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तेज पिचों पर दम दिखाओ तो जानें

सही मायनों में विश्व चैंपियन बनने के लिए हर परिस्थिति में जीत जरूरी, ऑस्ट्रेलिया में होगी भारतीय बल्लेबाजों की असल परीक्षा
घर के सिकंदरः वेस्टइंडीज को दी पटखनी पर ऑस्ट्रेलिया में टीम इंडिया का असली टेस्ट

आजकल क्रिकेट की दुनिया में हर देश ने अपने-अपने पसंदीदा जंगल बना लिए हैं। ये देश अपने-अपने क्षेत्र के दादा कहे जाने लगे हैं। भारतीय क्रिकेट टीम को भारत में हराना नामुमकिन हो गया है। इस जंगल का राजा भारत ही है। बल्लेबाजों के लिए माकूल हालात इस कदर उभर आते हैं कि मामूली बल्लेबाज भी डॉन ब्रैडमेन की तरह खेलते नजर आते हैं। न हवा में स्विंग, न विकेट पर उछाल। यानी क्रिकेट में जीवन की राह आसान। गेंदबाजों की निर्मम पिटाई होती है। बाद में स्पिन का जाल बुन कर विदेशी खिलाड़ियों को फंसा लिया जाता है। जीत हासिल कर ली जाती है और भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को लगने लगता है कि हम विश्व चैंपियन बन गए हैं। पिछली बार भी यही हुआ था। वेस्टइंडीज, श्रीलंका और बांग्लादेश पर बार-बार घर में जीत, पर जब दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड गए तो करारी हार!

दरअसल, भारतीय क्रिकेट प्रेमी अपनी टीम से बहुत प्यार करते हैं। इसी कारण पराजय के दुखद क्षणों को बहुत जल्दी भूल जाते हैं। बीसीसीआइ (भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड) को भी यह मालूम है। इसीलिए जब भी दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड जाकर हारते हैं, तुरंत बाद वेस्टइंडीज और श्रीलंका को बुलाकर पीट देते हैं। इसे कहते हैं ‘शक्तिशालियों के सामने आत्मसमर्पण और मासूमों के प्रति अत्याचार!’ पता नहीं, वेस्टइंडीज और श्रीलंका के खिलाफ शृंखला बार-बार क्यों खेली जाती है। जब दौरे का चार्ट बनता है, तब आइसीसी (इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल) में भारत का प्रतिनिधि भी रहता ही है। उसे चाहिए कि इन छलावे वाली शृंखलाओं की इस तरह पुनरावृत्ति न हो। पर, ऐसा हो रहा है। मतलब साफ है कि भारतीय क्रिकेट प्रेमियों की कमजोर याददाश्त का फायदा उठा लिया जाता है। बड़ी टीमों से पराजय का अवसाद दूर करने के लिए कमजोर टीमों को भारत बुलाया जाता है। भारत आसानी से जीत जाता है और भारतीय क्रिकेट की जय-जयकार होने लगती है। पर, आंतरिक कमजोरियां रह ही जाती हैं, जो कठिन और जटिल मुकाबलों के वक्त अक्सर उभर आती हैं।

विभिन्न समयों की भारतीय क्रिकेट टीमें किसी एक बड़े सितारे पर बहुत ज्यादा आधारित रही हैं। कभी सुनील गावस्कर पर बहुत ज्यादा अवलंबित थीं। फिर क्रिकेट का एक बड़ा सितारा अवतरित हुआ, जिसे भारतीय क्रिकेट प्रेमियों ने सिर-आंखों पर लिया और भावुकता में उसे ‘क्रिकेट का भगवान’ घोषित कर दिया। विरोधी टीमें भी यही सोचती थीं कि भारत को हराना है, तो तेंडुलकर नामक इस सितारे का विकेट जल्दी उड़ाना पड़ेगा। वक्त बीत गया है और अब विराट कोहली भारतीय आशाओं के केंद्र बन गए हैं। विराट जमते हैं, तो टीम जम जाती है। विराट गए कि टीम का पतन शुरू हो जाता है। यह बात विदेशों में जाकर ज्यादा जोर से उभरती है, क्योंकि वहां परिस्थितियां जटिल होती हैं।

हमें समझ लेना चाहिए कि वास्तविक रूप से विश्व चैंपियन कहलाना है, तो सभी परिस्थितियों में विभिन्न देशों में जीत का डंका बजाना होगा। गैरी सोबर्स और क्लाइव लॉयड की टीमें वेस्टइंडीज को विश्वजयी इसलिए बना पाईं कि उन्होंने दुनिया भर में जीत हासिल की। उनकी टीम में एंडी रॉबर्ट्स, माइकल होल्डिंग, मैलकम मार्शल और कॉलिन क्रॉफ्ट जैसे गेंदबाज थे, जिन्हें मिलाकर उनका तेज आक्रमण सर्वकालिक, सर्वश्रेष्ठ आक्रमण कहा जाता है। स्टीव वॉ के नेतृत्ववाली ऑस्ट्रेलियाई टीम भी अपने आलराउंड गुणों के कारण विश्वजयी टीम कहलाई। पर, भारत के पास ऐसा कुछ गिनाने को नहीं है।

वेस्टइंडीज को बुलाकर या वहां जाकर उन्हें अब बार-बार पीटने से कोई बड़ा अभ्यास नहीं हो सकता। दुख होता है कि कभी विश्वविजयी कही जाने वाली वेस्टइंडीज टीम बांगलादेश और अफगानिस्तान के खिलाफ भी संघर्ष कर रही है। वेस्टइंडीज के भारत दौरे के बाद भारत को ऑस्ट्रेलिया का दौरा करना है। वहां के उछाल लेते विकेटों पर भारतीय बल्लेबाजों की कड़ी परीक्षा होगी। मिशेल स्टार्क और जोश हैजलवुड भारतीयों के लिए समस्या पैदा कर सकते हैं। पर, वहां के उछाल से निपटने की कोई बड़ी योजना दिखाई नहीं देती। सबसे बड़ी समस्या भारतीय मध्यक्रम की है। यहां पर स्‍थायित्व और मजबूती नजर नहीं आ रही है। विराट कोहली ने अगर रन नहीं बनाए, तो कौन रन बनाएगा। जल्दी विकेट गिरने की सूरत में दबावों को कौन झेल पाएगा?

अगले वर्ष जून से 50-50 ओवरों वाला विश्वकप शुरू होगा। भारत दो बार एकदिवसीय क्रिकेट का विश्व विजेता बन चुका है। सन‍् 1983 में कपिल देव के लड़ाकों ने बिलकुल विपरीत हालात में वेस्टइंडीज को हराकर फाइनल जीता था। लॉर्ड्स पर विजेता-ट्रॉफी लेते हुए कपिल देव का मुस्कराता विनम्र चेहरा आज भी मन में बसा हुआ है। फिर सन‍् 2011 में महेंद्र सिंह धोनी के नेतृत्व में भारत ने दूसरी बार विश्वकप स्पर्धा जीती। अब जबकि विश्वकप जून, 2019 में शुरू होगा, दुनिया भर के देशों ने इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। पर, भारतीय खिलाड़ी तो लगातार अंतरराष्ट्रीय मैच खेलते ही जा रहे हैं। जब विश्वकप 50-50 ओवरों का है, ऐसे में टेस्ट मैचों का अभ्यास कहां तक ठीक है? ऑस्ट्रेलिया जाकर हम पहले ही टी-20, फिर टेस्ट मैच और बाद में 50-50 ओवरों के मैच खेल रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया को उसके घर में मात देना कठिन होगा। यह सही है कि स्टीव स्मिथ और डेविड वार्नर ऑस्ट्रेलियाई टीम में नहीं खेलेंगे। इसके बावजूद अपनी गेंदपट्टियों पर अपने दर्शकों के सामने वे हमेशा बेहतर खेलते हैं। फिर भारतीय स्पिनर्स वहां इतने प्रभावशाली नहीं दिखाई देंगे। स्पिनरों को विकेट से पकड़ और स्पिन इतनी नहीं मिलेगी। भारतीय जीतों में स्पिनरों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है।

परिवर्तन के तौर पर भारतीय क्रिकेट में यह अलग हुआ है कि भारत का तेज आक्रमण आज विश्वस्तरीय माना जाने लगा है। उमेश यादव, ईशांत शर्मा, मोहम्मद शमी, भुवनेश्वर कुमार और जसप्रीत बुमराह जैसे गेंदबाजों ने विपक्षी खेमों में आजकल तबाही मचा रखी है। इनमें बुमराह बहुत ही घातक गेंदबाज के रूप में उभर रहे हैं। अपने अपरंपरागत गेंदबाजी एक्‍शन, 140 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार, यॉर्कर गेंदें करने की अभूतपूर्व क्षमता और सही इलाकों में गेंद डालने की निरंतरता के कारण आज वे विश्व के सर्वश्रेष्‍ठ गेंदबाज माने जा रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया में उनका असर देखने को मिल सकता है। इंग्लैंड में होने वाले अगले विश्वकप में उनका फॉर्म भारत के लिए बहुत ही अहम रहने वाला है।

दुर्भाग्य से भारत में घरेलू क्रिकेट में गेंदपट्टियां जीवंत नहीं बनाई जा रही हैं। इस कारण खिलाड़ियों को उछाल वाली गेंदों पर बल्लेबाजी का अभ्यास नहीं हो पाता है। भारतीय क्रिकेट के बारे में भला सोचने वाले नेतृत्व को यह बात याद रखनी होगी कि विदेशों में जाकर एकदम बदली हुई परिस्थितियों में बड़े परिणाम हासिल करना आसान नहीं होता, क्योंकि क्रिकेट केवल जोश और भावनाओं के आधार पर नहीं खेला जाता। क्रिकेट के खेल में तकनीक और बदलती परिस्थितियों में स्वयं को ढाल सकने की काबिलियत का बड़ा महत्व होता है। के.एल. राहुल, रोहित शर्मा, शिखर धवन और दिनेश कार्तिक जैसे खिलाड़ी इंग्लैंड की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में असफल रहे थे। चेतेश्वर पुजारा पर जरूर भरोसा रहेगा। पर, स्ट्राइक लेते वक्त ज्यादा झुकने की उनकी आदत उछाल लेते ऑस्ट्रेलियाई विकेटों पर उन्हें मुश्किलों में डाल सकती है।

इस तरह चुनौतियां तो भारतीय क्रिकेट में अनेक हैं। लोढ़ा कमेटी की संहिता लागू करने के तूफान के बाद क्रिकेट के मूलभूत मुद्दों को हल करने की जरूरत है। आशा है, अब ऐसा किया जाएगा।

(लेखक जाने-माने क्रिकेट कमेंटेटर हैं)

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