दूर जेकर अजे सवेरा है
इस च काफी कसूर मेरा है
मैं किवें काली रात नूं कोसां
मेरे दिल विच ही जद हनेरा है
मैं चुराहे च जे जगां तां किवें
मेरे घर दा वी इक बनेरा है
घर च न्हेरा बहुत नहीं तां वी
मेरी लो वास्ते बथेरा है
तूं घरां दा ही सिलसिला हैं पर
ऐ नगर किस नू फिक्र तेरा है
इस इकबालिआ बयान के बाद ही मैं देश, समाज, राजनीति तथा साहित्य की दशा-दिशा के बारे में अपने दिल की मुकम्मल भावना बयान करने का हकदार बनता हूं। वरना मेरा बयान इलजामतराशी का ही एक और नमूना बन के रह जाएगा जो कि पहले ही भरपूर मात्रा में हैं।
दशा-दिशा कोई अच्छी नहीं है। और इसके लिए कोई एक पार्टी जिम्मेवार नहीं है। गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अंधविश्वास, दबदबा, बालिकाओं के साथ बलात्कार, किसानों की खुदकुशियां! भले लोग उदास हैं, माफिये दनदनाते फिरते हैं। नौजवानों का भविष्य अंधेरा है। बहुत-से सोचते हैं हमारा भविष्य कहीं और है।
पंछी तां उड़ गए ने
रुखः वी सलाहां करन :
चलो एथों चल्लीए
घर घर पुत्त कहण :
छड्ड बापू हुण की ए रक्खिआ ज़मीन विच
वेच के सिआड़ चार
कर के जुगाड़ कोई
चल एथों चल्लीए
तूं नईं सुणे
टिकी राते
पिंड दे मसाणां विच
मोए किरसान सारे
एही वृन्दगान गौंदे :
चलो एथों चल्लीए
शिक्षा के अदारे तगड़े बिजनस बन गए। पर्बतों की पुत्रिआं, हमारी नदियां, उद्योगपतियों का मैला ढो रही हैं। अस्पतालों में टेस्ट की महंगी मशीनें प्रबंधकों और डाक्टरों के लिए लाखों करोड़ों नोट छाप रही हैं। हमारी धरती पर उसरे मायाधारिओं के प्राइवेट स्कूलों में धरती की बोलिआं बोलने की मनाही है :
सब चीं चीं करदीआं चिड़िआं दा
सब सां सां करदे बिरखां दा
सब कल कल करदीआं नदिआं दा
अपणा ही तराना हुंदा है
पर सुणिआ है
इस धरती ते
इक ओ वी देस है जिस अन्दर
बच्चे जे अपणी मां-बोली बोलण
जुर्माना हुंदा है
हाकम के खिलाफ बोलने वाले साहित्यकार या पत्रकार के सर से देश-प्रेम का प्रभामंडल छीन लिया जाता है। प्रभामंडल की बात करते हो, सर की खैर मनाओ!
कुर्सी की खातिर सारा जंगल दांव पर लग सकता है। वोटों के लिए धार्मिक भावनाओं से भी खिलवाड़ हो सकता है :
डूंघे वैणां दा की मिणना
तख्त दे पावे मिणीऐं
जद तक ओ लाशां गिणदे ने
आपां वोटां गिणीऐं
चोण -निशान शिव है साडा
इस नूं बुझण न देइए
चुल्लिआं विच्चों कढ कढ लकडां
इस दी अग्ग विच चिणीऐं
पर मैं अपनी बात इस उदास सुर पर नहीं छोड़ना चाहता क्योंकि मैं जानता हूं कि भले खामोश-उदास लोगों के दिलों में तपिश भी है और रोशनी भी। और जो चलो चली का वृन्दगान चल रहा है उसको बदलने की चुनौती भी फिजाओं में है :
है कोई कवि एथे?
है कोई संगीतकार?
साजीआं दी टोली कोई?
जिहड़ी होर ताल छेड़े
जिहड़ी होर राग छोहे
बेगम पुरे दा रूप धर्त मेरी हो जाए
मेरी इस धर्त ते हलेमी राज आ जाए
कहे न कोई वी एथे
चलो एथों चल्लीए
हर कोई एही आखे असीं एथे वस्सणा
असीं एस धर्त नूं बणावणा ए वसणजोग।
है कोई कवि एथे?
है कोई संगीतकार?
साजीआं दी टोली कोई?
असीं एथे वस्सणा
असीं एस धर्त नू
(पंजाबी के वरिष्ठ कवि-साहित्यकार, पंजाब कला परिषद अध्यक्ष, साहित्य अकादमी और सरस्वती सम्मान से सम्मानित। हवा विच लिखे हरफ, विरख अर्ज करे, लफजां दी दरगाह चर्चित कृतियां)