सत्तर के दशक में 'फ्लावर पॉवर' नारा खूब गूंजा था। पुरुष प्रधानता की जकड़न तोड़ने और महिला अधिकारों को बुलंद करने का यह प्रतीक बन गया था। हर क्षेत्र में पुरुष प्रभुत्व को चुनौती देने का जज्बा जोर मारने लगा, यहां तक कि विरोध बॉडीबिल्डिंग में भी, जिसमें डोले-शोले वाले कसरती बदन बनाने का मामला होता है। महिलाओं ने शरीर को तराशने की जगह बाजुओं पर मछलियों और जांघों के भारी कटाव को अहमियत देना शुरू किया। पुरुषों के प्रभुत्व वाले क्षेत्र में यह एक और जीत थी। मांसपेशियों से भरी, चौड़े कंधों वाली महिलाएं बड़े बॉडी बिल्डिंग इवेंट में दिखाई देने लगीं। प्रदर्शन के वक्त क्रीम लगा कर चमकाए गए उनके बदन और कमर के नीचे से पतले हिस्से से लेकर भारी जांघों तक वे नजर आने लगीं। बेशक इस सब में समय लगा लेकिन भारतीय महिलाएं आखिरकार इस कतार में आ ही गईं।
लेकिन बदन को मेहनत से तराशने वाली इन महिलाओं को पितृसत्तात्मक समाज ने कभी भी दिल खोल कर स्वीकार नहीं किया। ज्यादा मांसपेशियों वाली महिलाएं अनाकर्षक और भद्दी मानी जाती हैं। उनके बारे में तमाम नकारात्मक विशेषण लगाए जाते हैं। एक ट्वीट चीख रहा है, “महिला बॉडीबिल्डरों के लिए मेरे पास तीन ही लफ्ज हैं- छी, यक्क और नहीं!” फिर भी महिला बॉडी बिल्डिंग भारत और भारत से बाहर फल-फूल रही है। तीन बच्चों की मां ममता, किशोर वय यूरोपा, स्कूल टीचर जिनी और बहुत हैं जो इस सफर को आगे बढ़ा रही हैं...
ममता देवी यमनमः 39 वर्ष, तीन बच्चों की मां और बॉडी बिल्डर पति के साथ वह मणिपुर में रहती हैं। ममता ऐसे समुदाय में पैदा हुई हैं जहां खिलाड़ी बनने के लिए कोई सामाजिक रूढ़ि या बंधन नहीं है। बॉडी बिल्डिंग भी नहीं। 17 साल पहले जब उन्होंने कॉस्मेटिक की बड़ी कंपनी एवॉन के साथ काम करना शुरू किया था तो वह दुबली-पतली नाजुक सी चमकीली त्वचा वाली लड़की थीं। उन्हीं के शब्दों में, वह तब पूरी तरह बॉडी बिल्डर बन गईं जब “मेरे पति 2011 में एक मुकाबले में हार गए।” 2012 में बैंकॉक और 2013 में वियतनाम में कांस्य पदक जीतने पर वे दुनिया की नजरों में आ गईं। ममता ने इसी साल 7 अक्टूबर को पुणे में हुई 52वीं एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता।
मजीजिया भानूः बुर्किनी वाली 24 साल की यह लड़की केरल के कोझीकोड जिले के ओर्कात्तिरी गांव से आती है। भानू का पसंदीदा खेल, जिसमें शरीर को दिखाने की मांग है, भी उसके धार्मिक नियमों के न आड़े आया न कोई संघर्ष हुआ। डेंटल सर्जरी की यह छात्रा कहती है, “मेरा हिजाब मेरी पहचान है। फिर लड़की होना या मुस्लिम होना मायने नहीं रखता। मैं चाहती हूं कि महिलाएं सभी तरह की चुनौतियों का सामना करें।” भानू ने पॉवरलिफ्टिंग से बॉडीबिल्डिंग में अपने पति के प्रोत्साहन पर कदम रखा है।
यास्मीन चौहान माणकः सुंदर सी बिटिया की मां 39 साल की यास्मीन के कई अवतार हैं। वह 2015 में मिसेज इंडिया सौंदर्य प्रतियोगिता की विजेता रह चुकी हैं, गुड़गांव में खुद का जिम चलाती हैं और “लड़की हो कर जिम चलाती है?” जैसे ताने सुनती हैं। वह शौकिया नहीं उत्साही बाइकर हैं जिसके पास खुद की रॉयल एनफील्ड है। वह डांसर-कोरियोग्राफर हैं। बचपन में स्कूल में ज्यादा वजन के कारण लोग उनको बहुत चिढ़ाते थे, इसी से परेशान होकर उन्होंने सामाजिक धारणा तोड़ी और 17 साल की उम्र में बॉडीबिल्डिंग की दुनिया में आ गईं। बॉडीबिल्डिंग की दुनिया में उन्हें कई पदक मिले हैं।
गीता सैनीः गुड़गांव में रहने वाली 30 साल की गीता को सबसे पहले माता-पिता का विरोध सहना पड़ा था, जब दो साल पहले उन्होंने व्यावसायिक रूप से बॉडी बिल्डिंग शुरू की थी। वह कहती हैं, “मेरे लिए बॉडीबिल्डिंग खुद को फिट रखने का जरिया है। एक दिन मैं वजन तौलने की मशीन पर खड़ी हुई, तो मेरा दिल डूबने लगा, कांटा 108 किलो बता रहा था। तब मैं सिर्फ 21 साल की थी।” फिर वे नौकरी छोड़कर बॉडीबिल्डिंग की दुनिया में उतर आईं।
जिनी गोगिया चुघः वे 37 साल की हैं, शादीशुदा हैं और 12 साल की एक बेटी की मां हैं। प्रोफेशनल बॉडीबिल्डर बनने से पहले दिल्ली की चुघ एक स्कूल में इंग्लिश पढ़ाती थीं और स्वास्थ्य पर स्तंभ लिखती थीं। उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है और पुरस्कार जीते हैं। वह कहती हैं, “मेरे परिवार में सभी लोग बहुत सहयोग करते हैं, मेरे सास-ससुर भी।”
यूरोपा भौमिकः कोलकाता की 19 साल की इस लड़की की ऊंचाई बमुश्किल पांच फुट होगी। किशोर उम्र में वह थोड़ी-सी “थुलथुली” थी और उसे स्कूल में “नाटी और मोटी” चिढ़ाया जाता था। उसने कम खाना शुरू किया और एनोरेक्सिया की शिकार हो गई। तब उसके माता-पिता ने जिम जाने के लिए नहीं कहा था। जिम ने दोबारा उसका आत्मविश्वास लौटाया, जिससे, वह “भारत की सबसे युवा महिला बॉडीबिल्डर प्रतिभागी” बनीं। उनके पिता सेमको यूरोपा जहाज में कप्तान थे। सो, उनका नाम रखा, यूरोपा।