्या दूर करने के लिए जरूरी है कि ज्यादा टॉवर लगें। लेकिन पिछले 3-4 साल से जिस स्पीड से कंपनियों ने अपने कस्टमर बढ़ाए हैं, उसकी तुलना में टॉवर की संख्या नहीं बढ़ी है। ऐसे में प्रति टॉवर कस्टमर का लोड बढ़ रहा है। इसी तरह टॉवर से ही इंटरनेट स्पीड का भी लिंक है। टेलीकॉम इंडस्ट्री में गलाकाट प्रतिस्पर्धा है, उसे देेखते हुए फिलहाल कंज्यूमर को कोई राहत मिलने वाली है।
जहां तक अनचाही कॉल का मामला है, इसमें टेलीमार्केटिंग कंपनियों का खेल है। टेलीकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) ने अनचाही या पेस्की कॉल को रोकने के लिए टेलीमार्केटिंग कंपनियों के लिए कॉल करने की लिमिट तय की हुई है। इसका तोड़ कंपनियों ने निकाला है, वह मल्टीपल नंबर से तय लिमिट के अंदर फोन करती हैं। ऐसे में नियमों का उल्लंघन नहीं होता है। सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के डायरेक्टर जनरल राजन मैथ्यू के अनुसार इंडस्ट्री लगातार इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश कर रही है। सबसे बड़ी समस्या टावर के इन्स्टालेशन को लेकर लेकर है। टावर के बारे में लोगों को भ्रांतियां है कि उसके रेडिएशन से बीमारी होती है। हालांकि ऐसा कुछ नहीं है। इसके लिए हम लगातार जागरूकता अभियान चला रहे हैं।
टॉवर ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर एसोसिएशन के डायरेक्टर जनरल तिलक राज दुआ के अनुसार कॉल ड्रॉप की प्रमुख वजह नेटवर्क प्रॉब्लम, लोकेशन के लिए कई सारे प्रतिबंध, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड रेडिएशन को लेकर भ्रांतियां आदि हैं।
रिसर्च एजेंसी क्रिसिल की टेलीकॉम सेक्टर पर आई ताजा रिपोर्ट के अनुसार सितंबर 2016 के बाद टेलीकॉम कंपनियों की कमाई लगातार गिरी है। जिसके इस साल भी गिरने की आशंका है। रिपोर्ट के अनुसार इंडस्ट्री का एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू जून 2016 में जहां 10.5 फीसदी था वह अब जून 2018 तक गिरकर 14.4 फीसदी के नकारात्मक स्तर पर पहुंच गया है।
रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक साल में कंपनियों के डाटा टैरिफ में भी 25 फीसदी तक गिरावट आई है। जिसकी वजह से डाटा खपत बढ़ने के बावजूद कमाई गिरी है। उदाहरण के तौर पर जून 2017 में भारती एयरटेल जहां प्रति जीबी 5.3 रुपये टैरिफ लेती थी, वह जून 2018 में गिरकर 3.8 रुपये हो गया है। इसी तरह आइडिया सेल्युलर का 12.4 रुपये से गिरकर 5.38 रुपये, वोडाफोन इंडिया का 9.3 रुपये से गिरकर 4.16 रुपये और रिलायंस जियो का टैरिफ 3.4 रुपये से गिरकर 3.13 रुपये हो गया है। रेवेन्यू में मौजूदा फाइनेंशियल ईयर के दौरान 6-8 फीसदी गिरावट का अनुमान है। इसके अलावा प्रति कस्टमर आने वाले रेवेन्यू में भी 18-20 फीसदी गिरावट की आशंका है। भारती एयरटेल लिमिटेड के प्रवक्ता के अनुसार कपंनी ने 3जी और 4जी नेटवर्क बेहतर करने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर लेवल पर काफी निवेश किया है जिसका फायदा कस्टमर को बेहतर सर्विस के रूप में मिलेगा।
सरकार लाचार
कॉल ड्रॉप पर सरकार की प्रतिक्रिया आरोप-प्रत्यारोप वाली ही रही है। केंद्रीय संचार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) मनोज सिन्हा ने प्रधानमंत्री के निर्देश के बाद एक कार्यक्रम में कहा, “अच्छी कनेक्टिविटी के लिए बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर होना जरूरी है। इसके लिए टॉवर जरूरी हैं। लेकिन कुछ लोग टॉवर इस्टॉल नहीं होने देना चाहते हैं। सिन्हा के अनुसार कुछ लोग टॉवर से निकलने वाली इलेक्ट्रो मैग्नेटिवक फील्ड रेडिएशन की वजह से गंभीर बीमारियां होने की बात करते हैं। जबकि ऐसा नहीं है। इसके साथ ही हमें किसी टेक्निकल सॉल्युशन को ढूंढ़ना होगा, जिससे पूरा देश इस समस्या से निकल सके। इसके पहले दिसंबर 2015 में तत्कालीन टेलीकॉम मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद ने एक कार्यक्रम में कहा था कि वह कॉल ड्रॉप मिनिस्टर नहीं कहलाना चाहते हैं। इसके लिए वह लगातार इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने के लिए कंपनियों से कह रहे हैं। अब कंपनियों को अपना काम करना है। उनके इस बयान के करीब तीन साल बीत जाने के बाद भी कॉल ड्रॉप से मुक्ति नहीं मिल पाई है। कंपनियों पर लगाम रखने और उन्हें रेग्युलेट करने वाली संस्था ट्राई भी इस समय लाचार है। उसने कॉल ड्रॉप पर कंपनियों को कस्टमर को हर्जाना देने का नियम बनाया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अवैध घोषित कर दिया, जिससे टेलीकॉम कंपनियों को राहत मिल गई।
रेग्युलेटर के पास अधिकार नहीं
ट्राई के नए नियम के तहत कंपनियों को कॉल ड्रॉप होने पर कस्टमर को एक रुपये का हर्जाना देना पड़ता। लेकिन टेलीकॉम कंपनियों ने हाइकोर्ट में हारने के बाद सुप्रीम कोर्ट में फैसले के खिलाफ रुख कर लिया। कंपनियों की अपील पर 11 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने ट्राई के हर्जाना देने वाले नियम को अवैध घोषित कर दिया। इसी तरह अनचाही कॉल पर लगाम लगता न देख अब ट्राई नए नियम लेकर आ रहा है।
इसके तहत दिसंबर 2018 तक कंपनियों को ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर नया सिस्टम डेवलप करना होगा। इसमें रजिस्ट्रेशन, सब्सक्राइबर की सहमति लेकर नए नियम लागू होंगे। साथ ही कंपनियों द्वारा नियमों की अनदेखी करने पर 1000 रुपये से लेकर 50 लाख रुपये तक पेनॉल्टी लगाने का भी प्रावधान किया गया है। हालांकि कंपनियों ने ट्राई के इस फरमान का विरोध करना शुरू कर दिया है। अब देखना यह है कि ट्राई का नया नियम एक जनवरी 2019 से लागू हो पाता है या फिर कॉल ड्रॉप के नियम की तरह यह भी लागू नहीं हो पाएगा।