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मुद्दे भटके मगर मतदाता मुखर

पारंपरिक दावेदारों भाजपा-कांग्रेस के बीच की लड़ाई बागियों और छोटे दलों की मौजूदगी से हुई दिलचस्प, प्रचार में दिख रहे सारे पैंतरे
दुआ की चाहतः अजमेर शरीफ में जियारत करने पहुंचे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी

राजस्थान में राज्यारोहण को लेकर सत्ता के दो पारंपरिक दावेदारों भाजपा और कांग्रेस के बीच लड़ाई कांटे की है। लेकिन, अक्सर दो भागों में बंटे रहने वाले चुनावी मैदान में कुछ और किरदारों के उभरने से कहीं लड़ाई त्रिकोणीय तो कहीं बहुकोणीय दिख रही है। भाजपा और कांग्रेस के अलावा बसपा, वामपंथी दल, नव गठित राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, भारत वाहिनी पार्टी और अभिनव राजस्थान जैसे कई दल चुनाव मैदान में डटे हैं। जानकार भी अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं कि इनकी मौजूदगी से किसका खेल बिगड़ेगा।

चुनाव प्रक्रिया की शुरुआत से ही दोनों प्रमुख दल आंतरिक असंतोष और बगावत से जूझ रहे हैं। कांग्रेस के 26 और भाजपा के 19 बागी मैदान में हैं। भाजपा सरकार में मंत्री सुरेंद्र गोयल, हेम सिंह भड़ाना, धन सिंह रावत, ओमप्रकाश हुड़ला और राजकुमार रिणवा पार्टी से बगावत कर चुनाव लड़ रहे हैं। टिकट नहीं पाने वाले पांच अन्य विधायक भी अपने-अपने चुनाव क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवार को चुनौती दे रहे हैं।

सत्ता से दूर बैठी कांग्रेस चुनावी बहस को विकास और सुशासन के मुद्दों पर केंद्रित रखने की कोशिश में थी। लेकिन, उसके नेताओं की आपसी प्रतिद्वंद्विता का फायदा उठाकर भाजपा ने धीरे-धीरे बहस को हिंदुत्व की तरफ धकेलना शुरू कर दिया। इस बीच, राज्य की सियासत ने राजनीति के वे सारे दांव-पेच और पैंतरे भी देखे हैं जिसके लिए वो बदनाम रही है। इसमें वंशवाद, जातिवाद और धार्मिक ध्रुवीकरण शामिल हैं। एंटी इंकंबेंसी फैक्टर के कारण शुरुआत में लड़खड़ाती दिखी भाजपा अब कुछ हद तक संभली नजर आ रही है। भाजपा सरकार के विरुद्ध किसानों की कथित खुदकशी, बेरोजगारी, खराब कानून-व्यवस्था, भ्रष्टाचार, दलित और आदिवासियों के मुद्दे और महिलाओं के विरुद्ध अत्याचार जैसे मुद्दे थे। लेकिन, भाजपा बहुत सफाई से चुनावी बहस को राम मंदिर और दूसरे भावनात्मक मुद्दों की ओर ले जाती दिख रही है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने एक चुनावी सभा में कहा, “राज्य में भाजपा सरकार ने बहुत काम किया है। लेकिन इसका ठीक से प्रचार नहीं कर सकी है।”

राज्य में 10 फीसदी मुस्लिम आबादी है। पिछली बार भाजपा ने चार मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। लेकिन, इस बार पार्टी ने केवल एक मुस्लिम को टिकट देना ठीक समझा। पार्टी ने अंतिम क्षणों में परिवहन मंत्री यूनुस खान को टोंक में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के खिलाफ खड़ा किया है। समझा जाता है कि पार्टी ने चुनावों में हिंदुत्व को प्रमुख मुद्दे के रूप में उभारने की गरज से ऐसा किया है। इसी कड़ी में भाजपा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभाएं करवा रहा है।

दूसरी ओर, कांग्रेस सत्ता में वापसी को लेकर अतिविश्वास का शिकार दिख रही। यही कारण है कि जब टिकटों का बंटवारा हुआ तो नेताओं में घमासान हो गया। पायलट की कोशिश थी कि उनके वफादारों को टिकट में वरीयता दी जाए तो दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी अपने समर्थकों के लिए जोर लगा रहे थे। इस आंतरिक संघर्ष में कुछ ऐसे लोगों को उम्मीदवारी मिल गई जो मैदान में कमजोर पड़ते दिख रहे हैं तो कुछ ऐसे लोग बाहर हो गए जो पार्टी के लिए बेहतर साबित हो सकते थे। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया,“पार्टी की समस्या तब बढ़ जाती है जब सत्ता मिलती साफ दिख रही हो।”

भाजपा के लिए उसका केंद्रीकृत चुनाव अभियान संचालन और मजबूत संगठन तंत्र इन चुनावों में बड़ी ताकत है। लेकिन किसान, मजदूर, कर्मचारी, दलित, आदिवासी और आम लोगों की नाराजगी उसे भारी पड़ सकती है। सीकर में रसीदपुरा गांव में एक किसान रामेश्वर ने बताया, “किसान वर्ग भाजपा से बहुत नाराज है। नाराजगी का एक बड़ा कारण यह भी है कि भाजपा के विधायक और सरकार के मंत्री आम लोगों से मिलते नहीं थे। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पास भी आम-अवाम के लिए वक्त नहीं होता था।” जोधपुर जिले के फलोदी के युवा बेरोजगार सुरेश और असलम ने बताया, “इस सरकार ने बेरोजगारों के लिए कुछ नहीं किया।” चुनावी सर्वेक्षणों और अवाम की नाराजगी को देख कर भाजपा सरकार के विरुद्ध रुझान का अंदाजा लगता है। लेकिन, सवाल यह है, क्या कांग्रेस इस रुझान का लाभ उठाने को तैयार है?

जाति समीकरण

दोनों प्रमुख दलों ने टिकट वितरण में जातिगत समीकरणों का ध्यान रखा है। राजनैतिक रूप से प्रभावशाली जाट समुदाय से भाजपा और कांग्रेस दोनों ने 33-33 प्रत्याशियों को खड़ा किया है। भाजपा ने राजपूत समाज के 26 लोगों को उम्मीदवारी दी है, जबकि कांग्रेस ने इस समाज के एक दर्जन लोगों को प्रत्याशी बनाया है। लेकिन, पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद्र सिंह का कांग्रेस में जाना भाजपा के लिए झटका माना जा रहा है। इसकी भरपाई के लिए उसने कोटा में पूर्व राज परिवार के सदस्य इज्यराज सिंह को पार्टी में लाकर राजपूतों को साधने की कोशिश की है। पारंपरिक रूप से भाजपा के साथ रहे राजपूतों की पिछले कुछ साल में इस पार्टी से दूरी बढ़ी है। राजपूतों के एक संगठन ‘करणी सेना’ के सुखदेव सिंह गोगामेड़ी कहते हैं, “हम पहले कांग्रेस का साथ देना चाहते थे। लेकिन, उसने राजपूतों को टिकट देने में तंगदिली दिखाई है। ऐसे में हमारा समर्थन प्रत्याशी की नीति पर निर्भर करेगा।” राजस्थान जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील कहते हैं, “समाज का रुझान कांग्रेस की तरफ है।”

दलित समुदाय के लोग दोनों ही पार्टियों से नाराज हैं। ‘दलित अधिकार केंद्र’ के पी.एल. मीमरोठ ने बताया, “दलित भाजपा को वोट नहीं देना चाहते। लेकिन वे कांग्रेस से भी खुश नहीं हैं।” फिर भी उन्हें लगता है कि दलितों का झुकाव कांग्रेस की तरफ होगा, क्योंकि वह कुछ हद तक दलितों की हिमायत करती है। राज्य में अनुसूचित वर्ग की आबादी 17 फीसदी है। इस वर्ग के लिए 34 सीट है। पिछली बार भाजपा ने इनमें 32 पर जीत हासिल की थी। दलित कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने बताया, “बेशक दलित समाज कांग्रेस से खफा है। लेकिन, उसे लगता है कि कांग्रेस ही भाजपा को शिकस्त दे सकती है। इसलिए दलित समाज कांग्रेस को ही समर्थन देगा।”

मारवाड़ का हाल

मरुस्थली भू-भाग वाले पश्चिमी राजस्थान यानी मारवाड़ में ऑयल रिफाइनरी, नर्मदा का पानी, किसान और बेरोजगारी बड़े मुद्दे हैं। पिछले चुनाव में यहां की 43 सीटों में से 39 पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का चुनाव क्षेत्र सरदारपुरा भी इसी संभाग में है। ऑयल रिफाइनरी को लेकर गहलोत सरकार पर बराबर हमले करते रहे हैं। पूर्ववर्ती कांग्रेस ने बाड़मेर में रिफाइनरी की नींव रखी थी। लेकिन बाद में भाजपा सरकार ने यह कहकर दोबारा करार-पत्र लिखने पर जोर दिया कि पिछली सरकार ने राज्य हित का नुकसान किया है। विपक्ष का कहना है कि रिफाइनरी के काम में विलंब से बहुत नुकसान हुआ है, क्योंकि इससे रोजगार के अवसर पैदा होते और अर्थव्यवस्था को बल मिलता।

ब्यावर के शहाबुद्दीन ने बताया कि बजरी (कंस्ट्रक्शन में काम आने वाली रेत) पर डेढ़ साल से रोक है। इससे निर्माण गतिविधियां बंद है। इसका निपटारा नहीं होने के कारण बेरोजगारी बढ़ी है और लोगों के पास काम नहीं है। इस बात का समर्थन जोधपुर के लाइट इंडस्ट्रियल एरिया में मजदूरी करने वाले गणपत मेघवाल भी करते हैं। 

मारवाड़ के जालोर, सिरोही जिलों के लिए पिछले चुनावों में भाजपा ने नर्मदा के पानी का वादा किया था। लेकिन यह योजना आगे नहीं बढ़ने से किसान नाराज हैं। कांग्रेस ने जोधपुर की उपेक्षा को भी मुद्दा बना रखा है। पिछले चुनावों में कांग्रेस का जोधपुर जिले में सफाया हो गया था। इस बार पार्टी ने पूर्व मंत्री महिपाल मदेरणा की बेटी दिव्या को ओसियां सीट से और पूर्व विधायक मलखान सिंह विश्नोई के पुत्र महेंद्र को लूणी से प्रत्याशी बनाया है। महिपाल और मलखान दोनों भंवरी कांड में जेल में बंद हैं। लेकिन, इन दोनों परिवारों का सियासी तौर पर प्रभाव भी है।

कांग्रेस ने हाल में पार्टी में आए मानवेंद्र सिंह को झालावाड़ में वसुंधरा राजे के सामने खड़ा कर मुकाबला रोचक बना दिया है। मानवेंद्र के लिए यह नया क्षेत्र है। वे सीमावर्ती बाड़मेर जिले से हैं, जबकि झालावाड़ की सरहद मध्य प्रदेश से लगती है। भाजपा का कहना है कि मानवेंद्र कोई चुनौती पेश नहीं कर पाएंगे। लेकिन, कांग्रेस को लगता है कि वह मुख्यमंत्री को घेरने में कामयाब रहेगी। झालावाड़ में एक कांग्रेस नेता ने बताया, “दरअसल, पार्टी ने कभी भी इस सीट पर ध्यान दिया ही नहीं। इसका फायदा उठाकर भाजपा ने झालावाड़ में अपनी जड़ें मजबूत कर लीं।”

मानवेंद्र के पार्टी छोड़ने के कारण भाजपा को राजपूत वोटों के लिए इस बार अतिरिक्त प्रयास करने पड़े हैं। यही कारण है कि उसने महंत प्रतापपुरी को पोकरण से उम्मीदवार बनाया है। मारवाड़ के कई क्षेत्रों में कांग्रेस के लिए बागी चुनौती बने हुए हैं। भाजपा भी मंत्री सुरेंद्र गोयल की बगावत से निबट नहीं पाई है। गोयल विद्रोह कर पाली जिले के जैतारण सीट से चुनाव मैदान में हैं।

मेवाड़ की चुनौतियां 

आदिवासी बहुल मेवाड़ में बीते चुनाव की कामयाबी को कायम रखने के लिए भाजपा बहुत मशक्क्त कर रही है। पिछले चुनाव में भाजपा ने इस क्षेत्र की 28 सीटों में से अधिकांश पर कब्जा कर लिया था। मेवाड़ में गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया, शिक्षा मंत्री किरण माहेश्वरी और नगरीय विकास मंत्री श्रीचंद कटारिया को अपनी सीट बचाए रखने के लिए खासी मेहनत करनी पड़ रही है। कटारिया के सामने कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गिरिजा व्यास को उतारा है। कांग्रेस के दिग्गज नेता सी.पी. जोशी राजसमंद के नाथद्वारा से दोबारा चुनाव मैदान में हैं। 2008 में इस सीट से जोशी एक वोट से चुनाव हार गए थे। तब उनके समर्थकों का कहना था कि अगर जोशी जीत जाते तो वे मुख्यमंत्री बनते। लेकिन अब कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में जोशी कुछ कमजोर पड़ गए हैं। हाल में एक चुनावी सभा में जोशी के विवादास्पद भाषण पर पार्टी को सफाई देनी पड़ी थी।

मुख्यमंत्री राजे मेवाड़ का दौरा करती रही हैं और इस बार भी अपने चुनाव अभियान की शुरुआत इसी इलाके के चारभुजा से की थी। पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत भी अपने कार्यकाल की मुफ्त दवा योजना जैसे कार्यों का हवाला देकर इस इलाके में वोट मांग रहे हैं। गहलोत ने आरोप लगाया है कि यूपीए सरकार के वक्त बांसवाड़ा के लिए रेल लाने की योजना शुरू की गई थी। लेकिन, भाजपा सरकार ने इसे रोक दिया। कांग्रेस ने मनरेगा को भी मुद्दा बना रखा है। पार्टी का आरोप है कि भाजपा सरकार ने मनरेगा को प्रभावहीन बना दिया है।

इन चुनावों में भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के मंच से नया नेतृत्व उभर रहा है। कुछ प्रेक्षक बताते हैं कि सियासत में नमूदार हो रहे इस नेतृत्व में ऐसे नेता हैं जो असहमति और मतभिन्नता को बर्दाश्त करने का माद्दा नहीं रखते। वे बहुत जल्दी शीर्ष पर पहुंचना चाहते हैं। प्रेक्षक कहते हैं या तो वे सियासत को बदल देंगे या फिर राजनीति उन्हें बदल देगी। 

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